नैनी झील के बाबत उम्मीद की किरणें


Mandir-Masjid-Gurudwara, Nainital
Mandir-Masjid-Gurudwara, Nainital

Also can be seen in PDF format by clicking Here @ ummend ki kiran

अमेरिकी ‘औगर’ मशीन रख सकती है नैनी झील की सेहत का खयाल

विश्व प्रसिद्ध नैनी झील को नव जीवन देने के लिये एरियेशन जैसी ही बढ़ी सफलता मिलने की उम्मीद बांधी जा सकती है। एरियेशन से जहां दो तिहाई मृत हो चुकी नैनी झील को आक्सीजन घोलकर एक तरीके से नई सांसें दी जा रही हैं, वहीं अब झील में मलवा व गंदगी जाने की बढ़ी समस्या का निदान खोजने में कमोबेस सफलता अर्जित कर ली गई है। अमेरिकी मशीन ‘औगर’ इस समस्या का समाधान हो सकती है, जो एक सेंसर के माध्यम से नालों मलवा व गंदगी आते ही ऑटोमैटिक तरीके से चलने लगेगी, और किसी भी तरह की गंदगी को झील में जाने ही नहीं देगी। जी हां, यह अविश्वसनीय सी लगने वाली बात जल्द सच हो सकती है। नगर पालिका व झील विकास प्राधिकरण की पहल पर झील में एरियेशन कर रहे पैराडाइज नार्थ वेस्ट ग्लोबल एक्वा ट्रीटमेंट टेक्नोलॉजी कंपनी ने यूएसए निर्मित इस मशीन को खोज निकाला है। संस्था के रपिंदर सिंह रंधावा के अनुसार अमेरिका के एलोनाई प्रांत में अमीटी शहर के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट मशीन में यह मशीन आश्चर्यजनक तरीके से सफाई का कार्य कर रही है। यहां इस मशीन को शुरुआत में झील में सर्वाधिक गंदगी लाने वाले अल्का, नैना देवी, बोट हाउस क्लब सहित पांच नालों में लगाया जा सकता है। मशीन लगाने के लिये नालों के मुहानों पर पूर्व में अंग्रेजों के द्वारा मलवा हटाने के लिये किये गये ‘कैचपिट’ के प्रबंध की तरह ही गहरे गड्ढे बनाये जाऐंगे। सामान्यतया बारिश के दौरान ही गंदगी कीचड़ के रूप में झील में आती है। ऐसी गंदगी आते ही मशीन सेंसर के माध्यम से ऑटोमेटिक मोड में चल पड़ेगी, और मिट्टी, पत्थर आदि भारी गंदगी सहित तैरने वाले प्लास्टिक, थर्माेकोल, जूता, चप्पल आदि जैसी हल्की गंदगी को ग्राइंडर की मदद से पीस डालेगी, तथा भारी व हल्की दोनों तरह की गंदगी को अलग-अलग कन्वेयर के माध्यम से बाहर निकालकर (कंप्रैश) दबाकर ठोस रूप मंे बारों में इकट्ठा कर लेगी। बताया गया है कि ऐसी ग्राइंडर रहित एक मशीन में करीब 35 लाख रुपये की लागत आती है। यहां की जरूरत अनुसार मशीन बनाने में 40 से 45 लाख तक का खर्च भी आ सकता है। कहा जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ सरीखी संस्थाऐं ऐसे मानव स्वास्थ्य के लिये उपयोगी मशीनों को लगाने में आर्थिक मदद भी करती है, ऐसे में यह मशीन सस्ती भी हो सकती हैं। नैनीताल नगर पालिका के अध्यक्ष मुकेश जोशी ने ऐसी मशीन को नैनी झील को नव जीवन देने के लिये बहुपयोगी बताते हुऐ पालिका की ओर से इस मशीन हेतु पूरा आर्थिक सयोग देने की बात कही। वहीं झील विकास प्राधिकरण के प्रोजक्ट इंजीनियर सीएम साह ने भी औगर मशीन के नैनी झील के लिये चमत्कारिक स्तर तक उपयोगी होने की उम्मीद जताई है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि ऐसी मशीन नैनी झील में लगती है, तो मानव की गलतियों का उपचार कर सकती है, क्योंकि लाख प्रयासों के बावजूद नगर वासियों को झील में गंदगी, मलवा डाले जाने से रोका जाना प्रशासन के लिये नामुमकिन ही साबित हो रहा है।

अंग्रेजी दौर की सिफारिशों से नैनीताल को बचाने की कोशिश
आखिर नैनीताल प्रशासन को 1869 एवं 1873 में सरोवरनगरी की सुरक्षा के बाबत अपनी मत्वपूर्ण सिफारिशें देने वाली हिल साइड सेफ्टी कमेटी (पूरा नाम रेगुलेशन इन कनेक्शन विद हिल साइड सेफ्टी एंड लेक कंटंªोल, नैनीताल) की याद आ गई लगती है। इस समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुुऐ लोक निर्माण विभाग के प्रांतीय एवं निर्माण खंडों ने संयुक्त रूप से 58.02 करोड़़ रुपयों का प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसे आगे विभागीय स्तर पर अधीक्षण अभियंता, मुख्य अभियंता आदि से होते हुऐ शासन को भेजा जाना है। खास बात यह है कि यह प्रस्ताव प्रदेश के राज्यपाल डा. अजीज कुरैशी की पहल पर तैयार किया गया है।
गौरतलब है कि देश-प्रदेश के महत्वपूर्ण व भूकंपीय संवेदनशीलता के लिहाज से जोन चार में रखे गये नैनीताल नगर की कमजोर भू-गर्भीय संरचना के नगर की सुरक्षा पर अंग्रेजों के दौर से ही चिंता जताई रही है। नगर में अंग्रेजी दौर में 1867, 1880, 1898 व 1924 में भयंकर भूस्खलन हुऐ थे। 1880 के भूस्खलन ने तो तब करीब 2,500 की जनसंख्या वाले तत्कालीन नैनीताल नगर के 151 लोगों को जिंदा दफन करने के साथ ही नगर का नक्शा ही बदल दिया था। इसी दौर में 1867 और 1873 में अंग्रेजी शासकों ने नगर की सुरक्षा के लिये सर्वप्रथम कुमाऊं के डिप्टी कमिश्नर सीएल विलियन की अध्यक्षता में अभियंताओं एवं भू-गर्भ वेत्ताओं की हिल साइड सेफ्टी कमेटी का गठन किया था। इस समिति में समय-समय पर अनेक रिपोर्ट पेश कीं, जिनके आधार पर नगर में बेहद मजबूत नाला तंत्र विकसित किया गया, जिसे आज भी नगर की सुरक्षा का मजबूत आधार बताया जाता है। इस समिति की 1928 में नैनी झील, पहाड़ियों और नालों के रखरखाव के लिये आई समीक्षात्मक रिपोर्ट और 1930 में जारी स्टैंडिंग आर्डरों को ठंडे बस्ते में डालने के आरोप शासन-प्रशासन पर लगातार लगते रहते हैं, और इसी को नगर के वर्तमान हालातों के लिये बड़ा जिम्मेदार माना जाता है।
बहरहाल, इधर गत पांच जुलाई 2012 को प्रदेश के राज्यपाल डा. अजीज कुरैशी ने नैनीताल राजभवन में नगर की सुरक्षा के मद्देनजर नगर के गणमान्य व जानकार लोगों तथा संबंधित विभागीय अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक ली थी। जिसके बाद तेज गति से दौड़े लोनिवि ने नगर की पहाड़ियों में हो रहे जबर्दस्त भूस्खलन व कटाव के लिये नगर के कुल छह में से नैनी झील के जलागम क्षेत्र के चार नालों में से अधिकांश के क्षतिग्रस्त होने को प्रमुख कारण बताया है, तथा इनका सुधार आवश्यक करार दिया है। इन कार्यों के लिये प्रांतीय खंड के अधीन 13.3 करोड़ एवं निर्माण खंड के अधीन 4.69 करोड़ मिलाकर कुल 58.6 लाख यानी करीब 58.02 करोड़ रुपये के कार्यों का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। लोनिवि प्रांतीय खंड के अधिशासी अभियंता जेके त्रिपाठी ने उम्मीद जताई कि जल्द प्रस्तावों को शासन से अनुमति मिल जाऐगी। बहरहाल, माना जा सकता है कि यदि राज्यपाल के स्तर से हुई इस पहल पर शासन में अमल हुआ तो नैनीताल की पुख्ता सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है।

प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु

  • राजभवन की सुरक्षा को नैनीताल बाईपास से गोल्फ कोर्स तक निहाल नाले में बचाव कार्य
  • नालों की मरम्मत एवं पुर्ननिर्माण होगा
  • आबादी क्षेत्र के नाले स्टील स्ट्रक्चर व वेल्डेड जाली से ढकेंगे
  • नालों के बेड में सीसी का कार्य
  • नालों एवं कैच पिट से मलवा निस्तारण
  • नाला नंबर 23 में यांत्रिक विधि से मलवा निस्तारण हेतु कैच पिटों का निर्माण
  • मलवे के निस्तारण के लिये दो छोटे वाहनों की खरीद
  • नैनीताल राजभवन की सुरक्षा को 38.7 करोड़ का प्रस्ताव

लोनिवि द्वारा तैयार 58.02 करोड़ के प्रस्तावों में सर्वाधिक 38.7 करोड़ रुपये नैनीताल राजभवन की सुरक्षा के लिये निहाल नाले के बचाव कार्यों पर खर्च होने हैं। लोनिवि की रिपोर्ट में नैनीताल राजभवन से लगे गोल्फ कोर्स के दक्षिणी ढाल की तरफ 20-25 वर्षों से जारी भूस्खलन पर ही चिंता जताते हुऐ इस नाले से लगे नये बन रहे नैनीताल बाईपास से गोल्फ कोर्स तक की पहाड़ी की प्लम कंक्रीट, वायर क्रेट नाला निर्माण, साट क्रीटिंग व रॉक नेलिंग विधि से सुरक्षा किये जाने की अति आवश्यकता बताई गई है।

तब भी मिलती थीं नगर की चिंता जताने पर गालियां
नैनीताल नगर में प्रदूषण के बारे में 1890 से ही चिंता जताई जाने लगी थी। मिडिल मिस नाम के जियोलॉजिस्ट से सर्वप्रथम 1890 में नगर के सुरक्षित एवं असुरक्षित क्षेत्रों के बारे में एक रिपोर्ट दी, जिसे बनाने में उन्हें नगर वासियों ने खूब गालियां दीं। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने लिखा है, “I should bring a shower of abuses upon myself where I had to colour a map of the station (Nainital), showing all the dangerous localities.” यानी जब वह नगर के सुरक्षित व असुरक्षित क्षेत्रों का नगर के नक्शे पर अलग रंगों से प्रदर्शित कर रहे थे, उन्हें नगर वासियों की खूब गालियां खानी पड़ी थीं।