पहाड़ चढ़ेगी रेल ! बिना सुरंग केवल चार पुलों से 610 मीटर ही चढ़ कर पहुँच जाएगी बागेश्वर !


Train-प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व 1888-89 में ही अंग्रेजों ने करा दिया था इस रेल मार्ग का सर्वेक्षण
-137 किमी के इस रेल पथ में केवल 610 मीटर का ही उतार-चढ़ाव होगा, लग सकते हैं टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन को पंख
नवीन जोशी, नैनीताल। गत दिवस केंद्रीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु द्वारा गैरसेंण में टनकपुर से बागेश्वर रेल लाइन के निर्माण पर वक्तव्य देने के बाद यह प्रस्तावित रेल पथ पुन: चर्चा में आ गया है। इस बाबत पूर्व में भी अपने अध्ययन के बाद बनाये गये प्रस्ताव को दिखा चुके कुमाऊं विश्व विद्यालय के भूगोल विभाग के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डा. जीएल साह ने दावा किया है कि उनकी प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर ही राष्ट्रीय महत्व की परियोजना के रूप में शामिल हुई और पुन: इसकी घोषणा हुई है। उन्होंने ही बीते दिनों रेल मंत्री सुरेश प्रभु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस रेल पथ के बारे में विस्तृत प्रस्ताव भेजा दिया था, जिसके आधार पर ही श्री प्रभु ने इस मार्ग के बारे में घोषणा की है।

डा. साह ने बताया कि टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन की महत्वाकांक्षी हिमालयी रेल परियोजना के बारे में प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व 1888-89 तथा बाद में 1911-12 में अंग्रेजी शासकों द्वारा तिब्बत तथा नेपाल के साथ सटे इस पर्वतीय क्षेत्र के लिए आर्थिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति के अतिरिक्त इसकी भू-राजनैतिक उपयोगिता तथा प्रचुर वन सम्पदा को ध्यान में रखकर व सैनिकों के सरल प्रवाह के निमित्त इस क्षेत्र में सर्वेक्षणों की श्रृंखला से प्रारम्भ किया था। इन सर्वेक्षणों के साक्ष्य आज भी इस क्षेत्र में मिलते हैं। हालांकि प्रथम विश्वयुद्ध के कारण उपजी समस्याओं के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में जाती रही और बाद के योजनाकारों द्वारा विस्मृत कर दी गयी। आगे स्वतंत्र भारत में 1960-70 के दशक में गांधीवादी पद्मश्री स्व. देवकी नंदन पांडे के नेतृत्व में स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी स्व. राम लाल साह एवं डा. साह के पिता तत्कालीन बागेश्वर विकास खंड के प्रमुख स्व. ईश्वरी लाल साह ने इस योजना को पुर्नजीवित करने के प्रयास किये। 1980 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इदिरा गांधी के बागेश्वर आगमन पर भी इस मांग के ज्ञापन सौपे गये। जिसके बाद 1984 में इसके सर्वेक्षण के लिए सरकार द्वारा बजट आवंटित कर सर्वेक्षण का कार्य प्रारम्भ हुआ, किंतु फिर लगभग दो दशकों तक योजना नेपथ्य में चली गयी। इधर राज्य बनने के बाद दिसम्बर 2004 में बागेश्वर-टनकपुर रेल मार्ग निर्माण संघर्ष समिति ने इस मांग पर बागेश्वर से दिल्ली के जंतर-मंतर तक संघर्ष किया। आगे 2007 में कुमाऊं के निजी भ्रमण पर आये तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने पुन: इसके निर्माण के लिये त्वरित सर्वेक्षणों के आदेश दिये। आगे वर्ष 2012 के रेल-बजट में तत्कालीन रेल मंत्री मुकुल राय ने इस रेल लाइन को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देकर इसे देश की चार राष्ट्रीय रेल परियजनाओं में सम्मिलित किया।

जनपक्ष आज, 5 दिसंबर 2016. पेज-2
जनपक्ष आज, 5 दिसंबर 2016. पेज-2

उल्लेखनीय है कि तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने वर्ष 2010 में लोकसभा चुनाव के पहले नैनीताल, कौसानी व बागेश्वर भ्रमण के दौरान नैनीताल में सर्वप्रथम पत्रकारों (जिसमें लेखक भी शामिल था) के यह कहते हुए औचित्य समझाने पर कि उनके प्रदेश बिहार और उत्तराखंड एक जैसी पलायन की समस्या से ग्रस्त हैं। पलायन के कारण उत्तराखंड का चीन से लगा सीमावर्ती क्षेत्र खाली होता जा रहा है। रेल लाइन बनने से लोग यहां रुकेंगे, और देश की सीमाएं मजबूत होंगी, बताने पर ही सर्वप्रथम बागेश्वर-टनकपुर रेल लाइन के बारे में पहला सकारात्मक बयान दिया था, और आगे केंद्रीय रेल बजट में 110 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन बिछाने की स्वीकृति प्रदान की थी। और आगे रेल बजट में घोषित इस रेल लाइन का अक्टूबर 2010 में सर्वे किया गया था। गौरतलब है कि इससे एक दिन पूर्व रामनगर में उन्होंने इस रेल लाइन को औचित्यहीन ठहराया था। आगे रेलमंत्री मुकुल रॉय ने वर्ष 2012 में टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना घोषित करने का ऐलान किया था। इधर बीते दिनों पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक केके अटल ने सर्वेक्षण रिपोर्ट रेल मंत्रालय को सौंपे जाने की जानकारी दी थी। मंगलवार को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत ने कहा कि रेल बजट में इस बाबत घोषणा होने और इस रेल लाइन के आगे बढ़ने में कोई संदेह नहीं है। 

डा. साह ने अपने सर्वेक्षण के आधार पर बताया कि प्रस्तावित रेल लाइन 1909-10 में स्थापित टनकपुर स्टेशन से बागेश्वर तक शारदा (काली) व सरयू के समानान्तर उतार-चढाव एवं मोडदार पथ पर स्टेशनों एवं पुलों से आगे बढती हुयी लगभग 137 किमी की होगी। पहला स्टेशन पोथ या चूका गांव पर टनकपुर से 46 किमी पर, दूसरा मदुवा लगभग २५ किमी पर, तीसरा पंचेश्वर लगभग 16 किमी आगे, चौथा घाट 19 किमी पर, पांचवा भैंसियाछाना या सेराघाट 33 किमी पर तथा छठा बिलौना या बागेश्वर स्टेशन 18 किमी पर होगा। उन्होंने बताया कि 137 किमी की इस रेल लाइन में से करीब 67 किमी लाईन चीन व नेपाल की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के समानान्तर होगी। लिहाजा इससे सैनिक गतिविधि की निगरानी, सेना एवं भारी सैन्य सामग्री के लाने-ले जाने के लिए इसका उपयोग किया जा सकेगा, साथ ही निर्माणधीन पंचेश्वर बांध के निर्माण के लिए तथा कैलाश मानसरोवर यात्रा, पूर्णागिरि धाम, उच्च हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों में पर्यटन व आधारभूत सुविधाओं के विस्तार के लिये भी यह मील का पत्थर साबित होगी। प्रदेश की करीब 55 लाख जनता को भी इससे लाभ मिलेगा।

Article on Devbhumi Sandesh 16-31 October 2014
Article on Devbhumi Sandesh 16-31 October 2014

लंबा रहा है संघर्ष का इतिहास:

गौरतलब है कि वर्तमान में उत्तराखंड के कुमाऊं मण्डल के काठगोदाम, रामनगर और टनकपुर और गढ़वाल मण्डल के कोटद्वार और ऋषिकेश तक ही रेलमार्ग हैं। यह सभी स्टेशन मैदानी इलाकों के अन्तिम छोर पर हैं, अर्थात पहाड़ों में एक किलोमीटर का भी रेलमार्ग नही है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इन स्थानों तक भी रेलमार्गों का निर्माण आज से लगभग 70-80 साल पहले ब्रिटिश शासन काल में ही हो चुका था। स्वतन्त्र भारत में उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में रेल पहुंचाने की कोशिश के अन्तर्गत एक मीटर भी रेल लाइन नहीं बिछ पाई। टनकपुर-बागेश्वर रेललाइन का सर्वे सन् 1912 में ही हो चुका था। पुनः सन् 2006 में इस मार्ग का सर्वे करवाया गया है। वर्ष 1960-70 के दशक में पद्मश्री देवकी नंदन पांडे ने पहाड़ों में रेलमार्ग बनाये जाने की मांग पहली बार उठाई थी, उसके बाद कई संघर्ष समितियां इस मुद्दे पर सड़क से लेकर संसद तक, हर मंच पर पहाड़ की इस मांग को उठा चुकी हैं। बागेश्वर-टनकपुर रेलमार्ग संघर्ष समिति के सदस्य जन्तर-मन्तर में दो बार आमरण अनशन कर चुके हैं।

बड़ा पिछड़ा क्षेत्र होगा लाभान्वित

प्रस्तावित टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन के मार्ग में धौलीगंगा, टनकपुर और पंचेश्वर जैसी वृहद विद्युत परियोजनायें चल रही हैं। इसके अतिरिक्त इस मार्ग में पड़ने वाले अत्यन्त दुर्गम और पिछड़े इलाके जैसे-बागेश्वर के कत्यूर, दानपुर, कमस्यार, खरही अल्मोड़ा के रीठागाड़ और चौगर्खा, पिथौरागढ़ के घाट, गणाई और गंगोल और चम्पावत के गुमदेश और पंचेश्वर इलाके की लगभग 10 लाख जनता इस सुगम परिवहन से जुड़ सकेगी।

अपेक्षाकृत बहुत आसान होगा टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का निर्माण

प्रस्तावित टनकपुर-बागेश्वर रेल पथ का मानचित्र
प्रस्तावित टनकपुर-बागेश्वर रेल पथ का मानचित्र

कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के डा. जीएल साह ने टनकपुर से बागेश्वर तक तीन माह के अथक परिश्रम के बाद भूगर्भीय सर्वेक्षण करते हुए अपनी रिपोर्ट रेल मंत्रालय को भेजी थी। इस सर्वे में कंप्यूटर, उपग्रह चित्र और भौतिक सर्वेक्षणों को आधार बनाया गया था। बताया जा रहा है कि इस परियोजना के पूरा होने से बागेश्वर के साथ ही ट्रेकिंग के शौकीन सैलानियों के स्वर्ग पिंडारी, कफनी व सुंदरढूंगा ग्लेशियरों के लिए 142 किमी का फासला कम होगा। बताया गया है कि इस प्रस्तावित योजना में कुल 137 किलोमीटर लम्बी रेल लाइन बिछाई जानी है, जिसमें से 67 किमी लाइन अंतराष्ट्रीय सीमा (भारत-नेपाल) के समानान्तर बननी है। पंचेश्वर के बाद यह रेलमार्ग सरयू नदी के समानान्तर बनना है। इस रेल लाइन के बिछाने पर विस्थापन भी नहीं के बराबर होना है, क्योंकि महाकाली और सरयू दोनों नदियां घाटियों में बहती हैं। ये घाटियां भौगोलिक स्थिति से काफी मजबूत हैं। इस प्रस्तावित योजना में सिर्फ चार बड़े रेल पुलों का निर्माण करने की जरूरत पड़ेगी। पर्वतीय रेल व सड़क योजनाओं में मुख्य तकनीकी पक्ष ऊंचाई ही है, लेकिन इस लाइन को टनकपुर (समुद्र तल से ऊंचाई 244 मीटर) से बागेश्वर (854 मीटर) तक पहुंचने में 137 किमी की दूरी में मात्र 610 मीटर की ऊंचाई ही पार करनी होगी। अन्य पर्वतीय रेल योजनाओं की ऊंचाई की तुलना की जाये तो कालका से शिमला तक से 98 किमी की दूरी तय करने में 1433 मीटर और रूद्रपुर-काठगोदाम के मध्य 44 किमी में 342 मीटर की ऊंचाई पार करनी पड़ती है। वहीं उत्तराखंड की 125 किमी लम्बी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाईन अपने सम्पूर्ण पथ में शिवालिक तथा लघु हिमालय पर्वत श्रेणियों को कोरते लगभग 100 किमी सुरंगों से गुजरेगी, जबकि टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन पर एक भी सुरंग बनाने की जरूरत नहीं होगी, और पुल भी केवल चार ही बनाने पड़ेंगे, और प्रस्तावित पुलों की चौडाई भी मैदानी तथा भाबर के नदियों की तुलना में काफी कम होगी। इससे स्पष्ट है कि तकनीकी रूप से भी टनकपुर से बागेश्वर रेलमार्ग का निर्माण करना इस युग में कोई दुष्कर कार्य नहीं होगा।

उत्तराखंड में नई लाइनों का सर्वे शुरू

भाजपा सांसद तरुण विजय ने 2015 के रेल बजट के बाद बताया कि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में दशकों से लंबित बहुप्रतीक्षित व महत्वाकांक्षी तथा राष्ट्रीय सुरक्षा व सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राष्ट्रीय परियोजना में शामिल टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का प्रारंभिक इंजीनियरिंग व ट्रेफिकिंग सर्वेक्षण (प्रिलिमिनरी इंजीनियरिंग एंड ट्रेफिकिंग सर्वे-पीईटीएस) का कार्य पूरा कर लिया गया है। इस सर्वेक्षण में 50 करोड़ रुपए खर्च का अनुमान के साथ सामाजिक जरूरतों के लिए भी जरूरी बताई गई है। रेल मंत्री ने रामनगर से चौखुटिया और उसके गैरसैंण तक विस्तारीकरण की मांग को स्वीकार करते हुए 230 किमी लंबी रेल पटरी बिछाने का सर्वेक्षण बजट में स्वीकार कर लिया है। इसी प्रकार देहरादून-सहारनपुर 69 किमी, ऋषिकेश-देहरादून 20 किमी और देहरादून-कालसी 47 किमी रेल लाइन बिछाने के काम को हाथ में लिया गया है। उत्तराखंड में जहां 2014-15 में केवल 76 करोड़ रुपये के ऐसे रेलवे कार्य हाथ में लिए गए थे, जो लाइनों, डबलिंग व गॉज कन्वर्जन से संबंधित थे, वहीं 2015-16 में नरेंद्र मोदी सरकार में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने 304 करोड़ की राशि उत्तराखंड के रेल कार्यों को दी है, अर्थात पिछली सरकार की तुलना में उत्तराखंड के रेल कार्यों को 300 प्रतिशत की वृद्धि मिली है। इसी प्रकार यात्रियों की सुविधा के लिए वर्ष 2014-15 में उत्तराखंड की रेल लाइनों के लिए 148.15 करोड़ रुपये आवंटित थे,जिसमें 66.6 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 2015-16 के लिए यह राशि 334.41 करोड़ रुपये कर दी गई है। मैकेनिकल प्रोजेक्ट की दृष्टि से उत्तराखंड में 2015-16 में 316.67 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए एक करोड़ रुपये दिए गए हैं।

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रेलवे के ढांचे में बदलाव मंजूर नहीं

-ऑल इंडिया मेंस फेडरेशन की वर्किग कमेटी का दो दिवसीय सम्मेलन रेलवे में एफडीआई, पीपीपी मोड व बुलेट ट्रेन योजनाएं रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की चेतावनी

नैनीताल (एसएनबी)। ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) को मौजूदा रेल ढांचे में कुछ भी नया बदलाव मंजूर नहीं है। फेडरेशन की वर्किग कमेटी के दो दिवसीय सम्मेलन में महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने कहा कि केंद्र सरकार की एफडीआई, पीपीपी मोड, बुलेट ट्रेन आदि योजनाएं भारतीय रेल, रेल कर्मचारियों व यात्रियों के साथ ही देश के विकास के लिए घातक हैं। संगठन सरकार की इन मंशाओं को किसी कीमत पर लागू नहीं होने देगा और जरूरत पड़ी तो जनता को साथ लेकर राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया जाएगा। कहा गया कि केंद्र सरकार को नए प्राविधानों के बजाय रेल लाइनों की संख्या बढ़ाने व सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के कार्य करने चाहिए। एआईआरएफ भारतीय रेल की दो बड़ी राष्ट्रीय फेडरेशनों में से एक है। सोमवार को नगर के रेलवे गेस्ट हाउस में फेडरेशन की वर्किग कमेटी का दो दिवसीय सम्मेलन शुरू हुआ। फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष रखाल दास गुप्ता ने कहा कि जिस राकेश मोहन कमेटी की सिफारिशों को वर्ष 2000 में तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री नितीश कुमार को खारिज करना पड़ा था, उसे फिर से लागू करने की मंशा को कतई पूरा नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि एफडीआई का प्रभाव 1997 में पूरा दक्षिण एशिया में झेल चुका है, इसलिए इसे कतई मंजूर नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय महासचिव शिव प्रकाश मिश्रा ने कहा कि 15 सितम्बर को रेलवे के साथ देशभर की ट्रेड यूनियनें केंद्र सरकार की निजीकरण, एफडीआई को प्रोत्साहन व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ साझा संघर्ष के लिए मिलने जा रही हैं। उन्होंने बताया कि इस बाबत रेल मंत्री से मुलाकात में विरोध दर्ज करा दिया गया है। केंद्र सरकार रेलवे के स्वामित्व व ढांचे सहित सब कुछ बदलना चाहती है, एफडीआई के जरिए होने वाले विदेशी निवेश की कीमत देश को ही चुकानी पड़ेगी। उन्होंने कर्मचारियों को आगाह किया कि सरकार उनके सारे अधिकार छीनना चाहती है। इस दौरान आरके पांडे ने रेल में सुरक्षा तथा राजीव एवं प्रीति सिंह ने कर्मचारियों को आपस में जोड़ने के लिए नेटवर्किग पर प्रस्तुतीकरण दिये। इसके अलावा पूरे दिन अनेक विषयों पर विचार-मंथन चलता रहा। सम्मेलन में संगठन के अंतरराष्ट्रीय ट्रांसपोर्ट फेडरेशन के उपाध्यक्ष राजा श्रीधर, पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक केके अटल, डीआरएम बरेली चंद्रमोहन जिंदल, मुख्य कार्मिक नुरूल हसन, मयंक शर्मा, एन कन्हैया, केएल गुप्ता, मुकेश सक्सेना, शाखा अध्यक्ष भूदेव यादव, महासचिव अभिषेक सिन्हा, एके वर्मा, जीआर भोगले, मुकेश गहलो, चंपा वर्मा, नागेश्वर राव, मुकेश माथुर, आरसी शर्मा, आरडी यादव, विनय श्रीवास्तव, वेणु नायर, जया, अजय वर्मा, महेश शर्मा, हरभजन सिंह, एनसी पंत, शशिकांत पांडे, कामरान अहमद, विपिन ठाकुर, शकील, मनोज, ओमकार, दिनेश श्रीवास्तव, अतुल, सीएस गांधी व महेंद्र शर्मा सहित देशभर से आए 150 से अधिक प्रतिभागी सदस्य उपस्थित थे।

रेलवे के हालात: 

नैनीताल। सम्मेलन में बताया गया कि रेलवे देश में सवा लाख किमी रेल पटरियों पर रोज 20 से 25 हजार गाड़ियों का संचालन करता है और रोज दो करोड़ यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती है। विभाग में 13.26 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि तकनीकि सेवाओं से संबंधित 1.8 लाख सहित दो से ढाई लाख कर्मचारियों के पद रिक्त पड़े हैं। बड़ी संख्या में लोग आउटसोर्सिग के माध्यम से कार्य कर रहे हैं। रेलों में रेल कर्मियों की गलती से होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या बीते वर्षो में 50 फीसद से घटकर 39 फीसद हो गई है, जबकि रेलवे समपारों पर होने वाली दुर्घटनाएं 33 फीसद से बढ़कर 40 फीसद हो गई हैं। 1600 विभागीय कर्मचारी भी प्रतिवर्ष ऐसे हादसों का शिकार हो रहे हैं।

डा. जी0एल0 साह की प्रोजेक्ट रिपोर्ट : टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन (महत्वाकांक्षी हिमालयी रेल परियोजना) 

1-पृष्ठभूमि: प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व 1888-89 तथा 1911-12 में क्रमशः अंग्रेजी शासकों द्वारा तिब्बत तथा नेपाल के साथ सटे इस पर्वतीय क्षेत्र के लिए आर्थिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति के अतिरिक्त इसकी भू-राजनैतिक उपयोगिता को ध्यान में रखकर तथा प्रचुर वन सम्पदा व सैनिकों के सरल प्रवाह के निमित्त टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन की योजना का कार्यान्वयन इस क्षेत्र में सर्वेक्षणों की श्रृंखला से प्रारम्भ किया गया था। रेल लाइन के सर्वेक्षण के साक्ष्य आज भी इस क्षेत्र में यत्र-तत्र बिखरे मिलते हैं। प्रथम विश्वयुद्ध की दीर्घ अवधि जनित समस्याओं के चलते घीरे-धीरे अंग्रेजी शासकों की यह योजना ठंडे बस्ते में जाती रही और बाद के योजनाकारों द्वारा विस्मृत कर दी गयी। सन् 1960-70 के दशक में गांधीवादी पदमश्री स्व0 देवकी नन्दन पाण्डे के नेतृत्व में स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी स्व0 राम लाल साह एवं तत्कालीन बागेश्वर विकास खण्ड प्रमुख स्व0 ईश्वरी लाल साह (लेखक के पिता) ने टनकपुर रेलवे लाईन के लिए अंग्रेजी शासकों द्वारा करायें गये सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए इस योजना को पुर्नजीवित करेने के प्रयास किये। 1980 के दशक में श्रीमती इदिरा गॉधी के बागेश्वर आगमन पर सौपे गये ज्ञापनों में टनकपुर रेलवे लाईन की चर्चा की गयी तथापि यह प्रभावशाली अभिव्यक्ति नही बन सकी।
यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है कि इस क्षेत्र से जुडे विभिन्न राजनैतिक दलों के स्तरीय नेता भी इस महत्वकांक्षी योजना के लिए उत्साहवर्द्धक पहल करने में सदैव कंजूसी ही बरतते रहे,हॉं राष्ट्रीय नेताओं के यदाकदा इस क्षेत्र में आगमन पर इन रेलवे लाईनों के सर्वेक्षण की कार्ययोजनाओं पर ध्यान आकर्षित करना स्थानीय जनता ने कभी नही छोडा। यही कारण रहा कि लगभग 60 वर्षो से ठंडे बस्ते से निकल कर 1984 में इसके सर्वेक्षण के लिए सरकार द्वारा बजट आवंटित किया गया और टनकपुर- बागेश्वर रेल लाईन के लिए सर्वेक्षण का कार्य प्रारम्भ हो गया। धीरे-धीरे फिर जनता के विश्वास की परीक्षा ली गयी और लगभग दो दशकों के अन्तराल में यह रेल-परियोजना पुनः नेपथ्य में चली गयी और अनेक सरकारों की सैद्धान्तिक सहमति के बावजूद रेल बजटों में स्थानीय जनता की आशा गुमराह होती चली गयी ।
अनेक बार की झूठी घोषणाओं,आश्वासन, अधूरे पडे सर्वेक्षण तथा सरकारों की उदासीनता से आहत क्षेत्रीय जनता के सहयोग से बागेश्वर में कुछ उत्साही एव जुझारू युवाओं ने दिसम्बर 2004 में बागेश्वर-टनकपुर रेल मार्ग निर्माण संघर्ष समिति का गठन किया गया। पर्वतीय क्षेत्र में विकास की गति को बढाने ,पर्यटन ,परिवहन, माल ठुलाई,संसाधन उपयोग,व्यापार, वााणिज्य सामरिक महत्व आदि के विचारणीय पक्षों पर ध्यान देते हुए 2005 को संघर्ष समिति ने बागेश्वर-टनकपुर रेल मार्ग के साथ ऋषिकेश -कर्णप्रयाग तथा रामनगर-चखुटिया रेल मार्गो के निर्माण के लिए भारत सरकार को ज्ञापन दिये गये तथा उक्त प्रस्तावों के सापेक्ष पद या़त्राओं के द्वारा जनमत तैयार करने व आन्दोलन को धारदार बनाने के अनेक प्रयास किये। क्षेत्रीय एवं दिल्ली के जंतर-मंतर तक ( 2008 ,2,009 एवं 2010 ) में धरना, प्रदर्शन, अनशन एवं ज्ञापनों के शान्ति प्रिय माध्यमों द्वारा दस वर्षो में लगभग सैकडों ज्ञापनों को देकर संघर्ष समिति ने उत्तराखण्ड के विकास के लिए इस सोच को जिन्दा दफन होने से बचाये से रखा।
रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने सन 2007 के अपने उत्तराखण्ड भ्रमण पर दीर्घ समय से लम्बित रेल परिवहन की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं, टनकपुर- बागेश्वर एवं ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइनों के निर्माण के लिये त्वरित सर्वेक्षणों के आदेश देकर न केवल उत्तराखण्ड के कद्द्रावर नेताओं को ही हतप्रभ किया जो कि कभी भी इन महत्वकांक्षी योजनाओं के प्रस्ताव भी अपनी सरकार के समक्ष प्रखरता से प्रस्तुत करने का साहस कर सके वरन अपनी घोषणा से इस हिमालयी प्रदेश के विकास को एक नयी दिशा देने का यत्न किया है। रेल मंत्री की घोषणा की विश्वसनीयता की के चलते क्षेत्रीय जनता को यह उम्मीद बंधी किे दीर्घ अन्तराल के उपरान्त उत्तराखण्ड की महत्वकांक्षी रेल परियोजना निकट भविष्य में विकास के नवीन आयामों को छू लेगी। वर्ष 2012 के रेल-बजट में तत्कालीन रेल मंत्री, माननीय श्री मुकुल राय जी द्वारा इस पर्वतीय राज्य के जन आकांक्षाओं और जरूरतों के अनुरूप प्रस्तावित टनकपुर -बागेश्वर रेलवे लाइन को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देकर देश की चार रेल राष्ट्रीय परियोजनाओं ( National Project ) में सम्मिलित किया गया था। इसके साथ ही इन प्रस्तावित रेल-लाईनों के लिए प्रारम्भिक सर्वेक्षण कराये जाने की घोषणा की गयी थी।

2-पहाड़ी नगरों में रेल सम्पर्कः अर्वाचीन इतिहास की बातें:
औपनिवेशिक शासन की अवधि में भारत में अंग्रेजों की अधिसंख्य आबादी का संकेन्द्रण, राजनैतिक आर्थिक शक्ति के चार केन्द्रों क्रमशः बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली तथा मद्रास में रहा। फलत:शक्ति के इन्हीं केन्द्रों के समीप ऊँचाई एवं पहाडी क्षेत्रों में अंग्रेजों ने अपने लिए पर्वतीय सैरगाहों को बसाया गया । हिमालयी क्षेत्र में यूरोप के सदृश्य जलवायु पर्वतीय आकर्षण, सामाजिक-आर्थिक विविधता तथा सामरिक स्थिति ने इन केन्द्रों में सरल पहॅुच के लिए देश के प्रमुख नगरों से रेल एवं रोड संयोजन तथा अवस्थापना सुविधाओं की प्रगति प्रमुख आवश्यकता रही। इसी क्रम में सन् 1850 के दशक के बाद अंग्रजों ने उत्तरी हिमालयी प्रदेश एवं दक्षिण में निलगिरी एवं पश्चिमी घाट की पहाडियों में इन्हीं स्टेशनों के लिए छोटी रेल लाईनें बिछाने की चार महत्वकांक्षी पहाड़ी योजनाओं पर विचार किया। दक्षिण भारत की लगभग 100 वर्ष पुरानी नीलगिरी पर्वत खिलौना रेलगाड़ी तथा पश्चिमी घाट की पहाडियों में चलने वाली मथेरान लाइट रेलवे के साथ

हिमालयी क्षेत्र में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे खिलौना ट्रेन: (सिलीगुड़ी से 80 कि0मी0 दूर हिमालय में दार्जिलिंग (2127 मी0) को जोडने वाली यह दुनिया की सबसे कम दो फिट चौडी पटरियों वाले रेल पथ पर छोटी खिलौना गाड़ी सचमुच ही भारतीय हिमालय को रेल से जोड़ने की यह प्रथम महत्वाकाक्षी योजना रही जो कि सन् 1879 में क्रियान्वित और 1881 में पूर्ण हुयी। इसको हिमालय की प्रथम रेलगाड़ी का श्रेय भी जाता है।)

कालका-शिमला खिलौना रेल- (अंग्रेजी शासन में हिमालयी नगरों को रेल सम्पर्क द्वारा आच्छादित करने की योजनाओं में सर्वाधिक महत्वाकांक्षी परियोजना कालका-शिमला के मध्य रेल सम्पर्क की थी।यद्यपि इस योजना पर विचार विमर्श 1847 से पूर्व कर लिया गया था तथापि रेल लाईन बिछाने का कार्य 1898 में प्रारम्भ हो कर 1903 में यह पूर्ण हुआ । 98 कि0मी0 लम्बा रेलवे पथ कालका (640 मी0) को शिमला (2073 मी0) तक पहुॅचने में लगभग 1433 मीटर की उॅंच्चाई को पार करना पडता है। रेलवे लाइन की प्रवणता 1ः33 है। सम्पूर्ण घुमावदार एवं सर्पिल पथ (पटरियों के मध्य की दूरी मात्र 0.75 मीटर), 102 सुरंगों से गुजरता है जिनकी कुल लम्बाई 8 कि0मी0 है। ये रेलगाड़ियॉ न केवल तत्कालीन बेमिसाल इंजिनियरिंग का एक अनूठा उदाहरण है वरन आज भी पर्यटन विकास के ने आयामों को छू रही है तथा क्षेत्र की प्रगति की आधार स्तम्भ रही है।

काठगोदाम -नैनीताल -असफल माउन्टेन ट्रेन परियोजना: दार्जिलिंग एवं शिमला के तर्ज पर उत्तराखण्ड़ हिमालय के इस नीली झील वाले पर्यटक स्थल नैनीताल के लिए भी अंग्रेज एक छोटी रेल सम्पर्क की सम्भावनाओं को तलाशने में जुटे रहे। 1882-84 के मध्य हल्द्वानी तथा काठगोदाम के लिए रेल सम्पर्क जुडने के बाद 1889 में कर्नल थामसन ने माउन्टेन ट्रेन की एक योजना रानीबाग -ज्योलीकोट-बल्दियाखान को जोडते हुए नैनीताल तक बनाई गयी । इस रेल लाईन के लिए प्रारम्भिक सर्वेक्षण में नैनीताल की कमजोर भूगर्भिक बनावट मुख्य भ्रंश की उपस्थिति तथा धरातलीय उच्चावचनों की तीव्र प्रवणताजनित अवरोधों के फलस्वरूप अन्ततोगत्वा यह योजना 1895 में काल कलवित हो गयी।
अन्य हिमालयी रेल योजनाऐं
स्वतंत्रता के उपरान्त व्यापारिक , आर्थिक एवं सैन्य अनिवार्यताओं को ध्यान में रखते हुए हिमालय के आन्तरिक भागों में रेल सम्पर्क स्थापना के अनेक प्रयास किये गये। इसमें हिमाचल प्रदेश की 164 कि0मी0 लम्बी कंागडा घाटी रेलवे, तथा कश्मीर में 53 कि0मी0 लम्बी जम्बू तवी उधमपुर रेलवे महत्वपूर्ण योजनायें है।
उत्तराउत्तराखण्ड़ में रेल आगमन एवं प्रमुख रेल-पथ

रेल-पथ आगमन वर्ष
1-बरेली- हल्द्वानी- काठगोदाम 1882- 1884
2-लालकुऑ- काशीपुर 1900
3-काशीपुर-रामनगर 1905-06
4-पीलीभीत-मझौला-टनकपुर 1909-10
5-हरिद्वार-देहरादून 1903
6-नजीमाबाद-कोटद्वार 1904
8-बनबसा-महेन्द्रनगर(नैपाल) 1915-16
7-हरिद्वार-ऋषिकश 1930
8-सहारनपुर-लक्सर-हरिद्वार- अप्राप्त
9-मुरादाबाद-लक्सर-हरिद्वार-अप्राप्त

3- प्रस्तावित टनकपुर-बागेश्वर रेल लाईन -एक सर्वेक्षण रिपोर्ट:
भौगोलिक सूचना तंत्र (जी0आई0एस0) की कम्प्यूटर आधारित विधा के अनुप्रयोग द्वारा क्षेत्रीय उपलब्ध मानचित्र, उपग्रह चित्र ,भौतिक सर्वेक्षणों तथा क्षेत्रीय जनता से प्राप्त साक्षात्कार सूचनाओं के मिले-जुले परिणामों पर आधारित लगभग 137 कि0मी0 लम्बे इस रेलवे लाईन का मोटा खाका क्षेत्रीय जनता, नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर इस परियोजना से जुडे मंत्रालयों योजनाकारों के लिए लेखक द्वारा प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। टनकपुर से बागेश्वर तक यह रेल लाईन सदैव शारदा (काली) व सरयू के समानान्तर उतार-चढाव एवं मोडदार पथ पर अनेक स्टेशनों एवं पुलों से आगे बढती हुयी सारे क्षेत्रवासियों को रेल के साथ विकास के पथ से भी जोडेगी। प्रस्तावित रेल लार्इ्रन की व्यवहारिकता का मूल्यांकन, मैंदान तथा भाबर के मध्य चलने वाली उत्तराखण्ड की रेल लाईनों से भी किया गया है ताकि उच्चावच्चनों की अनेक भ्रान्तियॉ दूर हो सके तथा योजना का तथ्यपरक मूल्यांकन सम्भव हो सके।संम्भावित रेलवे स्टेशनों के मध्य परस्पर दूरी, उँचाईयों के परास, प्रस्तावित छोटे बडे पुल, जनपद तहसील एवं विकास खण्ड़ स्तर पर लाभान्वित गॉव और अनुमानित जनसंख्या, पंचेश्वर बांध, पडोसी देश नेपाल के साथ अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के फलस्वरूप सामरिक महत्व तथा उत्तराखण्ड के रेलवे लाईनों की प्रवणता से तुलनात्मक विश्लेषण द्वारा इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लाभों एवं अंततोगत्वा विकास के लिए व्यवहारिकता का आकलन मुख्य लक्ष है। लेखक को आशा है कि यह नितान्त शैक्षिक एवं पक्षपात रहित प्रस्ताव इस परियोजना के अविलम्ब क्रियान्वयन को गति देगी।

चरण एक-टनकपुर से पोथः
तिमली ब्रहमदेव के नाम से वर्णित टनकपुर,आस्टिनगंज के नाम से वर्तमान स्थान पर सन् 1880 में बसाया गया। आस्टिनगंज शब्द लोक व्यवहार में नहीं रच पाने के कारण बाद में इसका टनकपुर नाम ही सर्व स्वीकार्य हुवा। शाारदा अथवा चूका नदी के किनारे पर्वतपदीय स्थिति तथा नेपाल के साथ सामाजिक,आर्थिक एवं सांस्कृतिक एवं अन्तराष्ट््रीय व्यापारिक सम्बन्धों के अतिरिक्त भोटिया व्यापारियों के मौसमी प्रवास का प्रथम विनिमय केन्द्र तथा भोटिया मंडी के रूप में विख्यात टनकपुर काली कुमाउॅ के पर्वतीय भू-भाग,सोर (पिथौरागढ) से संलग्न विशाल भोट प्रदेश का प्रवेश द्वार रहा है। समुद्र सतह से 800 फीट की उॅंचाई वाला यह स्थान अपने समीपवर्ती साल, शीशम तथा सागौन के सघन वनों से आच्छादित है। मझौला पीलीभीत जनपद से बरमदेव- (विस्तार) के नाम से मीटर गेज की रेलवे लाइन खटीमा, बनबसा होती हुयी 1909-10 में टनकपुर तक निर्मित की गयी । इस लाइन पर बनबसा से नेपाल के लिए ट््राम की एक लूप लाइन 1915-16 में बिछायी गयी जिससे बेल, जिमुवा तथा सोनाली बांधों के साथ शारदा चैनल गेट की निमाण सामग्री ढोने क ेअतिरिक्त इस क्षेत्र की अकूत एवं मूल्यावान वन सम्पदा का भरपूर विदोहन किया गया। इसके अवशेष आज भी बनबसा -शारदा नदी के मध्य यत्र-तत्र देखे जा सकते है।
टनकपुर-बागश्वर महत्वाकांक्षी रेलवे परियोजना के प्रथम चरण में रेल लाइन टनकपुर से पोथ(चूका) के मध्य बिछेगी जिसकी दूरी लगभग 26 कि0मी0 होगी। टनकपुर से बृह्मदेव, उॅचालीगोठ के समतल नदी घाटी के छोटे गॉवों से बढते हुए यह रेलवे पथ भाबर की ठुलीगाड में पहले छोटे रेलवे पुल से शारदा नदी की संकरी शिवालिक घाटी में प्रविष्ट होगा। यहॉ पर पुण्यागिरी मंदिर के यात्रियों के लिए एक छोेटा रेलवे हाल्ट प्रस्तावित किया जा सकता है। इसकेे उपरान्त प्रस्तावित रेल पथ पुण्यागिरी के तीव्र ढाल वाले कगार के ठीक नीचे बढते हुए एक दीर्घ मोड द्वारा खलढूंगा के नीचे पहुॅचेगी। खलढूंगा के पश्चात नदी के समानान्तर यह लाइन अंततः अपने पहले स्टेशन पोथ पहुॅचेगी जो कि लधिया नदी के पार्श्व में बडा गॉव है। समुद्र सतह से लगभग 381 मीटर की उॅचाई में लधिया तथा काली के संगम पर स्थित पोथ गॉव रेल से जुडने पर लधिया घाटी के सैकडों असेवित गॉवों को रेल यातायात की सुविधा देगा शिवालिक का यह क्षेत्र सघन वनाच्छादित है। कहीं -कहीं नदी के किनारे कृषि के समतल क्षेत्र है। एकाकी घाटी गॉवों को छोड अधिकांश गॉव दूर-दूर पहाडियों पर बसे है।
चरण दो: चूका (पोथ) से मदुवा :
पोथ के उपरान्त द्वितीय चरण में रेलवे लाइन लघु हिमालयी क्षेत्र में प्रवेश करेगी ओर मदुवा गांव जो कि लगभग 25 कि0मी0 की दूरी पर होगा । रेल लाइन का द्वितीय प्रस्तावित स्टेशन होगा । चूका के उपरान्त लधिया पर रेलवे पुल का निर्माण किया जाना होगा। तदुपरान्त रेल लाइन अनेक गॉवों क्रमशः खरा, कम्यून तथा मोस्टागांव के समीप नदी के समानान्तर 5 कि0मी0 के एक दीर्घ मोड लेकर खनापत, अमोला ,तरवत, अमानी, बिलगोरा तथा काली नदी के सहारे स्पर्श करती हुयी लोहावती नदी के संगम के बायी ओर स्थित मदुवा गॉव की निचली घाटी में आयेगी जहॉ दूसरा रेलवे स्टेशन प्रस्तावित होगा। इससे पूर्व लोहावती नदी पर रेलवे पुल का निर्माण भी प्रस्तावित होगा। पोथ एवं मदुवा के मध्य 25 कि0मी0 की रेल यात्रा सच में जंगल में मंगल जैसी होगी। काली नदी की संकरी ,सर्पिल एवं सघन वनाच्छादित घाटी में उॅचाई पर स्थित पहाड़ी गॉव जहॉ विकास की नये रुप को देख बरबस आश्चर्य चकित रहेंगे, वही नदी के पार नेपाल के डाड़ेल धुरा अंचल में सघन नयनाभिराम वनाच्छादन प्रकति के मनोहारी सौन्दर्य के साथ मानव बसाव के प्रतिकूलता को प्रदर्शित करेगा तथापि उत्तर में बैतडी अंचल की सीमा में नेपाली गांवों की बहुलता मानव भूगोल प्रभावशाली पाठ रहेगा।
चरण तीन-मदुवा से पंचेश्वरः
लेाहावती एवं शारदा के संगम पर स्थित अपेक्षाकृत बडा गॉव मदुवा लोहाघाट विकासखण्ड के अर्न्तगत सम्मिलित है। लोहावती घाटी मानवीय दृष्टिकोण से काफी सघन है। गॉव संख्या तथा जनसंख्या में अपेक्षाकृत बडे है। मदुवा से पंचेश्वर के बीच रेल पथ की लम्बाई 16 कि0मी0 होगी। यह रेलवे लाइन शारदा नदी के किनारे अपेक्षाकृत सीधी रेखा में आगे बढेगी। यह रेलवे लाइन घाटी के लगभग 18 गॉवों को स्पर्श करेगी जिसमें पासम,रौसाल, दयोकाना, चमोली, बमोटी आदि पुराने एवं महत्वपूर्ण गॉव है। इस समूचे यात्रा पथ में नेपाल की ओर जो कि बैतडी अंचल का दक्षिण पूर्वी भाग है जहां मानव बसाव का सघन संकेन्द्रण है। पंचेश्वर के ठीक सामने नेपाल के मेलसिन, धनीकोटी, सनतोेला धरमघाट आदि बडे तथा उपजाउ कृषि क्षेत्र है। इसका कारण यह है कि यह समूचा क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक तथा सांस्कृतिक रूप से भारत पर अधिक आश्रित है। दोनों देशों के मध्य स्वतंत्र आवागमन के फलस्वरूप अधिसंख्य नेपाली जनता की आर्थिकी भारतीयता से अधिक प्रभावित है।महाकाली तथा सरयू के संगम पर पंचेश्वर का प्रस्तावित रेल सम्पर्क अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए भी अधिक उपयोगी होगा । प्रस्तावित पंचेश्वर बॉध जो कि दो देशों के सहयोग से निर्मित किया जाना हैं ,निश्चित रूप से इस रेलवे का प्रथम वरदान सिद्ध होगा।
चरण चार- पंचेश्वर से घाट:पंचेश्वर के उपरान्त रेलपथ सरयू के बायें छोर के समानान्तर 19 कि0मी0 की दूरी पार कर घाट तक पहुॅचेगा जो कि इस सम्पूर्ण मार्ग के बीच चौथा प्रस्तावित रेलवे स्टेशन होगा। घाट पिथौरागढ की सेार घाटी ,भोट प्रदेश तथा काली कुमाउॅ के बडे भू-भाग को टनकपुर तथा मैंदानी भागों से जोडने का मुख्य केन्द्र है, वहीं यह दन्या -गंगोलीहाट व बेरीनाग के आन्तरिक पर्वतीय भू-भाग को मोटर यातायात की पहुॅच देता है। पंचेश्वर के उपरान्तह,निदिल ,खैकोट ,काकडी ,सिमेला, चमरौली, वन्यूडी ,सिगदा एवं कुठेरा गॉव है जो अपनी स्थिति में अपेक्षाकृत उॅचाई वाले स्थानों पर बसेे है। यह सम्पूर्ण सरयू घाटी में सामान्य वन क्षेत्र मिलता है । घाटी की ओर ढालों में चट्टानी क्षेत्र पाया जाता है जिसमें वनस्पति आवरण अपेक्षाकृत न्यून है।
चरण पॉच -घाट से भैंसियाछाना ( सेराघाट ):
घाट के प्रस्तावित रेलवे स्टशन से सरयू नदी का प्रवाह दक्षिण पूर्वी है। अतएव द0पू0 से उत्तर पश्चिम की ओर नदी के समानान्तर 33 कि0मी0 लम्बे रेल पथ द्वारा भैंसियाछाना( सेराघाट ) प्रस्तावित रेलवे स्टेशन को परस्परजोडेगा। इस मार्ग में दो स्टेशनों के मध्य पर सर्वाधिक दूरी होगी। घाट से लगभग 4 कि0मी0 आगे रामेश्वर के समीप पनार नदी पर एक रेलवे पुल का निर्माण अपेक्षित होगा । तदुपरान्त धौलादेवी विकासखण्ड एवं भैंसियाछाना विकास खण्ड (अल्मोडा जनपद) के छोटे बडे लगभग 21 गॉवों की सीमा पार करते हुए यह लाईन सेराघाट पहुॅचेगी। सेराघाट गनाई गंगोली परगने का महत्वपूर्ण यातायात केन्द्र रहा है। जो कि सरयू तथा बागश्वर जनपद के बिलोरी के पनढाल से निकलने वाली जैगन नदी के संगम स्थल पर स्थित है।
चरण छह -भैंसियाछाना (सेराघाट) से बिलौना ( बागेश्वर ):
इस महत्वाकांक्षी रेल परियोजना के 18 कि0मी0 लम्बा अन्तिम चरण सेराघाट एवं बिलौना बागेश्वर के मध्य रेल सम्पर्क से पूर्ण होगा। बिलौना जो कि बागेश्वर नगरपालिका सीमा से लगभग 3 कि0मी0 दक्षिण दिशा में सरयू के किनारे एक छोटा ग्रामीण बाजार तथा अल्मोडा -बागेश्वर सडक मार्ग पर स्थित है, रेलवे स्टेशन के लिये आदर्श स्थान होगा ।

4- मूल्यांकन एवं निष्कर्ष :
137 कि0मी0 लम्बी (जिसमें 67 कि0मी0 रेल लाईन अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के समानान्तर होगी) टनकपुर-बागेश्वर रेल परियोजना, उत्तराखण्ड के पूर्वी सीमान्त पर इस समूचे क्षेत्र के सर्वागीण विकास में मील का पत्थर साबित होगी। निम्नांकित बिन्दुओं के माध्यम से लेखक द्वारा इस सम्पूर्ण परियोजा के व्यवहारिता के पक्ष में विस्तृत,सामाजिक,आर्थिक,पर्यावरणीय एवं तकनीकि पक्षों को प्रस्तृत करने का प्रयास किया गया है।
1- उत्तराखण्ड के पूर्वी सीमान्त पिथौरागढ़ जनपद से लगी चीन की समूची सीमा के साथ-साथ पश्चिमी नेपाल सीमा पर किसी भी सैनिक गतिविधि की निगरानी, सेना एवं भारी सैन्य सामग्री के लाने -ले जाने के लिए इस रेलवे लाईन की उपादेयता सर्वोच्च होगी। पिथौरागढ़ की नैनी-सैनी हवाई पट्टी की इस रेलवे लाईन में महज 30 कि0मी0 होगी, 21 वीं शदी के युद्ध नीति में इसका बहु आयामी उपयोग किया जा सकेगा। बिट्र्शि शासन काल में इस रेलवे पथ के सर्वेक्षण का उद्देश्य आज के युग में और अधिक व्यवहारिक एवं प्रभावशाली दृष्टव्य है।
2- अपने समूचे यात्रा पथ में महाकाली के सहारे टनकपुर से पंचेश्वर तक लगभग 67 कि0मी0 की यह रेल लाईन न केवल निर्माणधीन पंचेश्वर बॉध के लिए मील का पत्थर साबित होगी वरन धौलीगंगा सरीखे बडे तथा अन्य मध्यम व छोटी जल विद्युत एवं क्षेत्रीय संसाधन आधारित विकास के लिए प्रस्तावित परियोजनाओं के स्थापना सुविधा, मशीनरी , श्रम तथा उत्पादों के सरल एवं सस्ते परिवहन में इसकी भूमिका अतुलनीय होगी। चम्पावत तथा लोहाघाट (काली कुमाऊॅॅ) के अपेक्षित क्षेत्र में रहने वाली लगभग 15 लाख जनता को सरल, सुलभ एवं सस्ते यातायात द्वारा विकास को जायेगी। यही नही नेपाल के साथ अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के सहारे गतिमान इस रेलवे द्वारा पश्चिमी नेपाल से भारत में आर्थिक एवं सांस्कृतिक से जुड़े नेपाल के नागरिकों के प्रवाह द्वारा रेलवे की आर्थिकी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकेगा।
3-सरयू एवं महाकाली के संगम से उत्तर की ओर डैªगन की सीमा से लगा समूचा ट्रान्स-हिमालयी भू-भाग उत्तराखण्ड का एक विशिष्ट सांस्कृतिक क्षेत्र है जो कि भोट के नाम से जाना जाता है। भोटिया जनजाति यहॉ तीन नदियों की घाटियों के सहारे व्यास, चौदास तथा दारमा घाटियों में निवासित है। अत्यन्त मेहनतकश और सदियों से चीन के साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के पुरोधा रही इनकी आर्थिक भेड़ पालन तथा ऊन से बनी वस्तुओं का क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अत्यन्त महत्व रहा है। चीन तथा नेपाल के साथ बढ़ते व्यवसायिक सम्बन्धों तथा खुले सीमा द्वारों से न केवल देश का विदेशी व्यापार बढेगा वरन् रेलवे लाईन द्वारा इसकी आशातीत प्रगति होगी।
4-कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए पर्यटन छोटा कैलाश, पंचाचूली, नार्मिक ग्लेशियर के यात्रा पथ के खुलने से राष्ट्र्ीय एवं अन्तराष्ट्र्ीय पर्यटन की वृद्धि जिसका लाभ क्षेत्र को मिलेगा।व्यापार वाणिज्य की वृद्धि के साथ-साथ यह समूचा रेल पथ प्रारंभ में टनकपुर के समीप- पुन्यागिरी के लाखों स्वदेशी तीर्थ यात्रियों केलिए निर्वाध वर्ष भर प्रवेश ईश्वरीय वरदान से कम नहीं होगा। इसके साथ ही कुमाऊॅ की पूर्व राजधानी चम्पावत एवं संलग्न मायावती लोहाघाट एवं एबट माउण्ट जो कि अपने ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर के लिए विलक्षण ही नही वरन् अप्रतिम महत्वपूर्ण है, के पर्यटन विकास के नये राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज खुलेंगे।
घाट से सेराघाट के मध्य जहॉ यह रेल पथ एक ओर पश्चिम में दन्या, चौर्गखा, बाडेछीना और बिनसर (अभ्यारण्य) ताकुला, बसौली तथा झिरौली, छाना बिलौरी के विशाल जन क्षेत्र को समेटते हुए रेल सुविधा प्रदान करेगा, वही पूर्वी सीमा पर सघन बसे गनाई-गंगोली तथा बेरीनाग, गंगोलीहाट एवं थल समेत अनेक नव सृजित पहाड़ी नगरीय क्षेत्रों को व्यापार वाणिज्य की प्रगति में सम्मिलित करेगा। तथा विनसर, काली मन्दिर,पाताल भुवनेश्वर समेत अनेक प्राकृतिक एवं विशिष्ट प्राकृतिक भूवृत, धार्मिक पर्यटन स्थलों को भी नयी पहचान मिल पायेगी।
अन्तिम चरण में सेराघाट बागेश्वर का पथ जहॉ उत्तर की ओर सैनिक बाहुल्य क्षेत्र दानपुर के अन्तिम गॉव खाती को यातायात विकास से रूबरू करेगा, वही पश्चिम की ओर सघन बसे खरही पट्टी, बरौरेो (सामेश्वर), लोद, कत्यूर कौसानी, गरूड, बैजनाथ तथा गढवाल (ग्वालदम,देवाल) की लगभग 15 लाख से अधिक जनसंख्या को सेवित करेगा। अनेकानेक पर्वतीय कस्बों जैसे सोमेश्वर ,ताकुला, कौसानी, गरूड, डंगोली ग्वालदम, देवाल, कपकोट, भराडी एवं सामा के लिए व्यापार वाणिज्य की वृद्धि के साथ-साथ यह पथ कौसानी, ग्वालदम, बेदनी बुग्याल पिन्डारी, कफनी, सुन्दर ढूंगा तथा नामिक ग्लेशियरों के लिए आने वाले राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों को सुलभ तीव्र यातायात सुविधा बढ़ाने में सहायक होगा।
5-यह रेल लाईन इस क्षेत्र के खनिज संसाधन यथा मैग्नेसाइट, सीसा, स्लेट,चूनापत्थर की राष्ट्रीय उपयोगिता एवं क्षेत्रीय आर्थिक उत्पादकता, तथा रत्नगर्भा भंडारों के अन्वेषण तथा देशहित में इनके युक्तियुक्त उपयोग में भी सहायक होगी।
6-इससे क्षेत्र की ऊष्ण एवं ऊपोष्ण घाटियों में अत्यधिक उत्पादित विभिन्न फलों जैसे आम,नासपाती, अखरोट एवं अमरूद, संतरा, नारंगी तथा बहुतायत से उत्पादित मौसमी सब्जियों आलू,प्याज, टमाटर आदि को भी राष्ट्रीय पहचान एवं बाजार मिलेगा।
7-इस सबके अतिरिक्त बागेश्वर जनपद की कत्यूर दानपुर ,कमस्यार, खरही, अल्मोडा जनपद की रीठागाड एवं चौगर्खा की गनाई-गंगोली, चम्पावत जनपद की गुमदेश का एक बडा भू- भाग तथा चमोली जनपद का थराली,देवाल,वाण एवं ग्वालदम के सघन बसाव क्षेत्र की लगभग 25 लाख से अधिक जनसंख्या इस सरल एवं महत्वपूर्ण परिवहन तंत्र की सुविधा से सीधे रूप से आच्छादित हो सकेगी। अनेक निर्मित एवं निर्माणाधीन तथा प्रस्तावित सडक मार्गो के निमार्ण से उत्तराखण्ड के इस सघन तथा उपेक्षित भू-क्षेत्र को मैदानी क्षेत्रों से सुगम एवं सरल सम्पर्क देकर सर्वसुलभ पहुॅच के अन्तर्गत लाया जा सकता है जिससे निःसंदेह यह समूचा क्षेत्र ,प्रदेश तथा राष्ट्रीय विकास में अपनी मानव एवं प्राकृतिक संसाधनों को सहयोजित कर सकेगा ।
8-टनकपुर -बागेश्वर रेलवे लाइन के तथ्य परक मूल्यांकन तथा इसकी उपादेयता के लिए निम्नांकित सारणी द्वारा उत्तराखण्ड की अन्य रेल लाइनों के उदाहरणों को इस उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है कि यह परियोजना का तकनीकि पक्ष जटिल नही है।

9-सामान्यतया पर्वतीय क्षेत्रों में उचॅाई के तीव्र विपर्यास रेलवे निर्माण के लिए मुख्य अवरोधक सिद्ध होते है। जबकि टनकपुर जो कि समुद्र सतह से 244 मीटर की उॅ.चाई पर स्थित है से बिलौना-854मीटर (बागेश्वर) तक 137 कि0मी0 की दूरी में केवल 610 मीटर का उतार -चढाव होगा । इसकी तुलना में कालका-शिमला के मध्य 98 कि0मी0 की दूरी को पार करने में रेल को 1433 मीटर की उॅचाई पार करनी होती है। रूद्रपुर -काठगोदाम के मध्य यह उच्चता 342 मीटर है जबकि रेल पथ की दूरी मात्र 44 कि0मी0 है। इसके साथ ही यह विचारणीय पक्ष है कि यह तकनीकि 100 वर्षो से अधिक वर्ष की है जबकि भाप से चलने वाले इंजनों द्वारा रेल को खींचा जाता था।
10- भारतीय हिमालय में स्वीकृत इसी प्रकार कांगडा घाटी रेल पथ (1291 मीटर),उ॰पू॰ की लूम्डिंग-हॉफलोंग-बदरपुर रेल लाइन (अधिकतम प्रवणता 1/37) कश्मीर में, जम्मू-बारामूला रेल पथ तथा जम्मू-पूंछ रेल मार्ग जो कि जम्मू पहा़डियों के सहारे गुजरेगा , बिलासपुर -मंड़ी-लेह रेल लाइन जो कि अपने सम्पूर्ण यात्रा पथ में महा हिमालय, जास्कर तथा लद्दाख पर्वत श्रेणियों की उॅचाइयों को पार करेगी तथा (जबकि संसार की सर्वाधिक ऊॅंची रेल लाइन होगी ), इसी प्रकार उत्तराखण्ड की 125 कि0मी0 लम्बी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाईन जो कि अपने सम्पूर्ण पथ में शिवालिक तथा लघु हिमालय पर्वत श्रेणियों को कोरते हुए जायेगी और सर्वेक्षण के निष्कर्षो के अनुसार लगभग 100 कि0मी0 सुरंगों द्वारा पहुॅचेगी, के सापेक्ष टनकपुर -बागेश्वर रेलवे लाइन अपेक्षाकृत तकनीकि स्तर पर सरल होगी। रेलवसर्म्पको के उपरोक्त उदाहरणों द्वारा इसकी व्यवहार्यता स्वयं सिद्ध है।
11- भू-गर्भिक संरचना के सम्बन्ध में एक सामान्य तथ्य कहा जा सकता है कि सरयू तथा महाकाली दोनों नदियों अपने समूचे पथ में भ्रंश घाटियों में प्रवाहित नही होती।
12- इसी प्रकार रेल मार्ग के निर्माण में किसी भी प्रकार की सामाजिक विस्थापन का प्रश्न नही है और यह भी कि कुछ छोटे व आवश्यक रेलवे पुलों को छोड पूरे निर्माण में चार रेल पुलों का निर्माण होगा यहां यह तथ्य समीचीन होगाा कि इन प्रस्तावित पुलों की चौडाई मैंदानी तथा भाबर के नदियों के विशाल चौडाई की तुलना में अत्यन्त कम होगी।