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यह भी पढ़ें : सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए रुद्रपुर के अमन में धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश करने वाले, जिले में इंटरनेट सेवाओं पर रोक

बवाल होने पर पुलिस क्या करके इंटरनेट बंद करवा देती है? - How are Internet  services shutdown in a country and How India managed to put Kashmir under  it for so longनवीन समाचार, रुद्रपुर, 10 जनवरी 2022। आगामी विधान सभा चुनाव हेतु आदर्श चुनाव आचार संहिता होने के साथ शहर में माहौल को धार्मिक आधार पर बिगाड़ने का प्रयास किया गया है। इस घटना के बाद किसी तरह का धार्मिक उन्माद न फैले, इस हेतु ऊधमसिंह नगर जनपद में जिलाधिकारी युगल किशोर पंत के द्वारा 24 घंटे के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी, हालाँकि कुछ ही घंटों के बाद इस आदेश को निरस्त कर दिया गया है। जबकि एसएसपी ने आवास विकास चौकी प्रभारी गोविंद अधिकारी को लापरवाही बरतने के आरोप में लाइन हाजिर कर दिया है और 24 घंटे के भीतर मामले का खुलासा करने का आश्वासन भी दिया है।

अलबत्ता इसके बाद भी जनपद में कई माध्यमों से विवादास्पद संदेशों का आदान प्रदान जारी है। कई सामग्री पहले ही इंटरनेट मीडिया पर आ चुकी है। इस बीच एक वीडियो भी इंटरनेट पर वायरल हो रहा है, जिसमें कुछ लोग गौवंशीय पशुओं को सड़क पर दौड़ाकर ला रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि यह वीडियो घटना से पहले का है और इस वीडियो के जरिये यहां धार्मिक उन्माद फैलाने वालों की पहचान होनी तय है।

jagranप्राप्त जानकारी के अनुसार सोमवार सुबह शहर के गगन ज्योति बारात घर के सामने के सामने खाली पड़े प्लाट में कुत्तों के भोंकने पर एक व्यक्ति को गोवंश के टुकड़े पड़े हुए मिले। उसने इसकी सूचना 112 पर पुलिस को दी। इस बीच यह सूचना पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई और बड़ी संख्या में हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोग मौके पर पहुंचकर हंगामा करने लगे। उन्होंने आरोप लगाया कि आचार संहिता लगी होने के बावजूद असामाजिक तत्वों के द्वारा यह असह्य हरकत कर शहर की फिजा को खराब करने की कोशिश की गई है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

तनाव बढ़ने पर मौके पर पुलिसकर्मी पहुंचे। पुलिस कर्मियों ने वहां पड़े पशु के मांस को ले जाने की कोशिश की तो लोगों ने हंगामा कर दिया। मामले की गंभीरता को देखते हुए एएसपी दलीप सिंह कुंवर भी मौके पर पहुंचे। हिंदूवादी कार्यकर्ताओं ने उनसे दोषियों की गिरफ्तारी की मांग की और पुलिस के खिलाफ भी नारेबाजी की। पुलिस के समझाने पर आक्रोशित लोग बमुश्किल यह कहते हुए शांत हुए कि यदि 24 घंटे में मामले का पर्दाफाश नहीं किया गया और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई न की गई तो आंदोलन किया जाएगा। पुलिस कप्तान कुंवर ने 24 घंटे में मामले का पर्दाफाश करने का आश्वासन दिया और मांस को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

इस बीच बढ़ती भीड़ को देखकर पुलिस ने लाठी फटकार कर लोगों को तितर-बितर करना पड़ा। साथ ही पुलिस ने कंचन तारा बैंक्वेट हाल के पास तिराहे पर पुलिस तैनात कर आवास विकास की ओर जाने वाले मार्ग पर वाहनों के आवागमन पर रोक लगा दी। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : नैनीताल : कोरोना के खात्मे के लिए छह माह से हुआ महामृत्युंजय मंत्रों का पाठ, हवन-यज्ञ व भजन-कीर्तन

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 19 दिसंबर 2021। सूरदास रामायणी के नेतृत्व में कई सहयोगी पंडितों के द्वारा नगर के तल्ला कृष्णापुर स्थित नयना देवी मंदिर में बीते छह माह से कोरोना के खात्मे के लिए 75 हजार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया गया। जापों के पूरा होने के बाद रविवार को तल्लीताल धर्मशाला में अखंड रामायण का पाठ व भंडारा किया गया। इसमें सैकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। इस दौरान यहां भजन कीर्तन हुए, इससे माहौल भक्तिमय बना रहा।

आयोजक राकेश तिवारी शास्त्री ने बताया कि छह माह से कृष्णापुर स्थित मंदिर में कोरोना के खात्मे के लिए अनुष्ठान व महा मृत्युंजय के 75 हजार जाप के साथ व्यास कैलाश सुयाल के नेतृत्व में हवन पूजन तथा अन्य कार्यक्रम हुए। आयोजन में मुख्य यजमान जगदीश सुयाल, रमाकांत पांडे, आनंद बेलवाल, प्रदीप परगाई रहे। आयोजन की सफलता में पुष्पा मेलकानी, मंजू रौतेला, लीला ढैला, एम बर्गली, दीप नारायण सिंह बिष्ट, जेएस रौतेला, पार्वती भैंसोड़ा, राजू रावत, गंगा अधिकारी, लाल सिंह नेगी, नंदन मटियाली, शोभा तिवारी आदि लगे रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : उत्तराखंड के सीमांत गांवों में आयोजित हुई ‘खुदा पूजा’, मुगलकाल में पूजा पर रोक की यादें आज भी हुईं ताजा

अद्भुत उत्तराखंड: यहां शिवजी की 'खुदा पूजा' होती है, मुगल शासनकाल से जुड़ी  कहानी ! (Khuda pooja in uttarakhand )नवीन समाचार, नाचनी-पिथौरागढ, 13 दिसंबर 2021। उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के नामिक ग्लेशियर के निकट स्थित नामिक गांव में खुदा पूजा कही जाने वाली अलखनाथ पूजा आयोजित हुई है। सीमांत के गांवों में हर तीसरे, पांचवें, सातवें आदि विषम वर्षो में आयोजित होने वाली इस खुदा पूजा में भगवान शिव के अलखनाथ स्वरूप की पूजा पर सैकड़ों दीपक जलाए जाते हैं।

स्थानीय लोगों के अनुसार यह खुदा पूजा मुगल काल में पूरे उत्तराखंड के साथ हिमालय से लगे इन सीमांत गांवों तक मुगल शासकों के हिंदुओं पर बरती जाने वाली कठोरता, उनके द्वारा अपने भगवानों की पूजा करने की भी छूट न होने का जीवंत इतिहास बताने वाली है। कहते हैं कि जब अलखनाथ की पूजा करते क्षेत्रीय लोगों से मुगल शासकों द्वारा इसके बारे में पूछा गया तो स्थानीय लोगों ने पूजा स्थल को ढक कर खुदा की पूजा करने की बात कही। तभी से इस पूजा को खुदा पूजा के नाम से भी जाना जाता है और तभी से भगवान अलखनाथ की पूजा आज भी छिप कर ही की जाती है। आज भी क्षेत्रीय लोग मकान की सबसे ऊपरी मंजिल में या किसी पुराने मकान में यह पूजा करते हैं। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : मुख्यमंत्री धामी ने आज चुप रहकर पेश किया ‘सबका साथ-सबका विकास’ का उदाहरण, मुस्लिमों का दिल जीता

काशीपुर में अजान की आवाज सुनकर मुख्यमंत्रीे पुष्कर सिंह धामी ने बंद कर दिया अपना संबोधननवीन समाचार, काशीपुर, 5 दिसंबर 2021। मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार रविवार को काशीपुर पहुंचे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कुछ भी बोले बिना, बल्कि चुप रहकर ‘सबका साथ-सबका विकास’ की पार्टी की नीति का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत किया।

हुआ यह कि मुख्यमंत्री धामी जब शहर के उदयराज इंटर कॉलेज में 115 करोड़ के विकास योजनाओं का शिलान्यास करने के दौरान जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो अचानक अजान की आवाज आने लगी। इस पर धामी ने अपना संबोधन बीच में रोक दिया। इस दौरान उन्होंने करीब दो मिनट तक अपना संबोधन बिना कुछ कहे बंद रखा। इस पर अन्य उपस्थित लोगों ने भी मौके की नजाकत को भांत पर खामोशी बरती और सभास्थल पर सन्नाटा छा गया। मुख्यमंत्री ने हालांकि अपने संबोधन में संबोधन रोकने का कहीं कोई जिक्र नहीं किया। सभा में उपस्थित एवं सभास्थल के बाहर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मुख्यमंत्री के इस कृत्य की सराहना की।

उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व भी धामी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गत तीन सितंबर 2021 को पार्टी की जन आशीर्वाद रैली के दौरान देहरादून में अजान के दौरान अपना भाषण रोका था। उस दिन वह जुम्मे का दिन था। उनके अलावा तीन मार्च 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी त्रिपुरा में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद नई दिल्ली स्थित पार्टी कार्यालय में भाषण देते हुए अचानक अजान शुरू होने पर करीब पांच मिनट के लिए अपना भाषण बीच में रोक दिया था। इससे पूर्व 27 मार्च 2016 को पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में तथा एक अन्य मौके पर राजस्थान में भी उन्होंने अजान के बीच अपना भाषण रोका था। इसके अलावा 1 दिसंबर 2014 को भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष के रूप में अमित शाह ने भी कोलकाता में अजान के दौरान अपना भाषण रोका था, जबकि 27 दिसंबर 2017 को बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की अजान के दौरान भाषण जारी रखा था। राहुल गांधी भी अजान के लिए अपने भाषण रोकते आए हैं। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : मैकाले ने दूषित की देश की न्यायिक व्यवस्था: शंकराचार्य

-अधिवक्ताओं के साथ किया धर्म संवाद, कहा-कोई ऐसा कार्य न करें जिससे अपनी दृष्टि से गिर जाएं
कहा-दोषी को दोषमुक्त करने की न्यायिक प्रणाली से पाप की प्रवृत्ति बढ़ रही है
आगामी साढे तीन वर्ष में भारत बनेगा 'हिन्दू राष्ट्र' ! – शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद  सरस्वती – सनातन प्रभातडॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 30 नवंबर 2021। जगन्नाथ पुरी पीठ स्थित गोवर्धन मठ के 145वें शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा सनातन धर्म ने ही भोजन, विवाह, स्वास्थ्य, आवास, वस्त्र, गणित आदि का विज्ञान दिया। सृष्टि की आयु तक बताई। देश की सनातन संस्कृति की न्यायिक प्रणाली ही श्रेष्ठतम थी। पूरा विश्व भी यह मानता था। लेकिन मैकाले की कूटनीति से देश की सभी व्यवस्थाओं के साथ न्याय प्रणाली में भी विकृति आई। कहा कि दोषी को दोषमुक्त करने की न्यायिक प्रणाली से पाप की प्रवृत्ति बढ़ रही है।

मंगलवार को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सभागार में अधिवक्ताओं को संबोधित करते व उनके साथ संवाद करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि दूसरों के प्रति विनम्र बनना ही न्याय की आधारशिला है। दूसरों के प्रति संयम रहना ही बुद्धि की बलिहारी है। उन्होंने कहा, हिंसा करने वाला भी चाहता है कि कि उंसके साथ कोई हिंसा न करे। झूठा व्यक्ति भी चाहता है कि कोई उसके साथ झूठ ना बोले। चोर चाहता है कि उसकी संपत्ति चोरी ना हो। व्यभिचारी चाहता है, उसके साथ कभी व्यभिचार ना हो। लुटेरे भी चाहता है कि उसके साथ लूट ना हो। इसलिए हमें ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे अपनी दृष्टि में गिर जाएं। उन्होंने कहा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रमई राम को संत बनाकर चार पीठ का शंकराचार्य बना दिया, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अंगद को शंकराचार्य बना दिया। यह अधर्म की पराकाष्ठा थी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इसका संज्ञान लेना चाहिए।

उन्होंने कहा कि गांव-गांव धर्म का प्रचार होना चाहिए। समाज में नशे के बढ़ते प्रचलन पर उन्होंने कहा कि समाज दुर्व्यसनों से मुक्त होगा तो समाज में आर्थिक विषमता नहीं होगी। इस अवसर पर महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर, अपर महाधिवक्ता मोहन चंद्र पांडे, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सचिव विकास बहुगुणा, पूर्व सांसद डॉ. महेंद्र पाल, संजय भट्ट, पुष्पा जोशी, किशोर राय समेत दर्जनों अधिवक्ता उपस्थित थे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : सरकार को मठ-मंदिरों में दखलअंदाजी का अधिकार नहीं: शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती, धर्म संवाद से विरत रही नगर की धार्मिक संस्थाएं व लोग

-कहा, देश में सनातक संस्कृति नहीं, सनातन संस्कृति को न मानने वाले खतरे में
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 29 नवंबर 2021। जगन्नाथ पुरी पीठ स्थित गोवर्धन मठ के 145वें शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष शासन तंत्र को हिंदुओं के मठ मंदिरों में दखलअंदाजी का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि संविधान की सीमा में रहकर मठ मंदिरों में अतिक्रमण करने वालों का विरोध होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी जगन्नाथपुरी पीठ के मामले में पारित फैसले में इसी दृष्टिकोण को स्वीकार किया है। प्रधानमंत्री से लेकर उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने भी इसी दृष्टिकोण को माना है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि देश में सनातन संस्कृति खतरे में नहीं बल्कि सनातन संस्कृति को ना मानने वाले खतरे में हैं। यह भी कहा कि वर्तमान में दो प्रतिशत राजनेता ही अपने व्यक्तित्व व कार्यों के बल पर, जबकि 98 प्रतिशत राजनेता दूसरे हथकंडे अपनाकर चुनाव जीत रहे हैं।

पहली बार नगर में पहुंचने के बाद नैनीताल क्लब के शैले हॉल में आयोजित धर्म संवाद कार्यक्रम में उपस्थित लोगों के सवालों का जवाब में शंकराचार्य जी ने कहा कि आज धर्म की सीमा में अतिक्रमण कर राजनीति को परिभाषित किया जा रहा है। आज राजनीति उन्माद, सत्तालोलुपता व अदूरदर्शिता का नाम बन गई है। कहा कि राजनीति सुशिक्षित, सुरक्षित, सुसंस्कृत, सेवा परायण, स्वस्थ, सर्वप्रिय होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता की वजह से धर्मप्रेमी राजनेता भी खुलकर भावनाओं को व्यक्त नहीं कर रहे हैं। उनके सामने दलीय या पार्टी का अनुशासन आड़े आ रहा है। उन्होंने कहा की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सनातन संस्कृति को स्थान नहीं दिया जा रहा है। संवाद कार्यक्रम के बाद शंकराचार्य द्वारा उपस्थित लोगों को दीक्षा भी दी गई और धर्म रक्षा का संकल्प भी दिलाया गया। इस अवसर पर रामसेवक सभा के भीम सिंह कार्की, शैलेंद्र मेलकानी, शैलेंद्र साह, भगवान सिंह, दिनेश आर्य, हरीश राणा, मंजू रौतेला, सुमन साह, कुंदन नेगी, भूपेंद्र बिष्ट, किशन नेगी, अनिल जोशी, मनोज पाठक, किशोर कांडपाल, दया बिष्ट व हरीश भट्ट आदि लोग प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। बताया गया है कि शकराचार्य मंगलवार को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में अधिवक्ताओं व न्यायिक अधिकारियों के साथ संवाद करेंगे।

धार्मिक संस्थाओं-धर्म प्रेमी जनों की ओर से हुई उपेक्षा
नैनीताल। किसी राजनीतिक कार्यक्रम में जहां लोग उमड़-उमड़कर पहुंच जाते हैं, वहीं शंकराचार्य जी के कार्यक्रम में बेहद सीमित लोगों की उपस्थिति ने चिंताजनक तस्वीर पेश की। कार्यक्रम में अंगुलियों में गिने जा सकने योग्य ही पहुंचे, जबकि यदि कहीं कोई धार्मिक बहश या धर्म के आधार पर कोई विभाजन होना होता तो इसके कई गुना अधिक लोग धर्म की ठेकेदारी करने लग जाते। इससे भी बड़ी बात यह कि नगर की धार्मिक संस्थाओं की ओर से भी शंकराचार्य जी के प्रति उपेक्षा ही दिखाई दी। सच्चाई है कि नगर की धार्मिक संस्थाओं ने धर्म सभा में न अपेक्षित सहयोग न किया न उपस्थिति ही दर्ज कराई। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : बड़ा समाचार : मुख्यमंत्री धामी की बहन ने की नयना देवी मंदिर और कैंची धाम में पूजा, जानें क्या आशीर्वाद मांगा…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 28 नवंबर 2021। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मुंबई में रहने वाली बड़ी बहन नंदी धामी क्षेत्रिय अपने पति लक्ष्मण क्षेत्रिय और अपनी ननद तथा भारतीय जनता युवा मोर्चा के नैनीताल जिलाध्यक्ष योगेश रजवार के साथ रविवार को सरोवरनगरी पहुंची और माता नयना के मंदिर और कैंची धाम में पूजा-अर्चना की, और प्रसाद चढ़ाया।

इस दौरान उन्होंने मंदिर में मौजूद पत्रकारों से बात करते हुए अपने दौरे को व्यक्तिगत बताते हुए कहा कि पुष्कर धामी उत्तराखंड को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जा सकें और फिर से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनें, उन्होंने यह प्रार्थना की है। इस दौरान भाजपा के नगर मंडल अध्यक्ष आनंद बिष्ट और भूपेंद्र बिष्ट भी नैना देवी मंदिर में उनके साथ रहे।

क्हा जाता है कि कैंची धाम में तब अमेरिका के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रहे बराक ओबामा के लिए कैंची धाम में अनुष्ठान किया गया था और इस चुनाव में ओबामा विजयी रहे थे। आगे देखने वाली बात होगी का कैंची धाम में की गई बड़ी बहन की पूजा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की राह कितना आसान करती है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर फैसला दो दिन में

नवीन समाचार, देहरादून, 27 नवंबर 2021। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर अगले दो दिनों में फैसला हो सकता है। शनिवार को ऐसे संकेत आए हैं। शनिवार को मुख्यमंत्री आवास में मीडिया से बातचीत में सीएम पुष्कर धामी ने कहा कि देवस्थानम बोर्ड को लेकर वरिष्ठ भाजपा नेता मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में गठित हाईपावर कमेटी एक दिन पहले सरकार को विस्तृत रिपोर्ट सौंप चुकी है।

अब रिपोर्ट के अध्ययन के लिए कैबिनेट की सब कमेटी बनाई जा रही है। सब कमेटी अपनी रिपोर्ट दो दिन के भीतर सरकार को सौंपेगी। कहा कि सरकार तीर्थ-पुरोहितों के हितों को लेकर संवेदनशील है और सकारात्मक निर्णय ही लेगी। सीएम के ऐलान के साथ ही शासनस्तर पर कमेटी के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

उधर, चारधाम तीर्थ पुरोहित महा पंचायत के संयोजक सुरेश सेमवाल ने कहा कि सरकार ने यदि 30 नवंबर तक चारों धाम के तीर्थ-पुरोहित व हक हकूकधारियों के हक में बोर्ड को भंग करने का फैसला नहीं लिया तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार दिसंबर को प्रस्तावित रैली का विरोध करेंगे। इसमें अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को भी आमंत्रित किया गया है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : इसी सप्ताह हल्द्वानी-नैनीताल आएंगे शंकराचार्य जी

No photo description available.डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 24 नवंबर 2021। जगन्नाथ पुरी पीठ स्थित गोवर्धन मठ के 145वें शंकराचार्य परमपूज्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का इसी सप्ताह 27 नवंबर को नैनीताल जनपद में पदार्पण होने जा रहा है। 98 वर्षीय शंकराचार्य जी इस दौरान हल्द्वानी व नैनीताल में जनसामान्य एवं विद्वतजनों से मिल सकते हैं।

उनके कार्यक्रम की तैयारियों में लगे सामाजिक कार्यकर्ता रमेश जोशी ने बताया कि शंकराचार्य जी 27 नवंबर को हल्द्वानी के बिठौरिया आएंगे और इसी दिन लामाचौड़ स्थित चारधाम मंदिर में जनता से संवाद करेंगे। आगे 28 नवंबर की शाम को वह नैनीताल पहुंचेंगे और यहीं रात्रि विश्राम कर 29 नवंबर की शाम को अधिवक्ताओं के साथ न्यायिक प्रक्रिया पर जनसंवाद करेंगे, साथ ही उपस्थित आम जनों से भी संवाद करेंगे। श्री जोशी ने बताया, शंकराचार्य जी का मानना है कि 98 वर्ष की आयु तक उन्होंने जो ज्ञान अर्जित किया है, उसे वह जनसामान्य तक फैलाएएं और आम जन से भी अच्छा ज्ञान ग्रहण करें।

नगर की सबसे पुरानी धार्मिक संस्था श्रीराम सेवक सभा के भीम सिंह कार्की एवं नयना देवी मंदिर के अमर उदय ट्रस्ट के सचिव हेमंत साह ने कहा कि शंकराचार्य जी का यहा आना शहर वासियों के लिए दुर्लभ सौभाग्य की बात है। इसलिए सभी का दायित्व है कि इस कार्यक्रम को सफल बनाएं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : उच्च न्यायालय से प्रदेश सरकार को चार धाम यात्रा के लिए मिली उम्मीद से बड़ी राहत…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 5 अक्टूबर 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने चारधाम यात्रा के मामले में उत्तराखंड सरकार को उम्मीद से भी बड़ी राहत दे दी है। इस मामले में सरकार की ओर से न्यायालय में कहा गया कि श्रद्धालुओं की संख्या में प्रतिबंध हटाया जाए या प्रतिदिन तीन से चार हजार श्रद्धालुओं को आने की अनुमति देकर पूर्व के आदेश में संशोधन या आदेश को वापस लेने की मांग की थी। परंतु न्यायालय ने सरकार की व्यवस्थाओं से संतुष्ट होकर संख्या के प्रतिबंध को पूरी तरह से हटा कर सरकार को एक तरह से उम्मीद से भी बड़ी राहत दे दी।

पीठ ने मंगलवार को याचिका पर अंतिम सुनवाई करते हुए चारों धाम में यात्रियों के निर्धारित संख्या में जाने पर लगी रोक को हटा दिया। अब श्रद्धालु असीमित संख्या में चार धाम जा सकेंगे। अलबत्ता शासन को यात्रियों से कोविड प्रोटोकॉल का अनुपालन सुनिश्चित कराना होगा। नयी व्यवस्था 6 अक्टूबर से लागू होगी।

मंगलवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर व मुख्य स्थाई अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि वर्तमान समय मे प्रदेश में कोविड के नए मामले नहीं के बराबर आ रहे हैं, इसलिए चारधाम यात्रा करने के लिए श्रद्धालुओं की संख्या निर्धारित करने के आदेश में संशोधन किया जाए। यह भी कहा कि चारधाम यात्रा समाप्त होने में अब 40 दिन से भी कम दिन बचे हैं, इसलिए जितने भी श्रद्धालु यहां आना चाहते हैं, उन्हें आने दिया जाना चाहिए। श्रद्धालुओं के न आने के कारण स्थानीय लोगों की रोजी रोटी पर खतरा भी उत्पन्न हो गया है। उन्होंने कहा कि सरकार न्यायालय के एवं कोवड के पूर्व में दिए गए दिशा-निर्देशों का यथासंभव पालन करा रही है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : धर्म-आस्था : नैनीताल हाईकोर्ट ने चार धाम यात्रा पर लगी रोक हटाई, पर जानें क्या रहेंगी शर्तें और कैसे हटी रोक…

डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 16 सितंबर 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने चारधाम यात्रा पर अपने 28 जून के निर्णय से यात्रा पर लगाई गई रोक को हटाते हुए सरकार को कोविड के नियम का पालन करते हुए प्रतिबंध के साथ चारधाम यात्रा शुरू करने के आदेश दे दिए हैं। कोर्ट के यात्रा शुरू करने के आदेश से राज्य सरकार को बड़ी राहत मिली है। साथ ही हजारों यात्रा व्यवसायियों व तीर्थ पुरोहितों समेत उत्तरकाशी, चमोली व रुद्रप्रयाग जिले के निवासियों की आजीविका पटरी पर लौटने की उम्मीद बन गई है।

बृहस्पतिवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में राज्य सरकार को ओर से यात्रा पर लगी रोक हटाने को दाखिल प्रार्थना पत्र पर सुनवाई हुई। महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर व मुख्य स्थाई अधिवक्ता सीएस रावत ने सरकार का पक्ष रखते हुए स्थानीय लोगों की आजीविका, कोविड के अब नियंत्रण में होने, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार आदि के आधार पर रोक हटाने की मांग की और एसओपी का कड़ाई से पालन करने का भरोसा दिया।

इस पर न्यायालय ने सरकार की एसओपी के हिसाब से बदरीनाथ में रोजाना आने वाले यात्रियों की संख्या 1200 को घटाकर 1000 कर तथा केदारनाथ में 800, गंगोत्री में 600 व यमुनोत्री में 400 श्रद्धालुओं को ही एक दिन यात्रा की अनुमति देते हुए यात्रा शुरू करने की अनुमति दे दी। यह भी कहा कि हेलीकॉप्टर से यात्रा तथा यात्रा मार्ग पर सेवा कार्य करने वाले एनजीओ जिलाधिकारी की अनुमति के बाद ही काम कर सकेंगे। यात्रा के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट की निगेटिव रिपोर्ट या कोरोना के दोनों टीकों का प्रमाण पत्र भी जरूरी होगा।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अनु पंत, रवींद्र जुगरान व डीके जोशी के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने भी कहा कि चारधाम यात्रा खोले जाने पर सभी पक्षकारों की सहमति है। अगर सरकार स्वास्थ्य ढांचे से संबंधित चाक-चौबंद तैयारियां पहले ही उच्च न्यायालय को अवगत करा देती तो यात्रा पर रोक की नौबत नहीं आती। उम्मीद करते हैं कि सरकार पुख्ता स्वास्थ्य व्यवस्था और सफाई व्यवस्था के साथ यात्रा को जारी रख पाएगी।
उल्लेखनीय है कि कोविड के मामलों में बढ़ोतरी, स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी व अन्य अव्यवस्थाओं से संबंधित जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने इससे पहले जून माह में चारधाम यात्रा पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी थी। इस आदेश के खिलाफ प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी, जिस पर सुनवाई नहीं हो सकी थी। हाल ही में महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर व सीएससी चंद्रशेखर रावत ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ से मौखिक रूप से यात्रा पर लगी रोक हटाने का आग्रह किया तो सुप्रीम कोर्ट में में विशेष अनुमति याचिका सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन होने का हवाला देते हुए इस मामले में विचार करने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से में विशेष अनुमति याचिका वापस ले ली थी। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : 22वें स्थापना दिवस पर फूलों से सजा सांई दरबार, श्रद्धालुओं ने किये दर्शन

डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 27 अगस्त 2021। नगर के शेरवानी लॉज क्षेत्र स्थित यूपी के पूर्व आईपीएस अधिकारी चंद्रभानु सत्पथी द्वारा प्रतिष्ठित श्री शिरडी साईं मंदिर में शुक्रवार को हर वर्ष 27 अगस्त को आयोजित होने वाला 22वां स्थापना दिवस समारोह आयोजित किया गया।

इस अवसर पर मंदिर एवं खासकर साई बाबा की मूर्ति को भव्य तरीके से सुंदर रोशनियों एवं फूलों से सजाया गया था। इस दौरान सुबह 7 बजे काकड़ आरती के पश्चात श्री गणेश पूजन व घट स्थापन, नवग्रह पूजन तथा दत्तात्रेय एवं गायत्री पूजन, साई पूजन व हवन एवं श्री साईं महाभिषेक, दिन में 12 बजे से मध्यान आरती के पश्चात एक बजे श्रीसाईं के गुणगान के कार्यक्रम आयोजित हुए।

इस दौरान मंदिर में पूरे दिन श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहा और श्रद्धालुओं ने मास्क पहनकर एवं सामाजिक दूरी बरतकर दर्शन किए। कोरोना की परिस्थितियों के कारण इस बार भंडारा व प्रसाद वितरण आयोजन नहीं किया गया। मंदिर के मुख्य ट्रस्टी विनोद अरोड़ा सहित व्यवस्थापक डीएन जोशी, पंडित विपिन जोशी, महादेव व मनोज पौडियाल आदि आयोजन की व्यवस्थाओं में जुटे रहे। बताया गया कि मंदिर में प्रत्येक माह पूर्णिमा को ’श्री सत्यनारायण कथा’ होती है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : मंदिर में 22 दिन बिना अन्न-फल केवल भभूत पीकर नारायण ने पेश की भक्ति की मिसाल

-पांच दिन-रात मंदिर के खुले प्रांगण में धूप-बारिश के बीच भी गुजारे

दान सिंह लोधियाल @ नवीन समाचार, धानाचूली (नैनीताल), 12 अगस्त 2021। कहते हैं, ‘भक्ति में बड़ी शक्ति होती है’। 33 कोटि देवताओ के साथ चारों धामों के प्रदेश देवभूमि उत्तराखंड में समय-समय पर भक्ति की शक्ति कई बार दिख जाती है। अगर मन में कुछ कर गुजरने की ख्वाइश होती है, तो बड़ी से बड़ी बाधा भी पार हो जाती है। ऐसी मिशाल धानाचूली के एक युवक ने पेश की है। नारायण लोधियाल नाम के युवक ने अल्मोड़ा जनपद के जागेश्वर के पास स्थित झाँकर सैम मंदिर में 22 दिन बिना अन्न व फल के भक्ति में रमकर केवल एक गिलास पानी व विभूति यानी राख के सहारे व्यतीत करने का दावा किया है। यही नहीं पांच दिन-रात बारिश-धूप के बीच मंदिर के खुले प्रांगण में बिताए। कहा जा रहा है कि नारायण सैम देवता की अति कृपा से ही वह ऐसा कर पाने में सफल हो पाए हैं।

उल्लेखनीय है कि सावन मास में लोग मंदिरो में 22 दिन का उपवासी (बैसी) भी करते हैं। इस कठिन भक्ति में एक दिन में एक समय एक आलू या फल ही खाना होता है। आगे 11वें दिन से एक रोटी का चौथाई हिस्सा मिलता है। वह भी स्वेच्छा पर निर्भर करता है। पर इससे अलग तहसील धारी के धानाचूली निवासी नारायण सिंह लोधियाल पुत्र तेज सिंह लोधियाल का दावा है कि वह झांकर सैम मंदिर में सैम देवता को प्रसन्न करने व समाज की खुशहाली के लिए 22 दिन तक बिना अन्न व फल के केवल एक गिलास पानी और भभूत पीकर सैम देवता की भक्ति में लीन रहे। नारायण ने बताया उन्होंने मंदिर के खुले प्रांगण में बारिश-धूप के बीच पांच दिन गुजारे। तत्पश्चात स्थानीय प्रशासन के अनुरोध पर रात्रि में मंदिर के अंदर रहे।

उन्होंने इस दौरान सहयोग हेतु स्थानीय प्रशासन व मंदिर कमेटी के साथ स्थानीय जनता का आभार प्रकट किया। उनकी ऐसी भक्ति देख झाँकर सैम के निवासी की अचरज में रहे। लोगों का कहना है आज तक ऐसी भक्ति क्षेत्र में कभी नही देखी गई। जरूर नारायण पर सैम देवता की कृपा रही, जो ऐसी कठिन तपस्या को पूरी कर पाए। बताया गया कि झाँकर सैम देवता को देव डंगरियो का माइका माना जाता है। यहां जिस भी व्यक्ति में देव का अवतार होता है, उसे यहां ले जाकर दर्शन करना अनिवार्य होता है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : CM धामी के गत दिवस गृह जिले आगमन पर भारी पड़ा गुरुद्वारे में नांच, अमृतसर तक पहुंची आंच…

नवीन समाचार, नानकमत्ता (ऊधमसिंह नगर), 29 जुलाई 2021। ऊधमसिंह नगर के ऐतिहासिक गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब में सीएम पुष्कर सिंह धामी के दौरे के बाद बवाल मच गया है। सीएम के स्वागत समारोह के दौरान गुरबाणी को रोक छात्राओं से नृत्य कराया गया था। यही नहीं उनसे बीजेपी के समर्थन में नारे भी लगवाए गए। वीडियो वायरल होने पर विवाद बढ़ा तो गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चार सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है।

मामला इतना तूल पकड़ चुका है कि श्री अकाल तख्त अमृतसर ने जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन कर उसे नानकमत्ता गुरुद्वारा भेजा है। समिति के निर्देश पर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष सेवा सिंह सहित चार सदस्यों ने बुधवार को पद से इस्तीफा दे दिया। आगे सभी सदस्य15 दिन के अंदर अपना पक्ष अकाल तख्त अमृतसर में जाकर रखेंगे जिसके बाद अकाल तख्त यह निर्णय लेगा कि कमेटी को स्थायी रूप से बर्खास्त किया जााए या उसे दोबारा बहाल किया जा सकता है।

उधर, पिछले दो दिनों से इस मामले पर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के इस्तीफे की मांग को लेकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से हजारों की संख्या में सिख संगत ने नानकमत्ता गुरुद्वारा में डेरा डाला हुआ था। हालात को देखते हुए गुरुद्वारे का प्रबंधन देखने के लिए नानकमत्ता गुरुद्वारा के 19 निदेशकों में से पांच निदेशकों की एक समिति का गठन किया गया है।

गौरतलब है कि सीएम पुष्कर धामी 24 जुलाई को नानकमत्ता गुरुद्वारे में दर्शन के लिए गए थे। मुख्यमंत्री के स्वागत समारोह में स्कूली छात्राओं ने गुरुद्वारे के बाहर के परिसर में नृत्य किया था। मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अन्य विधायकों के साथ नानकमत्ता गुरुद्वारे में माथा टेकने के दौरान गुरबाणी को थोड़ी देर के लिए बंद कर दिया गया था। कुछ सिख संगठनों ने इस पर आपत्ति प्रकट करते हुए इसे गुरुद्वारे की मर्यादा का उल्लंघन बताया। इसी के बाद मामले पर हुए विवाद ने तूल पकड़ लिया।

देखा जाए तो उत्तराखंड पिछले कुछ अर्से में लगातार चर्चाओं के केंद्र में रहा है। बात चाहें कोरोना की दूसरी लहर के बीच हुए कुंभ मेले की हो या फिर पहले के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत की आनन-फानन में विदाई की। सूबे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं का बाजार गर्म रहा है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : श्रावण के प्रथम सोमवार श्रद्धालुओं के साथ ही प्रकृति ने भी किया शिव का जलाभिषेक…

नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 19 जुलाई 2021। सोमवार को देवाधिदेव महादेव शिव के प्रिय श्रावण मास का पहला सोमवार था, और इस दिन प्रकृति स्वयं पूरे दिन जैसे शिव का जलाभिषेक करती रही। अलबत्ता शिव भक्तों के कदम भी भारी बारिश की वजह से नहीं डिग पाए। श्रद्धालुओं ने अपने घरों में तो शिवार्चन के साथ शिव का जल, दुग्ध, बिल्व पत्र एवं धतूरे आदि के फूलों से अभिषेक किया ही, मंदिरों में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। खासकर नगर की आराध्य देवी माता नयना के मंदिर के साथ ही पाषाण देवी, चीना बाबा मंदिर एवं गुफा महादेव मंदिर स्थित शिवलिंगों पर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का उमड़ना जारी रहा।

इधर बारिश की वजह से सरोवरनगरी में जनजीवन आंशिक रूप से प्रभावित रहा। लोग जरूरी कार्यों के लिए ही घर से बाहर निकले, अलबत्ता मैदानी क्षेत्रों की गर्मी से बचकर यहां पहुंचे सैलानी जरूर बारिश का आनंद लेते देखे गए। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने चार धाम यात्रा व कैबिनेट बैठक के निर्णय पर 7 जुलाई तक लगाई रोक

-चार धाम यात्रा की लाइव स्ट्रीमिंग करने के निर्देश भी दिए
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 28 जून 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने आगामी एक जुलाई से प्रस्तावित चार धाम यात्रा पर रोक लगा दी है। साथ ही इस संबंध में गत 25 जून को हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में पारित निर्णय पर रोक लगा दी है, जिसमें एक जुलाई से प्रस्तावित चार धाम यात्रा में चारों धामों के आसपास के तीन जिलों के निवासियों को आरटीपीसीआर की निगेटिव रिपोर्ट लेकर दर्शनों को जाने की अनुमति दे दी गई थी। खंडपीठ ने चारों धामों में होने वाली पूजा का लाइव प्रसारण करने के निर्देश भी दिए हैं, साथ ही सरकार को इस संबंध में दुबारा से 7 जुलाई तक शपथ पत्र दाखिल करने को भी कहा है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में राज्य सरकार की ओर से उच्च न्यायालय 700 पेज का शपथ पत्र पेश किया गया था, जिसे न्यायालय ने भ्रामक और न्यायालय को गुमराह करने वाला बताया था। न्यायालय ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि प्रदेश में कोरोना से हुई मौतें सरकार की आधी अधूरी तैयारियों के कारण से हुईं। न्यायालय ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा था कि सरकार ने कोविड के नियमों का पालन नहीं किया है। साथ ही चारधाम यात्रा शुरू करने के संबंध में न्यायालय ने मुख्य सचिव से कहा था कि या तो चार धाम यात्रा को स्थगित करें या यात्रा की तिथि को आगे बढ़ाएं। इस विषय को मंत्रिमंडल की बैठक में रखकर निर्णय लें और 28 जून को न्यायालय को बताएं। इस पर राज्य सरकार की ओर से सोमवार को न्यायालय में अपना जवाब पेश किया। मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान की खंडपीठ ने आज सुनवाई के दौरान सरकार के तर्कों और जवाब से असंतुष्ठ होकर चार धाम यात्रा पर सात जुलाई तक रोक लगा दी। न्यायालय ने कैबिनेट के 25 जून के उस आदेश पर भी रोक लगा दी है, जिसमें चारों धामों के आसपास के जिलों को नागरिकों को आरटीपीसीआर निगेटिव रिपोर्ट लेकर दर्शनों की एक जुलाई से अनुमति दी गई थी। न्यायालय ने सरकार से अपने जवाब का शपथ पत्र जमा करने को भी कहा है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

यह भी पढ़ें : कोरोना के खात्मे को यज्ञ आयोजित, महामारी से निजात के लिए ईश्वर से प्रार्थना…

नवीन समाचार, नैनीताल, 20 मई 2021। उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय के जन्म दिवस पर बृहस्पतिवार को अरविंद पाण्डेय फैंस क्लब द्वारा हल्द्वानी में दुनिया से कोरोना विषाणु की समाप्ति की प्रार्थना के साथ मार्कंडेय पूजा और यज्ञ का आयोजन किया गया। साथ ही इस महामारी से सम्पूर्ण मानवता को शीघ्र ही राहत देने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की गई। आचार्य गिरीश पोखरिया व महेश चंद्र जोशी ने मंत्रोच्चारण करते हुए समस्त मानव जाति के कल्याण की कामना भी की गई। इसके अलावा पौधारोपण कार्यक्रम आयोजित करते हुए बेल, जामुन और पारिजात आदि के पौधे रोपे गए। कार्यक्रम में जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के जिला मंत्री डॉ. डीएन भट्ट, नगर निगम हल्द्वानी के पार्षद मनोज जोशी, हाईकोर्ट के अधिवक्ता ललित कर्नाटक, प्रकाश जोशी व हर्षित भट्ट आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

यह भी पढ़ें : कैंची धाम का प्रसिद्ध मेला लगातार दूसरे वर्ष निरस्त..

नवीन समाचार, नैनीताल, 12 मई 2021। जनपद के कैंची धाम में बाबा नीब करौरी के आश्रम में प्रतिवर्ष 15 जून को मेले के रूप में आयोजित होने वाला मालपुओं का प्रसिद्ध महाभंडारा इस वर्ष भी, लगातार दूसरे वर्ष कोरोना की विभीषिका की वजह से नहीं होगा। इस संबंध में कैंची धाम प्रबंधन ट्रस्ट के प्रबंधक विनोद जोशी के नेतृत्व में वर्तमान हालातों को देखते हुए निर्णय ले लिया गया है। माना जा रहा है कि इसके बाद कैंची धाम में 15 जून को पिछले वर्ष की तरह ही केवल मंदिर प्रबंधन के लोगों के द्वारा बाबा को प्रसाद चढ़ाया जाएगा। बाहरी लोगों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेगा।

यह भी पढ़ें : सिर्फ पांच लोगों ने मस्जिद में पढ़ी अलविदा की नमाज

कभी ऐसी थी नैनीताल की जामा मस्जिद

नवीन समाचार, नैनीताल, 7 मई 2021। कोरोना की दूसरी लहर की विभीषिका का असर हर गतिविधि पर है। शुक्रवार को पाक माह-ए-रमजान पर आखिरी जुम्मे को हर्षोल्लास से अता की जाने वाली अलविदा की नमाज पर भी कोरोना का असर साफ दिखा। इस दौरान केवल पांच लोगों ने ही नगर की मुख्य जामा मस्जिद में अलविदा की नमाज पढ़ने की रम्स अदायगी की। शहर इमाम मौलाना अब्दुल खालिक ने बताया कि इस दौरान उनके द्वारा देश-दुनिया में अमनो-सुकून के साथ कोरोना की महामारी से उबरने की दुवाएं मांगी गईं।

यह भी पढ़ें : कुंभ मेले पर प्रधानमंत्री की अपील का होता दिख रहा असर, जूना अखाड़े ने की कुंभ समाप्ति की घोषणा

नवीन समाचार, हरिद्वार, 17 अप्रैल 2021। देश-प्रदेश में भयावह तरीके से बढ़ रही कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का हरिद्वार में आयोजित हो रहे महाकुंभ पर सकारात्मक असर पड़ता नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री की अपील के बाद श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद ने शनिवार को कुंभ मेले का समापन करने की घोषणा कर दी है।
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, ‘भारत की जनता व उसकी जीवन रक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है। कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए हमने विधिवत कुम्भ के आवाहित समस्त देवताओं का विसर्जन कर दिया है। जूना अखाड़ा की ओर से यह कुम्भ का विधिवत विसर्जन-समापन है।’
उल्लेखनीय है कि इससे पहले निरंजनी और आनंद अखाड़ों की ओर से भी कुंभ के समापन की घोषणा कर दी थी। इसके बाद निरंजनी और आनंद अखाड़े की छावनियां 17 अप्रैल से खाली होनी शुरू हो गई हैं। अलबत्ता इस घोषणा से अभी भी बैरागी संत नाराज हो गए हैं तो वहीं दूसरी ओर जगद्गुरु शंकराचार्य के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने घोषणा कर दी है कि कुंभ अपनी तय अवधि तक चलेगा। वे 27 अप्रैल को शाही स्नान करने पर अभी भी अड़े हुए हैं। विदित हो कि महाकुंभ में अभी तक अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी समेत करीब 12 संत संक्रमित आ चुके हैं। कई श्रद्धालु भी संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। अन्य अखाड़ों के संत भी संक्रमण की जद में हैं। जबकि एक महामंडलेश्वर संत की कोरोना से मौत भी हो चुकी है।

यह भी पढ़ें : हरिद्वार में अपर मेलाधिकारी हरबीर सिंह के साथ संतों ने की मारपीट

मारपीट की घटना के बाद अधिकारी
मारपीट की घटना के बाद अधिकारी

नवीन समाचार, हरिद्वार, 01 अप्रैल 2021। हरिद्वार में कुंभ की तैयारियों में जुटे अपर मेलाधिकारी हरबीर सिंह पर हमला होने का समाचार है। बताया जा रहा है कि बृहस्पतिवार शाम पंच निर्मोही अणि अखाड़े के बैरागी संतों ने अपर मेलाधिकारी हरबीर सिंह पर हमला किया है। हमले में हरबीर सिंह की आंख और शरीर में कई जगहों पर चोट लगी हैं। जानकारी के अनुसार एक सिपाही भी इस दौरान घायल हुआ है। पुलिस-प्रशासन के द्वारा मारपीट करने वाले संतों को चिह्नित किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि संत कुंभ के अवस्थापना कार्यों में हो रही देरी से नाराज थे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कनखल थाना क्षेत्र के बैरागी कैंप में अपर मेलाधिकारी हरबीर सिंह की अखिल भारतीय निर्मोही अणी अखाड़ा में संतों के साथ बैठक होनी थी। हरबीर सिंह रात करीब आठ बजे कैंप पहुंचे। वहां पहले से ही अखाड़ा के कई संत मौजूद थे। बताया जा रहा है कि कैंप में बिजली नहीं होने से बैरागी आक्रोशित हो गए। उनका कहना था कि 12 अप्रैल को उनका पहला शाही स्नान है। इसके बावजूद अब तक मेला प्रशासन के दावों के बावजूद बैरागी कैंप क्षेत्र में संतों के लिए अभी तक अवस्थापना सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई हैं। अब कहीं बिजली के खंभों में तार खींचे जा रहे हैं तो कहीं धूल-मिट्टी से बचाव के लिए सड़कों पर रोड़ी-गिट्टी बिछाई जा रही है। शौचालय और पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए संत जूझ रहे हैं। कछुआ चाल से अवस्थापना निर्माण कार्य होने से संतों में नाराजगी है। संतों ने उनके साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए हरबीर सिंह को घेर कर उनके साथ मारपीट कर दी। सूचना मिलने पर आईजी संजय गुंज्याल, एसएसपी जनमेजय खंडूरी व सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस सहित जिला एवं मेला के अधिकारी पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे और आईजी ने छावनी पहुंचकर संतों से बातचीत की और हरबीर सिंह को वहां से बाहर निकाला।

यह भी पढ़ें : योगी आदित्यनाथ की राह पर उत्तराखंड के एक विधायक, बनेंगें महामंडलेश्वर, करेंगे धर्म के साथ राजकर्म भी

नवीन समाचार, हरिद्वार, 26 मार्च 2021। उपनगरी ज्वालापुर विधानसभा के भाजपा विधायक सुरेश राठौर ने निरंजनी अखाड़े पहुंचकर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़े के सचिव से वार्ता। सुरेश को 12 अप्रैल को होने वाले शाही स्नान से पहले निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया जाएगा।
शुक्रवार को सुरेश राठौड़ निरंजनी अखाड़े पहुंचे और अखाड़े के सचिव रविन्द्र पुरी व अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी से मुलाकात की। इस मौके पर विधायक सुरेश राठौर ने कहा कि राजनीति के साथ-साथ अब वह धर्म के काम भी करेंगे। इसलिए वह सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर बनने जा रहे हैं। राठौर ने कहा कि जिस तरह से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक संत हैं, वह अपने दोनों धर्म बड़ी खूबी के साथ निभा रहे हैं। इसलिए महामंडलेश्वर बनने के बाद उनके राजनीतिक जीवन पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ेगा और वो धर्म और कर्म दोनों कामों को एक साथ करेंगे। इस माैके पर रवींद्र पुरी महाराज ने कहा कि 12 अप्रैल के शाही स्नान से पहले सुरेश को निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर बनाया जाएगा।

यह भी पढ़ें : हरिद्वार में हरि की पैड़ी पर आदिकालीन लिपि के बाद आज मिले भगवान के पद चिन्ह ! लोगों का जमावड़ा

नवीन समाचार, हरिद्वार, 07 जनवरी 2021। हरिद्वार में हरकी पैड़ी पर बृहस्पतिवार को ब्रह्मकुंड के पास जलमग्न सीढ़ियों पर मिला एक पदचिन्ह दिखाई दिया है। लोग इस पदचिह्न को दैवीय पद चिह्न मान रहे हैं। लोग इन्हें यहां साक्षात ईश्वर की उपस्थिति बता रहे हैं। लिहाजा इस पदचिन्ह को देखने के लिए हरकी पैड़ी पर लोगों का तांता लगा हुआ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वह बरसों से यहां आते रहते हैं, लेकिन पहली बार यह पदचिन्ह यहां नजर आए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार तीर्थ पुरोहितों को गुरुवार सुबह हरकी पैड़ी के ब्रह्मकुंड के पास गंगा में डूबी सीढ़ियों पर एक पद चिन्ह की आकृति नजर आई। उल्लेखनीय है कि अभी कुछ महीने पहले इसी स्थान पर ब्रह्मकुंड के पास मुख्य आरती स्थान के पास सीढ़ियों की मरम्मत के दौरान सीढ़ियों के पत्थर के नीचे रखी शिलाओं पर प्राचीन आदिकालीन लिपि भी अंकित मिली थी। जिसकी पुरातत्व विभाग लिपि की जांच कर रहा है। अब दोनों शिलाओं पर बुलेट प्रूफ कांच लगाने की तैयारी की जा रही है। इसके बाद श्रद्धालु हरकी पैड़ी प्राचीन शिला के भी दर्शन कर पाएंगे।

हरिद्वार में भीषण ट्रेन हादसा, चार लोगों की बुरी तरह क्षत-विक्षत मौत !
नवीन समाचार, हरिद्वार, 07 जनवरी 2020। 120 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से रेलगाड़ी के ट्रायल रन के दौरान बृहस्पतिवार को तेज रफ्तार ट्रेन ने चार लोगों को कुचल डाला। मामला ज्वालापुर कोतवाली क्षेत्र के जमालपुर का है जहां हरिद्वार- लक्सर रेलवे ट्रैक पर दोहरीकरण का कार्य चल रहा है। इस नए ट्रैक पर ट्रेन के ट्रायल के दौरान यह दुर्घटना हो गई। क्षेत्रीय विधायक यतीश्वरानंद, पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंच गए हैं।
सूत्रों के अनुसार ज्वालापुर में डबल लेन पर दिल्ली से बुलाई गई विशेष ट्रेन का ट्रायल रन चल रहा था। इसी दौरान ट्रेन की चपेट में आने चार लोगों की मौत हो गई। दुर्घटना ज्वालापुर के नजदीक जमालपुर कलां क्षेत्र में हुई है। ट्रेन हरिद्वार रेलवे स्टेशन से वापस लक्सर की ओर जा रही थी कि यह दर्दनाक हादसा हो गया। लोगों की शिनाख्त करने का प्रयास किया जा रहा है। शव बुरी तरह से क्षत-विक्षत अवस्था में मिले हैं। यह भी साफ नहीं है कि वास्तव में कितने लोगों की मौत हुई है। सूचना मिलते ही कोहराम मच गया है। पुलिस और रेलवे प्रशासन के तमाम अधिकारी घटना स्थल के लिए रवाना हो गए हैं।

यह भी पढ़ें : बिग ब्रेकिंग: उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के तहत लड़का, लड़की, काजी सहित चार के खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज

-लड़की का धर्म परिवर्तन करा कर हाईकोर्ट में सुरक्षा के लिए लगाई थी गुहार
नवीन समाचार, नैनीताल, 29 दिसम्बर 2020। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में धर्म परिवर्तन का पहला मामला पुलिस में दर्ज हो गया है। पटेलनगर कोतवाली पुलिस ने एक मामले में लड़की, लड़का और निकाह कराने वाले काजी सहित चार लोगों के खिलाफ उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है। उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम बनने के बाद से उत्तराखंड का यह पहला मामला है।
पुलिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार गत दिनों राजधानी के नयागांव पटेलनगर निवासी समीर नाम के व्यक्ति ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में अपनी सुरक्षा के लिए याचिका दायर की थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया और जिलाधिकारी देहरादून को जांच कराने के आदेश दिए। प्राथमिक जांच में पाया गया कि समीर की डेढ़ साल पहले दीक्षा टम्टा निवासी सीमाद्वार वसंत विहार मूल निवासी रुद्रप्रयाग के साथ ट्यूशन में दौरान जान पहचान हुई थी। दोनों बालिग थे, लिहाजा दोनों ने निकाह करने का फैसला कर लिया। इसके लिए वे सबसे पहले मुफ्ती सलीम नाम के काजी के पास गए, जिसने दीक्षा का धर्म परिवर्तन कराकर उसका नाम सना रख दिया। इसके बाद 26 सितंबर 2020 को समीर के फूफा शौकीन की मौजूदगी में निकाह करा दिया। इस पूरे मामले में सामने आया कि इन्होंने धर्म परिवर्तन के लिए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 का पालन नहीं किया है। जबकि, धर्म परिवर्तन के लिए उन्हें एक माह पूर्व प्रशासन को अवगत कराना था। लिहाजा चारों के खिलाफ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार इस मामले में लड़की द्वारा किया गया धर्म परिवर्तन शून्य घोषित होगा और दोषियों को कम से कम तीन माह और अधिकतम पांच साल का कारावास संभव है, साथ ही जुर्माना भी लग सकता है और संबंधित संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन भी रद्द किया जा सकता है।

यह भी पढ़ें : डीजीपी अशोक कुमार ने सपत्नीक नयना देवी मंदिर में की पूजा-अर्चना

बृहस्पतिवार को नयना देवी मंदिर में सपत्नीक पूजा-अर्चना करने पहुंचे डीजीपी अशोक कुमार।

नवीन समाचार, नैनीताल, 10 दिसम्बर 2020। इन दिनों कुमाऊं मंडल के दौरे पर आए उत्तराखंड के नवनियुक्त पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार बृहस्पतिवार को अपनी पूर्व कार्यस्थली नैनीताल मुख्यालय पहुंचे। यहां उन्होंने सुबह नौ बजे सपत्नीक नगर की आराध्य देवी एवं राज्य की कुल देवी माता नयना देवी के मंदिर में दर्शन किये और अपने सफल कार्यकाल के साथ राज्य में बेहतर कानून व्यवस्था व राज्य की खुशहाली के लिए माता से प्रार्थना की, और वापस लौट गए। उल्लेखनीय है कि डीजीपी अशोक कुमार पूर्व में नैनीताल में आईजी के पद पर रह चुके हैं और उनकी माता नयना देवी पर अटूट आस्था है। वह पूर्व में भी माता नयना के दर्शनों के लिए आते रहते थे। नगर में खेल गतिविधियों में भी उनकी काफी भागेदारी रहती थी।

यह भी पढ़ें : नैनीताल ब्रेकिंग : दुर्गा पूजा महोत्सव के कार्यक्रम में हुआ बदलाव…

-आखिर तय हुआ, दुर्गा पूजा महोत्सव में भी होगा मूर्ति निर्माण
नवीन समाचार, नैनीताल, 19 सितंबर 2020। पूर्व में नगर में दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन करने वाली संस्था सर्वजनिन दुर्गा पूजा समिति ने इस वर्ष के दुर्गा पूजा महोत्सव में मूर्ति निर्माण न कर, इसकी जगह फ्लैक्सी पर माता दुर्गा की मूर्ति छपवाकर उसकी प्रतीकात्मक पूजा कराने का निर्णय लिया था। किंतु शनिवार को आयोजक संस्था ने उपाध्यक्ष त्रिभुवन फर्त्याल की अध्यक्षता में आयोजित हुई बैठक में अपना निर्णय बदल दिया है और तय किया है कि मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा और मूर्तियों का नयना देवी मंदिर से ही बिना शोभायात्रा निकाले माता नंदा-सुनंदा की तरह विसर्जन किया जाएगा। साथ ही यह भी तय किया है कि वर्तमान कार्यकारिणी ही महोत्सव का आयोजन कराएगी। बैठक में संरक्षक प्रेम कुमार शर्मा, सुरेश चौधरी, गुरविंदर सिंह, महासचिव नरदेव शर्मा, सहित अन्य पदाधिकारी मौजूद रहे।

यह भी पढ़ें : नंदा देवी महोत्सव के बाद एक और महोत्सव हुआ तय

-प्रतीकात्मक होगा दुर्गा पूजा महोत्सव
नवीन समाचार, नैनीताल, अगस्त 2020। सर्वधर्म की नगरी सरोवरनगरी में सर्वजनिन दुर्गा पूजा कमेटी के तत्वावधान में इस वर्ष 22 से 26 अक्तूबर तक दुर्गा पूजा महोत्सव आयोजित किया जाएगा। कोराना की वजह इस वर्ष दुर्गा पूजा महोत्सव प्रतीकात्मक रूप से मनाया जाएगा। इस दौरान मूर्तियों की नगर में शोभायात्रा नहीं निकाला जाएगा। अलबत्ता प्रतीकात्मक कलश यात्रा से महोत्सव का शुभारंभ किया जाएगा। जबकि फ्लैक्सी के माध्यम से पूजा-अर्चना होगी।
रविवार को आयोजक संस्था की दुर्गा महोत्सव को लेकर आयोजित हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया। बैठक में आय-व्यय समेत अन्य प्रस्तावों पर भी चर्चा कर इस बार महोत्सव को प्रतीकात्मक रूप से मनाने का निर्णय लिया गया। बैठक के अंत में पदाधिकारियों ने कमेटी से जुड़े सदस्यों के परिजनों के इस बीच हुए आकस्मिक निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। बैठक में संरक्षक प्रेम कुमार शर्मा, सुरेश चंद्र चौधरी, सरदार गुरविंदर सिंह, अध्यक्ष चंदन कुमार दास, महासचिव नरदेव शर्मा, कोषाध्यक्ष राकेश कुमार, किशन सिंह अधिकारी, उमेश मिश्रा, शंकर गुहा मजूमदार, पवन व्यास, दिनेश चंद्र भट्ट, सुमन साह, राजेश वर्मा, सरदार जीतेंद्र सिंह, भास्कर महतोलिया आदि मौजूद रहे।

मोहर्रम पर नहीं हुआ मातम, न निकले ताजियों के जुलूस, घरों पर हुई कुरान खानी

नवीन समाचार, नैनीताल, अगस्त 2020। हजरत इमाम शाहब व उनके साहबजादों की याद में मुस्लिम संप्रदाय का गमी के त्योहार मोहर्रम पर इस वर्ष कोरोना की छाया दिखाई दी। इस मौके पर शिया समुदाय के लोगों के घरों पर पिछले वर्षों की तरह ना ही घरों पर मातम हुआ, ना ही मातमी जुलूस निकला। अलबत्ता केवल पांच लोगों ने तल्लीताल मोटापानी स्थित छोटे इमामबाड़े पर जाकर मजलिस की। वहीं मल्लीताल में सुन्नी समुदाय के लोगों द्वारा मोहर्रम पर निकाला जाने वाला ताजियों का जुलूस भी इस बार नहीं निकला। अलबत्ता, मोहर्रम कमेटी के तत्वावधान में बनाये गये इमाम हुसैन के पीतल के व एक छोटे ताजिये को रजा क्लब के मैदान में रखकर जमात कराई गई व शाम को वाहन में रखकर कर्बला लेकर जाकर फतेह निशान व अखाड़े की सलामी देकर फातिहा पढ़कर सुपुर्दे-खाक कर दिया गया। इस कार्य में भी कमेटी के सदर नाजिम बक्श, महासचिव समीर अहमद, मो. नसीम, मो. साबिर, मो. कासिम शामिल हुए, जबकि ताजिये बनाने में मो. सऊद, मो. फैशल, मो. अदनान, मो. अजान, मो. खालिद, मो. रिहान व मोहसिन आदि लोग शामिल हुए। इस दौरान घरों पर कुरान खानी की गई।

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-नौ अंगुलियों से उठ जाती थी पर किसी से भी अकेले नहीं उठ पाती थी करीब 90 किलो वजन वाली शिला
नवीन समाचार, बैजनाथ, बागेश्वर, 5 अगस्त 2020। बागेश्वर जनपद के कत्यूरी शासकों की राजधानी बैजनाथ में नौवीं शताब्दी में बने धार्मिक एवं पुरातात्विक महत्व के बैजनाथ मंदिर में, कहा जाता है कि जहां भगवान शिव एवं पार्वती का विवाह हुआ था, सावन के इस पवित्र माह में भीम शिला खंडित हो गई है। यह वही आस्था की प्रतीक शिला है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसे नौ लोग मात्र एक-एक अंगुली छूकर उठा सकते थे, किंतु कैसा भी बलवान एक व्यक्ति इसे उठा नहीं सकता था। इसलिए मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इसे उठाने का प्रयास करते रहते यह तब है, जबकि मंदिर परिसर पुरातत्व विभाग के अधीन और उनकी सुरक्षा में था। यहां पुरातत्व विभाग के कर्मचारी भी हमेशा तैनात रहते हैं, और मंदिर में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं।

शिला के खंडित होने से पूरी कत्यूर घाटी और कत्यूरी शासकों में वंशजों में रोष व्याप्त हो गया है। हिंदू जागरण मंच अखिल जोशी तथा समाज के लोगों ने भीम शिला के इस तरह खंडित होने पर पुलिस एवं प्रशासन में शिकायत दर्ज कराते हुए पुरातत्व विभाग के कर्मचारियों की जांच कराने की मांग भी की है। लोगों में इस सीमा तक रोष है कि शिला के खंडित होने पर स्थानीय कवि मोहन जोशी ने इस पर कविता भी लिख डाली है।

पेश है मोहन जोशी की कविता:

भीम पत्थर
बैजनाथ के मन्दिर पावन
सदियों से भू सम सफेद।
यह जाने कितनों ने देखा
न छू पायेगा दुखद खेद।।
पत्थर मन्दिर पर रखा जो
स्वयं ही कैसे टूट गया।।
मन मानस की पोसी यादें
बेरहमी कोई लूट गया।।
नौ नौं कहते नौ उंगुली पर
सहज जमीं से जो उठता था।
बली अकेले भीम पत्थर पर
खोते शक्ति खुद लुटता था।।
कुत्सित भावों के बिन प्रस्तर
कैसे यह टूट गया होगा।।
या बलहीन जमीं को जाने
यह स्वयं ही रूठ गया होगा।।
कितनी मेहनत से बनती हैं
जागीर धरोहर दुनियाँ में।
मगर वक्त कहाँ लगता है
खोते पल भर दुनियाँ में।।
पत्थर तो जुड़ जाएंगे
अगर जोड़ते जाओगे।
खण्डित होगी यूँ ही सभ्यता
अगर स्मृति तोड़ते जाओगे।।
जिसने सुन्दरता को देने
श्रमबिंदु भरे क्षण दान किए।
मानवता हित जीवन धन तज
मुद हर्ष कभी अनुमान किए।।
तुमने जीवन में दिया ही क्या
पर मन में क्षोभ और डर डाला।।
हे निष्ठुर मानव तुमने क्षण में
कुंठित हो कर क्या कर डाला।।

इधर उत्तराखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता भीमशिला के टूटने पर मंदिर के निकट गोमती नदी में बनी झील के पास अवैध खनन के लिए भारी मशीनों का प्रयोग करने एवं स्थानीय नेताओं द्वारा खनन माफियाओं के रूप में गोमती नदी का दोहन करने से भी जोड़ा है। बताया गया है कि इतनी विशाल को तोड़ने के लिए किये गये प्रयासों के अधिक निशान भी सामान्यतया नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में कुछ लोग इसे प्राकृतिक घटना, दैवीय रोष से भी जोड़ रहे हैं, जबकि अन्य इसे असामाजिक तत्वों की हिमाकत बता रहे हैं।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 27 जुलाई 2020। आने वाली 1 अगस्त को होने वाली ईद पर नमाज घरों पर ही पढ़ी जाएगी और बकरों की कुर्बानी, खुले में नहीं, वरन मुख्यालय में नये बने स्लॉटर हाउस में की जाएगी। यह बात एसडीएम विनोद कुमार ने सोमवार को मल्लीताल कोतवाली में सीओ विजय थापा की उपस्थिति में अंजुमन इस्लामिया कमेटी की बैठक में कही।
उल्लेखनीय है कि इस संबंध में सभी बातें पहले ही पिछली बैठक में तय हो गई थीं, किंतु अंजुमन इस्लामिया की ओर से डीएम को पत्र भेजकर पूर्व की तरह बरसात होने पर जामा मस्जिद एवं बरसात न होने पर डीएसए मैदान में नमाज पढ़ने की इजाजत मांगी गई थी। इसी आलोक में आज बैठक आयोजित हुई। इस पर एसडीएम ने साफ किया कि कोविद-19 के दृष्टिगत जारी दिशा-निर्देशों का पालन किया जना जरूरी है। इसके तहत एक स्थान पर अधिक लोगएकत्र नही हो सकते हैं। बैठक में मल्लीताल कोतवाल अशोक कुमार, तल्लीताल थाना प्रभारी विजय मेहता, अंजुमन इस्लामिया के मोहम्मद फारुख सिद्दीकी, मुफ्ती अब्दुल खालिक, शोएब, दिलशाद व दानिश आदि लोग मौजूद रहे।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 1 जुलाई 2020। आखिर 100 दिन के लंबे अंतराल के बाद बुधवार को नयना देवी मंदिर सहित विभिन्न मंदिरों के कपाट खुल गए। फिर भी श्रद्धालु माता नयना सहित विभिन्न देवी देवताओं के दूर से ही दर्शन कर पाये। मंदिर में कोविद-19 की महामारी के दृष्टिगत बेहद कड़े सुरक्षा प्रबंधों के तहत मंदिर के बाहर ही दर्शनार्थियों का तापमान लेकर स्क्रीनिंग करने की व्यवस्था की गई है। इसके बाद जूते उतारते ही श्रद्धालुओं को सैनिटाइजर उपलब्ध कराया जा रहा है। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ही स्थित हनुमान जी की विशाल मूर्ति से लेकर माता नयना एवं अन्य मंदिरों से काफी दूरी पर रस्सी बांधी गई है, साथ ही मंदिर के विशाल घंटों को भी ढका गया है, ताकि दर्शनार्थी कुछ भी छू न सकें। इसके अलावा अधिकतम 10-10 की संख्या में ही श्रद्धालुओं को एक छोटे गेट से मंदिर में प्रवेश कराया गया। वहीं मंदिर से बाहर आने के लिए भी नियमानुसार अलग गेट की व्यवस्था की गई थी। इस प्रकार सुबह सात से 11 बजे के नियत समय में अधिकतम 200 श्रद्धालुओं ने ही माता नयना एवं अन्य देवी-देवताओं के दर्शन किये। नगर के कुछ अन्य मंदिरों के भी आज से खुलने के समाचार हैं।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 30 जून 2020। कोरोना महामारी के कारण 22 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद से बंद नगर की आराध्य देवी श्री मां नयना देवी मंदिर 100 दिन के बाद बुधवार 1  जुलाई से कुछ नियम-शर्तों के साथ खुल जाएगा। मंदिर के व्यवस्थाधिकारी सुरेश मेलकानी ने बताया कि मंदिर अगले आदेशों तक प्रतिदिन सुबह सात से 11 एवं शाम तीन से सात बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुलेगा। इस दौरान उत्तराखंड से बाहर के तथा 65 वर्ष से अधिक के बुजुर्ग, 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों एवं गर्भवर्ती महिलाओं को छोड़कर अन्य यानी प्रदेश के लोग, एक बार में अधिकतम 10 की संख्या में मंदिर में प्रवेश कर पाएंगे। मंदिर में किसी भी तरह का प्रसास या जल चढ़ाना, दिया-धूपबत्ती जलाना अभी निषिद्ध होगा। मंदिर में प्रवेश करते हुए जूते बाहर उतारने होंगे और फेस मास्क आवश्यक रूप से पहनना होगा, साथ ही मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व अपने हाथों को सैनिटाइज भी करना होगा। मंदिर में किसी भी वस्तु, रेलिंग, घंटियों आदि को छूना भी बना है।
नगर के ठंडी सड़क स्थित शनि देव मंदिर, ग्वेल देवता मंदिर, पाषाण देवी मंदिर एवं शिरडी सांई मंदिर आदि को भी बुधवार से खोले जाने की सूचना है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में अनलॉक 1.0 में धार्मिक स्थलों को खोले जाने के आदेशों के बावजूद नगर के मंदिर जरूरी व्यवस्थाएं न बना पाने के कारण बंद ही रहे थे। अब अनलॉक 2.0 में यह खुलने जा रहे हैं।

यह भी पढ़ें : 30 जून तक बंद रहेंगे नैनीताल के मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे

नवीन समाचार, नैनीताल, 10 जून 2020। सर्व धर्म की नगरी सरोवरनगरी नैनीताल में सभी मंदिर, मस्जिद व गुरुद्वारे आदि धार्मिक स्थल आगामी 30 जून तक बंद रहेंगे। बृहस्पतिवार को नैना देवी मंदिर में पुलिस-प्रशासन के साथ आयोजित हुई सर्व-धर्म के लोगों की बैठक में यह निर्णय लिया गया। बैठक में धार्मिक स्थलों के प्रतिनिधियों ने एक स्वर में कहा कि अभी कोरोना के संक्रमण की संभावना एवं इनसे बचते हुए धार्मिक स्थलांे को खोलने के केंद्र व राज्य सरकार के निर्देशों का पालन करना समाज के हित में नहीं होगा। धार्मिक स्थलों के पास निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए अपेक्षित व्यवस्था, मानव शक्ति भी नहीं है। इसलिये अभी धार्मिक स्थलों को 30 जून तक बंद रखना ही ठीक रहेगा। 30 जून के बाद धार्मिक स्थलों को खोलने पर निर्णय तब की कोरोना से संबंधित स्थितियों एवं यदि कोई नये दिशा-निर्देश आते हैं, तो उन पर निर्भर करेगा। बैठक में एसडीएम विनोद कुमार, सीओ विजय थापा, मल्लीताल के कोतवाल अशोक कुमार, तल्लीताल के थाना प्रभावी विजय मेहता, नैना देवी मंदिर के व्यवस्थापक अमर उदय ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी राजीव लोचन साह के साथ ही जामा मस्जिद, गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा एवं अंजुमन इस्लामिया आदि धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि मौजूद रहे।

यह भी पढ़ें : माता नयना देवी और बाबा नीब करौरी के वार्षिकोत्सव भी लॉक डाउन की भेंट चढ़े

नवीन समाचार, नैनीताल, 27 मई 2020। विश्व प्रसिद्ध सरोवरनगरी की आराध्य देवी माता नयना देवी का 136वां वार्षिकोत्सव एवं विश्व गुरु बाबा नीब करौरी के कैंची धाम स्थित धाम के हर वर्ष 15 जून को होने वाले वार्षिकोत्सव भी इस वर्ष लॉक डाउन की भेंट चढ़ गये हैं। नयना देवी मंदिर का हर वर्ष ज्येष्ठ माह की नवमी को आयोजित होने वाला वार्षिकोत्सव इस वर्ष 31 मई को प्रस्तावित है, किंतु हर वर्ष भव्यता के साथ आयोजित होने वाले इस आयोजन में इस वर्ष बाहरी लोग मंदिर में प्रवेश नहीं कर पायेंगे। केवल इसी दिन मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने का अधिकार रखने वाले मंदिर के संस्थापक लाला मोती राम शाह के वंशजों को भी इस दिन होने वाली कुल पूजा के लिए पहले दिन ही पूजा सामग्री एवं प्रसाद मंदिर में उपलब्ध कराना होगा। मंदिर ट्रस्ट की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि यह आयोजन बेहद सादगी से होगा। कुल पूजा में केवल एक दंपत्ति प्रतीकात्मक रूप में बैठेंगे ओर तीन आचार्य पूजा करवाएंगे।
वहीं बाबा नीब करौरी के कैंची धाम में भी इस वर्ष हर वर्ष लाखों लोगों की उपस्थिति में लगने वाला मेला नहीं लगेगा, साथ ही बाबा को मालपुवों का प्रसाद भी नहीं चढ़ पायेगा। क्योंकि मालपुवे बनाने के लिए मथुरा के परंपरागत लोग नहीं आ पा रहे हैं। ऐसे में बाबा को इस बार पुवों का प्रसाद चढ़ाया जाएगा।

घोड़ाखाल मंदिर में पूजा अर्चना करते भवाली व भीमताल के निकाय अध्यक्ष।

यह भी पढ़ें : कोरोना से निजात को भवाली-भीमताल के प्रथम नागरिकों ने ग्वेल देवता से लगाई गुहार

नवीन समाचार, नैनीताल, 20 अप्रैल 2020। जनपद मुख्यालय के निकटवर्ती भवाली नगर पालिका के अध्यक्ष संजय वर्मा एवं भीमताल नगर पंचायत के अध्यक्ष देवेंद्र चनौतिया ने सोमवार को निकटवर्ती घोड़ाखाल स्थित कुमाऊं में न्याय देवता के रूप में प्रसिद्ध लोक देवता ग्वेल के मंदिर में साथ पहुंचकर संयुक्त रूप से कोरोना विषाणु की महामारी से विश्व एवं देश को निजात दिलाने की गुहार लगाई। इस मौके पर सामाजिक दूरी एवं कोरोना से बचाव के लिए मास्क पहनकर घंटियों के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध इस मंदिर के प्रांगण में मंदिर के पुजारी कैलाश जोशी ने हवन-यज्ञ भी करवाया। इस धार्मिक अनुष्ठान में कमल जोशी, गिरीश चंद्र, नंदन कुमार, धर्म सिंह नेगी, भुवन उप्रेती, योगेश कुमार, महेंद्र सिंह धौनी व अनिल आदि लोग भी शामिल हुए। कहा जाता है कि न्यायालयों में न्याय न मिल पाने से परेशान लोग भी आखिर में ग्वेल देवता के मंदिर में पत्र, स्टांप पेपर आदि के माध्मय से गुहार लगाते हैं, और उन्हें न्याय मिल भी जाता है।

यह भी पढ़ें : कोरोना के भय से मुक्त कराएंगे ‘राम-कृष्ण’, रामायण-महाभारत फिर से आएगा टीवी पर 

नवीन समाचार, नैनीताल, 27 मार्च 2020। कोरोना के संक्रमण के चलते अगले 21 दिनों तक लॉक डाउन मंे घर में खुद को कैद महसूस कर रहे लोगों के लिए खुशखबरी है। केंद्र सरकार ने लोगों की इस परेशानी को दूर करने के लिए राम का सहारा लिया है। केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर रामानंद सागर के 1987 में शुरू हुए रामायण धारावाहिक को एक बार फिर से प्रसारण करने की घोषणा की है। रामायण के पहले एपिसोड का प्रसारण कल यानी शविवार 28 मार्च को सुबह 9 बजे से 10 बजे तक तथा दूसरे एपिसोड का प्रसारण रात को 9 बजे से 10 बजे तक होगा। यही नहीं, सरकार बीआर चोपड़ा के 1988 में शुरू हुए मशहूर धारावाहिक ‘महाभारत’ को भी फिर से प्रसारित करने की संभावना तलाश रही है।

शुक्रवार को केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट कर जानकारी दी कि लोगों की मांग को देखते हुए दूरदर्शन पर एक बार फिर रामायण का प्रसारण शुरू किया जा रहा है। 80 के दशक में प्रसारित होने वाला सीरियल रामायण इस कदर लोगों के बीच लोकप्रिय था कि कुछ देर के लिए सड़कें सूनी हो जाया करती थीं। जिन लोगों के घरों में टीवी नहीं था वे भी दूसरों के घरों में जा कर रामायण देखा करते थे। रामायण के किरदार अरुण गोविल और दीपिका को तो लोग सचमुच का राम और सीता मानने लगे थे।

यह भी पढ़ें : नव संवत्सर, चैत्र प्रतिपदा, नवरात्र पर घरों पर ही पूजा अर्चना

नवीन समाचार, नैनीताल, 25 मार्च 2020। हिंदू नव वर्ष, नव संवत्सर, चैत्र प्रतिपदा, नवरात्र पर कोरोना एवं लॉक आउट हावी रहा। कोरोना के दृष्टिगत मंदिर पहले ही बंद हैं। ऐसे में नगर के सभी मंदिरों में सन्नाटा छाया रहा। अनेक लोगों को बाजारों में पूजा की सामग्री भी नहीं मिल पाई। ऐसे में लोगों ने बमुश्किल कहीं गली-मोहल्लों के मंदिरों में छिटपुट शीष नवाए, अन्यथा घरों पर ही पूजा-अर्चना की। सुबह नहा-धोकर लोगों ने घर में ही कलश स्थापना की एवं दुर्गा सप्तशती का पाठ किया। कई लोगों ने पंडितों-आचार्यों से फोन एवं वीडियो कॉल पर संपर्क करके भी धार्मिक अनुष्ठान करवाए।

यह भी पढ़ें : घर पर ही पढ़ें नमाज, मस्जिद से की गई अपील

नवीन समाचार, नैनीताल, 23 मार्च 2020। नगर के अन्य धार्मिक स्थलों-मंदिर, चर्च एवं गुरुद्वारे के बाद आखिर मुस्लिम धर्म के इबादत स्थल-जामा मस्जिद से भी कोरोना को लेकर दिशा-निर्देश जारी हो गए हैं। सोमवार अपराह्न मुस्लिम समुदाय के लोगों से 31 मार्च तक घर से ही मस्जिद पढ़ने की अपील की गई। उल्लेखनीय है कि ऐसी अपील पहली बार की गई है। इससे पूर्व बीते शुक्रवार को जामा मस्जिद में जुम्मे की नमाज पढ़ी गई थी। उल्लेखनीय है कि नगर का प्रसिद्ध नयना देवी मंदिर, गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा एवं सभी चर्च पहले ही श्रद्धालुओं के लिए 31 मार्च तक बंद कर दिया गया है। नगर की सबसे पुरानी धार्मिक-आध्यात्मिक संस्था श्रीराम सेवक सभा ने हिंदुओं के नव वर्ष-नव संवत्सर चैत्र प्रतिपदा पर 25 मार्च को होने वाले कार्यक्रम भी निरस्त कर दिए हैं।

कुछ ही मिनटों में हुआ ‘नवीन समाचार’ पर प्रकाशित समाचार का असर

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आज कल अवैध सम्बन्धो में बहुत बढ़ोत्तरी होते जा रही है विशेषतः मेट्रो सिटीज में ये चीज बहुत सामान्य सी हो रही है और लोग भटक रहे है तो चलिए मैं अपने कुछ अनुभवों को एवम ग्रह योगो को आपसे सांझा करता हूँ।।

* अवैध सम्बन्ध का मुख्य कारक ग्रह राहु ही है क्योकि राहु ही व्यक्ति को भ्रमित करता है उसके बाद बारी आती है शुक्र और मंगल की ये ग्रह जब भी पीड़ित हो तो अचानक ऐसे सम्बन्ध बन जाते है जिसकी कल्पना जातक खुद नही करता ।
* शादी के पहले अवैध सम्बन्ध हो तो उसके पीछे मंगल अहम भूमिका निभाता है शादी के बाद अवैध सम्बन्ध हो तो राहु और शुक्र अहम भूमिका निभाते है।
* किसी जातक के पत्रिका में सातवे का स्वामी आठवे भाव में मंगल के साथ और दोनों पर गुरु की दृष्टि ना हो , राहु बारवे में हो तो ऐसे जातक का सम्बन्ध विवाह के पहले कइ स्त्रियों के साथ होता है और वैवाहिक जीवन का नाश होता है।
* जिस स्त्री के कुंडली में सातवे का स्वामी मंगल आठवे में और राहु चौथे में हो गुरु पर भी राहु की दृष्टि ऐसी स्त्री का पति व्याभिचारी होता है विवाह के पूर्व उसके सम्बन्ध कई स्त्रियों के साथ होते है।
* राहु पंचम भाव में हो, मंगल बारवे भाव में हो, गुरु भी राहु के प्रभाव में हो और चंद्र पर शुक्र की दृष्टि हो तो जातक सम्बन्ध अवैध होते है।
* तीसरे का राहु , सातवे में मंगल और शुक्र की युति और गुरु नीच राशि में हो तो भी जातक भटकता है।
* राहु की दृष्टि शुक्र और मंगल पर हो तो अवश्य ही जातक भटकता है।
* शुक्र मंगल की राशि में और मंगल शुक्र की राशि में हो तो भी बस फर्क इतना है की बदनामी नही होती है।
* केतु और मंगल की युति सातवे भाव में हो तो ये जबरदस्ती दिखाता है ऐसे जातिका को सम्भल के रहना चाहिए।
* किसी भी जातक का शुक्र अगर राहु और मंगल से पीड़ित हो तो ऐसे जातक के पत्नी का सम्बन्ध विवाह के पूर्व किसी और से जरुर होता है और जातक का भी सम्बन्ध किसी ओर से होने की पूरी सम्भावना रहती है।
* जातक के सप्तम में राहु हो शुक्र बारवे भाव में और सप्तमेश आठवे भाव में और मंगल शुक्र के राशि में हो तो जातक के बाहरी सम्बन्ध अवश्य होते है यही नही गुरु की दृष्टि यदि सप्तम या सप्तमेश पे ना हो तो अवश्य ही इसके पत्नी के सम्बन्ध दूसरे व्यक्ति से होंगे।
* राहु सातवे मे शुक्र लग्न में और मंगल दसवे में हो तो भी जातक के बाहरी सम्बन्ध होते है और जातक के जीवनसाथी का भी कुछ हाल ऐसा भी होता है।
* शुक्र दसवे में हो राहु पाचवे में और मंगल चौथे में तो भी जातक बड़े बड़े पहाड़ , समुद्र पार कर अपनी हवस पूरी करता है ये शास्त्रो का मत है औऱ कई पत्रिका में ये योग काम करते पाया है।
* राहु चौथे में हो तो व्यक्ति का लगाव विवाह के बाद दो अन्य विपरीत लिंग की ओर होता है अब इस स्तिथि में कही मंगल और शुक्र पर राहु की दृष्टि हो तो बाहरी सम्बन्ध के योग बनते है।
* योग तो खैर शुक्र और मंगल के बलि होने पर भी बनते है लेकिन इन योगो में जातक की बदनामी नही होती लेकिन जहा राहु का प्रभाव बढ़ता है तो जातक की बदनामी जरूर होती है।
* मंगल वक्री हो एवम शुक्र के राशि में शुक्र से दृष्ट हो तो भी ये अवैध सम्बन्ध का कारण बनता है यदि राहु की दृष्टि भी हो।
* बुध लग्न में और शुक्र एकादश में हो तो भी जातक पर teenage में लांछन लगता है।
* किसी जातिका के पंचम में राहु हो और मंगल द्वादश में तो ऐसी लड़की के पैर कच्ची उमर में फिसलेंगे जरूर यहा तक की मैंने शादी के पूर्व प्रेग्रेंट होने के case भी देखे ऐसी स्तिथि में थोड़ा ध्यान दे और सावधानी रखे।
∆निवारण—
* कुंडली में गुरु की दृष्टी लग्न लग्नेश और बुध पर हो तो जातक कभी भी नही भटकता और भटक भी गया तो रस्ते पर जरूर आएगा।
* वैसे ही गुरु की शुक्र और सप्तमेश पर दृष्टि हो तो जातक की पत्नी साक्षात लक्ष्मी होती है।
* नवांश में गुरु और शनि एक ही राशि में हो और पंचमेश कुंडली में बलि हो तो भी जातक सम्भल जाता है।
* गुरु यदि उच्च का और शनि स्वराशि का हो तो भी बाकी बुरे योगो का नाश करता है लेकिन शनि उच्च का और शुक्र स्वराशि का हो तो बिगड़ने के चान्सेस बनते है।
* नवांश में सप्तमेश शुभ भाव में और शुभ ग्रह से प्रभावित हो तो भी सब ठिक ठाक ही होता है।
* गुरु किसी पाप प्रभाव में न हो केंद्र में बैठा हो और मंगल नवांश में नीच का हो तो भी ठीक।
• विशेष-
कुछ महत्वपूर्ण बाते मैं आपसे शेयर करना चाहता हु जो बहुत जरूरी है और आज के हिसाब से सच भी और इसमे सिर्फ ग्रह योग ही नही बल्कि आस पास का वातावरण भी जिम्मेदार है और साथ में बदलता समय भी जिसे आपको मान लेना चाहिए–
* शुक्र जितना बलि उतना ही जातक का सम्बन्ध दूसरे लिंग के लोगो के साथ होता है बस बदनामी नही होती।
* 19 वे साल भटकने की जादा सम्भावना रहती क्योकि इस समय राहु एक्टिव होता है आज के समय मे विवाह के पहले शारीरिक सुख मिलना कोई बड़ी बात नही है ।
* क्योकि आज कल 7वी और 8वी class के बच्चे भी girlfriend और boyfriend का मतलब समझते है और 12वी के बाद तो ये आम हो जाता है और जवानी के उस शुरवात का सब का अपना अनुभव होता है जिसे हम teen age कहते है खैर कहने का मतलब ये है कई लोग हायरस्कूल और कॉलेज के समय इन चीजो का आनंद या आ अनुभव जरुर लेते है और शहरों में ये आम बात हैं।
* समय के साथ राहु का प्रभुत्व बढ़ते जा रहा है और महत्ता भी इस लिए हम पाश्चय संस्कृति के गुलाम हो चुके है कलियुग के बढ़ने के साथ काम का बढ़ना कोई बड़ी बात नही है काम ने सबको घेर रखा है आगे तो दुनिया दूर है और आने वाले कुछ सालो में एक व्यक्ति का लॉयल होना भी कठिन होगा।
* शिक्षत होने के साथ व्यक्ति आज कल कई जगह समझौता कर लेता है और उसे ही मनोरंजन समझ लेता है चाहे वह ऑफिस हो या जॉब प्लेस जो ठीक नही इंसान अपने गुणों का उपयोग ज्यादा करे तो अच्छा होगा। जब कभी पति व्यस्त हो या स्त्रियों को सन्तुष्टि न दे पाए और उन स्त्रियों पर राहु का प्रभाव हो तो वह निश्चित ही अन्य व्यक्तियों द्वारा सन्तुष्टि प्राप्त करती है ऐसी स्त्रियों का गुरु दूषित होता है लेकिन मंगल बलि पुरुषो का भी यही हाल है ये चीज दिल्ली , मुंबई ,बैंगलोर और चेन्नई में कॉमन सी है।
* खैर जाने अनजाने या आकर्षण के प्रभाव से इंसान द्वारा कम उम्र या जवानी में गलती हो जाती है लेकिन मेरा मानना है की विवाह के बाद व्यक्ति को समझदारी के साथ जीवन यापन करना चाहिए चाहे वह पुरुष हो या स्त्री और एक दूसरे के प्रति समर्पित एवम विश्वास होना चाहिए जो व्यवहायिक जीवन के लिए आवश्यक है।
* मेरा गर्भवती स्त्रियों से निवेदन है की जब आप गर्भ धारण करती है तो उस समय फालतू के चीजो या मनोरंजन में ध्यान देने के बजाय हरि स्मरण करे या रामायण ,गीता जैसे धार्मिक ग्रंथो का पठान करे इससे होगा ये की आपके बच्चे पर सही संस्कार होंगे और वह सही रास्तो पर चलेंगे।
* मुझे कई लोग वशीकरण का मन्त्र मांगते है कहते है की पहले मैं उससे प्यार करती थी और ओ भी मुझसे लेकिन उसने अभी किसी ओर से शादी की है उसकी माँ के दबाव के चलते मैं ऐसे लोगो से यही कहूंगा की आप का तो ठीक है लेकिन उस व्यक्ति का क्या कसूर जिसने तुम्हारे प्रेमी से शादी की वह क्यो तुम्हारे कर्म की सजा भुगते ऐसे लोगो से मेरी यही राय है आप पुरानी चीजे भूल जाए नए जीवन साथी के साथ खुश रहे और फालतू वशीकरण और बचकानी चीजो के चक्कर में ना पड़े टोने टोटके के चलते अगर आज वापस आ भी जाए कल ओ वही जाएगा जिसके साथ उसका जीवन ऊपरवाले ने लिखा है।
* अगर आप कंट्रोल नही कर सकते तो जो ऊर्जा आपको बहकाती है उसी ऊर्जा को आप सही जगह लगाइए आध्यत्म की ओर ध्यान दे अपनी मनस्तिथि को ज्ञान द्वारा वश में करे।

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हमारी संस्कृति में पशु-पक्षियों का कितना महत्व है, यह इस बात से ही पता चल जाता है कि हमारे प्रत्येक आराध्य देवी-देवता के साथ किसी न किसी पशु या पक्षी की उपस्थिति अवश्य देखी जाती है। श्री कृष्ण का गौ प्रेम हमें उनकी सेवा करने को प्रेरित करता है। हमारे शास्त्रों में गाय के संबंध में अनेक बातें लिखी हुई हैं जैसे शुक्र की तुलना सुंदर स्त्री से की जाती है, वैसे ही इसे गाय के साथ भी जोड़ते हैं।

1-अतः शुक्र के अनिष्ट से बचने के लिए गोदान का प्रावधान है। यदि वास्तु में उत्तर-पश्चिम में कोई विशेष दोष हो और वह दोष ऐसा हो जिसे ठीक न किया जा सकता हो, तो गौसेवा लाभ देती है।

2-जिस भू-भाग पर मकान बनाना हो वहां पर पंद्रह दिन तक गाय या बछड़ा बांधने से वह जगह पवित्र हो जाती है।
3-मछलियों को पालने व आटे की गोलियां खिलाने से अनेक दोष दूर होते हैं। जब घर में मछली रखें तो आठ सुनहरी और एक काली मछली ही रखें। मछली पालना वास्तु के इशान कोण के दोष को दूर करता है।

4-तोते का हरा रंग बुध ग्रह के साथ जोड़कर देखा जाता है। अतः घर में तोता पालने से बुध की कुदृष्टि का प्रभाव दूर होता है। यदि घर की उत्तर दिशा में दोष हो, तो भी तोता पालना लाभ देता है।
5-घोड़ा पालना भी शुभ है। सभी लोग घोड़ा नहीं पाल सकते। इसलिए काले घोड़े की नाल को घर में रखने से भी शनि के कोप से बचा जा सकता है।

6-शनि को प्रसन्न करना हो, तो कौवों को भोजन कराना चाहिए। तदनुसार काले कौवे को भोजन कराने से अनिष्ट व शत्रु का नाश होता है।
7-कुत्ता भी नकारात्मक शक्तियों को नियंत्रित कर सकता है। उसमें भी काला कुत्ता सबसे ज्यादा उपयोगी सिद्ध होता है।
8-जिस पशु-पक्षी की सेवा की जाती है। वह अपने से संबंधित भाव का लाभ अवश्य देता है।

विभिन्न पवित्र माह, पवित्र तिथियों, ग्रह विशेष से संबंधित वार नक्षत्रों आदि में पशु-पक्षी की विशेष सेवा की जाए तो हालात एकदम बेहतर होते हैं और लाभ भी जल्दी मिलता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि पशु-पक्षियों को चारा डालने से कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है। इस बात का खास ध्यान रखें कि जो भी दान करें, वह शाकाहारी जानवरों को ही करें। मांसाहारी जानवरों की प्रवृत्ति हिंसक होती है। उन्हें कुछ खिलाने पर भी उनकी वृत्ति व प्रवृत्ति में कोई अंतर नहीं आता है जबकि शाकाहारी पशु तुरंत आपके मित्र बन जाते हैं।
हमारे ऋषि-मुनि, संत-महात्मा सही कह गए हैं कि पशु-पक्षियों को दाना-पानी खिलाने से मनुष्य के ज‍ीवन में आने वाली कई परेशानियों से छुटकारा बड़ी ही आसानी से मिल जाता है। एक ओर जहां हम प्रभु की भक्ति के कृपा पात्र बनते हैं वहीं हमें अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही पुण्य-लाभ भी प्राप्त होता है।
अगर आपके मन में भी दिनभर बेचैनी-सी रहती है। आपके काम ठीक समय पर पूरे नहीं हो रहे हैं। पारिवारिक क्लेश नियमित रूप से चलता रहता है। स्वास्थ्य ठीक नहीं है आदि…. तो ‍निश्चित ही आपको पक्षियों को दाना खिलाने से आनंद की प्राप्ति होगी और आपके जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
चींटी, चिड़ियों, गिलहरियां, कबूतर, तोता, कौआ और अन्य पक्षियों के झुंड और गाय, कुत्तों को नियमित दाना-पानी देने से आपको मानसिक शांति प्राप्त होगी। अत: पशु-पक्षियों को दाना-पानी देने से ग्रहों के अनिष्ट फल से छुटकारा मिलता है।
* कुंडली में यदि राहु-केतु की महादशा हो तो पशु-पक्षियों को बाजरा डालना चाहिए।
* पशु-पक्षियों को ज्वार खिलाने से शुक्र ग्रह की पीड़ा दूर होती है।
* गेहूं खिलाने से सूर्य की पीड़ा दूर होती है।
* चावल से मानसिक परेशानियां दूर होकर मानसिक शांति मिलती है।
* मूंग की दाल से बुध ग्रह से होने वाली परेशानियों से निजात पाई जा सकती है।
* चने की दाल से गुरु की कृपा प्राप्त होती है।
* कौओं और कुत्तों को ग्रास देने से शनि, राहु और केतु प्रसन्न होते हैं।
* गिलहरियों को बाजरा, बिस्किट, रोटी खिलाने से जीवन में आने वाली हर कठिनाई से आसानी मुक्ति मिल जाती है।
* चींटियों के लिए 100 ग्राम शक्कर या बेसन के लड्डू, पंजीरी खिलाने से आपके स्वास्थ्य में लाभ तो होगा ही, आपको मानसिक शांति का अहसास भी होगा। लेकिन एक बात का विशेष ध्यान रखना की पक्षियों को दाना डालने के बाद न करें ये गलती, हो सकता है भारी नुकसान

प्रतिदिन पक्षियों को दाना डालना चाहिए। जो लोग पक्षियों को दाना डालते हैं उन पर देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। अधिकतर लोग घर की छत या बालकनी में पक्षियों के लिए दाना डालते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि दाना डालने से भी नुकसान हो सकता है। पक्षियों को दाना डालना शुभ होता है, लेकिन उस समय कुछ गलतियां हो जाने से व्यक्ति को बारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

दाना डालने पर चिडियों के साथ कबूतर भी आते हैं। कबूतरों को बुध ग्रह का माना जाता है क्योंकि वे शांति के प्रतीक हैं।

कुछ लोग पक्षियों के लिए दाना छत पर डालते हैं। छत को राहू का प्रतीक माना जाता है। जब कबूतर दाना खाने छत पर आते हैं तो इस तरह बुध अौर राहू का मेल हो जाता है।

कबूतर जब दाना खाते हैं को आस पास की जगह गंदी होना स्वाभाविक है। जिसके कारण राहु उस घर में रहने वाले लोगों की कुंडली में हावी हो जाता है।

राहु के हावी हो जाने से मान-सम्मान में कमी आती है अौर घर में दरिद्रता का वास होता है। यदि छत या बालकनी में दाना डाला है तो बाद में उसे साफ जरूर कर देना चाहिए।
सूर्य- लाल गाय का सांड को गेहूं और गुड़ खिलाना, गौरेया को दाना चुगाना आदि सूर्य शांति के उपाय हैं।
चंद्रमा-सोमवार को गाय को गुलगुले खिलाना, खरगोश को दूब डालना, चींटियों को मीठा डालना आदि चंद्रमा शांति के उपाय हैं।

मंगल- बंदरों को चना खिलाना, लंगूरों को केले खिलाना मुर्गियों को दाना चुगाना आदि मंगल शांति के उपाय हैं।
बुध- गाय के घास, हरी सब्जी खिलाना, तोते को हरी मिर्च खिलाना या दाना चुगाना आदि बुध शांति के उपाय हैं।

शुक्र-कपिला गाय को आटा खिलाना, कबूतरों को दाना चुगाना, कुत्ते को मीठी रोटी खिलाना, मोर को दाना चुगाना आदि शुक्र शांति के उपाय हैं।
शनि- काली कुतिया या कुत्ते को पालना एवं नियमित भोजन देना शनि ग्रहों की शांति के लिए उपयुक्त है।

राहु-सांप की सेवा, कुत्तों को दूध पिलाना, कछुओं को आटे की गोली खिलाना, कौओं, को रोटी डालना आदि राहु शांति के उपाय हैं।
केतु- मछली को सतरींजा की गोली डालना, मछली को रामनाम की गोली डालना, अजगर सेवा, कौओं को चुग्गा डालना आदि केतु शांति के उपाय हैं।

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मंदिर में प्रवेश करने से पहले भक्‍त पूरी श्रद्धा के साथ इन्‍हें बजाते हैं। प्राचीन समय से ही देवालयों और मंदिरों के बाहर इन घंटियों को लगाए जाने की शुरुआत हो गई थी। इसके पीछे यह मान्यता है कि जिन स्थानों पर घंटी की आवाज नियमित तौर पर आती रहती है वहां का वातावरण हमेशा सुखद और पवित्र बना रहता है और नकारात्मक या बुरी शक्तियां पूरी तरह निष्क्रिय रहती हैं।देवालयों व मंदिरों के बाहर घंटियां या घडिय़ाल पुरातन काल से लगाए जाते हैं। जैन और हिन्दू मंदिर में घंटी लगाने की परंपरा की शुरुआत प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने शुरू की थी। इस परंपरा को ही बाद में बौद्ध धर्म और फिर ईसाई धर्म ने अपनाया। बौद्ध जहां स्तूपों में घंटी, घंटा, समयचक्र आदि लगाते हैं तो वहीं चर्च में भी घंटी और घंटा लगाया जाता है।
किसी भी मंदिर में प्रवेश करते समय आरम्भ में ही एक बड़ा घंटा बंधा होता है । देवालयों में घंटी और घड़ियाल संध्यावंदन के समय बजाएं जाते हैं। संध्यावंदन 8 प्रहर की होती है जिसमें से मुख्‍य पांच और उसमें से भी प्रात: और संध्या यह दो प्रमुख है। घंटी और घड़ियाल ताल और गति से बजाया जाता है।

मंदिर में प्रवेश करने वाला प्रत्येक भक्त पहले घटनाद करता है और मंदिर में प्रवेश करता है ।

इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण है ।

जब हम बृहद घंटे के नीचे खड़े होकर सर ऊँचा करके हाथ उठाकर घंटा बजाते हैं , तब प्रचंड घंटनाद होता है । मंदिर में प्रवेश करने पर घंटा बजाते ही हमारे दिमाग में चल रहे सभी विचार घंटे की आवाज के आगे पूरी तरह से हट जाते हैं और मन पूरे श्रृद्धाभाव से प्रभु की भक्ति में लीन हो जाता है। घंटे की आवाज हमारे मन को एकाग्रचित करके भगवान की ओर ले जाती है।

यह ध्वनि 330 मीटर प्रति सेकंड के वेग से अपने उद्गम स्थान से दूर जाती है । ध्वनि की यहीं शक्ति कपन के माध्यम से प्रवास करती है । आप उस वक्त घंटे के नीचे खड़े होते हैं । घण्टा को इस प्रकार बनाया जाता है कि इसकी आवाज दिमाग के दाएं और बाएं हिस्‍से को मिलाने का काम करे। घंटे को एक बार बजाने पर उसकी आवाज वातावरण में कम से कम 7 सेकंड तक गूंजती है।

अत : ध्वनि का नाद आपके सहस्रारचक्र ( ब्रम्हरन्ध्र , सिर के ठीक ऊपर ) में प्रवेश कर शरीर मार्ग से भूमि में प्रवेश करता है । घण्टा बजाने से जो ध्‍वनि उत्‍पन्‍न होती है वह कई धातुओं के सम्मिश्रण के कारण आती है। घंटे को निर्मित करने में कैडमियम, तांबा, जस्‍ता, निकिल, सीसा, क्रोमियम और मैग्‍नीज जैसी धातुओं का इस्‍तेमाल होता है। केवल इन धातुओं ही नहीं इन्‍हें कितनी मात्री में मिलाया गया है, इस पर भी घंटे की आवाज निर्भर करती है।

यह ध्वनि प्रवास करते समय आपके मन में ( मस्तिष्क में) चलने वाले असंख्य विचार , चिंता , तनाव , उदासी , मनोविकार , इन समस्त नकारात्मक विचारों को अपने साथ ले जाती हैं और आप निर्विकार अवस्था में परमेश्वर के सामने जाते हैं । तब आपके भाव शुद्धतापूर्वक परमेश्वर को समर्पित होते हैं व घंटे के नाद की तरंगों के अत्यंत तीव्र के आघात से आस – पास के वातावरण के व हमारे शरीर के सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश होता है , जिससे वातावरण में शुद्धता रहती है , हमें स्वास्थ्य लाभ होता है ।

मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।

अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

पहला कारण घंटी बजाने से देवताओं के समक्ष आपकी हाजिरी लग जाती है। मान्यता अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है।

दूसरा कारण यह कि घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। मन घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है। मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं। सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है।

इसीलिए मंदिर में प्रवेश करते समय घंटनाद अवश्य करें , और थोड़ा समय घंटे के नीचे खड़े रह कर घंटनाद का आनंद अवश्य लें । आप चिंतामुक्त व शुचिर्भूत बनेगें ।

आप का मस्तिष्क ईश्वर की दिव्य ऊर्जा ग्रहण करने हेतु तैयार होगा । ईश्वर की दिव्य ऊर्जा व मंदिर गर्भ की दिव्य ऊर्जाशक्ति आपका मस्तिष्क ग्रहण करेगा ।

स्कंद पुराण के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से मानव के सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, घंटी या घडिय़ाल की ध्वनि से वही नाद निकलता है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। धर्म शास्त्रियों के अनुसार जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद प्रकट होगा।

आप प्रसन्न होंगे और शांति मिलेगी , आत्म जागरण , आत्म ज्ञान और दिव्यजीवन के परम आनंद की अनुभूति के लिये घंटनाद अवश्य करें ।

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ग्रहों का हर एक जीव पर प्रभाव होता है। उसी प्रकार पेड़-पौधों और ग्रहों का विशेष संबंध है। इसी प्रकार हर एक राशि का संबंध पेड़-पौधों से होता है। यह पेड़-पौधे सभी राशि वालों को प्रभावित करते हैं।
किसी को यह नकारात्मक ऊर्जा देते हैं, तो किसी को सकारात्मक ऊर्जा। थोड़े से उपाय करने से यह आपके जीवन में लाभ दे सकते हैं। तो क्यों न करें यह उपाय…। ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियों के स्वामी ग्रह-अलग होते हैं। इनका पेड़ पौधे और वनस्पतियों पर काफी प्रभाव माना गया है।
किस राशि के लोगों को क्या उपाय करना चाहिए, जिससे उनके घर में सकारात्मक ऊर्जा आए और घर का बजट भी अच्छा रहे।
प्रत्येक राशि वालों के लकी प्लांट अलग-अलग होते हैं। अपनी राशि के अनुसार पौधा रोपने से जीवन में परिवर्तन आ जाता है।
मेष राशि (Aries)
इस राशि का स्वामी मंगल है और मंगल के प्रभाव वाला पेड़ चंदन है। मेष राशि के लोगों को मंगलवार के दिन लाल चंदन की पूजा करना चाहिए और अपने वॉलेट में छोटा लाल चंदन का टुकड़ा भी रखना चाहिए।
वृष राशि (Tauras)
वृषभ राशि वालों को शुक्रवार के दिन गुलर के पेड़ की जड़ अपने घर में लाना चाहिए और सफेद कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखना चाहिए। यह छोटा सा उपाय आपके घर में पैसों की कभी कमी नहीं होने देगा।
मिथुन राशि (Gemini)
मिथुन राशि का स्वामी बुध है। इस राशि वाले के लिए अपामार्ग, जिसे आम बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा कहते हैं। बुधवार के दिन इसके पौधे का पत्ता अपने वॉलेट में रखना चाहिए। इससे हमेशा अपने वॉलेट में बरकत रहेगी।
कर्क राशि (Cancer)
कर्क राशि वालों के लिए पलाश के फूल काफी शुभ माने गए हैं। कर्क राशि वालों को पलाश के फूलो की पूजा कर घर की तिजोरी और वॉलेट में रखना चाहिए। इससे इनके घर आर्थिक तंगी कभी नहीं हो सकती।
सिंह राशि (Leo)
सिंह राशि वालों के लिए आंकड़े के पेड़ की लकड़ी काफी शुभ मानी गई है। सिंह राशि वालों को आंकड़े के पेड की पूजा करके उसकी लकड़ी तिजोरी में रखना चाहिए। इस मामूली से उपाय से सिंह राशि वालों के घर में हमेशा बरकत रहेगी।
कन्या राशि (Virgo)
कन्या राशि का स्वामी बुध है। इसलिए इन्हें भी अपामार्ग (आंधी झाड़ा) की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के बाद इसकी लकड़ी को घर की तिजोरी और अपने वॉलेट में रखना चाहिए।
तुला राशि (Libra)
सफेद पलाश तुला राशि के लिए शुभ होता है। इसके पौधे के सफेद फूलों को सफेद कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखना चाहिए। यह उपाय करने से चमत्कारिक फायदा देखा गया है। ज्योतिषियों का मत है कि इससे पैसा दोगुना होने लगता है।
वृश्चिक राशि (Scorpio)
वृश्चिक राशि के लोग खैर के पेड़ की पूजा करें तो उनकी आर्थिक स्थित सुधरने लगेगी। इस राशि के लोग मंगल देव की आराधना करें। मंगलवार के दिन खैर के पेड़ की जड़ लेकर आएं और पूजा कर तिजोरी में रखें।
धनु राशि (Sagittarius)
इस राशि वाले लोग पीपल की पूजा जरूर करें। क्योंकि धनु राशि वालों के लिए पीपल का पेड़ धन देने वाला माना गया है। धनु राशि वाले गुरुवार के दिन इसकी पूजा करें और इसकी लकड़ी लाकर तिजोरी में रखें। ज्योतिषियों का मानना है कि इससे घर में धन बढ़ना शुरू हो जाएगा।
मकर राशि (Capricorn)
इस राशि वालों पर शनि की कृपा बरसती है। मकर राशि वालों को शनि देव की आराधना से धन लाभ होता है। शनिवार को मकर राशि वाले शमि के पौधे की पूजा करें और उसकी जड़ को अपने वॉलेट में रखें। हमेशा बरकत रहेगी।
कुंभ राशि (Aquarius)
कुंभ राशि का स्वामी भी शनिदेव हैं। इस राशि वालों को अपने वॉलेट में काले कपड़े में शमि पौधे की लकड़ी रखना चाहिए। इससे वे हमेशा बरकत महसूस करेंगे।
मीन राशि (Pisces)
मीन राशि के लोगों को पीले चंदन की लकड़ी हमेशा घर की तिजोरी में रखना चाहिए। कभी-कभी चंदन की लकड़ी को मस्तिष्क से जरूर लगाए। हमेशा घर में बरकत रहेगी।

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जानिए शैतान (चंचल /नटखट/जिद्दी ) बच्चे और ज्योतिष का सम्बन्ध —

प्रिय पाठकों/मित्रों, बच्चे भावी जीवन के कर्णधार होते हैं। बचपन से ही बच्चों में अच्छे संस्कार के साथ-साथ उनके शारीरिक, मानसिक विकास के लिए सभी अभिभावकों को कुछ विशेष बातों का अवश्य ध्यान रखना चहिये। जब बच्चे माता पिता की बात नहीं सुनते न हैं, बात नहीं मानते, जिद करते हैं या पढ़ाई में रुचि नहीं लेते हैं तो माता-पिता को चिंता होना स्वाभाविक है। कहा जाता है कि बच्चे शैतानी नहीं करेंगे तो क्या बड़े करेंगे? मगर जब ये शैतानी सीमा पर करने लगती है और स्वयं को और दूसरों को नुकसान पहुँचाने लगती है तो माता-पिता का चिंतित होना स्वाभाविक है। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की आजकल के बदलते परिवेश में जहाँ माता पिता के पास संतान के लिए समय कम से कम होता जा रहा है वहीं पर बच्चे भी शैतान होते जा रहे है| देखा गया है कि 5 साल से छोटी उम्र के बच्चे अक्सर शैतानी की सीमा लाँघ कर, कभी-कभी अपनी बात मनवाने के लिए हाथ-पाओं चलाने लग जाते हैं| और कई बार ऐसा भी हो जाता है की उनकी बात ना मानने पर वो खुद को या किसी और को हानि पहुँचा सकते हैं| और किसी चीज़ की इच्छा में बच्चा किसी दूसरे बच्चे से वो वास्तु छीनने की कोशिश में उसी पर हाथ उठा देता है|

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यदि बच्चे की कुंडली को सही तरह से देख लिया जाए तो बच्चों की काफ़ी परेशानियो से बचा जा सकता है| यदि ऐसे बच्चे की कुंडली के भाव विशेषकर लग्न का अध्ययन किया जाए तो न केवल बच्चे के स्वभाव की व्यवस्थित जानकारी हो सकती है वरन्‌ उन्हें कैसे समझाया जाए, यह भी जाना जा सकता है।लग्न के अलावा लग्न में बैठे ग्रह भी बच्चों के स्वभाव को प्रभावित करते हैं।
——लग्न का गुरु बच्चों को शांत, समझदार बनाता है।
—–सूर्य जिद्दी व क्रोधी बनाता है। बचपन से ही बच्चों को गायत्री मंत्र बुलवाना चाहिए इससे बच्चे का सूर्य मजबूत होता है, उसे आरोग्य बल मिलता है | बच्चे को पिता का सुख मिलता हैतथा उसकी आत्मा पवित्र होती है बच्चा कभी गलत सांगत में नहीं पड़ेगा न ही पथभ्रष्ट होगा
—–पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की मंगल झगड़ालु व अति साहसी बनाता है। मंगल की अशुभ स्थिति बच्चे को उग्र बना देती है। ये बच्चे गुस्सा बहुत करते हैं। एकदम बिफर जाते हैं, हाथ में आई वस्तु फेंकना व मारपीट करना आम लक्षण है। इन बच्चों को बड़े होने पर रक्तचाप की शिकायत हो जाती है। ये बच्चे जल्दबाज होते हैं, चोट भी लगती रहती है। यदि कुंडली में मंगल नीच का है या पाप प्रभाव में है और बृहस्पति भी कमजोर है तो बच्चा उत्पाती, तोड़फोड़ करने वाला, क्रोधी, , चोरी की भी आदत वाला हो सकता है विशेषतः जब मंगल लग्न या चंद्र को प्रभावित करे। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ऐसे बच्चों की लगातार काउंसलिंग करें, अच्छे संस्कार दें तथा हनुमान चालीसा का पाठ करेवाएं| ध्यान रखें की बच्चा घर में इंडोर गेम्स की बजाय बाहर खेले | मंगल मजबूत होगा, दुर्घटनाओं से बचेगा, हड्डियाँ मजबूत होंगी और बच्चे में सहनशीलता तथा धैर्य जैसे गुण आयेंगे |
—–बुध कुशाग्र बुद्धि का, अति वाचाल बनाता है। बुध की‍ स्थिति खराब होने पर बच्चा वाचाल हो जाता है। बेवजह बड़बड़ाना, पलटकर जवाब देना, बदतमीजी करना सीखने लगता है। पढ़ाई में मन भी कम लगता है यदि बच्चे का बुध कुंडली में खराब हो तो बच्चा फालतू बकवास बहुत करता है। हर बात पर बडबड करके बदतमीजी से बोलता है तथा उसके पढ़ाई में अंक भी कम आते है| पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ऐसे बच्चो को गणेशजी की पूजा करवाये तथा बुधवार को हरी वस्तु का दान करवाएँ| बच्चे को हरी सब्जियां खिलायें, खली पेट ताम्बे के बर्तन में रखा पानी पिलाये | बच्चे को अपनी बात खुलकर बताने के लिए प्रोत्साहित करें | इससे बच्चे का बुध मजबूत होगा १ बच्चे में तर्कशक्ति विकसित होगी
—–चन्द्रमा भावुक व डरपोक बनाता है। बच्चों का पढ़ाई की तरफ ध्यान केंद्र ना कर पाने मे चंद्रमा की अहम् भूमिका होती है चन्द्रमा मन का करक होता है कुंडली मे इस पर राहु केतु शनि का प्रभाव होने पर बच्चा एक जगह ध्यान नहीं लगा पाता और उसका मन इधर उधर भटकने लगता है राहु बच्चे को हठी और उदण्डि बनाता है ||पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की अगर बच्चा चुपचाप रहे, कोई बात बुरी लगे तो व्यक्त न करके चुपके-चुपके रोये, छोटी-छोटी बात में रोये या गहराइ से ले, उसमें उर्जा की कमी हो तो समझो बच्चा बेहद भावुक है, और उसका चन्द्रमा कमजोर है इसके लिये बच्चे को चांदी के गिलास में दूध /पानी पिलायें | माँ का साथ अधिक से अधिक मिले ऐसे बच्चे को |
—-शुक्र कलात्मक अभिरुचि देता है। शुक्र की कुंडली में अशुभ बच्चों को बुरी आदतों जैसे शराब, सिगरेट का शौकीन बनाती है। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की कामुकता भी इससे आती है। ये बच्चे विपरीत लिंग में अधिक रुचि लेते हैं। इन बच्चो का चरित्र हनन होने के संभावना होती है खासकर अगर बृहस्पति कुंडली में कमजोर हो और लग्न व लगणेश कमजोर हो| इन बच्चों की परवरिश बड़ी चतुराई से करना चा‍हिए। इन्हे बार बार चरित्र की शिक्षा दे और इन्हें अच्छे गुरु के पास भेजें|अच्छी पुस्तकें पढ़ने को दें। संगीत, चित्रकला में भेजें और फालतू वक्त न बिताने दें। इनके मित्रों पर भी नजर रखें। टीवी, कम्प्यूटर के साथ ज्यादा समय न बिताने दें।पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ऐसे बच्चों को कभी-कभी साबूदाना खिलाएं , साफ स्वच्छ कपडे पहनाये, बच्चे को अपनी चीजें सही स्थान पर रखने की आदत डालें | इससे शुक्र मजबूत होगा और बच्चे को जीवन में कभी धन की कमी नहीं रहेगी
—–शनि आलसी, नीरसताहीन मानसिकता देता है। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शनि का कुंडली में अशुभ प्रभाव गंदा रहना, डिप्रेशन, हीन मानसिकता, गालीगलौज, लड़ाई-झगड़ा, नशे को दिखाता है। बच्चे को गरीबों, दींन -दुखियों की सहायता करनी सिखाएं, शनि मजबूत होगा जो बच्चे को अकाल मृत्यु से बच्चे को बचाएगा||
—–केतु लक्ष्यहीन, उदासीन वृत्ति देता है।
—–राहु उग्रता, झूठ बोलना, छिपकर काम करने की मानसिकता देता है। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यदि कुंडली में राहु केंद्र में है, अशुभ ग्रहों की दृष्टि में है तो बच्चा शैतान होता है। यह शैतानी तोड़फोड़, फेंका-फेंकी तक जा सकती है। ऐसे बच्चे हायपर एक्टिव होते हैं। अत: एक स्थान पर बैठ ही नहीं सकते। यदि राहु शुक्र के साथ युति बना रहा हो तो बच्चे छुप-छुपकर कारस्तानी करते हैं। झूठ भी बोलते हैं। ये बच्चे पैर घिसटकर चलते हैं।
—–चंद्र-बृहस्पति कमजोर होने पर यह राहु गलत संगत, अपराधों में फँसा सकता है। ऐसे बच्चों की संगत सुधारें| फालतू के खर्चे न करने की सीख दें|
—यदि राहु शुक्र के साथ युति बना रहा हो तो बच्चे छुप-छुपकर कारस्तानी करते हैं।
—-राहु शुक्र की युति हो तो बच्चा छुप छुप कर शैतानी करता है |
—-पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यदि लग्न या चंद्र पर शनि के साथ मंगल का प्रभाव जातक को स्वार्थी, झगडालू, अपराधी, दूसरे को तकलीफ देकर खुशी महसूस करने वाला देता है। पुलिस केस भी हो सकते हैं। नियम तोड़ने व रिस्क लेने में रुचि, के साथ खुराफाती है। ऐसे बच्चों को हनुमानजी व शिव की आराधना कराएँ। इन पर नजर रखें। इन पर ज्यादा विश्वास न करें।
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लग्न पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के भी ऐसे ही प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं।अतः कुंडली के ग्रहों पर विचार कर उनका उचित उपाय, समाधान किया जाए तो बच्चे के स्वभाव की विषमताओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

जैसे-धनु लग्न के बच्चों में घूमने का बेहद शौक रहता है। शैतान, उधमी, जिद्दी, योग्य-अयोग्य का विचार किए बिना अति साहस दिखाने वाले होते हैं। पढ़ाई में विशेष रुचि नहीं होती। इनके ऊपर नियंत्रण रखना आवश्यक है, क्योंकि ये भावनाओं के फेर में कम पड़ते हैं।

पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ज्योतिष में, बुध को एक परोपकारी ग्रह के रूप में जाना जाता है। किंतु, आपकी जन्म कुंडली में बुध की अन्य ग्रहों के साथ युति या भाव में उपस्थिति आपके व्यवहार का निर्धारण करती है। यदि बुध पाप ग्रहों के साथ युति में है तो बुध ग्रह नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकता है। इसलिए, बुध को चंचल एवं अचल ग्रह के रूप में भी जाना जाता है।ज्योतिष का मानना है कि बुध हम को सोचने की क्षमता, निष्कर्ष पर पहुंचने का बल, विचारों को समझने एवं आत्मसात का साहस, परिकल्पना को समझने की समझ, विचारों एवं ख्यालों को अभिव्यक्त करने की क्षमता, हमारी राय के बारे में दूसरों को समझाने की कला, दूसरों को हंसाने का फन, भीतर की भावनाआें को शब्दों में उतारने की क्षमता प्रदान करता है। जैसे कि चंद्रमा हमारी प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है, उसी तरह बुध हमारी प्रतिक्रिया के तरीके का प्रतिनिधित्व करता है या कह सकते हैं कि हम घटनाआें पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, उसमें बुध की भूमिका अहम होती है।

पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यदि आपकी जन्म कुंडली में बुध बुरी स्थिति में है तो आपको कमजोर तंत्रिका तंत्र, मस्तिष्क संबंधी विकार, अभिव्यक्ति, बोलने, लिखने व शिक्षा संबंधी समस्याएं, धीमी उत्तरदायी प्रणाली, सुस्त प्रकृति, कठोर भाषा की प्रवृत्ति, संक्षिप्त वैवाहिक जीवन, चमड़ी संबंधी समस्याएं, कमजोर याददाश्त, धन जोड़ने में असमर्थ, कमजोर दांत एवं अन्य समस्याएं होने की संभावना है।

बुध, सौर मंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। बुध हरे का रंग शीतल और नम ग्रह है। ज्योतिष और वैदिक ग्रंथों में, बुध को एक कोमल ग्रह के रूप में देखा जाता है या कह सकते हैं कि चंद्रमा के गुण रखने वाला ग्रह है। इसके अलावा, बुध को चंद्रमा का पुत्र भी कहा जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से बुध तीसरे एवं छठे क्रमशः मिथुन एवं कन्या राशि स्वामी है। कन्या राशि में शुरूआती 15 डिग्री में बुध उच्च का एवं बाकी 15 डिग्री में मूलत्रिकोणी कहलाता है। मिथुन में बुध स्वगृही होता है। हालांकि, मीन राशि में बुध नीच का होता है।

बुध को युवा, बेचैन, चंचल, बुद्धिमान, प्रज्ञात्मक, चतुर, मजाकिया, मनोरंजक, बातूनी, विश्लेषणात्मक, तार्किक, वैज्ञानिक, गणनात्मक, हंसमुख और लापरवाह, लचीले स्वभाव, बहुमुखी, हाजिर जवाबी, मिलनसार, मित्रवत, तार्किक विशेषताआें के कारण जाना जाता है। जिन जातकों की जन्म कुंडली में बुध अच्छी जगह या अच्छी स्थिति में होता है, उन जातकों में उपरोक्त गुण एवं विशेषताएं काफी प्रफुल्लित होती हैं।
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आइये जाने लग्न द्वारा बच्चों के स्वभाव की जानकारी—

मेष लग्न : इस लग्न के बच्चे शैतान, उधमी, झगड़ालु और उग्र होते हैं। मारपीट करना और चोट खाना इनके लिए आम बात होती है। सिर में चोट लगने की आशंका रहती है। इन बच्चों को समझाते समय माता-पिता को उग्र नहीं होना चाहिए। संयम से, धीरज से काम लेना चाहिए।

वृषभ लग्न : इन बच्चों में स्वभावतः ही सुंदरता की तरफ झुकाव होता है। अच्छा रहना, खाना, सुविधायुक्त जीवन जीने की इच्छा होती है। प्रायः कला क्षेत्र में अच्छे होते हैं, परंतु जिद्दी भी होते हैं। इन्हें भी प्यार से ही समझाया जा सकता है।

मिथुन लग्न : ये बच्चे हर नई वस्तु, जानकारी के प्रति उत्सुक रहते हैं, मगर चित्त चंचल होने से एकाग्रता का अभाव रहता है और लक्ष्य तक जाने में कठिनाई होती है। ये बच्चे वाचाल होते हैं, प्रश्न अधिक पूछते हैं। इन्हें एकाग्रता बढ़ाने का प्रयास करवाना चाहिए।

कर्क लग्न : शांत स्वभाव के, भावुक, तीव्र बुद्धि के व स्नेहिल होते हैं। कई बार अति भावुकता से एकाग्रता में कमी आती है। इनके साथ बेहद शांति से, सही शब्दों का चयन कर बात की जानी चाहिए।

सिंह लग्न : इन बच्चों के ढेर सारे मित्र होते हैं। दूसरों के लिए अपना नुकसान तक कर सकते हैं। नेतृत्व कौशल होता है। प्रेम करते हैं मगर दिखा नहीं सकते। इनके मित्रों की निंदा करके आप इनसे नहीं जीत पाएँगे, वरन्‌ दूर होते जाएँगे।

कन्या लग्न : शांत, मितभाषी और पढ़ाई की तरफ ध्यान देने वाले, मेहनती होते हैं। अव्वल तो परेशान करते ही नहीं, करें भी तो एक डाँट से समझ जाते हैं। तनिक डरपोक होते हैं।

तुला लग्न : शांत, संयमी, आज्ञाकारी व पढ़ाकू होते हैं। बातों को मन से लगा लेते हैं। एक बार समझाने से ही बात समझ जाते हैं।

वृश्चिक लग्न : समझदार, तीव्र बुद्धि के होते हैं। स्वतंत्र निर्णय लेने की योग्यता व इच्छा होती है। मंगल की अच्छी-बुरी स्थिति इन्हें साहसी या डरपोक बना सकती है। इन पर काबू पाने के लिए इन्हें विश्वास दिखाना, भरोसे में लेना जरूरी है।

धनु लग्न : इन बच्चों में घूमने का बेहद शौक रहता है। शैतान, उधमी, जिद्दी, योग्य-अयोग्य का विचार किए बिना अति साहस दिखाने वाले होते हैं। पढ़ाई में विशेष रुचि नहीं होती। इनके ऊपर नियंत्रण रखना आवश्यक है, क्योंकि ये भावनाओं के फेर में कम पड़ते हैं।

मकर लग्न : ये बच्चे उदासीन प्रकृति के होते हैं। ‘जो मिला ठीक है’ इस सोच के रहते प्रगति की, जीतने की इच्छा कम रहती है। हीनभावना घर कर जाती है। इन्हें सतत प्रेरित करने की बेहद आवश्यकता होती है।

कुंभ लग्न : होशियार, खोजी प्रवृत्ति के विषय-अध्ययन में रुचि लेने वाले और शिक्षक-पालकों का मन जीतने वाले इन बच्चों को शायद ही कभी कुछ कहना पड़ता हो।

मीन लग्न : इनमें एकाग्रता की बेहद कमी होती है। कल्पना शक्ति बेहद अच्छी होती है, भावुक भी होते हैं। उपयुक्त मार्गदर्शन मिलने पर पढ़ाई में प्रगति कर सकते हैं।
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आपको पंडित दयानन्द शास्त्री जी आपके शैतान/चंचल /नटखट/जिद्दी बच्चे के बुध को शक्तिशाली बनाने के लिए कुछ उपाय बताने जा रहे हैं, ताकि आप बुध के सकारात्मक प्रभाव को जागृत कर अपने जीवन को सरल बनाने में सक्षम होंगे। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रभावशाली उपाय भी जानिए पंडित दयानन्द शास्त्री से—

इसके लिए आप निम्न बताए जा रहे सुझाव अपनाएं—

—आप आपके शैतान/चंचल /नटखट/जिद्दी बच्चे को गणपति का दर्शन करवाएँ।
—-आप आपके शैतान/चंचल /नटखट/जिद्दी बच्चे को भगवान् विष्णु की पूजा करें एवं बुधवार को विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का जाप करें।
—-आप आप आपके शैतान/चंचल /नटखट/जिद्दी बच्चे की छोटी उंगली में लोहे की रिंग पहनें, यदि हो सके तो बुधवार को धारण करें।
—- आप आपके शैतान/चंचल /नटखट/जिद्दी बच्चे के लिए बुधवार के दिन बकरी को हरा घास डालकर आएं।
— आप आपके शैतान/चंचल /नटखट/जिद्दी बच्चे द्वारा गरीबों को हरी वस्तुएं दान करें।
—-आप ऐसे बच्चे को मसालेदार भोजन न दें।
—-आप ऐसे बच्चे को अच्छी पुस्तकें पढ़ने को दें।
—-आप आपके शैतान/चंचल /नटखट/जिद्दी बच्चे को तांबे से बनी वस्तुएं जरूरतमंद लोगों को दान करवाएं ।
—-कई बार बच्चे झूठ बोलने लगते हैं तो ऐसे में उन बच्चो द्वारा ताम्बे का सिक्का मंदिर में रखवाएं ||
—–जो बच्चे ज्यादा शैतान होते है उनको चाँदी की एक ठोस गोली सोमवार को धारण कराये ||
—- अगर बच्चा बहुत शैतान है तो चांदी का कड़ा हाथ में पहनाएं
—- इसके अलावा आप छोटे बच्चों की मदद कर सकते हैं। आप बच्चों को शिक्षा एवं खाद्य सामग्री उपलब्ध करवा सकते हैं।
—–उस बच्चे को अपने गुरु के साथ समय बिताने को कहें।
——-जीवजंतुओं की देखभाल करने वाले, उन्हें प्यार करने वाले बच्चों को जीवन में कभी भी किसी भयंकर परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता
—- सबसे जरुरी आप घर का वातावरण शांत रखें।
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एक विशेष उपाय—पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की अगर आपका बच्चा भी जरुरत से ज्यादा शैतान हो और वह किसी कहना नहीं मानता और उसका स्वभाव जिद्दी हो तो आप नीचे लिखे उपाय को अपनाएं। इससे आपका बच्चा कितना भी जिद्दी हो कहना मानने लगेगा।
उपाय
– सौ ग्राम खस-खस लाये।
– उस खस-खस को चौबीस दिन तक गायत्री मंत्र के नित्य एक माला जप से अभिमंत्रित कर लें।
– अब वह खसखस उसे हर सब्जी में चौबीस दिन तक मिलाकर खिलाएं।
– यह सब्जी घर के अन्य सदस्य भी खा सकते हैं।
– इस प्रयोग से आपके बच्चे का जिद्दीपन धीरे-धीरे ठीक होने लगेगा।
– यदि आवश्कता हो तो यह प्रयोग बार-बार दोहराया जा सकता है।
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बच्चों का पढ़ाई में मन न लगता हो, बार-बार फेल हो जाते हों, तो यह सरल सा टोटका करें-
शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पत्ते पर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाईयां तथा दो छोटी इलायची पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से रखें और अपनी शिक्षा के प्रति कामना करें। पीछे मुड़कर न देखें, सीधे अपने घर आ जाएं। इस प्रकार बिना क्रम टूटे तीन बृहस्पतिवार करें। यह उपाय माता-पिता भी अपने बच्चे के लिये कर सकते हैं।
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माघ मास की कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में अर्द्धरात्रि के समय रक्त चन्दन से अनार की कलम से “ॐ ह्वीं´´ को भोजपत्र पर लिख कर नित्य पूजा करने से अपार विद्या, बुद्धि की प्राप्ति होती है।

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क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि आपके घर, परिवार या आप पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो उसका असर सबसे पहले आपके घर में स्थित तुलसी के पौधे पर होता है। आप उस पौधे का कितना भी ध्यान रखें धीरे-धीरे वो पौधा सूखने लगता है। तुलसी का पौधा ऐसा है जो आपको पहले ही बता देगा कि आप पर या आपके घर परिवार को किसी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है।

पुराणों और शास्त्रों के अनुसार माना जाए तो ऐसा इसलिए होता है कि जिस घर पर मुसीबत आने वाली होती है उस घर से सबसे पहले लक्ष्मी यानी तुलसी चली जाती है। क्योंकि दरिद्रता, अशांति या क्लेश जहां होता है वहां लक्ष्मी जी का निवास नही होता। अगर ज्योतिष की माने तो ऐसा बुध के कारण होता है। बुध का प्रभाव हरे रंग पर होता है और बुध को पेड़ पौधों का कारक ग्रह माना जाता है।

ज्योतिष में लाल किताब के अनुसार बुध ऐसा ग्रह है जो अन्य ग्रहों के अच्छे और बुरे प्रभाव जातक तक पहुंचाता है। अगर कोई ग्रह अशुभ फल देगा तो उसका अशुभ प्रभाव बुध के कारक वस्तुओं पर भी होता है। अगर कोई ग्रह शुभ फल देता है तो उसके शुभ प्रभाव से तुलसी का पौधा उत्तरोत्तर बढ़ता रहता है। बुध के प्रभाव से पौधे में फल फूल लगने लगते हैं।
प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण करने से मधुमेह, रक्त विकार, वात, पित्त आदि दोष दूर होने लगते है मां तुलसी के समीप आसन लगा कर यदि कुछ समय हेतु प्रतिदिन बैठा जाये तो श्वास के रोग अस्थमा आदि से जल्दी छुटकारा मिलता है

घर में तुलसी के पौधे की उपस्थिति एक वैद्य समान तो है ही यह वास्तु के दोष भी दूर करने में सक्षम है हमारें शास्त्र इस के गुणों से भरे पड़े है जन्म से लेकर मृत्यु तक काम आती है यह तुलसी…. कभी सोचा है कि मामूली सी दिखने वाली यह तुलसी हमारे घर या भवन के समस्त दोष को दूर कर हमारे जीवन को निरोग एवम सुखमय बनाने में सक्षम है माता के समान सुख प्रदान करने वाली तुलसी का वास्तु शास्त्र में विशेष स्थान है हम ऐसे समाज में निवास करते है कि सस्ती वस्तुएं एवम सुलभ सामग्री को शान के विपरीत समझने लगे है महंगी चीजों को हम अपनी प्रतिष्ठा मानते है कुछ भी हो तुलसी का स्थान हमारे शास्त्रों में पूज्यनीय देवी के रूप में है तुलसी को मां शब्द से अलंकृत कर हम नित्य इसकी पूजा आराधना भी करते है इसके गुणों को आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है इसकी हवा तथा स्पर्श एवम इसका भोग दीर्घ आयु तथा स्वास्थ्य विशेष रूप से वातावरण को शुद्ध करने में सक्षम होता है शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधे मिलते है उनमें श्रीकृष्ण तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, राम तुलसी, भू तुलसी, नील तुलसी, श्वेत तुलसी, रक्त तुलसी, वन तुलसी, ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से विद्यमान है सबके गुण अलग अलग है शरीर में नाक कान वायु कफ ज्वर खांसी और दिल की बिमारिओं पर खास प्रभाव डालती है.

वास्तु दोष को दूर करने के लिए तुलसी के पौधे अग्नि कोण अर्थात दक्षिण-पूर्व से लेकर वायव्य उत्तर-पश्चिम तक के खाली स्थान में लगा सकते है यदि खाली जमीन ना हो तो गमलों में भी तुलसी को स्थान दे कर सम्मानित किया जा सकता है.

तुलसी का गमला रसोई के पास रखने से पारिवारिक कलह समाप्त होती है पूर्व दिशा की खिडकी के पास रखने से पुत्र यदि जिद्दी हो तो उसका हठ दूर होता है यदि घर की कोई सन्तान अपनी मर्यादा से बाहर है अर्थात नियंत्रण में नहीं है तो पूर्व दिशा में रखे तुलसी के पौधे में से तीन पत्ते किसी ना किसी रूप में सन्तान को खिलाने से सन्तान आज्ञानुसार व्यवहार करने लगती है.

कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो अग्नि कोण में तुलसी के पौधे को कन्या नित्य जल अर्पण कर एक प्रदक्षिणा करने से विवाह जल्दी और अनुकूल स्थान में होता है सारी बाधाए दूर होती है.

यदि कारोबार ठीक नहीं चल रहा तो दक्षिण-पश्चिम में रखे तुलसी कि गमले पर प्रति शुक्रवार को सुबह कच्चा दूध अर्पण करे व मिठाई का भोग रख कर किसी सुहागिन स्त्री को मीठी वस्तु देने से व्यवसाय में सफलता मिलती है

नौकरी में यदि उच्चाधिकारी की वजह से परेशानी हो तो ऑफिस में खाली जमीन या किसी गमले आदि जहाँ पर भी मिटटी हो वहां पर सोमवार को तुलसी के सोलह बीज किसी सफेद कपडे में बाँध कर सुबह दबा दे सम्मन की वृद्धि होगी. नित्य पंचामृत बना कर यदि घर कि महिला शालिग्राम जी का अभिषेक करती है तो घर में वास्तु दोष हो ही नहीं सकता ………..

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हस्ताक्षर विज्ञान यानी हस्ताक्षर करने की कला। यह एक ऐसा ज्ञान है जो आपको बताता है कि एक व्यक्ति द्वारा किए गए उसके नाम के हस्ताक्षर का उसकी ज़िंदगी पर क्या प्रभाव होता है। जरूरी नहीं कि यह प्रभाव नुकसानदेह ही हो। कुछ लोगों के हस्ताक्षर तो उनकी ज़िंदगी निखार देते हैं। किसी विशेष व्यक्ति को अपने व्यवसाय में मिलने वाले बेहतरीन मुनाफे का कारण भी उसका हस्ताक्षर ही है।
हम सभी जानते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में नौं ग्रहों एंव बारह भावों को सर्वसम्मति से मान्यता प्राप्त है। ये नौं ग्रह व्यक्ति का सार्वभौमिक विशलेषण करने में सक्षम होते है। अतीत, वर्तमान और भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारें पूर्व आकलन करने में मद्द करते है। ग्रहों का सम्बन्ध भी व्यक्ति की लिखावट, लेखन शैली और हस्ताक्षर से जरूर होता है। ग्रहों को मजबूत करने के लिए वैसे तो अनेक प्रकार के उपाय है लेकिन आप-अपने हस्ताक्षर में थोड़ा सा संशोधन करके भी ग्रहों को अपने अनुकूल बना सकते है। अपने हस्ताक्षर में आने वाले अक्षरों को कैसे बनाते हैं, इसका भी आपके जीवन पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। ऐसा इसलिये क्योंकि हर हक्षर किसी न किसी ग्रह से अपना संबंध रखता है।

उदाहरण के तौर पर अगर आपके हस्ताक्षर में A आता है और आप ए अक्षर में काट-पीट करते हैं या फिर उसे घुमा कर लिखते हैं, तो उसका प्रभाव आपकी पर्सनालिटी व भविष्य पर पड़ता है, क्योंकि ए का सीधा ताल्लुक सूर्य से होता है।

हस्ताक्षर और ग्रहों में संबंध👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
हस्ताक्षर और  सूर्य ग्रह का सम्बंध —
सूर्य का सम्बन्ध राज्य, पद, प्रतिष्ठा, सरकारी नौकरी, सम्मान व प्रसिद्ध आदि से होता है। यदि किसी व्यक्ति का सूर्य कमजोर है तो उसको अपने जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है, उसके बावजूद भी सफलता के लिए तरसता रहता है। सूर्य को मजबूत करने के लिए आपको अपने हस्ताक्षर में कुछ बदलाव करना होगा। हस्ताक्षर को सीधे व स्पष्ट अक्षरों में करें एंव पहले व अन्तिम अक्षर को घुमाने की कोशिश न करके उन्हे सीधा लिखें।

हस्ताक्षर में आते हैं A, D, H, M, T
सूर्य का अंक 1 होता है, इसलिए ए, डी, एच, एम, टी, इन अक्षरों का सीधा व स्पष्ट लिखने से आपका सूर्य बलवान होकर शुभ फल देने लगेगा।
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चन्द्र ग्रह का हस्ताक्षर पर प्रभााव–
चन्द्रमा मन का कारक होता है और जब मन अपने हिसाब से दिल व दिमाग को चलाने की कोशिश करने लगता है तो मनुष्य समस्याओं के दलदल में फॅसता चला जाता है। ऐसे स्थिति तभी आती है जब व्यक्ति का चन्द्र ग्रह पीडि़त होकर अशुभ फल देने लगे। चन्द्रमा को बलवान करने के लिए आपको अपने हस्ताक्ष को सजावटी रूप देते हुये सभी अक्षरों को गोल व सुन्दर बनानें होंगे और हस्ताक्षर के अन्त में एक बिन्दु रखने की आदत डालनी होगी।
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चंद्र और हस्ताक्षर—

हस्ताक्षर में आते हैं B, D, O, X
चन्द्रमा अंक 2 का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए अंक 2 से सम्बन्धित अक्षर जैसे- बी, डी, ओ, एक्स इन अक्षरों को बड़ा व गोल बनाते हुये इनके नीचे एक बिन्दु लगाना न भूलें। इस प्रकार का उपाय करने से आपको शीघ्र ही चन्द्रमा का शुभ फल मिलना शुरू हो जायेगा।

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मंगल ग्रह ओर हस्ताक्षर —
मंगल पराक्रम, भाई, उत्साह, प्रशासन, प्रापर्टी व प्रशासन आदि का कारक माना जाता है। मंगल की अशुभता को दूर करने के लिए अपने हस्ताक्षर के नीचे पूरी लाईन खीचनें की आदत डालनी होगी और प्रथम अक्षर को बड़ा बनाना होगा।

हस्ताक्षर में C, E, G, L, S, U
सी, ई, जी, एल, एस, यू, इन अक्षरों में किसी भी प्रकार की काट-पीट न करें और इन्हे बड़े सलीके से गोल आकार में बनाने की कोशिश करें। अपनी लिखावट में इस प्राकर का सुधार करने से आप कुछ ही दिनों में आश्चर्य चकित परिणाम पायेंगे।

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बुध ग्रह ओर हस्ताक्षर —
गणित, लेखन, तर्कक्षमता, ज्ञान आदि का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह यदि पापी होकर अशुभ फल देने लगे तो परेशान होने की जरूरत नहीं है बल्कि अपने लेखन व हस्ताक्षर में कुछ बदलाव करना होगा। अतः जब आप हस्ताक्षर करें तो स्पष्ट व गोलाकार बिन्दु रूप में करें और अन्त में गोला बनाकर उससे सटा हुआ प्लस का चिन्ह बना दें।

अगर हस्ताक्षर में हैं C, G, B
सी, जी, बी इन अक्षरों को गोल आकार में बनायें एंव इनके नीचे एक छोटा सा बिन्दु जरूर लगायें। ऐसा करने से आपका बुध ग्रह बलवान होकर अच्छा फल देने लगेगा।
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बृहस्पति ग्रह—
बुद्धिमत्ता, विवेक, ज्ञान, दार्शनिकता व महत्कांक्षा का कारक ग्रह गुरू अच्छा होने पर अनके प्रकार के सुखों का भोग कराता है और सामाज में प्रतिष्ठा का पात्र बनाता है। लेकनि जब पीडि़त होकर अशुभ फल देने लगता है तो बहुत कुछ छीन भी लेता है। यदि आपको गुरू को मजबूत करना है तो इसके लिए अपने हस्ताक्षर में कुछ सुधार करना होगा।

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अगर हस्ताक्षर में है N, E (देवगुरू वृहस्पति)–
हस्ताक्षर करते वक्त पहला अक्षर काफी बड़ा बनायें तथा हस्ताक्षर को उपर से नीचे की ओर करने की आदत डालें। बृहस्पति से सम्बन्धित अक्षरों को जैसे एन एंव ई, अक्षर को काफी बड़ा व सीधा बनाना होगा। ऐसा करने पर आपका भाग्य पक्ष मजबूत होकर अच्छा फल देने लगेगा और उॅचाईयों की उड़ान भरने में कामयाब होंगे।
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शुक्र ग्रह ओर हस्ताक्षर —

संसार की सभी भौतिक वस्तुओं एंव सौन्दर्यता का प्रतीक शुक्र ग्रह को शक्तिशली बनाने के लिए आप-अपने हस्ताक्षर को सुन्दर, कलात्मक एंव नीचे एक लहराते हुए की एक रेखा खीचें। हस्ताक्षर के अन्तिम अक्षर का उपरी भाग छोटा हो और नीचे का भाग लम्बाई लिये हुये होना चाहिए।
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हस्ताक्षर में है U, L, V(शुक्र के प्रतीक)–
शुक्र ग्रह अंक 06 का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए शुक्र से सम्बन्धति अक्षरों को जैसे- यू, एल और वी को स्पष्ट एंव सुन्दर बनाने की कोशिश करें। ऐसा करने पर आप देंखेगें कि कुछ ही दिनों में आपको शुक्र ग्रह अच्छा फल देने लगेगा।
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शनि ग्रह ओर हस्ताक्षर —

शनि ग्रह के पीडि़त होने पर व्यक्ति के सारे काम बड़ी धीमी गति से होते है और सफल होने के लिए काफी प्रत्यन करने के बावजूद भी ‘‘उॅट के मुंह में जीरा” के सामान परिणाम मिलते है। शनि ग्रह को ताकतवर बनाने के लिए हस्ताक्षर के लगभग सभी अक्षरों को बड़ा बनाना होगा एंव हस्ताक्षर के नीचे दो सीधी रेखायें खीचनी होगी। हस्ताक्षर के अन्तिम अक्षर के उपर डबल रेखा बनानी होगी।
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हस्ताक्षर में J, K, F का उपयोग –(शनि प्रधान)–
अक्षरों को घुमाकर व तोड़ मरोड़कर व दूर-दूर व अस्पष्ट लिखने से बचना होगा। शनि अंक 8 का प्रतिनिधित्व करता है। अंक 08 से सम्बन्धित अक्षरों को जे, के और एफ में उपर की लाईन को बड़ा बनाना चाहिए एंव जे अक्षर की उपरी लाईन को मोटी करने से धीरे-2 शनि ग्रह बलवान होकर शुभ फल देने लगता है जिससे आपके जीवन की प्रगति में चार-चांद लग जायेंगे।
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राहु एंव केतु–
इन ग्रहों के अशुभ हो जाने पर जीवन में अन्धकार का आधिपत्य कायम हो जाता है। मानसिक तनावग्रस्त होकर व्यक्ति उलूल-जलूल काम करने लगता है। जिससे उसके जीवन पर संकट के बादल मडराने लगते है। केतु के अशुभ होने पर व्यक्ति अक्षरों को छोटा बनाता है। राहु व केतु को बलवान बनाने हेतु आप-अपने हस्ताक्षर को लयबद्ध तरीके से करें एंव ज्यादा छोटे अक्षर न बनायें।
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हस्ताक्षर में G —
लिखवाट में बार-बार कांट-छांट से बचना होगा। हस्ताक्षर का पहला अक्षर ज्यादा घुमावदार न बनायें। गोला बनाकर हस्ताक्षर को घेरने से बचना होगा। अक्षर ‘जी’ के नीचे का भाग ज्यादा बड़ा न हो एंव अक्षर एस को सुडौल बनायें। हस्ताक्षर में इस प्रकार का संशोधन करने से धारे-2 राहु व केतु शुभ फल देने लगते है और आपके जीवन में प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते है।
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सही हस्ताक्षर करना जरूरी
तभी तो कहा जाता है कि सुंदर एवं सही रूप से ही हस्ताक्षर करना बेहद महत्वपूर्ण है। हस्ताक्षर का हमारी ज़िंदगी से कितना गहरा संबंध है यह हम पहले भी एक ब्लॉग ‘ग्रहों के अच्छे-बुरे प्रभाव बताते हैं आपके सिग्नेचर’ में बता चुके हैं। लेकिन इस लेख में हस्ताक्षर किस प्रकार से आपको निरोगी रखने का कार्य करता है यह जानकारी दी जा रही है।
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हस्ताक्षर एवं सेहत में संबंध—

हस्ताक्षर विज्ञान के अनुसार व्यक्ति का हस्ताक्षर उसके शारीरिक स्वास्थ्य पर किस प्रकार से प्रभाव करता है इसे जानने के लिए हस्ताक्षर को तीन विशेष भागों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन के बल पर ही किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर के द्वारा उसे किस प्रकार का रोग जकड़ सकता है या फिर वह हस्ताक्षर में कुछ बदलाव करने से किस तरह के रोगों से बच सकता है, यह सभी जानकारी देता है हस्ताक्षर विज्ञान।

हस्ताक्षर विज्ञान की तीन श्रेणियां
हस्ताक्षर विज्ञान ने हस्ताक्षरित अक्षरों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है –

हस्ताक्षर का प्रथम भाग, मध्य भाग एवं अंतिम भाग।

यह तीनों भाग व्यक्ति को होने वाले रोगों का संकेत देते हैं।

प्रथम भाग—
हस्ताक्षरित अक्षरों का प्रथम यानी आगे का हिस्सा जिसमें हस्ताक्षर का प्रथम अक्षर होता है। यह अमूमन व्यक्ति के असली नाम से ही शुरू होता है। लेकिन कुछ लोगों को अपने हस्ताक्षर के शुरुआत में अपने टाइटल नेम का इस्तेमाल करना भी पसंद होता है। यह प्रथम भाग आमतौर पर बड़े अक्षरों से भरपूर होता है।

मध्य भाग–
इसके बिलकुल विपरीत है हस्ताक्षर का मध्य भाग। यह हिस्सा प्रथम एवं अंतिम भाग के बिलकुल बीच का होता है। यह व्यक्ति के नाम वाले हस्ताक्षर को पूरा करने का कार्य करता है। परन्तु हस्ताक्षर का अंतिम भाग शायद ही अक्षरों से पूरित होता है।

अंतिम भाग–
ज्यादातर लोग अपने हस्ताक्षर के अंतिम भाग में कोई चिन्ह या फिर रेखा लगा कर छोड़ देते हैं। लेकिन कुछ लोग इसे सहज तरीके से अपने नाम को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। आप प्रत्येक हिस्से में अक्षरों का उपयोग करें या फिर विशेष चिन्हों का, इसका आपके स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं होता।

प्रत्येक भाग का प्रभाव—

यदि कोई बात असरदार है तो वह है कि आप कितने स्पष्ट तरीके से हस्ताक्षर का पूरा करते हैं। हस्ताक्षर विज्ञान के अनुसार हमारे हस्ताक्षर का प्रत्येक भाग हमारे किसी ना किसी शारीरिक अंग को नियंत्रित करता है।

परिणामस्वरूप प्रथम भाग का केन्द्र होता है व्यक्ति के सिर से कंधों तक का शारीरिक अंग।

शारीरिक अंगों पर नियंत्रण—-
इसके अलावा हस्ताक्षर का मध्य भाग छाती से नाभि तक के अंगों का प्रतिनिधित्व करता है। और अंत में आने वाला अंतिम भाग नाभि के नीचे से तलुवों तक के अंगों का प्रतिनिधित्व करता है। इसी आधार पर यह ज्ञात किया जाता है कि हस्ताक्षर का कौन सा भाग किस शारीरिक अंग पर हावी हो रहा है।

मस्तिष्क एवं मन पर काबू—
हस्ताक्षर विज्ञान का मानना है कि व्यक्ति के हस्ताक्षर के तीन भागों में से प्रथम भाग का अन्य दो भागों से अधिक महत्व है। क्योंकि यह व्यक्ति के मस्तिष्क एवं मन दोनों को सहेज कर रखता है। यह व्यक्ति के मानसिक संतुलन को परिभाषित करने में सहायक साबित होता है।

अस्पष्ट अक्षरों का प्रयोग ना करें—
हस्ताक्षर के प्रथम भाग में कुछ खास अंग मौजूद होते हैं, जैसे कि दिमाग, चेहरे के सभी अंग, गर्दन, छाती, दिल, इत्यादि। यदि हस्ताक्षर करते समय व्यक्ति अपने हस्ताक्षर के प्रथम भाग के अक्षरों को अस्पष्ट ढंग से लिखे या फिर टूटे-फूटे अक्षरों में करे तो इसका सीधा प्रभाव उसकी सोच पर होता है।

ब्रेन ट्यूमर, कैंसर जैसी बीमारी—
प्रथम भाग का अस्पष्ट होना उसे निराश बनाता है। हस्ताक्षर विज्ञान का मानना है कि हस्ताक्षर के इस हिस्से से ब्रेन ट्यूमर और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का पता भी लगाया जा सकता है। इन रोगों से बचाव हेतु व्यक्ति को हस्ताक्षर का प्रथम अक्षर साफ, स्पष्ट और स्वच्छ लिखना चाहिए तथा उसके नीचे व ऊपर की ओर किसी भी प्रकार के बिंदु इत्यादि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

हिंदी भाषा में हस्ताक्षर—
लेकिन यदि हस्ताक्षर हिंदी भाषा में लिखा गया हो तो उसके आगे रेखा खींचना सही माना जाता है। प्रथम भाग की तरह ही मध्य भाग में वर्णित अक्षरों को भी यदि हस्ताक्षरकर्ता द्वारा टेढ़ा-मेढ़ा या फिर अटपटा सा आकार दिया गया हो तो उसे हृदय से पेट के बीच के किसी अंग में दिक्कत महसूस हो सकती है।

मध्य भाग का वासना पर कंट्रोल—
कहा जाता है हस्ताक्षर का यह मध्य हिस्सा व्यक्ति की वासना शक्ति को भी दर्शाता है। इसके लिए हस्ताक्षर विज्ञान पुरुष को हस्ताक्षर के मध्य भाग को दक्षिण की ओर बढ़ाने के लिए कहता है और स्त्री के लिए उत्तर की ओर हस्ताक्षर के मध्य भाग को खींचने की सलाह दी जाती है।

गठिया, पैरों में दर्द—
अंतिम में बारी है हस्ताक्षर के अंतिम हिस्से की। यह हिस्सा यदि ठीक ढंग से ना लिखा गया हो तो इसके भीतर मौजूद सभी अंगों को रोगों से जकड़ लेता है। उदाहरण के तौर पर यदि हस्ताक्षर के अंतिम अक्षर अधिक लंबे या फिर सिकुड़े हुए हों तो व्यक्ति को गठिया, पैरों में दर्द या पैरों के किसी न किसी रोग से पीड़ित होने की संभावना बनी रहती है।

रोगों के उपाय—
हस्ताक्षर के विभिन्न हिस्से न केवल तमाम रोगों को परिभाषित करते हैं, अपितु हस्ताक्षर विज्ञान उन्हें ठीक करने की राय भी देता है। यदि किसी को अक्सर सिर दर्द की दिक्कत रहती है तो उपचार के लिए वह अपने हस्ताक्षर में पीछे की ओर नीचे केवल एक बिंदु का प्रयोग करे और फिर अपने हस्ताक्षर को फाड़कर फेंक दें। लेकिन ध्यान रहे, यह प्रयोग सिर दर्द के समय ही करें।

मानसिक चिंता करे कम—
यदि व्यक्ति मानसिक रूप से चिंतित है तो वह एक कोरे कागज पर बड़ा सा ‘¬’ लिखे और उस ¬ पर हस्ताक्षर कर उसे अपनी आंखों और माथे से छुआकर फिर फाड़कर फेंक दें, इससे चिंता कम होगी। इसके अलावा यदि आंखों का दर्द सता रहा हो तो व्यक्ति हस्ताक्षर के अक्षरों को नीचे की ओर दुहरा करके लिखे और आंखों से छुआकर फाड़कर फेंक दे।

नेत्र एवं कर्ण पीड़ा—
इसके अलावा यदि कर्ण पीड़ा हो तो हस्ताक्षर के केवल आगे और पीछे के अक्षरों को दोहरा कर लिखें और फिर उसे फाड़ कर फेंक दें। दंत पीड़ा से निजात चाहते हैं तो हस्ताक्षर पर एक दांत का चिन्ह बनाकर उसमें तीन बार काटा लगाएं और फिर उसे फाड़कर फेंक दें।

गर्दन तथा कंधों में दर्द—
यदि गर्दन की पीड़ा हो तो हस्ताक्षर करके उसके मध्य बगुले की गर्दन का एक चिह्न बनाएं और उसे फाड़कर फेंक दें। इसी प्रकार से कंधों में दर्द होने पर रात्रि के समय हस्ताक्षर करके उन्हें तकिये के बीच में रखें। सुबह उठकर उसे घूरकर देखें और फाड़कर फेंक दें, कंधों का दर्द दूर होगा।

छाती की पीड़ा—
छाती की पीड़ा होने पर अनार की कलम और अनार के ही रस से हस्ताक्षर करें और फिर उसे अनार के रस में डुबोकर कहीं कच्चे स्थान में गड्ढा खोदकर दबा दें। इससे छाती में जमे बलगम, सांस की तकलीफ अथवा किसी अन्य कारणवश हुई छाती की तकलीफ से मुक्ति मिलेगी। हाथों की पीड़ा होने पर अमरूद के पत्ते पर हस्ताक्षर करें और फिर फूंक मारकर उसे हवा मे उड़ा दें।

उदर पीड़ा का इलाज—
यदि किसी को उदर पीड़ा सता रही है तो वह व्यक्ति अमरूद के पत्तों को जलाकर उसकी चुटकी भर राख चाट ले। फिर अमरूद के पेड़ की लकड़ी की कलम से उसी राख से किसी कोरे कागज पर अपने हस्ताक्षर करें और उस कागज को जला दे। इससे उदर पीड़ा कम होगी।

नितंबों की पीड़ा होने पर—
इसके अलावा नितंबों की पीड़ा होने पर गुड़ का घोल बनाएं और कोरे कागज पर सरकंडे की कलम से अपने हस्ताक्षर करें। फिर उसे सुखाकर उसके बीच में बाजरे के दाने जितनी छोटी-छोटी गुड़ की डली रखकर उसे किसी छायादार वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर उसमें दबा दें, नितंबों की पीड़ा कम होगी।

बुखार दूर करें–
यदि किसी को बुखार हुआ हो तो एक कोरे कागज पर हस्ताक्षर कर उस पर एक चम्मच चीनी रखकर अपने ऊपर से 7 बार उतारें, इसके बाद उसे किसी गंदी नाली में फेंक दें। यदि किसी कारणवश गंदी नाली न मिले तो फ्लश में डालकर फ्लश चला दें।

यदि आप उपरोक्त दिए सभी सुझावों को सहजापूर्वक प्रयोग करते हैं तो ऐसे रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।

यह भी पढ़ें : 30 मई को गोधूलि के समय राजयोग में मोदी ने ली शपथ, जानें क्या है मतलब

modi kundliसचिन मल्होत्रा, ज्योतिषशास्त्री। 23 मई को नरेंद्र मोदी के पक्ष में आए प्रचंड जनादेश की चर्चा देश और विदेश में बड़े कौतूहल से हो रही है। सभी राजनीतिक गणित के समीकरणों को मोदी और जनता के बीच की केमिस्ट्री ने ध्वस्त कर दिया है। चुनावों के समय जनता और लोकतंत्र के कारक ग्रह शनि का धर्म और आश्चर्य के कारक ग्रह केतु से युति करना एक बेहद चौंकाने वाले नतीजों का कारण बना। लोकसभा में लगभग दो-तिहाई बहुमत से जीत कर आई बीजेपी गठबंधन के महानायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मई को गुरुवार के दिन शाम 7 बजे गोधूलि के समय राजयोग में शपथ लेंगे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के समय वृश्चिक लग्न उदय हो रहा होगा जो कि संयोग से उनका जन्म लग्न और उनकी जन्म राशि भी है। वृश्चिक लग्न की शपथ ग्रहण कुंडली के लग्न में बैठे गुरु पंचमेश हैं और उन पर सप्तम भाव से दशमेश सूर्य और अष्टमेश बुध की दृष्टि मिले-जुले प्रभाव की है।

राजयोग में मोदी लेंगे शपथ

इस योग के प्रभाव से अगले कुछ महीनों में केंद्र सरकार हजारों की संख्या में रिक्त पदों को भरने के लिए नई नौकरियां निकालेगी। किन्तु इस प्रक्रिया में कुछ विवाद भी पैदा हो सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और भारत दोनों की कुंडलियों में चन्द्रमा की महादशा चल रही है। संयोग से मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के समय चन्द्रमा मीन राशि में होकर गुरु से दृष्ट होंगे जो कि एक बड़ा राजयोग है।

इन विषयों पर रहेगा सरकार का ध्यान

शपथ ग्रहण के समय शिक्षा और मनोरंजन के पंचम भाव में बैठे चन्द्रमा पर गुरु की दृष्टि से देश में उच्च शिक्षा के नए केंद्र, होटल, पार्क, अस्पताल, दवा-केंद्रों की बड़े पैमाने पर केंद्र सरकार की ओर से स्थापना की जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण के समय चन्द्रमा रेवती नक्षत्र में हैं जो कि शिक्षा, खेल-कूद और मनोरंजन के कारक ग्रह बुध का नक्षत्र है। अपने दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी इन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देंगे। मोदी सरकार नए एयरपोर्ट बनाने और रेलवे की सुविधाएं बढ़ाने पर भी अधिक खर्च करेगी। किन्तु किसानों की स्थिति सुधरने में अभी कुछ समय लगेगा।

आखिर मोदी सरकार ने क्यों चुना शाम का समय

इस दिन मध्याह्न से पूर्व पंचक लगा हुआ है। इसके बाद 01 बजकर 30 मिनट से 3 बजे तक राहुकाल है। चौघड़िया के हिसाब से 3 बजकर 55 मिनट से अशुभ काल चौघड़िया शुरू हो रहा है जो शाम 5 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगा और शुभ चौघड़िया आरंभ होगा जो शाम 7 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। इसलिए संध्या का समय कुल मिलाकर 30 मई को शुभ है।

इसे विस्तार से और समझें तो सूर्यास्‍त से लगभग 24 मिनट पहले के समय को ‘गोधूलि’ महूर्त कहा जाता है। यह महूर्त कई अशुभ योगों को दूर रखने वाला माना जाता है, किन्तु इसकी भी अपनी सीमाएं हैं। चूंकि इस समय आजाद भारत और प्रधानमंत्री मोदी दोनों की कुंडली के 2 / 8 के अक्ष पर सभी अशुभ ग्रहों जैसे शनि, केतु, मंगल और राहु का प्रभाव है जो कि किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा और बड़े राजनेता के साथ अनहोनी का  संकेत भी दे रहा है।

शपथ ग्रहण के समय दूसरे घर में धनु राशि में गोचर कर रहे शनि और केतु तथा मृत्यु स्थान यानी अष्टम भाव में पड़े राहु और मंगल बेहद अशुभ हैं। इस योग के कारण सरकार को अगले कुछ महीनों में असामान्य मानसून, किसी बड़े नेता के साथ अनहोनी और प्राकृतिक आपदाओं की वजह से कठिन स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।

यह भी पढ़ें : खास दिन होता है गुरुवार, इस दिन यह करें-यह कत्तई न करें…

लेखक ज्योतिषाचार्य दयानंद शास्त्री।

गुरुवार का दिन, ब्रह्मा, बृहस्पति और विष्णु पूजा का दिन है। गुरुवार के दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है। पीले वस्त्र पहनने से शुभता का आगमन होता है, सुबह उठकर नहा धोकर पूजा पाठ करने से व्यक्ति को लाभ होता है। परिवार से जुड़ी सभी समस्याओं का अंत होता है साथ ही लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी से जानिए वे उपाय, जिन्हें अपनाकर प्रभु की विशेष कृपा पा सकते हैं।

बृहस्पतिवार अत्यंत शुभ दिन माना जाता है, इसलिए इस दिन बहुत सारे काम किए जा सकते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो देवगुरु बृहस्पति का बहुत बड़ा स्थान माना गया है और यदि हम ब्रह्मांड की बात करे तो नौ ग्रहों में बृहस्पति ग्रह को सबसे भारी माना गया है।

यही कारण है कि जिन कार्यों को इस दिन करने से घर में हल्कापन आता है, उन्हें धार्मिक दृष्टि से वर्जित माना गया है, क्योंकि इन कार्यों को करने से गुरु कमजोर होता है। बृहस्पति को धर्म एवं शिक्षा का भी कारक माना गया है। ऐसा करने पर शिक्षा में असफलता मिलती है और धर्म के प्रति भी रुझान कम होता जाता है।
इस दिन देव गुरु बृहस्पति और भगवान् विष्णु की पूजा की जाती है। ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि ब्रह्मांड के सभी नौ ग्रहों में से गुरु (बृहस्पति) सबसे भारी ग्रह है। गुरुवार से जुड़े हमारे ग्रंथो में कई तरह की मान्यतायें दी गयी हैं। गुरु धर्म व शिक्षा का कारक ग्रह है। गुरु ग्रह को कमजोर होने से शिक्षा में असफलता मिलती है। साथ ही धार्मिक कार्यों में रूचि कम होती है।

हमारे जीवन में गुरुवार का बहुत महत्व है। भगवान विष्णु की कथा अनुसार ऐसे कोई कार्य नहीं करने चाहिए जिससे आपके जीवन में दुःख, और परेशानियां आये। इस दिन ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे कि शरीर या घर में हल्कापन आता हो।

बृहस्पतिवार को लक्ष्मी नारायण जी का वार भी माना जाता है। इस दिन वर्जित काम करने से लक्ष्मी और नारायण दोनों ही रुष्ट हो सकते हैं, इसलिए बृहपतिवार को कुछ वर्जित कार्यों को करने बचना चाहिए।
👉🏻👉🏻👉🏻जानिए क्या करें गुरुवार को विशेष उपाय ताकि हो धन लाभ–

यदि आपकी तनख्वाह किसी महीने में गुरुवार को आए या फिर आपको इस दिन अधिक धन का लाभ हो तो धनराशि में से 15, 30, 45 या 60 के अनुपात में मिले हुए धन एक लिफाफा बनाकर मंदिर में रख दें। भगवान से प्रार्थना करें कि आप पर धन की वर्षा यूं ही होती रहे और आपके कष्ट दूर होते रहेंगे। एक दिन बाद इन लिफाफों से पैसे निकालकर इसका 10 फीसदी दान करें और बाकी खर्च कर लें।

👉🏻👉🏻जानिए गुरुवार को क्या खरीदें?

भगवान बृहस्पति का दिन है गुरुवार, ये दिन व्यक्ति के जीवन में शुभता लाता है। गुरुवार के दिन इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदा जा सकता है, प्रॉपर्टी से जुड़े कामों में फायदा होता है। इस दिन पूजा–पाठ से जुड़ा सामान नहीं खरीदना चाहिए। आंखों से जुड़ी कोई भी वस्तु, कोई शार्प ऑब्जेक्ट जैसे चाकू, कैंची, बर्तन आदि नहीं खरीदना चाहिए।

भूलकर भी नही करें गुरुवार को ये काम—

शास्त्रानुसार गुरु ग्रह किसी भी महिला की कुंडली में पति और संतान का कारक माना जाता है। अर्थात बृहस्पति ग्रह महिलाओं के जीवन में पति और संतान दोनों के जीवन को प्रभावित करता है। जो महिलाएं इस दिन बाल धोती हैं या फिर हेयर कट करवाती हैं उनका बृहस्पति कमजोर होता है, पति और संतान की उन्नति में बाधा आती है। महिलाओं को इस दिन अपने बाल ना तो धोने चाहिए और ना ही काटने चाहिए।

जानिए क्यों हैं गुरुवार को कपड़े धोने की मनाही—

गुरुवार को महिलाएं कपड़े धोने से बचें। ये दिन बृहस्पति ग्रह का परिचायक है। इस दिन कपड़े धोने से आर्थिक नुकसान होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन घर की स्त्री साबुन से वस्त्रों का मैल धोती है तो इसके साथ घर की समृद्धि भी पानी के साथ धुल जाती है। इस दिन कपड़े धुलने से बचे, कपड़ों को पानी में खंगाल सकती हैं नहीं तो अगले दिन धो लें। ​दिन घर में पोंछा नहीं लगाना चाहिए और न ही घर में उस जगह की सफाई करनी चाहिए, जहां रोजाना सफाई न होती हो। वास्तुशास्त्र के अनुसार ईशान कोण का स्वामी गुरु होता है और ईशान कोण का संबंध बच्चों से होता है। इसलिए इस दिन कबाड़ निकालने, जाले साफ करने, फर्श धोने से ईशान कोण कमजोर होता है। इसका विपरित प्रभाव बच्चों एवं गृह स्वामी पर पड़ता है।
ये कुछ जरूरी बाते हैं जिनका ध्यान आपको गुरुवार के दिन रखना चाहिए ।
गुरुवार को लक्ष्मी पूजा का विशेष प्रावधान–

गुरुवार को लक्ष्मी पूजा का विशेष प्रावधान है। नारायण और उनकी पत्नी लक्ष्मी आपके घर में सदैव विराजमान हों, सुख समृद्धि की घर में वर्षा होती रहे इसके लिए जरूरी है इस दिन सुबह सवेरे उठकर लक्ष्मी जी की पूजा करें। उन्हें लाल पुष्प अर्पित करें। लक्ष्मी और नारायण की साथ में पूजा करने से दांपत्य जीवन में सुख बना रहता है। घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।
हल्दी स्नान से कैसे होगा लाभ..

बृहस्पति ग्रह का संबंध पीले रंग से माना जाता है। इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनने से शुभता आती है। हल्दी का उपाय इस दिन जरूर करना चाहिए ये बड़ा ही आसान है। अपने स्नान के पानी में एक चुटकी हल्दी डालें और बृहस्पति को याद करते हुए नहा लें। स्नान के बाद हल्दी या केसर का तिलक लगाएं। आपका दिन मंगलमयी होगा साथ ही समस्याएं भी पास नहीं फटकेंगी।

जानिए क्यों गुरुवार को बचें लेन-देन से…

गुरुवार के दिन लेन-देन करने की मनाही होती है। इस दिन ना तो किसी को पैसे देने चाहिए और ना ही किसी से पैसे लेने चाहिए। ऐसा करने से कर्ज चढ़ने की संभावना रहती है। अगर बहुत जरूरी हो तो दोपहर के बाद या संध्या के समय पैसों का लेन-देन कर सकते हैं, वैसे कोशिश करें इस दिन इससे बचे रहें।
👉🏻👉🏻गुरुवार को साबुन लगाकर कपड़े धोने से भी गुरु कमजोर होता है। इसलिए इस दिन साबुन लगाकर कपड़े नहीं धोने चाहिए।
👉🏻👉🏻इस दिन पुरुषों को दाढ़ी भी नहीं बनानी चाहिए। ऐसा करने से गुरु कमजोर होता है और जीवन में बाधाएं उत्पन्न करता है। इस दिन नाखून भी नहीं काटने चाहिए।
👉🏻👉🏻आंखों से जुड़ी कोई भी वस्‍तु, कोई शार्प ऑब्‍जेक्‍ट जैसे चाकू, कैंची, बर्तन आदि इस दिन नहीं खरीदना चाहिए।

हर गुरुवार को गुरु के प्रथम चौघडिया में और गुरु की होरा में ,सूर्योदय के प्रथम घंटे के अंदर नाखून काटने से उस सप्ताह में लाभ मिलता है।

हर गुरुवार को सूर्योदय के प्रथम घंटे में मस्तक पर हल्दी का साधारण लेप करके स्नान करने तक रखने से अवश्य लाभ होता है।

ये ग्रह का शुभत्व इतना है कि हर शुभकार्य में उसका बलाबल देखा जाता है।

हनुमान जन्मोत्सव विशेष :  पवन पुत्र हनुमान के जन्म की कहानी

ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म १ करोड़ ८५ लाख ५८ हजार ११३ वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह ०६:०३ बजे हुआ था।

हनुमान जी की माता अंजनि के पूर्व जन्म की कहानी :
कहते हैं कि माता अंजनि पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं। ‘बालपन में वो अत्यंत सुंदर और स्वभाव से चंचल थी एक बार अपनी चंचलता में ही उन्होंने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी थी।

गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा, ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना मांगने लगी, तब ऋषि ने कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा।

तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा, अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला।

श्री हनुमानजी की बाल्यावस्था
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ऋषि के श्राप से त्रेता युग मे अंजना मे नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा इंद्र जिनके हाथ में पृथ्वी के सृजन की कमान है, स्वर्ग में स्थित इंद्र के दरबार (महल) में हजारों अप्सरा (सेविकाएं) थीं, जिनमें से एक थीं अंजना (अप्सरा पुंजिकस्थला) अंजना की सेवा से प्रसन्न होकर इंद्र ने उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा, अंजना ने हिचकिचाते हुए उनसे कहा कि उन पर एक तपस्वी साधु का श्राप है, अगर हो सके तो उन्हें उससे मुक्ति दिलवा दें। इंद्र ने उनसे कहा कि वह उस श्राप के बारे में बताएं, क्या पता वह उस श्राप से उन्हें मुक्ति दिलवा दें।

अंजना ने उन्हें अपनी कहानी सुनानी शुरू की, अंजना ने कहा ‘बालपन में जब मैं खेल रही थी तो मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा, मेरे लिए यह एक बड़ी आश्चर्य वाली घटना थी, इसलिए मैंने उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए, बस यही मेरी गलती थी क्योंकि वह कोई आम वानर नहीं बल्कि एक तपस्वी साधु थे।

मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर बन जाऊंगी। मेरे बहुत गिड़गिड़ाने और माफी मांगने पर उस साधु ने कहा कि मेरा चेहरा वानर होने के बावजूद उस व्यक्ति का प्रेम मेरी तरफ कम नहीं होगा’। अपनी कहानी सुनाने के बाद अंजना ने कहा कि अगर इंद्र देव उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिलवा सकें तो वह उनकी बहुत आभारी होंगी। इंद्र देव ने उन्हें कहा कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए अंजना को धरती पर जाकर वास करना होगा, जहां वह अपने पति से मिलेंगी। शिव के अवतार को जन्म देने के बाद अंजना को इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।

इंद्र की बात मानकर अंजना धरती पर आईं और केसरी से विवाह – इंद्र की बात मानकर अंजना धरती पर चली आईं, एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा। उस शाप का प्रभाव शिव के अन्श को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। और एक शिकारन के तौर पर जीवन यापन करने लगीं। जंगल में उन्होंने एक बड़े बलशाली युवक को शेर से लड़ते देखा और उसके प्रति आकर्षित होने लगीं, जैसे ही उस व्यक्ति की नजरें अंजना पर पड़ीं, अंजना का चेहरा वानर जैसा हो गया। अंजना जोर-जोर से रोने लगीं, जब वह युवक उनके पास आया और उनकी पीड़ा का कारण पूछा तो अंजना ने अपना चेहरा छिपाते हुए उसे बताया कि वह बदसूरत हो गई हैं। अंजना ने उस बलशाली युवक को दूर से देखा था लेकिन जब उसने उस व्यक्ति को अपने समीप देखा तो पाया कि उसका चेहरा भी वानर जैसा था।

अपना परिचय बताते हुए उस व्यक्ति ने कहा कि वह कोई और नहीं वानर राज केसरी हैं जो जब चाहें इंसानी रूप में आ सकते हैं। अंजना का वानर जैसा चेहरा उन दोनों को प्रेम करने से नहीं रोक सका और जंगल में केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया।
केसरी एक शक्तिशाली वानर थे जिन्होने एक बार एक भयंकर हाथी को मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, “केसरी” का अर्थ होता है सिंह। उन्हे “कुंजर सुदान”(हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।

पंपा सरोवर
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अंजना और मतंग ऋषि – पुराणों में कथा है कि केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया पर संतान सुख से वंचित थे । अंजना अपनी इस पीड़ा को लेकर मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पप्पा (कई लोग इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं) सरोवर के पूर्व में नरसिंह आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है वहाँ जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करने पर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।

अंजना को पवन देव का वरदान
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मतंग रामायण कालीन एक ऋषि थे, जो शबरी के गुरु थे। अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया था बारह वर्ष तक केवल वायु पर ही जीवित रही, एक बार अंजना ने “शुचिस्नान” करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उस समय पवन देव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर उसे वरदान दिया, कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा।

अंजना को भगवान शिव का वरदान
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अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ के पास, अपने आराध्य शिव की तपस्या में मग्न थीं । शिव की आराधना कर रही थीं तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा, अंजना ने शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।

(कर्नाटक राज्य के दो जिले कोप्पल और बेल्लारी में रामायण काल का प्रसिद्ध किष्किंधा)

‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए। इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और दूसरी तरफ अयोध्या में, इक्ष्वाकु वंशी महाराज अज के पुत्र और अयोध्या के महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए, श्रृंगी ऋषि को बुलाकर ‘पुत्र कामेष्टि यज्ञ’ के साथ यज्ञ कर रहे थे।
यज्ञ की पूर्णाहुति पर स्वयं अग्नि देव ने प्रकट होकर श्रृंगी को खीर का एक स्वर्ण पात्र (कटोरी) दिया और कहा “ऋषिवर! यह खीर राजा की तीनों रानियों को खिला दो। राजा की इच्छा अवश्य पूर्ण होगी।” जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस खीर की कटोरी में थोड़ा सा खीर अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया। अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया।

हनुमान जी का जन्म त्रेता युग मे अंजना के पुत्र के रूप मे, चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा की महानिशा में हुआ।

अन्य कथा अनुसार हनुमान अवतार
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सामान्यत: लंकादहन के संबंध में यही माना जाता है कि सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे और रावण के पुत्र सहित अनेक राक्षसों का अंत कर दिया। तब रावण के पुत्र मेघनाद ने श्री हनुमान को ब्रह्मास्त्र छोड़कर काबू किया और रावण ने श्री हनुमान की पूंछ में आग लगाने का दण्ड दिया। तब उसी जलती पूंछ से श्री हनुमान ने लंका में आग लगा रावण का दंभ चूर किया। किंतु पुराणों में लंकादहन के पीछे भी एक ओर रोचक कथा जुड़ी है, जिसके कारण श्री हनुमान ने पूंछ से लंका में आग लगाई।

श्री हनुमान शिव अवतार है। शिव से ही जुड़ा है यह रोचक प्रसंग। एक बार माता पार्वती की इच्छा पर शिव ने कुबेर से सोने का सुंदर महल का निर्माण करवाया। किंतु रावण इस महल की सुंदरता पर मोहित हो गया। वह ब्राह्मण का वेश रखकर शिव के पास गया। उसने महल में प्रवेश के लिए शिव-पार्वती से पूजा कराकर दक्षिणा के रूप में वह महल ही मांग लिया। भक्त को पहचान शिव ने प्रसन्न होकर वह महल दान दे दिया।

दान में महल प्राप्त करने के बाद रावण के मन में विचार आया कि यह महल असल में माता पार्वती के कहने पर बनाया गया। इसलिए उनकी सहमति के बिना यह शुभ नहीं होगा। तब उसने शिवजी से माता पार्वती को भी मांग लिया और भोलेभंडारी शिव ने इसे भी स्वीकार कर लिया। जब रावण उस सोने के महल सहित मां पार्वती को ले जाना लगा। तब अचंभित और दुखी माता पार्वती ने विष्णु को स्मरण किया और उन्होंने आकर माता की रक्षा की।

जब माता पार्वती अप्रसन्न हो गई तो शिव ने अपनी गलती को मानते हुए मां पार्वती को वचन दिया कि त्रेतायुग में मैं वानर रूप हनुमान का अवतार लूंगा उस समय तुम मेरी पूंछ बन जाना। जब मैं माता सीता की खोज में इसी सोने के महल यानी लंका जाऊंगा तो तुम पूंछ के रूप में लंका को आग लगाकर रावण को दण्डित करना।

हनुमान जी की प्रसिद्धि कथा
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अंजना के पुत्र होने के कारण ही हनुमान
जी को अंजनेय नाम से भी जाना जाता है
जिसका अर्थ होता है ‘अंजना द्वारा उत्पन्न’। माता श्री अंजनी और कपिराज
श्री केसरी हनुमानजी को अतिशय प्रेम करते थे।
श्री हनुमानजी को सुलाकर वो फल-फूल लेने गये थे इसी समय बाल हनुमान भूख एवं अपनी माता की अनुपस्थिति में भूख के कारण आक्रन्द करने लगे। इसी दौरान उनकी नजर क्षितिज पर पड़ी। सूर्योदय हो रहा था। बाल हनुमान को लगा की यह कोई लाल फल है। (तेज और पराक्रम के लिए कोई अवस्था नहीं होती)।
यहां पर तो श्री हनुमान जी के रुप में
माताश्री अंजनी के गर्भ से प्रत्यक्ष शिवशंकर अपने ग्यारहवें रुद्र में लीला कर रहे थे और श्री पवनदेव ने उनके उड़ने की शक्ति भी प्रदान की थी। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने
लगे। उस लाल फल को लेने के लिए
हनुमानजी वायुवेग से आकाश में उड़ने लगे। उनको देखकर देव, दानव सभी विस्मयतापूर्वक कहने लगे कि बाल्यावस्था में एसे पराक्रम दिखाने वाला यौवनकाल में क्या नहीं करेगा। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु
सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था।हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की “देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने
गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।”
राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव
को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई
भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें सचेत किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की।
तभी श्री ब्रह्माजी ने श्री हनुमानजी को वरदान दिया कि इस बालक को कभी ब्रह्मशाप नहीं लगेगा, कभी भी उनका एक भी अंग शस्तर नहीं होगा, ब्रह्माजीने अन्य देवताओं से भी कहा कि इस बालक को आप सभी वरदान दें तब देवराज इंन्द्रदेव ने हनुमानजी के गले में कमल की माला पहनाते हुए कहा की मेरे वज्रप्रहार के कारण इस बालक की हनु (दाढ़ी) टूट गई है इसीलिए इन कपिश्रेष्ठ का नाम आज से हनुमान रहेगा और मेरा वज्र भी इस बालक को नुकसान न पहुंचा सके ऐसा वज्र से कठोर होगा।
श्री सूर्यदेव ने भी कहा कि इस बालक को में अपना तेज प्रदान करता हूं और मैं इसको शस्त्र-समर्थ मर्मज्ञ बनाता हुं ।

हनुमानजीके कुछ नाम एवं उनका अर्थ
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हनुमानजी को मारुति, बजरंगबली इत्यादि नामोंसे भी जानते हैं। मरुत शब्द से ही मारुति शब्द की उत्पत्ति हुई है। महाभारत में हनुमानजी का उल्लेख मारुतात्मजके नाम से किया गया है। हनुमानजी का अन्य एक नाम है, बजरंगबली। बजरंगबली यह शब्द व्रजांगबली के अपभ्रंश से बना है। जिनमें वज्र के समान कठोर अस्त्र का सामना करनेकी शक्ति है, वे व्रजांगबली है। जिस प्रकार लक्ष्मण से लखन, कृष्ण से किशन ऐसे सरल नाम लोगों ने अपभ्रंश कर उपयोगमें लाए, उसी प्रकार व्रजांगबली का अपभ्रंश बजरंगबली हो गया।

हनुमानजीकी विशेषताएं
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अनेक संतोंने समाजमें हनुमानजीकी उपासनाको प्रचलित किया है। ऐसे हनुमान जी के संदर्भ में समर्थ रामदास स्वामी कहते हैं, ‘हनुमानजी हमारे देवता हैं ।’ हनुमानजी शक्ति, युक्ति एवं भक्तिका प्रतीक हैं। इसलिए समर्थ रामदासस्वामी ने हनुमानजी की उपासना की प्रथा आरंभ की। महाराष्ट्र में उनके द्वारा स्थापित ग्यारह मारुति प्रसिद्ध हैं। साथ ही संत तुलसीदास ने उत्तर भारत में मारुति के अनेक मंदिर स्थापित किए तथा उनकी उपासना दृढ की। दक्षिण भारत में मध्वाचार्य को मारुति का अवतार माना जाता है। इनके साथ ही अन्य कई संतों ने अपनी विविध रचनाओं द्वारा समाजके समक्ष मारुतिका आदर्श रखा है।

१. शक्तिमानता
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हनुमानजी सर्वशक्तिमान देवता हैं। जन्म लेते ही हनुमानजी ने सूर्यको निगलनेके लिए उडान भरी। इससे यह स्पष्ट होता है कि, वायुपुत्र अर्थात वायुतत्त्वसे उत्पन्न हनुमानजी, सूर्यपर अर्थात तेजतत्त्वपर विजय प्राप्त करनेमें सक्षम थे। पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश तत्त्वोंमेंसे तेजतत्त्वकी तुलनामें वायुतत्त्व अधिक सूक्ष्म है अर्थात अधिक शक्तिमान है। सर्व देवताओंमें केवल हनुमानजीको ही अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं दे सकतीं। लंकामें लाखों राक्षस थे, तब भी वे हनुमानजीका कुछ नहीं बिगाड पाएं। इससे हम हनुमानजीकी शक्तिका अनुमान लगा सकते हैं।

२. भूतोंके स्वामी
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हनुमानजी भूतोंके स्वामी माने जाते हैं। किसी को भूत बाधा हो, तो उस व्यक्ति को हनुमानजी के मंदिर ले जाते हैं। साथ ही हनुमानजी से संबंधित स्तोत्र जैसे हनुमत्कवच, भीमरूपी स्तोत्र अथवा हनुमानचालीसाका पाठ करनेके लिए कहते हैं ।

३. भक्ति
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साधना में जिज्ञासु, मुमुक्षु, साधक, शिष्य एवं भक्त ऐसे उन्नति के चरण होते हैं। इसमें भक्त यह अंतिम चरण है। भक्त अर्थात वह जो भगवानसे विभक्त नहीं है। हनुमानजी भगवान श्रीराम से पूर्णतया एकरूप हैं। जब भी नवविधा भक्ति में से दास्य भक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देना होता है, तब हनुमानजी का उदाहरण दिया जाता है। वे अपने प्रभु राम के लिए प्राण अर्पण करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं । प्रभु श्रीराम की सेवा की तुलना में उन्हें सब कुछ कौडी के मोल लगता है। हनुमान सेवक एवं सैनिक का एक सुंदर सम्मिश्रण हैं। स्वयं सर्वशक्तिमान होते हुए भी वे, अपने-आपको श्रीरामजीका दास कहलवाते थ। उनकी भावना थी कि उनकी शक्ति भी श्रीरामजी की ही शक्ति है। मान अर्थात शक्ति एवं भक्तिका संगम।

४. मनोविज्ञानमें निपुण एवं राजनीतिमें कुशल
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अनेक प्रसंगों में सुग्रीव इत्यादि वानर ही नहीं, वरन् राम भी हनुमानजी से परामर्श करते थे। लंका में प्रथम ही भेंट में हनुमानजी ने सीता के मन में अपने प्रति विश्वास निर्माण किया। इन प्रसंगों से हनुमानजी की बुद्धिमानता एवं मनोविज्ञान में निपुणता स्पष्ट होती है। लंकादहन कर हनुमानजी ने रावण की प्रजा में रावणके सामर्थ्य के प्रति अविश्वास उत्पन्न किया। इस बातसे उनकी राजनीति-कुशलता स्पष्ट होती है।

५. जितेंद्रिय
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सीता को ढूंढने जब हनुमानजी रावण के अंतःपुर में गए, तो उस समय की उनकी मनः स्थिति थी, उनके उच्च चरित्र का सूचक है। इस संदर्भ में वे स्वयं कहते हैं, ‘सर्व रावण पत्नियों को निःशंक लेटे हुए मैंने देखा; परंतु उन्हें देखने से मेरे मनमें विकार उत्पन्न नहीं हुआ।’

वाल्मीकि रामायण, सुंदरकांड ११.४२-४३

इंद्रियजीत होनेके कारण हनुमानजी रावणपुत्र इंद्रजीत को भी पराजित कर सके। तभी से इंद्रियों पर विजय पाने हेतु हनुमानजी की उपासना बतायी गई।

६. भक्तों की इच्छा पूर्ण करनेवाले
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हनुमानजी को इच्छा पूर्ण करने वाले देवता मानते हैं, इसलिए व्रत रखने वाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमानजी की मूर्तिकी श्रद्धापूर्वक निर्धारित परिक्रमा करते हैं। कई लोगों को आश्चर्य होता है कि, जब किसी कन्या का विवाह निश्चित न हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमानजी की उपासना करने के लिए कहा जाता है। वास्तवमें अत्युच्च स्तर के देवताओं में ‘ब्रह्मचारी’ या ‘विवाहित’ जैसा कोई भेद नहीं होता। ऐसा अंतर मानव-निर्मित है। मनोविज्ञान के आधार पर कुछ लोगों की यह गलत धारणा होती है कि, सुंदर, बलवान पुरुष से विवाह की कामना से कन्याएं हनुमानजी की उपासना करती हैं। परंतु वास्तविक कारण कुछ इस प्रकार है। लगभग ३० प्रतिशत व्यक्तियों का विवाह भूतबाधा, जादू-टोना इत्यादि अनिष्ट शक्तियों के प्रभावके कारण नहीं हो पाता। हनुमानजी की उपासना करने से ये कष्ट दूर हो जाते हैं एवं उनका विवाह संभव हो जाता है।

७. हनुमान जन्मोत्सव कैसे मनाया जाता है ?
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हनुमान जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में विविध स्थानों पर धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन प्रात: ४ बजे से ही भक्तजन स्नान कर हनुमान जी के देवालयों में दर्शन के लिए आने लगते हैं। प्रात: ५ बजेसे देवालयों में पूजा विधि आरंभ होती हैं । हनुमानजी की मूर्ति को पंचामृत स्नान करवा कर उनका विधिवत पूजन किया जाता है। सुबह ६ बजे तक अर्थात हनुमान जन्म के समय तक हनुमान जन्म की कथा, भजन, कीर्तन आदि का आयोजन किया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति को हिंडोले में रख हिंडोला गीत गाया जाता है। हनुमानजी की मूर्ति हाथ में लेकर देवालय की परिक्रमा करते हैं। हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में कुछ जगह यज्ञ का आयोजन भी करते हैं। तत्पश्चात हनुमानजी की आरती उतारी जाती है। आरती के उपरांत कुछ स्थानों पर सौंठ अर्थात सूखे अदरक का चूर्ण एवं पीसी हुई चीनी तथा सूखे नारियल का चूरा मिलाकर उस मिश्रणको या कुछ स्थानों पर छुहारा, बादाम, काजू, सूखा अंगूर एवं मिश्री, इस पंचखाद्य को प्रसाद के रूप में बांटते हैं । कुछ स्थानों पर पोहे तथा चने की भीगी हुई दाल में दही, शक्कर, मिर्ची के टुकडे, निम्ब का अचार मिलाकर गोपाल काला बनाकर प्रसादके रूपमें बाटते है। कुछ जगह महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है।
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🕉🙏 भारतीय स्वाभिमान एवं गौरव के प्रतीक नव वर्ष विक्रम संवत्सर २०७६ / चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (६ अप्रेल २०१९) / चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वासन्तिक नवरात्र की हार्दिक बधाई व असीम शुभकामनाएँ… 🙏🌷

सत्य सनातन, पूर्ण वैज्ञानिक, सांस्कृतिक व राष्ट्रीयता का परिचायक भारतीय नव संवत्सर-वर्ष प्रतिपदा विक्रम संवत 2076 युगाब्द 5121 तद्नुसार 6अप्रैल 2019 (शनिवार) के पावन आगमन पर हार्दिक शुभकामनाएं।।
चैत्रीय नवरात्री, गुड़ी पड़वा व नववर्ष विक्रम संवत 2076 की हार्दिक शुभकामना..
यह नववर्ष आपके जीवन को नए उत्साह और सफलताओं से भर दे ।।आप सभी को पुनःनव संवत्सर(नव वर्ष प्रतिपदा), गुड़ी पड़वा, चेटीचण्ड, ज्योतिष दिवस की शुभकामनाओं के साथ……..
इन्ही शुभकामना के साथ आपका..
🙏🙏 ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री 🙏 🙏
🌹🌹🚩चैत्र नवरात्रि🚩🌹🌹
नवरात्र वह समय है, जब दोनों ऋतुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं।

मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं – चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति माँ एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है।

यह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। चैत्र नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है। इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।
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(पहला दिन) :- प्रतिपदा – इस दिन पर “घटत्पन”, “चंद्र दर्शन” और “शैलपुत्री पूजा” की जाती है।

(दूसरा दिन) :- दिन पर “सिंधारा दौज” और “माता ब्रह्राचारिणी पूजा” की जाती है।

(तीसरा दिन) :- यह दिन “गौरी तेज” या “सौजन्य तीज” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “चन्द्रघंटा की पूजा” है।

(चौथा दिन) :- “वरद विनायक चौथ” के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “कूष्मांडा की पूजा” है।

(पांचवा दिन) :- इस दिन को “लक्ष्मी पंचमी” कहा जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “नाग पूजा” और “स्कंदमाता की पूजा” जाती है।

(छटा दिन) :- इसे “यमुना छत” या “स्कंद सस्थी” के रूप में जाना जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “कात्यायनी की पूजा” है।

(सातवां दिन) :- सप्तमी को “महा सप्तमी” के रूप में मनाया जाता है और देवी का आशीर्वाद मांगने के लिए “कालरात्रि की पूजा” की जाती है।

(आठवां दिन) :- अष्टमी को “दुर्गा अष्टमी” के रूप में भी मनाया जाता है और इसे “अन्नपूर्णा अष्टमी” भी कहा जाता है। इस दिन “महागौरी की पूजा” और “संधि पूजा” की जाती है।

(नौंवा दिन) :- “नवमी” नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन “राम नवमी” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन “सिद्धिंदात्री की पूजा ” की जाती है।
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चैत्र नवरात्रि के दौरान अनुष्ठान –
बहुत भक्त नौ दिनों का उपवास रखते हैं।
सभी भक्त अपना दिन देवी की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जप करते हुए बिताते हैं।
चैत्र नवरात्रि के पहले तीन दिनों को ऊर्जा माँ दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन, धन की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित है और आखिर के तीन दिन ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती को समर्पित हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक के पूजा अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं।
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पूजा विधि —
घट स्थापना नवरात्रि के पहले दिन सबसे आवश्यक है, जो ब्रह्मांड का प्रतीक है और इसे पवित्र स्थान पर रखा जाता है, घर की शुद्धि और खुशाली के लिए।

१. अखण्ड ज्योति :- नवरात्रि ज्योति घर और परिवार में शांति का प्रतीक है। इसलिए, यह जरूरी है कि आप नवरात्रि पूजा शुरू करने से पहले देसी घी का दीपक जलातें हैं। यह आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा को कम करने में मदद करता है और भक्तों में मानसिक संतोष बढ़ाता है।

२. जौ की बुवाई :- नवरात्रि में घर में जौ की बुवाई करते है। ऐसी मान्यता है की जौ इस सृष्टी की पहली फसल थी इसीलिए इसे हवन में भी चढ़ाया जाता है। वसंत ऋतू में आने वाली पहली फसल भी जौ ही है जिसे देवी माँ को चैत्र नवरात्रि के दौरान अर्पण करते है।

३. नव दिवस भोग (9 दिन के लिए प्रसाद) :- प्रत्येक दिन एक देवी का प्रतिनिधित्व किया जाता है और प्रत्येक देवी को कुछ भेंट करने के साथ भोग चढ़ाया जाता है।
इन सभी नौ दिन देवी के लिए 9 प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं:
• 1 दिन: केले
• 2 दिन: देसी घी (गाय के दूध से बने)
• 3 दिन: नमकीन मक्खन
• 4 दिन: मिश्री
• 5 दिन: खीर या दूध
• 6 दिन: माल पोआ
• 7 दिन: शहद
• 8 दिन: गुड़ या नारियल
• 9 दिन: धान का हलवा

४. दुर्गा सप्तशती :- दुर्गा सप्तशती शांति, समृद्धि, धन और शांति का प्रतीक है, और नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ को करना, सबसे अधिक शुभ कार्य माना जाता है।

५. नौ दिनों के लिए नौ रंग :- शुभकामना के लिए और प्रसंता के लिए, नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान लोग नौ अलग-अलग रंग पहनते हैं:
• 1 दिन: हरा
• 2 दिन: नीला
• 3 दिन: लाल
• 4 दिन: नारंगी
• 5 दिन: पीला
• 6 दिन: नीला
• 7 दिन: बैंगनी रंग
• 8 दिन: गुलाबी
• 9 दिन: सुनहरा रंग

६. कन्या पूजन :- कन्या पूजन माँ दुर्गा की प्रतिनिधियों (कन्या) की प्रशंसा करके, उन्हें विदा करने की विधि है। उन्हें फूल, इलायची, फल, सुपारी, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, घर का भोजन (खासकर: जैसे की हलवा, काले चने और पूरी) प्रस्तुत करने की प्रथा है।
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नवरात्रि अनुष्ठान के कुछ विशेष नियम :-
बहुत सारे भक्त निचे दिए गए अनुष्ठानों का पालन करते हैं:
1. प्रार्थना और उपवास चैत्र नवरात्रि समारोह का प्रतीक है। त्योहार के आरंभ होने से पहले, अपने घर में देवी का स्वागत करने के लिए घर की साफ सफाई करते हैं।
2. सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं। भूमि शयन करते हैं। सात्त्विक आहार करते हैं।
3. उपवास करते वक्त सात्विक भोजन जैसे कि आलू, कुट्टू का आटा, दही, फल, आदि खाते हैं।
4. नवरात्रि के दौरान, भोजन में सख्त समय का अनुशासन बनाए रखते हैं और अपने व्यवहार की निगरानी भी करते हैं, जैसे की
• अस्वास्थ्यकर खाना (Junk Food) नहीं खाते।
• सत्संग करते हैं।
• ज्ञान सूत्र से जुड़ते हैं।
• ध्यान करते हैं।
• चमड़े का प्रयोग नहीं करते हैं।
• क्रोध से बचे रहते हैं।
• कम से कम 2 घंटे का मौन रहते हैं।
• अनुष्ठान समापन पर क्षमा प्रार्थना का विधान है तथा विसर्जन करते हैं।
✍🏻✍🏻🌹🌹👉🏻👉🏻
चैत्र नवरात्री का महत्व :- यह माना जाता है कि यदि भक्त बिना किसी इच्छा की पूर्ति के लिए महादुर्गा की पूजा करते हैं, तो वे मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।

आप सभी को पुनःनव संवत्सर(नव वर्ष प्रतिपदा), गुड़ी पड़वा, चेटीचण्ड, ज्योतिष दिवस की शुभकामनाओं के साथ……..
🌹🚩जय जय मातारानी की🙏

चैत्र नवरात्रि –2019…

इस वर्ष चैत्र नवरात्र का महापर्व 6 अप्रैल 2019 से शुरू हो रहे हैं। नवमी तिथि 14 अप्रैल को है। इन नौ दिनों मां नौ रुपों की पूजा की जाती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना अच्छा रहता है। यूं तो साल में दो बार नवरात्र आते हैं लेकिन दोनों ही नवरात्र का महत्व और पूजा विधि अलग है। इस बार कहा जा रहा है कि पांच सर्वार्थ सिद्धि, दो रवि योग और रवि पुष्य योग का संयोग बन रहा है। इस बार यह भी कहा जा रहा है कि इस बार नवमी भी दो दिन मनेगी।
👉🏻👉🏻👉🏻घट स्थापना मुहूर्त

इस साल 6 अप्रैल 2019 (शनिवार) से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे हैं। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार घटस्थापना के लिए देवी पुराण के अनुसार प्रातःकाल का समय ही श्रेष्ठ बताया गया है इसलिए सुबह द्विस्वभाव लग्न में घटस्थापना करनी चाहिए।
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन उज्जैन के समयानुसार सुबह शुभ के चौघड़िया में 7 बजकर 251 मिनट से 9 बजकर 24 मिनट के बीच घट स्थापना करना बेहद शुभ होगा।
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नवरात्रि पर शक्ति के साधक मां जगदंबे की कठिन तप साधना-आराधना करते हैं। श्रद्धा और विश्वास के साथ इस पावन पर्व पर माता का पूजन करने से चारो पुरुषार्थ धर्म ,अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए शक्ति की साधना के उन महामंत्रों के बारे में जानते हैं, जिन्हें भक्ति-भाव और नियमपूर्वक करने पर माता की कृपा अवश्य मिलती है।
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इस मंत्र से मिलेगी परीक्षा में सफलता–

विद्यार्थी वर्ग और जिन लोंगो कि जन्म कुंडली में गोचर में राहु अशुभ हों उनकी दशा, अन्तर्दशा अथवा प्रत्यंतर दशा चल रही हो वै सभी ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः’ मंत्र पढ़ते हुए माता शक्ति कि पूजा अथवा जाप करें।
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देवी के यह मंत्र दूर करेगा कर्ज की परेशानी–

जीवन से कर्ज का मर्ज दूर करने के लिए नवरात्रि पर शक्ति की विशेष साधना करना न भूलें। इस पावन पर्व पर ‘या देवि सर्व भूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।’ मंत्र का जप करें और इसी मंत्र से मां की पूजा करें। इन सबके अतिरिक्त यदि संभव हो तो कुंजिका स्तोत्र और देव्य अथर्वशीर्ष का पाठ भी करें। जिन्हें पूर्ण बिधि-बिधान आता है, वे भक्त अपने ही अनुसार मां की भक्ति करें। श्रद्धा और विश्वास के साथ की गई साधना से निश्चित रूप से मां लक्ष्मी की कृपा मिलेगी।
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इस मंत्र जप से शीघ्र होगा विवाह—
जिन कुंवारी कन्याओं का विवाह तमाम प्रयासों के बावजूद न हो पा रहा हो, माता-पिता वर तलाशते हुए परेशान हो गए हों, वे इस पावन पर्व पर ‘ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्य धीश्वरी, नन्द गोप सुतं देवी पतिं मे कुरु ते नमः।’ मंत्र से जप एवं माता का पूजन करें। माता की कृपा से यथाशीघ्र ही उन्हें जीवनसाथी मिल जाएगा।
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देवी का यह मन्त्र करेगा कलह/क्लेश को दूर —

जिन जीवात्माओं के घर में कलह के चलते घर की ईंट से ईंट टकराती हो,
उन्हें – ‘या देवि! सर्व भूतेषु शान्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।’ मंत्र का जप और पूजन करना चाहिए। जगत जननी जगदंबा का यह उपाय आपके घर-परिवार कि अशांति दूर करेगा।
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इस मंत्र से मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी —

जिन लड़कों का विवाह तमाम प्रयासों के बाद भी न हो रहा हो, या फिर शादी में अक्सर अड़चन आ रही हो वे मनमुताबिक जीवनसाथी पाने के लिए इस दिव्य मंत्र – ‘पत्नी मनोरमां देहि, मनो वृत्तानु सारिणीम तारिणीम दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम।’ का जप और पूजन करें। माता की अवश्य कृपा होगी।
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नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। पंडित दयानन्द शास्त्री जी बताया कि इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। नवदुर्गा के नौ स्वरूप स्त्री के जीवनचक्र को दर्शाते है।

  1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या “शैलपुत्री” स्वरूप है।
  2. स्त्री का कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” का रूप है।
  3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह “चंद्रघंटा” समान है।
  4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्मांडा” स्वरूप में है।
  5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री “स्कन्दमाता” हो जाती है।
  6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री “कात्यायनी” रूप है।
  7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह “कालरात्रि” जैसी है।
  8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से “महागौरी” हो जाती है।
  9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” हो जाती है।
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    चैत्र नवरात्रि के उपवास रखें ये सावधानियां—
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    👉🏻👉🏻नवरात्र में आपको मां दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति के सामने लाल फूल रोज चढ़ाना चाहिए।
    👉🏻👉🏻इन नौ दिनों न तो बाल कटवाने चाहिये और ना ही दाढ़ी मूंछ बनवानी चाहिये।
    👉🏻👉🏻नवरात्रि में भोजन में नॉन वेज, प्याज, लहसुन नहीं खाना चाहिये।
    👉🏻👉🏻नौ दिन तक नींबू को नहीं काटना चाहिये, यह बेहद अशुभ माना जाता है।
    👉🏻👉🏻नौ दिन तक दोपहर में नहीं सोना चाहिये। इससे आपको फिर व्रत रखने का फल नहीं मिलता।
    👉🏻👉🏻इन दिनों काले कपड़े नहीं पहनने चाहिये।
    👉🏻👉🏻प्‍याज-लहुसन के अलावा अनाज और नमक का भी सेवन नहीं करना चाहिये।
    👉🏻👉🏻नवरात्रि पर चमड़े से बनी हुए चीजें ना पहनें। इनमें से चमड़े की बेल्ट, बैग और जूते-चप्पल शामिल हैं।
    ✍🏻✍🏻🌹🌹👉🏻👉🏻
    जानिए इस चैत्र नवरात्रि में किस दिन करें कौनसे ग्रह की शान्ति —

यह हें नवरात्र में नवग्रह शांति की विधि:-

यह है कि प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शांति करानी चाहिए।
द्वितीय के दिन राहु ग्रह की शान्ति करने संबन्धी कार्य करने चाहिए।
तृतीया के दिन बृहस्पति ग्रह की शान्ति कार्य करना चाहिए।
चतुर्थी के दिन व्यक्ति शनि शान्ति के उपाय कर स्वयं को शनि के अशुभ प्रभाव से बचा सकता है।
पंचमी के दिन बुध ग्रह,
षष्ठी के दिन केतु ,
सप्तमी के दिन शुक्र,
अष्टमी के दिन सूर्य,
एवं नवमी के दिन चन्द्रमा की शांति कार्य किए जाते है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि किसी भी ग्रह शांति की प्रक्रिया शुरू करने से पहले कलश स्थापना और दुर्गा मां की पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद लाल वस्त्र पर नव ग्रह यंत्र बनावाया जाता है. इसके बाद नवग्रह बीज मंत्र से इसकी पूजा करें फिर नवग्रह शांति का संकल्प करें।

चैत्र प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शांति होती है इसलिए मंगल ग्रह की फिर से पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद पंचमुखी रूद्राक्ष, मूंगा अथवा लाल अकीक की माला से 108 मंगल बीज मंत्र का जप करना चाहिए. जप के बाद मंगल कवच एवं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करना चाहिए. राहू की शांति के लिए द्वितीया को राहु की पूजा के बाद राहू के बीज मंत्र का 108 बार जप करना, राहू के शुभ फलों में वृ्द्धि करता है।

पूर्व आलेख : जीवन की विभिन्न समस्याओं के समाधान को करें होली पर यह खास उपाय..

🌹इस होली 2019 पर करें इन विशेष ज्योतिष शास्त्र सम्मत प्रयोगों को🌷

🙏🏻फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इस वर्ष ये पर्व 20 मार्च 2019(बुधवार) को है।
पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलिका दहन के दिन किए गए उपाय बहुत ही जल्दी शुभ फल प्रदान करते हैं।

इस होली पर किए जाने कुछ अचूक उपाय हैं–

1.होली की रात सरसों के तेल का चौमुखी दीपक घर के मुख्य द्वार पर लगाएं व उसकी पूजा करें। इसके बाद भगवान से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से हर प्रकार की बाधा का निवारण होता है।
2.यदि व्यापार या नौकरी में उन्नति न हो रही हो तो 21 गोमती चक्र लेकर होलिका दहन की रात में शिवलिंग पर चढ़ा दें। इससे व्यापार में फायदा होने लगेगा।
3.होली पर किसी गरीब को भोजन अवश्य कराएं। इससे आपकी मनोकामना पूरी होगी।
4.यदि राहु के कारण परेशानी है तो एक नारियल का गोला लेकर उसमें अलसी का तेल भरें। उसी में थोड़ा सा गुड़ डालें और इस गोले को जलती हुई होलिका में डाल दें। इससे राहु का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाएगा।
5.धन हानि से बचने के लिए होली के दिन घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़कें और उस पर दोमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय धन हानि से बचाव की कामना करें। जब दीपक बुझ जाए तो उसे होली की अग्नि में डाल दें। यह क्रिया श्रद्धापूर्वक करें, धन हानि नहीं होगी।
6.घर की सुख-समृद्धि के लिए परिवार के प्रत्येक सदस्य को होलिका दहन में घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिए। साथ ही होली की 11 परिक्रमा करते हुए होली में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए।
7.अगर किसी ने आप पर कोई टोटका किया है तो होली की रात जहां होलिका दहन हो, उस जगह एक गड्ढा खोदकर उसमें 11 अभिमंत्रित कौड़ियां दबा दें। अगले दिन कौड़ियों को निकालकर अपने घर की मिट्टी के साथ नीले कपड़े में बांधकर बहते जल में प्रवाहित कर दें। जो भी तंत्र क्रिया आप पर किसी ने की होगी वह नष्ट हो जाएगी।
8.यदि आपके घर में किसी भूत-प्रेत का साया है तो जब होली जल जाए, तब आप होलिका की थोड़ी-सी अग्नि अपने घर ले आएं और अपने घर के आग्नेय कोण में उस अग्नि को तांबे या मिट्टी के पात्र में रखें। सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इस उपाय से आपकी परेशानी दूर हो जाएगी।
9.बेरोजगार हैं तो होली की रात 12 बजे से पहले एक नींबू लेकर चौराहे पर जाएं और उसके चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में फेंक दें। वापिस घर आ जाएं किन्तु ध्यान रहे, वापिस आते समय पीछे मुड़कर न देखें।
10.यदि आपका पैसा कहीं फंसा है तो होली के दिन 11 गोमती चक्र हाथ में लेकर जलती हुई होलिका की 11 बार परिक्रमा करते हुए धन प्राप्ति की प्रार्थना करें..फिर एक सफेद कागज पर उस व्यक्ति का नाम लाल चन्दन से लिखें जिससे पैसा लेना है फिर उस सफेद कागज को 11 गोमती चक्र के साथ में कहीं गड्ढा खोदकर दबा दें। इस प्रयोग से धन प्राप्ति की संभावना बढ़ जाएगी।
11.यदि आपको कोई अज्ञात भय रहता है तो होली पर एख सूखा जटा वाला नारियल, काले तिल व पीली सरसों एक साथ लेकर उसे सात बार अपने सिर के ऊपर उतार कर जलती होलिका में डाल देने से अज्ञात भय समाप्त हो जाएगा।
12.होलिका दहन के दूसरे दिन होलिका की राख को घर लाकर उसमें थोड़ी सी राई व नमक मिलाकर रख लें। इस प्रयोग से भूत-प्रेत या नजर दोष से मुक्ति मिलती है।
13.शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए होलिका दहन के समय 7 गोमती चक्र लेकर भगवान से प्रार्थना करें कि आपके जीवन में कोई शत्रु बाधा न डालें। प्रार्थना के पश्चात पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ गोमती चक्र जलती हुई होलिका में डाल दें।
14.शीघ्र विवाह के लिए होली के दिन किसी शिव मंदिर जाएं और अपने साथ 1 साबुत पान, 1 साबुत सुपारी एवं हल्दी की गांठ रख लें। पान के पत्ते पर सुपारी और हल्दी की गांठ रखकर शिवलिंग पर अर्पित करें। इसके बाद पीछे देखे बिना अपने घर लौट आएं। यही प्रयोग अगले दिन भी करें। इसके साथ ही समय-समय पर शुभ मुहूर्त में यह उपाय करते रहें । जल्दी ही विवाह के योग बन जाएंगे।
15 .ज्योतिष के अनुसार उनका कालसर्प योग नहीं रहता जिनके ऊपर केसुड़े (पलाश ) के रंग – होली के रंग का फुवारा लग जाता है फिर कालसर्प योग से मुक्ति हो गई । कालसर्प योग के भय से अपने को ग्रह दोष है, कालसर्प है ऐसा मानकर डरना नहीं अपने को दुखी करना नहीं है।
16 .जिसको सभी रोगों से मुक्त होना हो तो पलाश की लकड़ी का हवन करें l १०० माला जप करें l आहुति डालते जायें “ॐ नमः शिवाय” बोलकर….. तो सभी प्रकार के रोगों से आराम मिलेगा ।
🍂ऐसी जगह करें कि थोड़ा ही कपड़ा (कटी वस्त्र ) पहने, और शरीर के बाकी हिस्सों में धुआं लगे।
17.बच्चे पढ़ने में ढीले हो तो बुद्धि बढ़ाने के लिए सारस्वत्य मंत्र २१ बार पढ़के बिल्व-पत्र, पलाश के पत्ते और शक्कर मिलाकर उसका हवन करें।
18. होली से शुरू करके बजरंग बाण का 40 दिन तक नियमित पाठ करने से हर मनोकामना पूर्ण हो सकती है।
🔥होली (20 मार्च 2019) की रात को दूध और चावल की खीर बनवा ले घर पे … भले एक कटोरी। होली की रात को चन्द्रमा को अर्घ्य दें … दीपक जलाकर दिखा दें और कटोरी में खीर जो है वो थाली में रख दें ..मन ही मन प्रार्थना कर लें ” हे भगवान! भगवद गीता में आपने कहा है नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा में हूँ । हे भगवन! आज हमने अपने घर पे आपके लिए ये प्रसाद तैयार किया है। आप इसको स्वीकार करें ।
और ये मंत्र जपें :-
ॐ सोमाय नमः
ॐ चन्द्रमसे नमः
ॐ रोहिणी कान्ताये नमः
ऐसा करके थोड़ी देर प्रार्थना करके शांत हो कर बैठें।
🔥आपके काम काज में निश्चित रूप से वृद्धि होगी
पं युगल किशोर पावनाचार्य
🌷होली के दिन पूजा विशेष🌷
🔥होली के दिन हनुमान जी के पूजा की विशेष विधान है। पूजन करते हुए “श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि”, ” मनोजवं मारुततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं । वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं श्री राम दूतं शरणं प्रपद्ये ।। ” ऐसी प्रार्थना करें । होली के दिन एक बार जरूर कर लें, बहुत लाभ होगा।
🔥होली के दिन शास्त्रों में लक्ष्मी माता की पूजा का भी विधान बताया गया है । वह कपूर का दिया जलाकर करें। थोड़ा सा ही कपूर जलायें, होली का पर्व दरिद्रता का नाश करनेवाला पर्व बन जाएगा।

यह भी पढ़ें : जानिए क्यों और कैसे करें राशि (लग्न) के अनुसार रुद्राक्ष धारण–

हिंदू धर्म शास्‍त्र में रुद्राक्ष को बहुत महत्‍वपूर्ण और पवित्र माना गया है। इसे स्‍वयं भगवान शिव के अश्रुओं के रूप में पूजा जाता है। रुद्र और अक्ष जैसे दो शब्‍दों से मिलकर बना रुद्राक्ष शब्‍द बहुत शक्‍तिशाली होता है। मान्‍यता है कि शिव के अश्रुओं से ही रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्‍पत्ति हुई थी।पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तपस्वियों के लिए ही नहीं, बल्कि सांसारिक जीवन में रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है। इसलिए यदि आप अपनी राशि के अनुसार रुद्राक्ष को पहनते है तो यह आपके जीवन में काफी बदलाव लाता है, मानसिक तनाव भी दूर करता है। रुद्राक्ष की विशेषता यह है कि इसमें एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो आपके लिए आप की ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जिस प्रकार उचित रत्न धारण करने से ग्रहों के कुप्रभावों को कम अथवा समाप्त किया जा सकता है, उसी तरह रुद्राक्ष भी किसी भी मनुष्य के दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने में पूर्णरूप से सक्षम होते हैं। आप अपने भाग्य के बंद द्वारों को खोलना चाहते हैं तो अपनी राशि के अनुसार रुद्राक्ष धारण करें और उसका प्रभाव देखें।
रुद्राक्ष को हिन्दू शास्त्रों में बहुत ज्यादा पवित्र माना जाता है। रूद्र और अक्ष इन दो शब्दों से मिलकर रुद्राक्ष शब्द बना है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि शिव के आंसुओं से ही रुद्राक्ष के पेड़ की उत्पत्ति हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि अगर रुद्राक्ष राशि के अनुसार के हिसाब से धारण किया जाए तो यह हमारे जीवन में बहुत परिवर्तन लाता है।रुद्राक्ष धारण एक सरल एवं सस्ता उपाय है, इसे धारण करने से व्यक्ति उन सभी इच्छाओं की पूर्ति कर लेता है जो उसकी सार्थकता के लिए पूर्ण होती है. रुद्राक्ष धारण से कोई नुकसान नहीं होता यह किसी न किसी रूप में व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति कराता है।

रुद्राक्ष एक बहुत ही पवित्र चीज़ है और इसका अर्थ “रूद्र का हिस्सा” है। रूद्र भगवान शिव का दूसरा नाम है। ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसू की बूंदो से हुई है। प्राचीन समय में, रूद्राक्ष को आभूषण, संरक्षण, ग्रहों की शांति और आध्यात्मिक लाभ के रूप में प्रयोग किया जाता है। कुल 17 प्रकार के रूद्राक्ष होते हैं लेकिन इनमें से केवल 11 प्रकार के रूद्राक्ष का उपयोग ही विशेष प्रकार के लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार रुद्राक्ष का उपयोग करने से अद्भुत परिणाम प्राप्त होते है और इसका प्रभाव अचूक होता है। लेकिन यह केवल तभी संभव है जब इसे सोच समझकर और कुछ नियमों का पालन करते हुए पहना जाता है।

कई बार कुंडली में शुभ-योग मौजूद होने के उपरांत भी उन योगों से संबंधित ग्रहों के रत्न धारण करना लग्नानुसार उचित नहीं होता इसलिए इन योगों के अचित एवं शुभ प्रभाव में वृद्धि के लिए इन ग्रहों से संबंधित रुद्राक्ष धारण किए जा सकते हैं और यह रुद्राक्ष व्यक्ति के इन योगों में अपनी उपस्थित दर्ज कराकर उनके प्रभावों को की गुणा बढा़ देते हैं. अर्थात गजकेसरी योग के लिए दो और पांच मुखी, लक्ष्मी योग के लिए दो और तीन मुखी रुद्राक्ष लाभकारी होता है।

👉🏻👉🏻कैसे/कहाँ धारण करें??
रुद्राक्ष को गले और हाथ में पहना जा सकता है। लेकिन रुद्राक्ष को गले में पहनना सबसे ज्यादा लाभदायक रहता है। आप हाथ में 12 रुद्राक्ष, गले में 36 रुद्राक्ष पहन सकते है। आप गले में एक रुद्राक्ष भी पहन सकते है। रुद्राक्ष को हमेशा लाल रंग के धागे में ही पहनना चाहिए। रुद्राक्ष को सावन के महीने में, सोमवार के दिन और शिवरात्रि के दिन पहनना बहुत शुभ रहता है। आपको इसे पहनने से पहले शिवलिंग के सामने रखना चाहिए और शिव मन्त्रों का जाप करें।

👉🏻👉🏻जानिए रुद्राक्ष पहनने के नियम–
कलाई, गले या ह्रदय पर रुद्राक्ष को धारण किया जा सकता है।
सबसे बेहतर रुद्राक्ष को गले में पहनना चाहिए। कलाई में 12, गले में 36 और ह्रदय पर 108 दानों का रुद्राक्ष पहनना चाहिए।
लाल धागे में एक दाना रुद्राक्ष का ह्रदय तक पहन सकते हैं।
सावन, शिवरात्रि और सोमवार के दिन रुद्राक्ष पहनना सबसे उत्तम रहता है। रुद्राक्ष पहनने से पहले उसे शिव जी को समर्पित करना चाहिए।
रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करना सर्वश्रेष्‍ठ फलदायक रहता है।
रुद्राक्ष धारण करने वाले व्‍यक्‍ति को सात्‍विक जीवन का पालन करना चाहिए। आचरण शुद्ध ना रखने पर धारण कर्ता को इसका पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है।

👉🏻👉🏻👉🏻राशि के अनुसार क्यों पहनें रुद्राक्ष???

ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार प्रत्‍येक राशि का एक स्‍वामी ग्रह है और उस ग्रह से एक रुद्राक्ष संबंधित है। अगर कोई व्‍यक्‍ति अपनी राशि अनुसार रुद्राक्ष धारण करता है तो उसे इसके दोगुने फल प्राप्‍त होते हैं। कहा जाता है की यदि राशि के अनुसार रुद्राक्ष धारण करने से शुभ फल प्राप्त होता है। आज हम आपको लग्‍न राशि के अनुसार रुद्राक्ष धारण करने के बारे में बता रहे हैं। अगर आप अपनी लग्‍न राशि के आधार पर रुद्राक्ष को धारण करेंगें तो आपके जीवन के सारे कष्‍ट और विपत्तियां दूर हो जाएंगीं।

👉🏻👉🏻👉🏻जानिए किस रंग के धागे में पहनें रुद्राक्ष–
वैसे तो आप रुद्राक्ष को किसी भी रंग के धागे में पहन सकते हैं लेकिन इसे लाल रंग के रेशमी धागे में पहनना सबसे अधिक शुभ माना जाता है।

👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻जानिए राशि/लग्नानुसार कोनसा रुद्राक्ष करें धारण??

मेष राशि: आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु एक मुखी, तीन मुखी अथवा पांच मुखी रुद्राक्ष प्राण-प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। नेता, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, दवा विक्रेता, प्रापट्री डीलर, होटल मालिकों को एक मुखी रुद्राक्ष विशेष रूप से धारण करना चाहिए। मेष राशि का स्‍वामी मंगल होता है और मंगल साहस और वीरता का कारक है। साथ ही मंगल के प्रभाव में जातक अडियल और गुस्‍सैल भी बन जाता है। मेष राशि के जातकों को तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होगा।यह रुद्राक्ष आग और गति का प्रतिनिधित्व करता है। यह रुद्राक्ष मेष और वृश्चिक राशि के लिए बेहद लाभकारी है। आप मंगलदोष दूर करने के लिए भी इसे पहन सकते है।

वृषभ राशि: आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु चार मुखी, छः मुखी अथवा चैदह मुखी रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। वृषभ लग्न के जातकों को चार मुखी रुद्राक्ष विशेष रूप से धारण करना चाहिए। अधिवक्ता, लेखाकार/ लेखाधिकारी, पुलिस, सेना, डाॅक्टर आदि को कैरियर में सफलता के लिए प्राण-प्रतिष्ठित एवं सिद्ध चार मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। अपने लक्ष्‍य को पाने के लिए वृषभ राशि के लोग बहुत मेहनत करते हैं। वृषभ राशि का स्‍वामी शुक्र देव हैं और ये भौतिक सुख और ऐश्‍वर्य प्रदान करते हैं। इस राशि के लोगों को 6 मुखी और दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होता है।इस रुद्राक्ष को भगवान कार्तिकेय के रूप में माना जाता है। यह आपको वित्तीय और व्यावसायिक लाभ प्रदान कर सकता है। शुक्र ग्रह की दशा को सुधारने के लिए इसे पहना जा सकता है। तुला और वृषभ राशि के लिए यह बेहद लाभदायक है।

मिथुन राशि: आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु चार मुखी, पांच मुखी और तेरह मुखी रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। मिथुन लग्न वाले जातक को छः मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। शिक्षा क्षेत्र से जुड़े प्रोफेसर, शिक्षक आदि इसे धारण कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। चार मुखी रुद्राक्ष को स्वंय ब्रह्मा जी का स्वरूप माना गया है। भगवान ब्रह्मा सर्व वेदों के ज्ञाता है उसी तरह इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले जातक के जीवन में भी शिक्षा प्राप्ति के सभी राह खुल जाते हैं।मिथुन राशि का स्‍वामी बुध है और बुध को बुद्धि का कारक माना जाता है। मिथुन राशि के लोग परिवर्तन और गतिशील स्‍वभाव के होते हैं। मिथुन राशि के जातकों को सफलता और धन की प्राप्‍ति के लिए 4 मुखी और 11 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

कर्क: आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु तीन मुखी, पांच मुखी अथवा गौरी शंकर रुद्राक्ष प्राण-प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। कर्क लग्न वाले दो मुखी, तीन मुखी व पांच मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करें। चिकित्सीय क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति जैसे नर्स, केमिस्ट, कंपाउडर, दवा विक्रेताओं के लिए यह विशेष लाभकारी है। कर्क राशि का स्‍वामी चंद्रमा होता है जोकि मन का कारक है। चंद्रमा मन को स्थिरता प्रदान करता है। ये लोग अपने कार्यों को पूरी निपुणता से करते हैं और इसीलिए इन्‍हें उसमें सफलता भी मिलती है। कर्क राशि के लोगों को 4 मुखी और गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होगा। इस रुद्राक्ष को अर्धनारीश्वर के नाम से जाना जाता है। कर्क राशि के लोगों के लिए यह रुद्राक्ष धारण करना लाभदायक रहता है। अगर आप अपने जीवन में वैवाहिक स्थिति से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे है या फिर आपकी कुंडली में चंद्र ग्रह कमजोर है तो आपको यह रुद्राक्ष पहनना चाहिए।

सिंह राशि: सिंह राशि का स्‍वामी सूर्य देव हैं। सूर्य को सफलता का कारक माना जाता है और जिस पर सूर्य देव की कृपा पड़ गई उसे जीवन में कभी भी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है। सिंह राशि के जातकों को 5 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु एक मुखी, तीन मुखी और पांच मुखी रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। सिंह लग्न वाले जातक को आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। सी. ए. करने वाले, सिविल इंजीनियर, कंप्यूटर का काम करने वाले आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

कन्या राशि: कन्‍या राशि का स्‍वामी भी बुध ग्रह है। बुध के शुभ प्रभाव में जातक बुद्धिमान बनता है और उसके द्वारा लिए गए सभी निर्णय सही साबित होते हैं। कन्‍या राशि के जातकों को गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करने से सबसे ज्‍यादा लाभ होता है।
आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु चार मुखी, पांच मुखी तथा तेरह मुखी रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। कन्या लग्न वाले सात मुखी, आठ मुखी व छः मुखी रुद्राक्ष धारण करने से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। विद्युत संबंधी कार्य करने वाले, बिजली के उपकरण, निर्माता, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, बिजली घर व कारखाने में कार्यरत कारीगर लोग इसे धारण कर सकते हैं। इससे सुख-समृद्धि, गुप्त धन प्राप्ति तथा शत्रुनाश में लाभ होता है।

तुला राशि: आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु चार मुखी, छः मुखी या चैदह मुखी रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। तुला लग्न वाले जातकों को सात मुखी रुद्राक्ष व आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से जीवन में संपन्नता तथा आनंद की प्राप्ति होती है। यश, पुण्य एवं नेतृत्व का लाभ होता है। विद्या प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम है। तुला राशि के लोग हर निर्णय से पूर्व बहुत सोच-विचार करते हैं। इस राशि का स्‍वामी शुक्र है जोकि जीवन में भौतिक सुख प्रदान करते हैं। तुला राशि के जातकों को सात मुखी रुद्राक्ष और गणेश रुद्राक्षपहनने से सर्वसुख की प्राप्‍ति होगी।
इस रुद्राक्ष को भगवान कार्तिकेय के रूप में माना जाता है। यह आपको वित्तीय और व्यावसायिक लाभ प्रदान कर सकता है। शुक्र ग्रह की दशा को सुधारने के लिए इसे पहना जा सकता है। तुला और वृषभ राशि के लिए यह बेहद लाभदायक है।

वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के लोग बहुत बुद्धिमान होते हैं। इस राशि का स्‍वामी मंगल ग्रह है जोकि बहुत आक्रामक माना जाता है लेकिन इस राशि के लोगों के स्‍वभाव में आक्रामकता कम ही देखने को मिलती है। वृश्चिक राशि के लोगों को 8 मुखी और 13 मुखी रुद्राक्षधारण करने से शुभ फल की प्राप्‍ति होती है।
इस राशि वालों को सौभाग्य वृद्धि के लिए तीन मुखी, पांच मुखी या गौरी शंकर रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। यह कैरियर के हर क्षेत्र में समान फल देने वाला है। व्यापार, व्यवसाय में लाभ तथा नौकरी में पदोन्नति, स्टेनो, सरकारी कोर्टकचहरी आदि में कार्य करने वाले सभी के लिए लाभप्रद है। यश, संपन्नता, वैभव, सुख-शांति व ख्याति की प्राप्ति होती है। यह रुद्राक्ष आग और गति का प्रतिनिधित्व करता है। यह रुद्राक्ष मेष और वृश्चिक राशि के लिए बेहद लाभकारी है। आप मंगलदोष दूर करने के लिए भी इसे पहन सकते है।

धनु राशि: धनु राशि का स्‍वामी बृहस्‍पति है। इस राशि के लोग साहसी और उग्र स्‍वभाव के होते हैं। जीवन की विपत्तियों को टालने के लिए धनु राशि के जातकों को 9 मुखी और 1 मुखी रुद्राक्ष पहनना चा‍हिए।
आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु एक मुखी, तीन मुखी अथवा पांच मुखी रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। इसके धारण करने से सर्वपाप का नाश होता है। मंगल/गुरु की दशा प्रतिकूल होने पर धारण करने पर विशेष लाभ प्राप्त होता है।इसे कालाग्नि के रूप में भी जाना जाता है। इसको पहनना आपको ताकत और ज्ञान प्रदान करता है। यह रुद्राक्ष धनु और मीन राशि के लिए बहुत फायदेमंद है। शिक्षा ग्रह करने संबंधी समस्या को दूर करने के लिए यह रुद्राक्ष बहुत प्रभावी है।

मकर राशि: मकर राशि का स्‍वामी शनि देव हैं और कहते हैं कि जिस पर शनि देव की कृपा हो जाए उसके वारे न्‍यारे हो जाते हैं अर्थात् उसके सारे बिगड़े काम बन जाते हैं। मकर राशि के जातकों को अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए 13 और 10 मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।इस रुद्राक्ष को सप्तमातृका और सप्तऋषि के नाम से भी जाना जाता है। इस रुद्राक्ष को मारक दशा में पहनना शुभ रहता है। यह रुद्राक्ष मकर और कुम्भ राशि के लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है।
आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु चार मुखी, छः मुखी या चैदह मुखी रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए।

कुंभ राशि: कुंभ राशि पर भी शनि देव की कृपा बरसती है। कुंभ राशि के लोग बहुत ऊंचे और बड़े सपने देखते हैं लेकिन ये उन सपनों को पूरा करने का दम भी रखते हैं। इस राशि के जातकों के लिए 7 मुखी रुद्राक्षबहुत फायदेमंद रहता है।इस रुद्राक्ष को सप्तमातृका और सप्तऋषि के नाम से भी जाना जाता है। इस रुद्राक्ष को मारक दशा में पहनना शुभ रहता है। यह रुद्राक्ष मकर और कुम्भ राशि के लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है।
आपको सौभाग्य वृद्धि हेतु चार मुखी, छः मुखी या चैदह मुखी रुद्राक्ष प्राण-प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण करना चाहिए। मकर तथा कुंभ लग्न वाले जातक ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।

ध्यान रखें, मकर तथा कुंभ दोनों लग्नों वाले जातकों को बैंक मैनेजर, बैंक कर्मचारी, बैंक, सिविल इंजीनियर, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, क्लर्क, टाइपिस्ट, डिजायनर आदि धारण कर अपने-अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

मीन राशि: मीन राशि का स्‍वामी बृहस्‍पति है। इस राशि के जातकों का स्‍वास्‍थ्‍य अकसर खराब रहता है। मीन राशि के जातकों को 5 मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिए।
आप सौभाग्य वृद्धि हेतु तीन मुखी, पांच मुखी अथवा गौरी शंकर रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित एवं सिद्ध किया हुआ धारण कर सकते हैं। मीन लग्न वाले जातक के लिए दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना उपयोगी होता है। इसे कालाग्नि के रूप में भी जाना जाता है। इसको पहनना आपको ताकत और ज्ञान प्रदान करता है। यह रुद्राक्ष धनु और मीन राशि के लिए बहुत फायदेमंद है। शिक्षा ग्रह करने संबंधी समस्या को दूर करने के लिए यह रुद्राक्ष बहुत प्रभावी है।

👉🏻👉🏻👉🏻******कैरियर में सफलता के लिए न्यायाधीशों तथा वकीलों को दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

👉🏻👉🏻👉🏻*****आर्थिक समृद्धि हेतु: –
आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार के लिए आपको प्राण-प्रतिष्ठित तथा सिद्ध किया हुआ गौरी-शंकर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसके प्रभाव से आप की आय औरं ऐश्वर्यपूर्ण वस्तुओं के उपभोग में भी वृद्धि होगी। जीवन में उच्च सफलता की प्राप्ति हेतु: यदि जीवन में उच्च सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो आप एक मुखी से चैदह मुखी तक के रुद्राक्ष एक साथ, एक ही माला में धारण करें। इससे आपको निश्चय ही जीवन में सफलता मिल सकती है।

👉🏻👉🏻👉🏻*******प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता प्राप्ति हेतु: आज का युग प्रतिस्र्पधाओं का युग है। यदि आप प्रतियोगिता परीक्षायें बार-बार देने पर भी सफल नहीं हो पा रहे हैं तो आप को निश्चित रूप से प्राण-प्रतिष्ठित एवं सिद्ध एक मुखी रुद्राक्ष अथवा इसके अभाव में गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसके प्रभाव से आप को भगवान शिव एवं गणेश की कृपा प्राप्त होगी तथा आप सफलता के पथ पर अग्रसर होंगे।

👉🏻👉🏻👉🏻*******राहु ग्रह से संबंधी समस्या–राहु ग्रह दोष निवारण हेतु आप आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करें।इसे अष्टदेवी का रूप माना जाता है। इसको पहनकर आपको अष्टसिद्धियाँ प्राप्त हो सकती है। इसकी मदद से आपको अचानक वित्तीय लाभ हो सकता है और यह आपको काले जादू के प्रभाव से बचाता है। राहु ग्रह से संबंधी समस्या को दूर करने के लिए आप इसे पहन सकते है।

👉🏻👉🏻👉🏻*******बच्चों से संबंधीत समस्या निवारण हेतु आप ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करें। इसे भगवान शिव का रूप माना जाता है। बच्चों से संबंधी समस्या को दूर करने के लिए आप ये रुद्राक्ष पहन सकते है।

👉🏻👉🏻👉🏻आरोग्य तथा सौभाग्य के लिए जिन जातकों को स्वास्थ्य संबंधी कष्ट जैसे उच्च रक्त चाप, गैस कमजोरी आदि रहती है, उनको रुद्राक्ष, मोती, स्फटिक तथा हकीक मिश्रित सौभाग्य माला दीपावली के पावन पर्व पर धारण करनी चाहिए। इसके धारण करने से अनेक रोगों से बचाव तो होता ही है साथ ही स्मरण शक्ति और भाग्यवृद्धि भी होती है।

इस माला को प्रातःकाल बिना कुछ खाएं-पिए तथा स्नानोपरांत अपने इष्ट देव की पूजा करने के पश्चात शुभ मुहूर्त में धारण करना चाहिए।

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माथे पर तिल

यदि किसी व्यक्ति के माथे के बीच में तिल हो तो वह व्यक्ति शांत, बुद्धिमान, परिश्रमी और दिल का साफ होता है।

यदि किसी के माथे में दाहिनी ओर तिल हो तो वह व्यक्ति धनवान होता है।

यदि माथे में बायीं ओर तिल हो तो वह व्यक्ति स्वार्थी होता है।

भौंह पर तिल

भौंह के बीच में तिल होने का मतलब होता है कि उस व्यक्ति के अंदर एक लीडर की विशेषता होगी। उसके जीवन में आर्थिक संपन्नता आएगी।

यदि भौंह पर बायीं ओर तिल हो तो व्यक्ति डरपोक होगा और बिज़नेस और नौकरी में उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

वहीं भौंह पर दाहिनी ओर तिल है तो व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में ख़ुशियाँ एवं संतान सुख प्राप्त होगा।

आँखों पर तिल

यदि किसी की दाहिनी आँख पर तिल का निशान हो तो वह व्यक्ति ईमानदार, मेहनती और विश्वास करने योग्य होता है।

बायीं आँख पर तिल का होना व्यक्ति के अंहकार और आशावादी सोच को दर्शाता है।

नाक पर तिल

ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति की नाक पर (ठीक बीच पर) तिल होता है तो वह क्रोधी और बिना सोचे-समझे निर्णय लेने वाला होता है।

यदि किसी की नाक की दाहिनी तरफ तिल हो तो वह व्यक्ति कम मेहनत के बल पर अधिक धन पाने में कामयाब होता है।

यदि नाक की बायीं ओर तिल हो तो व्यक्ति को सफलता पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

यदि नाक के नीचे तिल हो तो व्यक्ति कामुक और विपरीत लिंग को आकर्षित करने वाला होगा।

गाल पर तिल

जिसके बायें गाल पर तिल हो तो वह व्यक्ति अल्पभाषी, अधिक गुस्से वाला और धन ख़र्च करने वाला होता है।

यदि किसी के दायें गाल पर तिल हो तो व्यक्ति का स्वभाव आक्रामक होता है। इसके अलावा वह तर्कवादी और धन कमाने में अग्रणी होता है।

कान पर तिल

यदि किसी के कान पर तिल हो तो उसका जीवन भौतिक सुखों से युक्त होता है।

यदि कान के ठीक ऊपर तिल हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है।

होंठ पर तिल

यदि किसी व्यक्ति के होंठ पर तिल होता है तो उन्हें अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि उन्हें मोटापा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।

यदि आपके नीचे वाले होंठ पर तिल है तो आप फूडी नेचर के होंगे। इसके अलावा नाटक में आपकी विशेष रुचि होगी।

जीभ पर तिल

यदि किसी शख्स की जीभ पर तिल है तो उसे स्वास्थ्य, शिक्षा एवं स्पीच संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।

यदि किसी व्यक्ति की जीभ की नोक पर तिल हो तो वह व्यक्ति बहुत कूटनीतिज्ञ होता है। वह परिस्थितियों को काबू करने में सक्षम होता है। वह व्यक्ति अधिक फूडी भी होता है।

ठोड़ी पर तिल

यदि किसी की ठोड़ी के बीच पर तिल होता है तो उस व्यक्ति को यात्रा करना अच्छा लगता है। उसे नई-नई जगहों पर जाना पसंद होता है।

यदि किसी की ठोड़ी के दाहिने हिस्से में तिल हो तो वह व्यक्ति तर्कवादी और कूटनीतिक विचारों वाला होता है।

वहीं जिस व्यक्ति की ठोड़ी पर बायीं ओर तिल हो तो वह व्यक्ति ईमानदार और स्पष्टवादी होता है।

गर्दन पर तिल

यदि किसी व्यक्ति की गर्दन पर ठीक सामने तिल हो तो वह भाग्यशाली और कला से निपुण होता है।

वहीं गर्दन के पीछे वाले भाग पर तिल का होना व्यक्ति के क्रोधी को स्वभाव को दर्शाता है।

कंधे पर तिल

यदि किसी व्यक्ति के बायें कंधे पर तिल का निशान हो तो वह व्यक्ति ज़िद्दी स्वभाव का होता है।

यदि किसी व्यक्ति के दायें कंधे पर तिल का निशान हो तो वह साहसी और बुद्धिमान होता है।

भुजा पर तिल

यदि किसी व्यक्ति की दाहिनी भुजा में तिल हो तो वह बुद्धिमान और चालाक होता है।

बायीं भुजा में तिल का होना व्यक्ति की भौतिक सुखों की कामना को दर्शाता है लेकिन वास्तव में वह सामान्य जीवन जीता है।

कोहनी पर तिल

यदि किसी व्यक्ति की कोहनी पर तिल हो तो उसका मतलब होता है कि वह व्यक्ति बेचैन, कला में निपुण, धनी और ट्रैवल लवर होगा।

कलाई पर तिल

यदि किसी व्यक्ति की कलाई पर तिल होता है तो वह व्यक्ति कलात्मक होता है। उसके मन में नए-नए विचार आते हैं। ऐसे लोग अच्छे पेंटर और लेखक होते हैं।

हथेली पर तिल

यदि किसी की हथेली पर तिल का निशान हो तो उस व्यक्ति को कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

उंगली पर तिल

ऐसा कहा जाता है कि जिसकी उंगलियों पर तिल का निशान होता है। वह व्यक्ति विश्वासपात्र नहीं होता है। उसे चीज़ों को बढ़ा चढाकर कहने की आदत होती है।

पसलियों पर तिल

दाहिनी पसली पर तिल का निशान यह बताता है कि व्यक्ति झूठ बोलने में माहिर और कई चीज़ों से भयभीत होता है।

वहीं बायीं पसली पर तिल व्यक्ति के सामान्य जीवन को दर्शाता है।

पीठ पर तिल

पीठ पर रीढ़ की हड्डी के आसपास का तिल का होना सक्सेस, फेम और लीडरशिप को बताता है।

यदि किसी व्यक्ति के शोल्डर ब्लेड्स के नीचे तिल हो तो उस व्यक्ति को जीवन में संघर्ष करना पड़ेगा।

यदि किसी व्यक्ति के शोल्डर ब्लेड्स के ऊपर तिल का निशान हो तो वह व्यक्ति साहस के साथ चुनौतियों का सामना करता है।

सीने पर तिल

जिस व्यक्ति के सीने पर तिल का निशान होता है उसकी कामुक प्रवृत्ति तीक्ष्ण होती है।

जिन महिलाओं के दाहिने सीने में तिल का निशान होता है तो उनके अंदर ड्रग्स और शराब के अलावा अन्य प्रकार का नशा करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। वहीं यदि पुरुष के सीने में दाहिनी ओर तिल हो तो उसे आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

जिन पुरुषों के सीने में बायीं ओर तिल का निशान होता है तो वे चतुर स्वभाव के होते हैं लेकिन दोस्तों और रिश्तेदारों से उनके संबंध अच्छे नहीं रहते हैं। वहीं महिलाओं के बायें सीने में तिल हो तो वे शांत स्वभाव की होती हैं और परिवार, रिश्तेदारों और सहकर्मियों से उनके अच्छे संबंध होते हैं।

नाभि पर तिल

जिन महिलाओं की नाभि में अथवा इसके अासपास तिल का निशान होता है तो ऐसी महिलाओं का वैवाहिक जीवन सुखी होता है।

किसी पुरुष के नाभि पर बायीं ओर तिल का निशान उसके समृद्ध जीवन को दर्शाता है। उसकी संतान को भी प्रसिद्धि मिलती है।

पेट पर तिल

पेट पर तिल का निशान किसी व्यक्ति को हमेशा जोशीला बनाए रखता है।

अगर किसी पुरुष के उदर पर दाहिनी ओर तिल हो वह उसके मजबूत आर्थिक पृष्ठभूमि को दिखाता है। वहीं महिलाओं के लिए यह कमज़ोरी को दर्शाता है।

यदि पेट पर दाहिनी ओर तिल हो तो आमदनी की सुगमता को दर्शाता है।

नितंब पर तिल

जिन लोगों के दोनों नितंब पर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति ख़ुशमिजाज़, प्रिय और विश्वास योग्य होते हैं।

जिनके दायीं नितंब पर तिल हो तो ऐसे व्यक्ति क्रिएटिव और बुद्धिमान होते हैं।

जिन लोगों के बायें नितंब पर तिल होता है तो ऐसे लोग सामान्य आमदनी के बावजूद अपने जीवन से संतुष्ट दिखाई देते हैं।

गुप्तांग पर तिल

जिन लोगों के गुप्तांग पर तिल का निशान होता है ऐसे लोग खुले विचार वाले और ईमानदार होते हैं। इसके अलावा ऐसे लोग अधिक रोमांटिक होते हैं और उनका वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। भौतिक सुखों के अभाव के बावजूद भी ये लोग संतुष्ट रहते हैं।

जांघ पर तिल

जिन लोगों की दायीं जंघा पर दिल का निशान हो तो ऐसे लोग मध्यम स्वभावी और निडर होते हैं।

बायीं जांघ पर तिल का निशान किसी व्यक्ति की कलात्मक क्षमता को दर्शाता है लेकिन ऐसे व्यक्ति आलसी और अधिक सामाजिक नहीं होते हैं।

घुटने पर तिल

यदि किसी व्यक्ति के बायें घुटने पर तिल का निशान हो तो ऐसे व्यक्ति साहसी और रिस्क लेने वाले होते हैं। ऐसे लोग एक राजा की तरह अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

जिन लोगों के दायें घुटने पर तिल होता है ऐसे लोगों का प्रेमजीवन कामयाब होता है। ऐसे लोग सभी से मित्र जैसा व्यवहार करते हैं।

पिण्डली पर तिल

दायीं पिंडली पर तिल का होना अच्छा माना जाता है। ऐसे लोग कामयाब और समृद्धिशाली होते हैं। ऐसे व्यक्ति राजनीति में अधिक सक्रिय होते हैं और महिलाओं के द्वारा इन्हें अधिक सहयोग प्राप्त होता है।

बायीं पिण्डली पर तिल वाले व्यक्ति मेहनती होते हैं। उन्हें काम के सिलसिले में यात्रा करनी पड़ती है और उनके मित्रों की संख्या अधिक होती है।

टाँग पर तिल

जिन लोगों के टांग पर तिल होता है ऐसे व्यक्ति बिना सोचे समझें कार्य करते हैं। वे परिणाम की चिंता नहीं करते हैं। इसलिए ऐसे लोग अक्सर कंट्रोवर्सी में घिरे रहते हैं।

टखने पर तिल

यदि किसी के दायें टखने पर तिल होता है तो ऐसे व्यक्ति संभावित अनुमान लगाने वाले और अधिक बातूनी होते हैं। जबकि बायें टखने पर तिल के निशान वाले लोग अधिक धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।

पैर पर तिल

यदि किसी व्यक्ति के दायें पाँव पर तिल का निशान हो तो ऐसे लोगों को अच्छा जीवनसाथी प्राप्त होता है और उनका पारिवारिक जीवन संतोषजनक रहता है।

अगर बायें पैर पर तिल हो तो व्यक्ति को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और जीवनसाथी से भी उसके मतभेद रहते हैं।

यदि तलवे पर तिल हो तो स्वास्थ्य संबंधी परेशानी, दुश्मनों से चुनौती आदि का सामना करना पड़ता है।

पैर की उंगलियों पर तिल

यदि किसी के पैर की उंगलियों पर तिल हो तो ऐसे व्यक्तियों का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता है।

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इन उपायों (टोटकों) से होगी व्यापार वृद्धि—

👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻 अगर आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हों, तो मन्दिर में केले के दो पौधे (नर-मादा) लगा दें।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
अगर आप अमावस्या के दिन पीला त्रिकोण आकृति की पताका विष्णु मन्दिर में ऊँचाई वाले स्थान पर इस प्रकार लगाएँ कि वह लहराता हुआ रहे, तो आपका भाग्य शीघ्र ही चमक उठेगा। झंडा लगातार वहाँ लगा रहना चाहिए। यह अनिवार्य शर्त है।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
देवी लक्ष्मी के चित्र के समक्ष नौ बत्तियों का घी का दीपक जलाए, उसी दिन धन लाभ होगा।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
एक नारियल पर कामिया सिन्दूर, मोली, अक्षत अर्पित कर पूजन करें। फिर हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएँ। धन लाभ होगा।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
शनिवार शाम को पीपल के वृक्ष की जड़ में तेल का दीपक जला दें। फिर वापस घर आ जाएँ एवं पीछे मुड़कर न देखें। धन लाभ होगा।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
प्रात:काल पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएँ तथा अपनी सफलता की मनोकामना करें और घर से बाहर शुद्ध केसर से स्वस्तिक बनाकर उस पर पीले पुष्प और अक्षत चढ़ाए । घर से बाहर निकलते समय दाहिना पाँव पहले बाहर निकालें।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
एक हंडिया में सवा किलो हरी साबुत मूंग की दाल, दूसरी में सवा किलो डलिया वाला नमक भर दें। यह दोनों हंडिया घर में कहीं रख दें। यह क्रिया बुधवार को करें। घर में धन आना शुरू हो जाएगा।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
प्रत्येक मंगलवार को 11 पीपल के पत्ते लें। उनको गंगाजल से अच्छी तरह धोकर लाल चन्दन से हर पत्ते पर 7 बार राम लिखें। इसके बाद हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएं तथा वहां प्रसाद बाटें और इस मंत्र का जाप जितना कर सकते हो करें। `
“जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करो गुरू देव की नांई” 7 मंगलवार लगातार जप करें। प्रयोग गोपनीय रखें। अवश्य लाभ होगा।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
अगर नौकरी में तरक्की चाहते हैं, तो 7 तरह का अनाज चिड़ियों को डालें।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
ऋग्वेद (4/32/20-21) का प्रसिद्ध मन्त्र इस प्रकार है –

`ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।´
(हे लक्ष्मीपते ! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसारभर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं – उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान मुझे इस अर्थ संकट से मुक्त कर दो।)
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
निम्न मन्त्र को शुभ मुहूर्त्त में प्रारम्भ करें। प्रतिदिन नियमपूर्वक 5 माला श्रद्धा से भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करके,

जप करता रहे –
“ॐ क्लीं नन्दादि गोकुलत्राता दाता दारिद्र्यभंजन।
सर्वमंगलदाता च सर्वकाम प्रदायक:। श्रीकृष्णाय नम:।।”
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष भरणी नक्षत्र के दिन चार घड़ों में पानी भरकर किसी एकान्त कमरे में रख दें। अगले दिन जिस घड़े का पानी कुछ कम हो उसे अन्न से भरकर प्रतिदिन विधिवत पूजन करते रहें। शेष घड़ों के पानी को घर, आँगन, खेत आदि में छिड़क दें। अन्नपूर्णा देवी सदैव प्रसन्न रहेगीं।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
ध्यान रखें, किसी शुभ कार्य के जाने से पहले –

रविवार को पान का पत्ता साथ रखकर जायें।
सोमवार को दर्पण में अपना चेहरा देखकर जायें।
मंगलवार को मिष्ठान खाकर जायें।
बुधवार को हरे धनिये के पत्ते खाकर जायें।
गुरूवार को सरसों के कुछ दाने मुख में डालकर जायें।
शुक्रवार को दही खाकर जायें।
शनिवार को अदरक और घी खाकर जाना चाहिये।
👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻
किसी भी शनिवार की शाम को उड़द की दाल के दाने लें। उस पर थोड़ी सी दही और सिन्दूर लगाकर पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें और बिना मुड़कर देखे वापिस आ जायें। सात शनिवार लगातार करने से आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली बनी रहेगी..।।
शुभमस्तु।।
कल्याण हो।।

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विवाह से पूर्व सिर्फ वर-वधू का गुण मिलान करना ही ज्योतिष में पर्याप्त नहीं होता।
पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते है कि यदि योग्य ओर अनुभवी विद्वान ज्योतिर्विद कन्या की षोडशवर्गीय कुंंडली को शूक्ष्मता से देख ले तो ससुराल की समस्त जानकारी पूर्व में ही जान सकता है।
कन्या का विवाह के लिए वर-वधू की कुंडली का गुण मिलान करते हैं. किंतु इसके पूर्व उन्हें यह देखना चाहिए कि लड़की का विवाह किस उम्र में, किस दिशा में तथा कैसे घर में होगा?

उसका पति किस स्वभाव का, किस सामाजिक स्तर का तथा कितने भाई-बहनों वाला होगा? लड़की की जन्म कुंडली से उसके होने वाले पति एवं ससुराल के विषय में सब कुछ स्पष्टतः पता चल सकता है

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि वैदिक ज्योतिष शास्त्र के सूत्रों के अनुसार लड़की की जन्म कुंडली में लग्न से सप्तम भाव उसके जीवन, पति, दाम्पत्य जीवन तथा वैवाहिक संबंधों का भाव है. इस भाव से उसके होने वाले पति का कद, रंग, रूप, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, व्यवसाय या कार्यक्षेत्र, परिवार से संबंध आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

किसी भी कन्या की जन्म कुंंडली के त्रतीय और नवम भाव के आधार पर देवर, जेठ, ननदों का व्योरा, स्वभाव आदि की जानकारी मिल सकती हें।

दशम भाव से सासूजी, चतुर्थ भाव से स्वसुर, एवं अष्टम भाव से उनके कुटुंब परिवार की स्थिती और स्वभाव को जाना जा सकता है.
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कितनी दूर होगा ससुराल होगा ??
सप्तम भाव में अगर वृषभ, सिंह, वृश्चिक या कुंभ राशि स्थित हो, तो लड़की की शादी उसके जन्म स्थान से 90 किलोमीटर के अंदर ही होगी. यदि सप्तम भाव में चंद्र, शुक्र तथा गुरु हों, तो लड़की की शादी जन्म स्थान के समीप होगी. यदि सप्तम भाव में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर हो, तो विवाह उसके जन्म स्थान से 200 किलोमीटर के अंदर होगा. अगर सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन राशि स्थित हो, तो विवाह जन्म स्थान से 80 से 100 किलोमीटर की दूरी पर होगा. यदि सप्तमेश सप्तम भाव से द्वादश भाव के मध्य हो, तो विवाह विदेश में होगा या लड़का शादी करके लड़की को अपने साथ लेकर विदेश चला जाएगा।
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जानिए किस उम्र में (कब) होगा विवाह ??
यदि जातक या जातका की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में सप्तमेश बुध हो और वह पाप ग्रह से प्रभावित न हो, तो शादी 13 से 18 वर्ष की आयु सीमा में होता है. सप्तम भाव में सप्तमेश मंगल पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो शादी 18 वर्ष के अंदर होगी. शुक्र ग्रह युवा अवस्था का द्योतक है. सप्तमेश शुक्र पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो 25 वर्ष की आयु में विवाह होगा. चंद्रमा सप्तमेश होकर पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो विवाह 22 वर्ष की आयु में होगा. बृहस्पति सप्तम भाव में सप्तमेश होकर पापी ग्रहों से प्रभावित न हो, तो शादी 27-28 वें वर्ष में होगी. सप्तम भाव को सभी ग्रह पूर्ण दृष्टि से देखते हैं तथा सप्तम भाव में शुभ ग्रह से युक्त हो कर चर राशि हो, तो जातिका का विवाह दी गई आयु में संपन्न हो जाता है. यदि किसी लड़की या लड़के की जन्मकुंडली में बुध स्वराशि मिथुन या कन्या का होकर सप्तम भाव में बैठा हो, तो विवाह बाल्यावस्था में होगा।

आयु के जिस वर्ष में गोचरस्थ गुरु लग्न, तृतीय, पंचम, नवम या एकादश भाव में आता है, उस वर्ष शादी होना निश्चित समझना चाहिए. परंतु शनि की दृष्टि सप्तम भाव या लग्न पर नहीं होनी चाहिए. अनुभव में देखा गया है कि लग्न या सप्तम में बृहस्पति की स्थिति होने पर उस वर्ष शादी हुई है।

विवाह कब होगा यह जानने की दो विधियां यहां प्रस्तुत हैं–

जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में स्थित राशि अंक में 10 जोड़ दें. योगफल विवाह का वर्ष होगा. सप्तम भाव पर जितने पापी ग्रहों की दृष्टि हो, उनमें प्रत्येक की दृष्टि के लिए 4-4 वर्ष जोड़ योगफल विवाह का वर्ष होगा.
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जानिए किस दिशा में होगा विवाह ?? :-
जहां तक विवाह की दिशा का प्रश्न है, ज्योतिष के अनुसार गणित करके इसकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है. जन्मांग में सप्तम भाव में स्थित राशि के आधार पर शादी की दिशा ज्ञात की जाती है. उक्त भाव में मेष, सिंह या धनु राशि एवं सूर्य और शुक्र ग्रह होने पर पूर्व दिशा, वृषभ, कन्या या मकर राशि और चंद्र, शनि ग्रह होने पर दक्षिण दिशा, मिथुन, तुला या कुंभ राशि और मंगल, राहु, केतु ग्रह होने पर पश्चिम दिशा, कर्क, वृश्चिक, मीन या राशि और बुध और गुरु ग्रह होने पर उत्तर दिशा की तरफ शादी होगी. अगर जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में कोई ग्रह न हो और उस भाव पर अन्य ग्रह की दृष्टि न हो, तो बलवान ग्रह की स्थिति राशि में शादी की दिशा समझनी चाहिए.

एक अन्य नियम के अनुसार शुक्र जन्म लग्न कुंडली में जहां कहीं भी हो, वहां से सप्तम भाव तक गिनें. उस सप्तम भाव की राशि स्वामी की दिशा में शादी होनी चाहिए।

जैसे अगर किसी कुंडली में शुक्र नवम भाव में स्थित है, तो उस नवम भाव से सप्तम भाव तक गिनें तो वहां से सप्तम भाव वृश्चिक राशि हुई. इस राशि का स्वामी मंगल हुआ. मंगल ग्रह की दिशा दक्षिण है. अतः शादी दक्षिण दिशा में करनी चाहिए।
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जानिए कैसा होगा जीवनसाथी :-
कुंंडली में सप्तमेश अगर शुभ ग्रह (चंद्रमा, बुध, गुरु या शुक्र) हो या सप्तम भाव में स्थित हो या सप्तम भाव को देख रहा हो, तो लड़की का पति सम आयु या दो-चार वर्ष के अंतर का, गौरा और सुंदर होना चाहिए. अगर सप्तम भाव पर या सप्तम भाव में पापी ग्रह सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु का प्रभाव हो, तो बड़ी आयु वाला अर्थात लड़की की उम्र से 5 वर्ष बड़ी आयु का होगा. सूर्य का प्रभाव हो, तो गौरांग, आकर्षक चेहरे वाला, मंगल का प्रभाव हो, तो लाल चेहरे वाला होगा. शनि अगर अपनी राशि का उच्च न हो, तो वर काला या कुरूप तथा लड़की की उम्र से काफी बड़ी आयु वाला होगा. अगर शनि उच्च राशि का हो, तो, पतले शरीर वाला गोरा तथा उम्र में लड़की से 12 वर्ष बड़ा होगा।

सप्तमेश अगर सूर्य हो, तो पति गोल मुख तथा तेज ललाट वाला, आकर्षक, गोरा सुंदर, यशस्वी एवं राजकर्मचारी होगा. चंद्रमा अगर सप्तमेश हो, तो पति शांत चित्त वाला गौर वर्ण का, मध्यम कद तथा, सुडौल शरीर वाला होगा. मंगल सप्तमेश हो, तो पति का शरीर बलवान होगा. वह क्रोधी स्वभाव वाला, नियम का पालन करने वाला, सत्यवादी, छोटे कद वाला, शूरवीर, विद्वान तथा भ्रातृ-प्रेमी होगा तथा सेना, पुलिस या सरकारी सेवा में कार्यरत होगा.
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कैसा होगा ससुराल का परिवार :-
लड़की की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव से तृतीय भाव अर्थात नवम भाव उसके पति के भाई-बहन का स्थान होता है. उक्त भाव में स्थित ग्रह तथा उस पर दृष्टि डालने वाले ग्रह की संख्या से 2 बहन, मंगल से 1 भाई व 2 बहन, बुध से 2 भाई 2 बहन वाला कहना चाहिए. लड़की की जन्मकुंडली में पंचम भाव उसके पति के बड़े भाई-बहन का स्थान है. पंचम भाव में स्थित ग्रह तथा दृष्टि डालने वाले ग्रहों की कुल संख्या उसके पति के बड़े भाई-बहन की संख्या होगी. पुरुष ग्रह से भाई तथा स्त्री ग्रह से बहन समझना चाहिए.
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कैसा होगा ससुराल का मकान :-
लड़की की जन्म लग्न कुंडली में उसके लग्न भाव से तृतीय भाव पति का भाग्य स्थान होता है. इसके स्वामी के स्वक्षेत्री या मित्रक्षेत्री होने से पंचम और राशि वृद्धि से या तृतीयेश से पंचम जो राशि हो, उसी राशि का श्वसुर का गांव या नगर होगा. प्रत्येक राशि में 9 अक्षर होते हैं। राशि स्वामी यदि शत्रुक्षेत्री हो, तो प्रथम, द्वितीय अक्षर, सम राशि का हो, तो तृतीय, चतुर्थ अक्षर मित्रक्षेत्री हो, तो पंचम, षष्ठम अक्षर, अपनी ही राशि का हो तो सप्तम, अष्टम अक्षर, उच्च क्षेत्री हो, तो नवम अक्षर प्रसिद्ध नाम होगा. तृतीयेश के शत्रुक्षेत्री होने से जिस राशि में हो उससे चतुर्थ राशि ससुराल या भवन की होगी. यदि तृतीय से शत्रु राशि में हो और तृतीय भाव में शत्रु राशि में पड़ रहा हो, तो दसवी राशि ससुर के गांव की होगी. लड़की की कुंडली में दसवां भाव उसके पति का भाव होता है. दशम भाव अगर शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, या दशमेश से युक्त या दृष्ट हो, तो पति का अपना मकान होता है. राहु, केतु, शनि, से भवन बहुत पुराना होगा. मंगल ग्रह में मकान टूटा होगा. सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु एवं शुक्र से भवन सुंदर, मजबूत व बहुमंजिला होगा. अगर दशम स्थान में शनि बलवान हो, तो मकान भव्य मिलेगा.
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कैसी होगी पति की नौकरी/रोजगार :-
लड़की की जन्म लग्न कुंडली में चतुर्थ भाव पति का राज्य भाव होता है. अगर चतुर्थ भाव बलयुक्त हो और चतुर्थेश की स्थिति या दृष्टि से युक्त सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र की स्थिति या चंद्रमा की स्थिति उत्तम हो, तो अच्छी नौकरी का संयोग बनता है.
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कैसी होगी पति की आयु:-
लड़की के जन्म लग्न में द्वितीय भाव उसके पति की आयु भाव है. अगर द्वितीयेश शुभ स्थिति में हो या अपने स्थान से द्वितीय स्थान को देख रहा हो, तो पति दीर्घायु होता है. अगर द्वितीय भाव में शनि स्थित हो या गुरु सप्तम भाव, द्वितीय भाव को देख रहा हो, तो भी पति की आयु 75 वर्ष की होती है।
इन सभी मूल ज्योतिषीय सिद्धातों के शूक्ष्म परीक्षण एवं षोडशवर्गीय कुंंडली के गहन विष्लेषण से पति, ससुराल और वैवाहिक जीवन के प्रत्येक पहलू को एक योग्य विद्वान ज्योतिषी सहजता से जान सकता है।

यह भी जानें : अपनी मनोकामनानुसार कैसे शिवलिंग की करनी चाहिये पूजा और यहां से करें महादेव शिव के 108 नामों का जाप..

सृष्टि के आरम्भ से ही ब्रह्मा आदि सभी देवता, रामावतार में भगवान श्रीराम, ऋषि-मुनि, यक्ष, विद्याधर, सिद्धगण, पितर, दैत्य, राक्षस, पिशाच, किन्नर आदि विभिन्न प्रकार के शिवलिंगों का पूजन करते आए हैं। जहां शिवलिंग की उपासना से देवताओं को स्वर्ग का राज्य, कुबेर को लंका का निवास, मन के समान वेगशाली पुष्कर विमान, लोकपाल का पद तथा राज्य-सम्पत्ति प्राप्त हुई; मार्कण्डेय, लोमश आदि ऋषियों को दीर्घ आयु, ज्ञान आदि की प्राप्ति हुई; वहीं पृथ्वी पर राजाओं ने शिवपूजन से अष्ट सिद्धि नवनिधि के साथ चक्रवर्ती साम्राज्य प्राप्त किया । इसलिए लिंग के रूप में सदैव भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए । लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु व ऊपरी भाग में प्रणव रूप में भगवान शिव विराजमान रहते हैं । लिंग की वेदी पार्वती हैं और लिंग महादेव हैं । जो वेदी के साथ लिंग की पूजा करता है उसने शिव और पार्वती का पूजन कर लिया ।
ब्रह्माजी की आज्ञा से विश्वकर्मा ने विभिन्न पदार्थों से शिवलिंगों का निर्माण कर देवताओं को दिए ।

लेखक : ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री

🌼🌺किस देवता ने की किस प्रकार के शिवलिंग की पूजा 🌺🌼

विष्णु ने सदा नीलकान्तमणि (नीलम) से बने लिंग की पूजा की;
इन्द्र ने पद्मरागमणि (पुखराज) से निर्मित लिंग की;
कुबेर ने सोने के लिंग की;
विश्वेदेवों ने चांदी के शिवलिंग की;
वसुओं ने चन्द्रकान्तमणि से बने लिंग की;
वायु ने पीतल से बने लिंग की;
अश्विनीकुमारों ने मिट्टी से बने लिंग की;
वरुण ने स्फटिक के लिंग की;
आदित्यों ने तांबे से बने लिंग की;
सोमराट् ने मोती से बने लिंग की
अनन्त आदि नागों ने प्रवाल (मूंगा) निर्मित लिंग की;
दैत्यों और राक्षसों ने लोहे से बने लिंग की;
चामुण्डा आदि सभी मातृशक्तियों ने बालू से बने लिंग की;
यम ने मरकतमणि (पन्न) से बने लिंग की;
रुद्रों ने भस्मनिर्मित लिंग की;
लक्ष्मी ने लक्ष्मीवृक्ष बेल से बने लिंग की;
गुह ने गोयम (गोबर) लिंग की;
मुनियों ने कुश के अग्रभाग से निर्मित लिंग की;
वामदेव ने पुष्पलिंग की;
सरस्वती ने रत्नलिंग की;
मन्त्रों ने घी से निर्मित लिंग की;
वेदों ने दधिलिंग की; और
पिशाचों ने सीस से बने लिंग की पूजा की ।

🌿🌷विभिन्न प्रकार के शिवलिंग की पूजा का फल🌷🌿
सुन्दर घर, बहुमूल्य आभूषण, सुन्दर पति/पत्नी, मनचाहा धन, अपार भोग और स्वर्ग का राज्य, ये सब शिवलिंग की पूजा के फल हैं । शिवोपासना करने वाले मनुष्य की न तो अकालमृत्यु होती है और न सर्दी या गर्मी आदि से ही उसकी मृत्यु होती है । लिंग विभिन्न वस्तुओं से बनाए जाते हैं और उनके पूजन का फल भी अलग होता है अत: अपनी मनोकामना के अनुसार शिवलिंग का चयन कर पूजन करना चाहिए ।
दो भाग कस्तूरी, चार भाग चंदन तथा तीन भाग कुंकुम से गंध लिंग बनाया जाता है । इसकी पूजा से शिव सायुज्य की प्राप्ति होती है ।
सुगन्धित पुष्पों से पुष्प लिंग बनाकर पूजा करने से राज्य की प्राप्ति होती है ।
बालु से ‘बालुकामय लिंग’ बनाकर पूजन करने से व्यक्ति शिव सायुज्य पाता है ।
आरोग्य लाभ के लिए मिश्री से ‘सिता खण्डमय लिंग’ का निर्माण किया जाता है ।
हरताल, त्रिकटु को लवण में मिलाकर ‘लवणज लिंग बनाया जाता है। यह वशीकरण करने वाला और सौभाग्य देने वाला है ।
भस्ममय लिंग सर्वफल प्रदायक माना गया है ।
जौ, गेहूँ और चावल के आटे का बने यव गोधूम शालिज लिंग के पूजन से स्त्री, पुत्र तथा श्री सुख की प्राप्ति होती है ।
तिल को पीस कर तिलपिष्टोत्थ लिंग बनाया जाता है । यह मनोकामना पूर्ण करता है ।
गुडोत्थ लिंग प्रीति में बढ़ोतरी करता है ।
वंशांकुर निर्मित लिंग बांस के अंकुर से बनाया जाता है । इससे वंश बढ़ता है ।
केशास्थि लिंग शत्रुओं का नाश करता है ।
दूध, दही से बने शिवलिंग का पूजन कीर्ति, लक्ष्मी और सुख देता है ।
रत्ननिर्मित लिंग लक्ष्मी प्रदान करने वाला है ।
पाषाण लिंग समस्त सिद्धियों को देने वाला है ।
धातुनिर्मित लिंग धन प्रदान करता है ।
काष्ठ लिंग भोगसिद्धि देने वाला है ।
दूर्वा से बना लिंग अकालमृत्यु का नाश करता है ।
कर्पूरज लिंग मुक्ति देने वाला है ।
मौक्तिक लिंग सौभाग्य देने वाला है ।
स्वर्ण लिंग महामुक्तिप्रद है ।
धान्यज लिंग धान्य देने वाला है ।
फलोत्थ लिंग फलप्रद है ।
नवनीत लिंग कीर्ति और सौभाग्य देने वाला है ।
धात्रीफल (आंवला) से बना लिंग मुक्ति देने वाला है।
पीतल और कांसे का लिंग मुक्ति देने वाला है ।
सीसे का लिंग शत्रुनाशक है ।
अष्टधातुज लिंग सर्वसिद्धि देने वाला है ।
स्फटिक लिंग सर्वकामप्रद होता है ।
मिट्टी से बना पार्थिव लिंग सभी सिद्धियों को देने वाला और शिवसायुज्य को देने वाला है ।
पारद लिंग का सबसे अधिक माहात्म्य है। ‘पारद’ शब्द में प=विष्णु, आ=कालिका, र= शिव, द= ब्रह्मा—ये सब स्थित होते हैं। पारदलिंग की एक बार भी पूजा करने से धन, ज्ञान, सिद्धि और ऐश्वर्य मिलते हैं ।
नर्मदा नदी के सभी कंकर ‘शंकर’ माने गए हैं। इन्हें नर्मदेश्वर या बाणलिंग भी कहते हैं। लिंगार्चन में बाणलिंग का अपना अलग ही महत्व है। यह हर प्रकार के भोग व मोक्ष देने वाला है।
✨कलियुग में इन चीजों से बने शिवलिंग की पूजा का है निषेध✨
तांबा, सीसा, रक्तचंदन, शंख, कांसा, लोहा—इनसे बने लिंगों की पूजा कलियुग में वर्जित है ।
शिव की उपासना में जहां रत्नों व मणियों से बने लिंगों की पूजा में अपार वैभव देखने को मिलता है, वहीं मिट्टी से शिवलिंग बनाकर केवल, जल, चावल और बिल्वपत्र अर्पित कर देने व ‘बम-बम भोले’ कहने से ही शिव कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है।
औढरदानी उदार अपार जु नैक सी सेवा तें ढुरि जावैं।
दमन अशान्ति, समन संकट विरद विचार जनहिं अपनावै ।।
ऐसे कपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबहिं चलि जावैं ।
बड़भागी नरनारि सोई जो साम्ब सदाशिव को नित ध्यावैं ।। (शिवाष्टक)

भगवान शिव के 108 नाम :-

१- ॐ भोलेनाथ नमः
२-ॐ कैलाश पति नमः
३-ॐ भूतनाथ नमः
४-ॐ नंदराज नमः
५-ॐ नन्दी की सवारी नमः
६-ॐ ज्योतिलिंग नमः
७-ॐ महाकाल नमः
८-ॐ रुद्रनाथ नमः
९-ॐ भीमशंकर नमः
१०-ॐ नटराज नमः
११-ॐ प्रलेयन्कार नमः
१२-ॐ चंद्रमोली नमः
१३-ॐ डमरूधारी नमः
१४-ॐ चंद्रधारी नमः
१५-ॐ मलिकार्जुन नमः
१६-ॐ भीमेश्वर नमः
१७-ॐ विषधारी नमः
१८-ॐ बम भोले नमः
१९-ॐ ओंकार स्वामी नमः
२०-ॐ ओंकारेश्वर नमः
२१-ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः
२२-ॐ विश्वनाथ नमः
२३-ॐ अनादिदेव नमः
२४-ॐ उमापति नमः
२५-ॐ गोरापति नमः
२६-ॐ गणपिता नमः
२७-ॐ भोले बाबा नमः
२८-ॐ शिवजी नमः
२९-ॐ शम्भु नमः
३०-ॐ नीलकंठ नमः
३१-ॐ महाकालेश्वर नमः
३२-ॐ त्रिपुरारी नमः
३३-ॐ त्रिलोकनाथ नमः
३४-ॐ त्रिनेत्रधारी नमः
३५-ॐ बर्फानी बाबा नमः
३६-ॐ जगतपिता नमः
३७-ॐ मृत्युन्जन नमः
३८-ॐ नागधारी नमः
३९- ॐ रामेश्वर नमः
४०-ॐ लंकेश्वर नमः
४१-ॐ अमरनाथ नमः
४२-ॐ केदारनाथ नमः
४३-ॐ मंगलेश्वर नमः
४४-ॐ अर्धनारीश्वर नमः
४५-ॐ नागार्जुन नमः
४६-ॐ जटाधारी नमः
४७-ॐ नीलेश्वर नमः
४८-ॐ गलसर्पमाला नमः
४९- ॐ दीनानाथ नमः
५०-ॐ सोमनाथ नमः
५१-ॐ जोगी नमः
५२-ॐ भंडारी बाबा नमः
५३-ॐ बमलेहरी नमः
५४-ॐ गोरीशंकर नमः
५५-ॐ शिवाकांत नमः
५६-ॐ महेश्वराए नमः
५७-ॐ महेश नमः
५८-ॐ ओलोकानाथ नमः
५४-ॐ आदिनाथ नमः
६०-ॐ देवदेवेश्वर नमः
६१-ॐ प्राणनाथ नमः
६२-ॐ शिवम् नमः
६३-ॐ महादानी नमः
६४-ॐ शिवदानी नमः
६५-ॐ संकटहारी नमः
६६-ॐ महेश्वर नमः
६७-ॐ रुंडमालाधारी नमः
६८-ॐ जगपालनकर्ता नमः
६९-ॐ पशुपति नमः
७०-ॐ संगमेश्वर नमः
७१-ॐ दक्षेश्वर नमः
७२-ॐ घ्रेनश्वर नमः
७३-ॐ मणिमहेश नमः
७४-ॐ अनादी नमः
७५-ॐ अमर नमः
७६-ॐ आशुतोष महाराज नमः
७७-ॐ विलवकेश्वर नमः
७८-ॐ अचलेश्वर नमः
७९-ॐ अभयंकर नमः
८०-ॐ पातालेश्वर नमः
८१-ॐ धूधेश्वर नमः
८२-ॐ सर्पधारी नमः
८३-ॐ त्रिलोकिनरेश नमः
८४-ॐ हठ योगी नमः
८५-ॐ विश्लेश्वर नमः
८६- ॐ नागाधिराज नमः
८७- ॐ सर्वेश्वर नमः
८८-ॐ उमाकांत नमः
८९-ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः
९०-ॐ त्रिकालदर्शी नमः
९१-ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः
९२-ॐ महादेव नमः
९३-ॐ गढ़शंकर नमः
९४-ॐ मुक्तेश्वर नमः
९५-ॐ नटेषर नमः
९६-ॐ गिरजापति नमः
९७- ॐ भद्रेश्वर नमः
९८-ॐ त्रिपुनाशक नमः
९९-ॐ निर्जेश्वर नमः
१०० -ॐ किरातेश्वर नमः
१०१-ॐ जागेश्वर नमः
१०२-ॐ अबधूतपति नमः
१०३ -ॐ भीलपति नमः
१०४-ॐ जितनाथ नमः
१०५-ॐ वृषेश्वर नमः
१०६-ॐ भूतेश्वर नमः
१०७-ॐ बैजूनाथ नमः
१०८-ॐ नागेश्वर नमः
इन नामों का जप करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।

यहां जानें महादेव शिव के, मृत्यु को भी जीतने वाले महामृत्युंजय मंत्र व इसकी साधना के बारे में…

“महामृत्युंजय मंत्र” भगवान शिव का सबसे बड़ा मंत्र माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस मंत्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष मंत्र कहा जाता है। मान्यता है कि महामृत्युंजय मंत्र से शिवजी को प्रसन्न करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। इस मंत्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करता है।

मंत्र इस प्रकार है –

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

यह त्रयम्बक “त्रिनेत्रों वाला”, रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया, को संबोधित है।

महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ

  • त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)

  • यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
  • सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
  • पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
  • वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
  • उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक)
  • इव = जैसे, इस तरह
  • बन्धनात् = तना (लौकी का); (“तने से” पंचम विभक्ति – वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
  • मृत्योः = मृत्यु से
  • मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
  • मा = न
  • अमृतात् = अमरता, मोक्ष

~ इस महामत्रँ से लाभ निम्न है –

  • धन प्राप्त होता
  • .जो आप सोच के जाप करते वह कार्य सफल होता
  • परिवार मे सुख सम्रद्बि रहती है
  • जिवन मे आगे बढते जाते है आप

~ जप करने कि विधि –

  • सुबह स्नान करते समय गिलास मे पानी लेकर मुह गिलास के पास रखकर ग्यारह बार मत्रँ का जप करे फिर उस पानी को अपने उपर प्रवाह कर ले, महादेव कि कृपा आप के उपर बनी रहगी।

यह मंत्र ऋषि मार्कंडेय द्वारा सबसे पहले पाया गया था।भगवान शिव को कालों का काल महाकाल कहा जाता है। मृत्यु अगर निकट आ जाए और आप महाकाल के महामृत्युंजय मंत्र का जप करने लगे तो यमराज की भी हिम्मत नहीं होती है कि वह भगवान शिव के भक्त को अपने साथ ले जाए।
इस मंत्र की शक्ति से जुड़ी कई कथाएं शास्त्रों और पुराणों में मिलती है जिनमें बताया गया है कि इस मंत्र के जप से गंभीर रुप से बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो गए और मृत्यु के मुंह में पहुंच चुके व्यक्ति भी दीर्घायु का आशीर्वाद पा गए।
यही कारण है कि ज्योतिषी और पंडित बीमार व्यक्तियों को और ग्रह दोषों से पीड़ित व्यक्तियों को महामृत्युंजय मंत्र जप करवाने की सलाह देते हैं। शिव को अति प्रसन्न करने वाला मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। लोगों कि धारणा है कि इसके जाप से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती परंतु यह पूरी तरह सही अर्थ नहीं है।
महामृत्युंजय का अर्थ है महामृत्यु पर विजय अर्थात् व्यक्ति की बार-बार मृत्यु ना हो। वह मोक्ष को प्राप्त हो जाए। उसका शरीर स्वस्थ हो, धन एवं मान की वृद्धि तथा वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाए। महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है। इसमें शिव की स्तुति की गयी है। शिव को ‘मृत्यु को जीतने वाला’ माना जाता है।
कहा जाता है कि यह मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियां तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, इस मंत्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है।
हमारे वैदिक शास्त्रों और पुराणों में असाध्य रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जप करने का विशेष उल्लेख मिलता है।
महामृत्युंजय भगवान शिव को खुश करने का मंत्र है। इसके प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाता है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है।
शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न शोक का। शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ देता है। शिव तत्व का ध्यान महामृत्युंजय के रूप में किया जाता है। इस मंत्र के जप से शिव की कृपा प्राप्त होती है। सतयुग में मूर्ति पूजा कर सकते थे, पर अब कलयोग में सिर्फ मूर्ति पूजन काफी नहीं है। भविष्य पुराण यह बताया गया है कि महामृत्युंजय मंत्र का रोज़ जाप करने से उस व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और लम्बी उम्र मिलती है।
अगर आपकी कुंडली में किसी भी तरह से मास, गोचर, अंतर्दशा या अन्य कोई परेशानी है तो यह मंत्र बहुत मददगार साबित होता है।
अगर आप किसी भी रोग या बीमारी से ग्रसित हैं तो रोज़ इसका जाप करना शुरू कर दें, लाभ मिलेगा। यदि आपकी कुंडली में किसी भी तरह से मृत्यु दोष या मारकेश है तो इस मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जप करने से किसी भी तरह की महामारी से बचा जा सकता है साथ ही पारिवारिक कलह, संपत्ति विवाद से भी बचता है।
अगर आप किसी तरह की धन संबंधी परेशानी से जूझ रहें है या आपके व्यापार में घाटा हो रहा है तो इस मंत्र का जप करें। इस मंत्र में आरोग्यकर शक्तियां है जिसके जप से ऐसी दुवानियां उत्पन होती हैं जो आपको मृत्यु के भय से मुक्त कर देता है, इसीलिए इसे मोक्ष मंत्र भी कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का जप करने के लिए सुबह 2 से 4 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है, लेकिन अगर आप इस वक़्त जप नहीं कर पाते हैं तो सुबह उठ कर स्नान कर साफ़ कपडे पहने फिर कम से कम पांच बार रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।
स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का लगातार जप करते रहने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए यदि इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप किया जाए और फिर वह दूध पी लें तो यौवन की सुरक्षा भी होती है। इस चमत्कारी मन्त्र का नित्य पाठ करने वाले व्यक्ति पर भगवान शिव की कृपा निरन्तंर बरसती रहती है।
महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां बरतना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ आपको मिले और आपको कोई हानि न हो। अगर आप नही कर पा रहे इस मंत्र का जाप जो किसी पंडित से जाप कराए यह आपके लिए और अधिक लाभकारी होगा। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है।
शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।
महारूद्र सदाशिव को प्रसन्न करने व अपनी सर्वकामना सिद्धि के लिए यहां पर पार्थिव पूजा का विधान है, जिसमें मिटटी के शिर्वाचन पुत्र प्राप्ति के लिए, श्याली चावल के शिर्वाचन व अखण्ड दीपदान की तपस्या होती है।
शत्रुनाश व व्याधिनाश हेतु नमक के शिर्वाचन, रोग नाश हेतु गाय के गोबर के शिर्वाचन, दस विधि लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मक्खन के शिर्वाचन अन्य कई प्रकार के शिवलिंग बनाकर उनमें प्राण-प्रतिष्ठा कर विधि-विधान द्वारा विशेष पुराणोक्त व वेदोक्त विधि से पूज्य होती रहती है।
भारतीय संस्कृति में शिवजी को भुक्ति और मुक्ति का प्रदाता माना गया है। शिव पुराण के अनुसार वह अनंत और चिदानंद स्वरूप हैं। वह निर्गुण, निरुपाधि, निरंजन और अविनाशी हैं। वही परब्रह्म परमात्मा शिव कहलाते हैं। शिव का अर्थ है कल्याणकर्ता। उन्हें महादेव (देवों के देव) और महाकाल अर्थात काल के भी काल से संबोधित किया जाता है।
केवल जल, पुष्प और बेलपत्र चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाने के कारण उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। उनके अन्य स्वरूप अर्धनारीश्वर, महेश्वर, सदाशिव, अंबिकेश्वर, पंचानन, नीलकंठ, पशुपतिनाथ, दक्षिणमूर्ति आदि हैं। पुराणों में ब्रह्मा, विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण, देवगुरु बृहस्पति तथा अन्य देवी देवताओं द्वारा शिवोपासना का विवरण मिलता है।
जब किसी की अकालमृत्यु किसी घातक रोग या दुर्घटना के कारण संभावित होती हैं तो इससे बचने का एक ही उपाय है – महामृत्युंजय साधना। यमराज के मृत्युपाश से छुड़ाने वाले केवल भगवान मृत्युंजय शिव हैं जो अपने साधक को दीर्घायु देते हैं। इनकी साधना एक ऐसी प्रक्रिया है जो कठिन कार्यों को सरल बनाने की क्षमता के साथ-साथ विशेष शक्ति भी प्रदान करती है।
यह साधना श्रद्धा एवं निष्ठापूर्वक करनी चाहिए। इसके कुछ प्रमुख तथ्य यहां प्रस्तुत हैं, जिनका साधना काल में ध्यान रखना परमावश्यक है। अनुष्ठान शुभ दिन, शुभ पर्व, शुभ काल अथवा शुभ मुहूर्त में संपन्न करना चाहिए। मंत्रानुष्ठान प्रारंभ करते समय सामने भगवान शंकर का शक्ति सहित चित्र एवं महामृत्युंजय यंत्र स्थापित कर लेना चाहिए।
ज्योतिष अनुसार किसी जन्मकुण्डली में सूर्यादि ग्रहों के द्वारा किसी प्रकार की अनिष्ट की आशंका हो या मारकेश आदि लगने पर, किसी भी प्रकार की भयंकर बीमारी से आक्रान्त होने पर, अपने बन्धु-बन्धुओं तथा इष्ट-मित्रों पर किसी भी प्रकार का संकट आने वाला हो।
देश-विदेश जाने या किसी प्राकर से वियोग होने पर, स्वदेश, राज्य व धन सम्पत्ति विनष्ट होने की स्थिति में, अकाल मृत्यु की शान्ति एंव अपने उपर किसी तरह की मिथ्या दोषारोपण लगने पर, उद्विग्न चित्त एंव धार्मिक कार्यो से मन विचलित होने पर महामृत्युंजय मन्त्र का जप स्त्रोत पाठ, भगवान शंकर की आराधना करें।
यदि स्वयं न कर सके तो किसी पंडित द्वारा कराना चाहिए। इससे सद्बुद्धि, मनःशान्ति, रोग मुक्ति एंव सवर्था सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
अनिष्ट ग्रहों का निवारण मारक एवं बाधक ग्रहों से संबंधित दोषों का निवारण महामृत्युंजय मंत्र की आराधना से संभव है। मान्यता है कि बारह ज्योतिर्लिगों के दर्शन मात्र से समस्त बारह राशियों संबंधित शुभ फलों की प्राप्ति होती है। काल संबंधी गणनाएं ज्योतिष का आधार हैं तथा शिव स्वयं महाकाल हैं, अत: विपरीत कालखंड की गति महामृत्युंजय साधना द्वारा नियंत्रित की जा सकती है।

आइये जानते हैं भगवान शिव से जुड़े पांच अनोखे शिवलिंग के बारे में जिनके चमत्कारों ने लोगो को आश्चर्य में डाल रखा है????

महादेव शिव की महिमा अनोखी एवं निराली जहां अन्य सभी देवताओ के स्वरूप की पूजा की जाती है वही भगवान शिव शंकर जो निर्विकार , निराकार, ओमकार स्वरूप है उनकी लिंग के रूप में पूजा होती है।

परन्तु भगवान शिव की महिमा एवं उनकी अद्भुत लीलाएं यही समाप्त नहीं होती, भारत में अनेक ऐसे शिवलिंग है जो अपने चमत्कारी शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है। भगवान शिव के कुछ शिवलिंगों में अपने आप जल की धारा बरसती है तो कुछ शिवलिंग का आकार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
भगवान शिव के कुछ शिवलिंग तो ऐसे है जिनका संबंध प्रलय से जुडा हुआ है। भगवान शिव के इन चमत्कारों के रहस्यों को जान्ने के लिए अनेको जगहों में तो विज्ञान भी फेल होता पाया गया है।

बाबा तिल भाण्डेश्वर महादेव :- बाबा तिल भाण्डेश्वर महादेव का मंदिर काशी के केदार खण्ड में स्थित है. कहते है की यह शिवलिंग सतयुग में प्रकट हुआ था तथा यह स्वयम्भू शिवलिंग है. इस शिवलिंग का वर्णन शिव पुराण धर्मग्रन्थ में भी मिलता है. वर्तमान में इस शिवलिंग का आधार कहा पर है यह आज तक एक रहस्य बना हुआ है।इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है की यह शिवलिंग सतयुग से द्वापर युग तक हर रोज एक तिल के आकर तक बढ़ते रहता है. लेकिन कलयुग के आरम्भ लोगो को यह चिंता सताने लगी की यदि भगवान शिव का शिवलिंग हर रोज इसी तरह बढ़ते रहा तो एक दिन पूरी दुनिया इस शिवलिंग में समाहित हो जायेगी।तब यहाँ लोगो ने शिव की आरधना की तथा भगवान शिव ने प्रसन्न होकर भक्तो को दर्शन दिए इसके साथ ही भगवान शिव ने यह वरदान भी दिया की अबसे में हर मकर संक्रांति को एक तिल बढ़कर भक्तो का कल्याण करूंगा। अत्यधिक प्राचीन इस मंदिर के विषय में अनेको मान्यताएं जुडी है. कहा जाता है की इसी स्थान पर विभांड ऋषि ने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था. भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर यहाँ स्वयम्भू शिवलिंग के रूप में स्थापित हुए थे। तथा उन्हें वरदान दिया की में कलयुग में एक आकर बढूंगा. भगवान शिव के इस अद्भुद शिवलिंग के दर्शन मात्र से मुक्ति का मार्ग परास्त होता है।

मृदेश्वर महादेव मंदिर :- गुजरात गोधरा में स्थित यह मंदिर भी प्रलय का संकेत देता है. बताया जाता है के यहाँ शिवलिंग का बढ़ता आकर कलयुग के धरती पर हावी होने की निशानी है. जिस दिन ये शिवलिंग आकर में साढ़े आठ फुट हो जाएगा तथा मंदिर के छत को छू लेगा वह दिन कलयुग का अंतिम चरण होगा। अर्थात उसके बाद पृथ्वी में प्रलय आ जायेगी और एक नए युग का प्रारम्भ होगा। लेकिन हम आपको बता दे की शिवलिंग को मंदिर के छत तक चुने में लाखो हजार वर्ष लग जाएंगे क्योकि शिवलिंग का आकर हर वर्ष एक चावल के आकार का बढ़ता है।मृदेश्वर मंदिर की एक विशेषता यह भी ही की इसमें स्वतः ही जल की धरा लगातार बहती रहती है तथा शिवलिंग का जलाभिषेक करती रहती है. सूखे एवं गर्मी में भी इस जल द्वारा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, यह जल धारा अविरल बहती रहती है।

पोडिवाल महादेव मंदिर :- हिमांचल प्रदेश में नहान से करीब 8 किलोमीटर दुरी पर स्थित पोडिवाल महादेव मंदिर है. इसका संबंध रावण से माना जाता है, कहा जाता है की रावण ने इसकी स्थापना करी थी। इसे स्वर्ग की दूसरी पड़ी के नाम से भी जाना जाता है।ऐसी मान्यता है की हर शिवरात्रि को यह शिवलिंग एक जौ के दाने के बराबर बढ़ता है। ऐसी मान्यता है की इस शिवलिंग में सक्षात शिवजी का वास है तथा भगवान शिव सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते है।

भूतेश्वर महादेव मंदिर :- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 90 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है गरियाबंद जिला यहाँ एक प्राकृतिक शिवलिंग स्थित है जिसे भूतेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह विशव का सबसे बड़ा प्राकर्तिक शिवलिंग है. सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है की यह शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है। यह जमीन से लगभग 18 फीट उंचा एवं 20 फीट गोलाकार है. राजस्व विभाग द्वारा प्रतिवर्ष इसकी उचांई नापी जाती है जो लगातार 6 से 8 इंच बढ रही है।

जग्गेश्वर महादेव मंदिर :- मैदागिन मार्ग से आगे बढ़ने पर महादेव का दिव्य मंदिर है . शिव की नगरी काशी में तो कंकर कंकर में शिव का वास है. शिव ही यहाँ के आराध्य हैं और शिव ही लोगों की रक्षा और भरण पोषण करते हैं। शिव के इस आनंद वन में शिव के चमत्कारों की कोई कमी नही है. इस मन्दिर में भगवान् शिव का लिंग हर शिवरात्रि को जौ के एक दाने के बराबर बढ़ जाता है। मन्दिर के आस पास ऐसे लोगों की भी कमी नही है जिन्होंने इस शिव लिंग को अपने बचपन से बढ़ते हुए देखा है. ऐसी मान्यता है की इस मन्दिर में दर्शन करने से इस जन्म का ही नही बल्कि सात जन्मो का पाप कट जाता है। जागिश ऋषि की कठोर तपस्या से खुश होकर महादेव यहाँ प्रकट हुए थे. हर शिवरात्रि को बढ़ते -बढ़ते वर्तमान में इस शिवलिंग ने आदम कद प्राप्त कर लिया है . महंत आनंद मिश्र बताते है कि ऋषि के हठ ने ना सिर्फ महादेव को यहाँ बुलाया बल्कि हमेशा के लिए उन्हें यही विराजमान भी होना पड़ा। ऋषि ज़ब बिमारी की वज़ह से मौत के मुह में असमय ही चले जा रहे थे, तब महादेव ने अपने प्रिय मदार के पुष्प से उनका इलाज़ भी किया था. बीमारी से ठीक होने को लोग मदार की माला चढ़ाते है।

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परीक्षा के समय विद्यार्धी वर्ग के लिए बेहतर परिणाम हेतु ज्योतिष, वास्तु पर आधारित प्रभावी और लाभकारी उपाय…
परीक्षा के समय विद्यार्धी वर्ग के लिए प्रभावी और लाभकारी उपाय –

ज्योतिष, वास्तु पर आधारित विद्यार्थी वर्ग के लिए कुछ अनुभूत विशेष प्रयोग —

इस समय बच्चो की परीक्षाएं चलने वाली है आइये जानते है ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री से विद्यार्थियों हेतु कुछ विशेष उपाय जो सभी के लिए बहुत कारगर होगी खुद भी करे और दूसरे बच्चो तक भी इस सन्देश को पहुंचाए।

किसी भी जन्मकुंडली में चन्द्रमा मन का कारक होता है चंद्र, बुध व् गुरु ग्रह विद्या प्राप्ति में मुख्य सहायक होते है , जन्मकुंडली में अगर चंद्र के साथ राहु , केतू का योग है अथवा चन्द्रमा 6,8 या 12 भाव में है तो चांदी के गिलास में पानी पिए , घर में बारिश का पानी रखे।

भारतीय सनातन संस्कृति में माँ सरस्वती को ज्ञान और विद्द्या की प्राप्ति के लिए पूजा जाता है, अतः माता पिता गुरु और ईश्वर का आशीर्वाद प्रतिदिन अवश्य ले कर पढाई करे। ऐसा करने से उस छात्र पर हमेशा ईश्वर की कृपा बनी रहती है ।

कई बार लोग प्रश्न करते है हमारे बच्चो का मन पढाई में नहीं लगता है या पढाई करने के बाद सब भूल जाते है ऐसे लोगो के लिए वास्तु प्रयोग अवश्य कारगर होगा ।

इन वास्तु टिप्स से होगा लाभ–
👉🏻👉🏻 माता पिता बच्चो के अध्धयन कक्ष का चयन खुले और स्वस्छ जगह में करे जिससे उनका पढाई में मन लगे इसके लिए दिशाओं का बहुत प्रभाव होता है
👉🏻👉🏻 पढाई करते समय पूर्व या उत्तर दिशा में मुँह करके अध्धयन करे।आप की कुर्सी -मेज इस तरह से हो की पढाई के समय मुंह ईशान कोण की तरफ ही रहे.

👉🏻👉🏻 अध्ययन कक्ष में पढाई करने के बाद कभी भी कोई कॉपी किताबें पेन को खुला न रखें पढ़ने के बाद उन्हें बैग या आलमारी में रखे।
👉🏻👉🏻 पढाई करते समय हमेशा बैठ कर पढाई करे कभी भी बिस्तर या लेट कर पढाई न करे।
👉🏻👉🏻 अध्ययन करते समय आचार विचार शुद्ध होना चाहिए इसके लिए सात्विक भोजन करे , जहा पर आप पढाई करते है वहां बैठ कर या टेबल कुर्सी पर खाना
नहीं खाना चाहिए।
👉🏻👉🏻 खाना खाते समय पड़ाई की टेबिल पर कॉपी किताबें बंद करके ,खाना खाने के लिए बनाये गए स्थान पर ही खाना चाहिए ।
👉🏻👉🏻 पढाई करते समय अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए कॉपी किताबों को अपने मस्तक से लगाकर पढाई करे, यही प्रक्रिया पड़ाई को समाप्त करते समय
भी दोहराएँ ।

👉🏻👉🏻 विद्या प्राप्ति का सबसे उपयुक्त समय ब्रह्म मुहूर्त अर्थात सुबह के 4 बजे का माना गया है उस काल में पड़ाई करते समय हमें कई गुना ज्यादा और तेजी से अपना पाठ याद होता है इसलिए पड़ने वाले छात्रों को सुबह सवेरे पड़ाई की आदत अवश्य ही डालनी चाहिए ।
👉🏻👉🏻 भूलकर भी विद्यार्थियों को घर पर पढ़ते समय जूते – मोज़े नहीं पहनने चाहिए ।
👉🏻👉🏻 मोर का पंख अध्ययन रूम में लगाए व् मोर पंख अपने पास रखने से विधार्थी का मन पढाई में लगता है ।
👉🏻👉🏻 ब्राम्ही औषधि का नित्य सेवन करने से विधार्थियों की बुद्धि त्रीव होती है स्मरण शक्ति बडती है.
👉🏻👉🏻 जिन विद्यार्थियों को परीक्षा में उत्तर भूल जाने की आदत हो, उन्हें परीक्षा में अपने पास कपूर और फिटकरी रखनी चाहिए। इससे मानसिक रूप से
मजबूती बनी रहती है और यह नकारात्मक ऊर्जा को भी हटाती हैं ।
👉🏻👉🏻सावधानी रखें, भूलकर भी सीढ़ियों के निचे या बीम के नीचे कभी भी बैठ कर पढाई या भोजन न करे ,
👉🏻👉🏻 पढाई करते समय प्रकाश या लाइट सामने या दाहिने तरफ से हो।
👉🏻👉🏻 जिन विद्यार्थियों की वाणी में हकलाना, तुतलाना जैसे दोष हों, ऐसे लोग बांसुरी में शहद भरकर नदी के किनारे जमीन में गाड़ें। ऐसा करने से लाभ होगा।

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परीक्षा में अच्छे अंक लाने के उपाय (जानिए परीक्षा में अच्छे अंक कैसे लाए)—-

👉🏻👉🏻यह मन्त्र भी देगा लाभ–
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
👉🏻👉🏻 तुलसी के पत्तों को मिश्री के साथ पीसकर प्रतिदिन उसका रस विधार्थी को पिलाने से भी उसकी स्मरण शक्ति का विकास होता है ।

👉🏻👉🏻 किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता प्राप्ति हेतु हर गुरुवार को नियम से किसी भी गाय को पीले पेड़े अवश्य खिलाये ।
👉🏻👉🏻विद्यार्थी को चहिये की वह गणेश चालीसा का पाठ करें और बुधवार को गणपति जी को बेसन के लड्डू और दूर्वा अर्पित करें,
👉🏻👉🏻 विद्यार्थी को चाहिए की वह अपनी पड़ाई की मेज या कमरे की ईशान की दीवार पर माँ सरस्वती की तस्वीर जरुर लगायें और रोज उनसे बेहतर विद्या प्राप्ति के लिए आग्रह करें ।
👉🏻👉🏻परीक्षा देने जाते समय यदि छात्र मीठा दही या अन्य कोई भी मीठा खाकर जाये तो उसे निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है ।
👉🏻👉🏻👉🏻 किसी भी विद्यार्थी छात्र छात्रा को कभी भी भूलकर परीक्षा में नकल नहीं करनी चाहिए , चाहे उसे कुछ नंबरों का नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े ,नकल करने पर विद्या की देवी माँ सरस्वती उससे कुपित हो जाती है , और उसे लगातार पड़ाई में कठनाइयों का सामना करना पड़ता है ।
👉🏻👉🏻 परीक्षा के लिए घर से निकलते समय पहले दायाँ पैर घर से बाहर निकाले और परीक्षा कक्ष में भी पहले दायाँ पैर ही अन्दर रखे ।परीक्षा/प्रतियोगी परीक्षा में
विद्यार्थियों के कमरे में यथा संभव हरे रंग के परदे लगवाने चाहिए इससे एकाग्रता आती है और मन भी शांत रहता है ।

👉🏻👉🏻👉🏻योग व् आसान —
साधारणतया मस्तिष्क का केवल 3 से 7 प्रतिशत भाग ही सक्रिय हो पाता है। शेष भाग सुप्त रहता है, जिसमें अनंत ज्ञान छिपा रहता है। ऐसी विलक्षण शक्ति को जाग्रत करने के दोनों कानों के नीचे के भाग को अंगूठे और अंगुलियों से दबाकर नीचे की ओर खीचें। पूरे कान को ऊपर से नीचे करते हुए मरोड़ें। सुबह 4-5 मिनट और दिन में जब भी समय मिले, कान के नीचे के भाग को खींचे।
सिर व गर्दन के पीछे बीच में मेडुला नाड़ी होती है। इस पर अंगुली से 3-4 मिनट मालिश करें। इससे एकाग्रता बढ़ती है और पढ़ा हुआ याद रहता है।

👉🏻👉🏻👉🏻अष्टमी के रक्त चन्दन से अनार की कलम से “ॐ ऐं ´´ को भोजपत्र पर लिख कर नित्य पूजा करने से अपार विद्या, बुद्धि की प्राप्ति होती है।

👉🏻👉🏻सोते समय सिरहाना हमेशा पूर्व या दक्षिण दिशा में रखे ।

👉🏻👉🏻सफलता के लिए कुछ विशेष रत्न उपाय —
सर्वसिद्धि मुहूर्त में आनेक्स ,हरा हकीक या सुलेमानी हक़ीक को धारण करने से भी दिमाग तेज़ होता है निर्णय लेने में आसानी रहती है ।
👉🏻👉🏻👉🏻सफलता प्राप्ति के लिए पुष्य नक्षत्र के दिन दो पंचमुखी रुद्राक्ष व् एक छः मुखी रुद्राक्ष लाएं और लाल धागे में धारण करें कि छः मुखी रुद्राक्ष बीच में रहे।

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‘महामृत्युंजय मंत्र” भगवान शिव का सबसे बड़ा मंत्र माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस मंत्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष मंत्र कहा जाता है। मान्यता है कि महामृत्युंजय मंत्र से शिवजी को प्रसन्न करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। इस मंत्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करता है।

मंत्र इस प्रकार है –

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

यह त्रयम्बक “त्रिनेत्रों वाला”, रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया, को संबोधित है।

महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ

  • त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)

  • यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
  • सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
  • पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
  • वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
  • उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक)
  • इव = जैसे, इस तरह
  • बन्धनात् = तना (लौकी का); (“तने से” पंचम विभक्ति – वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
  • मृत्योः = मृत्यु से
  • मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
  • मा = न
  • अमृतात् = अमरता, मोक्ष

~ इस महामत्रँ से लाभ निम्न है –

  • धन प्राप्त होता
  • .जो आप सोच के जाप करते वह कार्य सफल होता
  • परिवार मे सुख सम्रद्बि रहती है
  • जिवन मे आगे बढते जाते है आप

~ जप करने कि विधि –

  • सुबह स्नान करते समय गिलास मे पानी लेकर मुह गिलास के पास रखकर ग्यारह बार मत्रँ का जप करे फिर उस पानी को अपने उपर प्रवाह कर ले, महादेव कि कृपा आप के उपर बनी रहगी।

यह मंत्र ऋषि मार्कंडेय द्वारा सबसे पहले पाया गया था।भगवान शिव को कालों का काल महाकाल कहा जाता है। मृत्यु अगर निकट आ जाए और आप महाकाल के महामृत्युंजय मंत्र का जप करने लगे तो यमराज की भी हिम्मत नहीं होती है कि वह भगवान शिव के भक्त को अपने साथ ले जाए।
इस मंत्र की शक्ति से जुड़ी कई कथाएं शास्त्रों और पुराणों में मिलती है जिनमें बताया गया है कि इस मंत्र के जप से गंभीर रुप से बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो गए और मृत्यु के मुंह में पहुंच चुके व्यक्ति भी दीर्घायु का आशीर्वाद पा गए।
यही कारण है कि ज्योतिषी और पंडित बीमार व्यक्तियों को और ग्रह दोषों से पीड़ित व्यक्तियों को महामृत्युंजय मंत्र जप करवाने की सलाह देते हैं। शिव को अति प्रसन्न करने वाला मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। लोगों कि धारणा है कि इसके जाप से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती परंतु यह पूरी तरह सही अर्थ नहीं है।
महामृत्युंजय का अर्थ है महामृत्यु पर विजय अर्थात् व्यक्ति की बार-बार मृत्यु ना हो। वह मोक्ष को प्राप्त हो जाए। उसका शरीर स्वस्थ हो, धन एवं मान की वृद्धि तथा वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाए। महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है। इसमें शिव की स्तुति की गयी है। शिव को ‘मृत्यु को जीतने वाला’ माना जाता है।
कहा जाता है कि यह मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियां तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, इस मंत्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है।
हमारे वैदिक शास्त्रों और पुराणों में असाध्य रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जप करने का विशेष उल्लेख मिलता है।
महामृत्युंजय भगवान शिव को खुश करने का मंत्र है। इसके प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाता है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है।
शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न शोक का। शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ देता है। शिव तत्व का ध्यान महामृत्युंजय के रूप में किया जाता है। इस मंत्र के जप से शिव की कृपा प्राप्त होती है। सतयुग में मूर्ति पूजा कर सकते थे, पर अब कलयोग में सिर्फ मूर्ति पूजन काफी नहीं है। भविष्य पुराण यह बताया गया है कि महामृत्युंजय मंत्र का रोज़ जाप करने से उस व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और लम्बी उम्र मिलती है।
अगर आपकी कुंडली में किसी भी तरह से मास, गोचर, अंतर्दशा या अन्य कोई परेशानी है तो यह मंत्र बहुत मददगार साबित होता है।
अगर आप किसी भी रोग या बीमारी से ग्रसित हैं तो रोज़ इसका जाप करना शुरू कर दें, लाभ मिलेगा। यदि आपकी कुंडली में किसी भी तरह से मृत्यु दोष या मारकेश है तो इस मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जप करने से किसी भी तरह की महामारी से बचा जा सकता है साथ ही पारिवारिक कलह, संपत्ति विवाद से भी बचता है।
अगर आप किसी तरह की धन संबंधी परेशानी से जूझ रहें है या आपके व्यापार में घाटा हो रहा है तो इस मंत्र का जप करें। इस मंत्र में आरोग्यकर शक्तियां है जिसके जप से ऐसी दुवानियां उत्पन होती हैं जो आपको मृत्यु के भय से मुक्त कर देता है, इसीलिए इसे मोक्ष मंत्र भी कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का जप करने के लिए सुबह 2 से 4 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है, लेकिन अगर आप इस वक़्त जप नहीं कर पाते हैं तो सुबह उठ कर स्नान कर साफ़ कपडे पहने फिर कम से कम पांच बार रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।
स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का लगातार जप करते रहने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए यदि इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप किया जाए और फिर वह दूध पी लें तो यौवन की सुरक्षा भी होती है। इस चमत्कारी मन्त्र का नित्य पाठ करने वाले व्यक्ति पर भगवान शिव की कृपा निरन्तंर बरसती रहती है।
महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां बरतना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ आपको मिले और आपको कोई हानि न हो। अगर आप नही कर पा रहे इस मंत्र का जाप जो किसी पंडित से जाप कराए यह आपके लिए और अधिक लाभकारी होगा। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है।
शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।
महारूद्र सदाशिव को प्रसन्न करने व अपनी सर्वकामना सिद्धि के लिए यहां पर पार्थिव पूजा का विधान है, जिसमें मिटटी के शिर्वाचन पुत्र प्राप्ति के लिए, श्याली चावल के शिर्वाचन व अखण्ड दीपदान की तपस्या होती है।
शत्रुनाश व व्याधिनाश हेतु नमक के शिर्वाचन, रोग नाश हेतु गाय के गोबर के शिर्वाचन, दस विधि लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मक्खन के शिर्वाचन अन्य कई प्रकार के शिवलिंग बनाकर उनमें प्राण-प्रतिष्ठा कर विधि-विधान द्वारा विशेष पुराणोक्त व वेदोक्त विधि से पूज्य होती रहती है।
भारतीय संस्कृति में शिवजी को भुक्ति और मुक्ति का प्रदाता माना गया है। शिव पुराण के अनुसार वह अनंत और चिदानंद स्वरूप हैं। वह निर्गुण, निरुपाधि, निरंजन और अविनाशी हैं। वही परब्रह्म परमात्मा शिव कहलाते हैं। शिव का अर्थ है कल्याणकर्ता। उन्हें महादेव (देवों के देव) और महाकाल अर्थात काल के भी काल से संबोधित किया जाता है।
केवल जल, पुष्प और बेलपत्र चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाने के कारण उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। उनके अन्य स्वरूप अर्धनारीश्वर, महेश्वर, सदाशिव, अंबिकेश्वर, पंचानन, नीलकंठ, पशुपतिनाथ, दक्षिणमूर्ति आदि हैं। पुराणों में ब्रह्मा, विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण, देवगुरु बृहस्पति तथा अन्य देवी देवताओं द्वारा शिवोपासना का विवरण मिलता है।
जब किसी की अकालमृत्यु किसी घातक रोग या दुर्घटना के कारण संभावित होती हैं तो इससे बचने का एक ही उपाय है – महामृत्युंजय साधना। यमराज के मृत्युपाश से छुड़ाने वाले केवल भगवान मृत्युंजय शिव हैं जो अपने साधक को दीर्घायु देते हैं। इनकी साधना एक ऐसी प्रक्रिया है जो कठिन कार्यों को सरल बनाने की क्षमता के साथ-साथ विशेष शक्ति भी प्रदान करती है।
यह साधना श्रद्धा एवं निष्ठापूर्वक करनी चाहिए। इसके कुछ प्रमुख तथ्य यहां प्रस्तुत हैं, जिनका साधना काल में ध्यान रखना परमावश्यक है। अनुष्ठान शुभ दिन, शुभ पर्व, शुभ काल अथवा शुभ मुहूर्त में संपन्न करना चाहिए। मंत्रानुष्ठान प्रारंभ करते समय सामने भगवान शंकर का शक्ति सहित चित्र एवं महामृत्युंजय यंत्र स्थापित कर लेना चाहिए।
ज्योतिष अनुसार किसी जन्मकुण्डली में सूर्यादि ग्रहों के द्वारा किसी प्रकार की अनिष्ट की आशंका हो या मारकेश आदि लगने पर, किसी भी प्रकार की भयंकर बीमारी से आक्रान्त होने पर, अपने बन्धु-बन्धुओं तथा इष्ट-मित्रों पर किसी भी प्रकार का संकट आने वाला हो।
देश-विदेश जाने या किसी प्राकर से वियोग होने पर, स्वदेश, राज्य व धन सम्पत्ति विनष्ट होने की स्थिति में, अकाल मृत्यु की शान्ति एंव अपने उपर किसी तरह की मिथ्या दोषारोपण लगने पर, उद्विग्न चित्त एंव धार्मिक कार्यो से मन विचलित होने पर महामृत्युंजय मन्त्र का जप स्त्रोत पाठ, भगवान शंकर की आराधना करें।
यदि स्वयं न कर सके तो किसी पंडित द्वारा कराना चाहिए। इससे सद्बुद्धि, मनःशान्ति, रोग मुक्ति एंव सवर्था सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
अनिष्ट ग्रहों का निवारण मारक एवं बाधक ग्रहों से संबंधित दोषों का निवारण महामृत्युंजय मंत्र की आराधना से संभव है। मान्यता है कि बारह ज्योतिर्लिगों के दर्शन मात्र से समस्त बारह राशियों संबंधित शुभ फलों की प्राप्ति होती है। काल संबंधी गणनाएं ज्योतिष का आधार हैं तथा शिव स्वयं महाकाल हैं, अत: विपरीत कालखंड की गति महामृत्युंजय साधना द्वारा नियंत्रित की जा सकती है।

आइये जानते हैं भगवान शिव से जुड़े पांच अनोखे शिवलिंग के बारे में जिनके चमत्कारों ने लोगो को आश्चर्य में डाल रखा है?????

महादेव शिव की महिमा अनोखी एवं निराली जहां अन्य सभी देवताओ के स्वरूप की पूजा की जाती है वही भगवान शिव शंकर जो निर्विकार , निराकार, ओमकार स्वरूप है उनकी लिंग के रूप में पूजा होती है।

परन्तु भगवान शिव की महिमा एवं उनकी अद्भुत लीलाएं यही समाप्त नहीं होती, भारत में अनेक ऐसे शिवलिंग है जो अपने चमत्कारी शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है।

भगवान शिव के कुछ शिवलिंगों में अपने आप जल की धारा बरसती है तो कुछ शिवलिंग का आकार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
भगवान शिव के कुछ शिवलिंग तो ऐसे है जिनका संबंध प्रलय से जुडा हुआ है। भगवान शिव के इन चमत्कारों के रहस्यों को जान्ने के लिए अनेको जगहों में तो विज्ञान भी फेल होता पाया गया है।

बाबा तिल भाण्डेश्वर महादेव :- बाबा तिल भाण्डेश्वर महादेव का मंदिर काशी के केदार खण्ड में स्थित है. कहते है की यह शिवलिंग सतयुग में प्रकट हुआ था तथा यह स्वयम्भू शिवलिंग है. इस शिवलिंग का वर्णन शिव पुराण धर्मग्रन्थ में भी मिलता है. वर्तमान में इस शिवलिंग का आधार कहा पर है यह आज तक एक रहस्य बना हुआ है।

इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है की यह शिवलिंग सतयुग से द्वापर युग तक हर रोज एक तिल के आकर तक बढ़ते रहता है. लेकिन कलयुग के आरम्भ लोगो को यह चिंता सताने लगी की यदि भगवान शिव का शिवलिंग हर रोज इसी तरह बढ़ते रहा तो एक दिन पूरी दुनिया इस शिवलिंग में समाहित हो जायेगी।

तब यहाँ लोगो ने शिव की आरधना की तथा भगवान शिव ने प्रसन्न होकर भक्तो को दर्शन दिए इसके साथ ही भगवान शिव ने यह वरदान भी दिया की अबसे में हर मकर संक्रांति को एक तिल बढ़कर भक्तो का कल्याण करूंगा।

अत्यधिक प्राचीन इस मंदिर के विषय में अनेको मान्यताएं जुडी है. कहा जाता है की इसी स्थान पर विभांड ऋषि ने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था. भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर यहाँ स्वयम्भू शिवलिंग के रूप में स्थापित हुए थे।

तथा उन्हें वरदान दिया की में कलयुग में एक आकर बढूंगा. भगवान शिव के इस अद्भुद शिवलिंग के दर्शन मात्र से मुक्ति का मार्ग परास्त होता है।

मृदेश्वर महादेव मंदिर :- गुजरात गोधरा में स्थित यह मंदिर भी प्रलय का संकेत देता है. बताया जाता है के यहाँ शिवलिंग का बढ़ता आकर कलयुग के धरती पर हावी होने की निशानी है. जिस दिन ये शिवलिंग आकर में साढ़े आठ फुट हो जाएगा तथा मंदिर के छत को छू लेगा वह दिन कलयुग का अंतिम चरण होगा।

अर्थात उसके बाद पृथ्वी में प्रलय आ जायेगी और एक नए युग का प्रारम्भ होगा। लेकिन हम आपको बता दे की शिवलिंग को मंदिर के छत तक चुने में लाखो हजार वर्ष लग जाएंगे क्योकि शिवलिंग का आकर हर वर्ष एक चावल के आकार का बढ़ता है।

मृदेश्वर मंदिर की एक विशेषता यह भी ही की इसमें स्वतः ही जल की धरा लगातार बहती रहती है तथा शिवलिंग का जलाभिषेक करती रहती है. सूखे एवं गर्मी में भी इस जल द्वारा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, यह जल धारा अविरल बहती रहती है।

पोडिवाल महादेव मंदिर :- हिमांचल प्रदेश में नहान से करीब 8 किलोमीटर दुरी पर स्थित पोडिवाल महादेव मंदिर है. इसका संबंध रावण से माना जाता है, कहा जाता है की रावण ने इसकी स्थापना करी थी।

इसे स्वर्ग की दूसरी पड़ी के नाम से भी जाना जाता है।ऐसी मान्यता है की हर शिवरात्रि को यह शिवलिंग एक जौ के दाने के बराबर बढ़ता है।

ऐसी मान्यता है की इस शिवलिंग में सक्षात शिवजी का वास है तथा भगवान शिव सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते है।

भूतेश्वर महादेव मंदिर :- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 90 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है गरियाबंद जिला यहाँ एक प्राकृतिक शिवलिंग स्थित है जिसे भूतेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

यह विशव का सबसे बड़ा प्राकर्तिक शिवलिंग है. सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है की यह शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है।

यह जमीन से लगभग 18 फीट उंचा एवं 20 फीट गोलाकार है. राजस्व विभाग द्वारा प्रतिवर्ष इसकी उचांई नापी जाती है जो लगातार 6 से 8 इंच बढ रही है।

जग्गेश्वर महादेव मंदिर :- मैदागिन मार्ग से आगे बढ़ने पर महादेव का दिव्य मंदिर है . शिव की नगरी काशी में तो कंकर कंकर में शिव का वास है. शिव ही यहाँ के आराध्य हैं और शिव ही लोगों की रक्षा और भरण पोषण करते हैं।

शिव के इस आनंद वन में शिव के चमत्कारों की कोई कमी नही है. इस मन्दिर में भगवान् शिव का लिंग हर शिवरात्रि को जौ के एक दाने के बराबर बढ़ जाता है। मन्दिर के आस पास ऐसे लोगों की भी कमी नही है जिन्होंने इस शिव लिंग को अपने बचपन से बढ़ते हुए देखा है. ऐसी मान्यता है की इस मन्दिर में दर्शन करने से इस जन्म का ही नही बल्कि सात जन्मो का पाप कट जाता है।

जागिश ऋषि की कठोर तपस्या से खुश होकर महादेव यहाँ प्रकट हुए थे. हर शिवरात्रि को बढ़ते -बढ़ते वर्तमान में इस शिवलिंग ने आदम कद प्राप्त कर लिया है . महंत आनंद मिश्र बताते है कि ऋषि के हठ ने ना सिर्फ महादेव को यहाँ बुलाया बल्कि हमेशा के लिए उन्हें यही विराजमान भी होना पड़ा।

ऋषि ज़ब बिमारी की वज़ह से मौत के मुह में असमय ही चले जा रहे थे ,तब महादेव ने अपने प्रिय मदार के पुष्प से उनका इलाज़ भी किया था. बीमारी से ठीक होने को लोग मदार की माला चढ़ाते है।

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शिव के परिवार में अद्भुत बात है। विभिन्नताओं में एकता और विषमताओं में संतुलन यह शिव परिवार से ही सीखा जा सकता है। शिव परिवार के हर व्यक्ति के वाहन या उनसे जुड़े प्राणियों को देखें तो शेर-बकरी एक घाट पानी पीने का दृश्य साफ दिखाई देगा। शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, मगर शिवजी के तो आभूषण ही सर्प हैं। वैसे स्वभाव से मयूर और सर्प दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती स्वयं शक्ति हैं, जगदम्बा हैं जिनका वाहन शेर है। मगर शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। बेचारे बैल की सिंह के आगे औकात क्या? परंतु नहीं, इन दुश्मनियों और ऊंचे-नीचे स्तरों के बावजूद शिव का परिवार शांति के साथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्नतापूर्वक समय बिताता है।
शिव-पार्वती चौपड़ भी खेलते हैं, भांग भी घोटते हैं। गणपति माता-पिता की परिक्रमा करने को विश्व-भ्रमण समकक्ष मानते हैं। स्वभावों की विपरीतताओं, विसंगतियों और असहमतियों के बावजूद सब कुछ सुगम है, क्योंकि परिवार के मुखिया ने सारा विष तो अपने गले में थाम रखा है। विसंगतियों के बीच संतुलन का बढ़िया उदाहरण है शिव का परिवार। जिस घर में शिव परिवार को ‍चित्र लगा होता है वहां आपस में पारिवारिक एकता, प्रेम और सामजस्यता बनी रहती है।

भगवान शिव शंकर बहुत भोले हैं, इसीलिए हम उन्हें भोले भंडारी कहते है , यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ एक लोटा पानी भी अर्पित करे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कुछ छोटे और अचूक उपायों के बारे शिवपुराण में भी लिखा है, ये उपाय इतने सरल हैं कि इन्हें बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। हर समस्या के समाधान के लिए शिवपुराण में एक अलग उपाय बताया गया है, ये उपाय इस प्रकार हैं-

शिवपुराण के अनुसार इन छोटे उपायों से भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है :-

भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।
तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।
जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।
गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।
यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद जरूरतमंदों में बांट देना चाहिए।

शिवपुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन-सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से क्या फल मिलता है-

बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है, सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा भगवान शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।
तीक्ष्ण बुद्धि के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।
शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।
शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम मिलता है।
यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर है तो उसे उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का अभिषेक गौ माता के शुद्ध घी से करना चाहिए ।

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ज्योतिर्विद दयानंद शास्त्री @ नवीन समाचार, 25 फरवरी 2019। आमतौर पर मंदिर में जाना धर्म से जोड़ा जाता है। लेकिन मंदिर जाने के कुछ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वास्थ्य लाभ भी हैं। ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं कि यदि हम रोज मंदिर जाते हैं तो इससे कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स कंट्रोल की जा सकती हैं।

जानिए पण्डित दयानन्द शास्त्री से ऐसे लाभ जो हमें प्रतिदिन मंदिर जाने से अनजाने में मिलते हैं–

💒हाई BP कंट्रोल करने के लिए
मंदिर के अंदर नंगे पैर जाने से वहां की साकारात्मक ऊर्जा पैरों के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश करती है। नंगे पैर चलने के कारण पैरों में मौजूद प्रेशर प्वाइंट्स पर दवाब भी पड़ता है, जिससे हाई BP की प्रॉब्लम दूर होती है।

💒कॉन्सेंट्रेशन बढ़ाने के लिए
रोज़ मंदिर जाने और भौहों के बीच माथे पर तिलक लगाने से हमारे दिमाग के विशेष हिस्से पर दवाब पड़ता है। इससे कॉन्सेंट्रेशन बढ़ता है।

💒साकारात्मक ऊर्जा स्तर बढ़ाने के लिए रिसर्च कहती है, जब हम मंदिर का घंटा बजाते हैं, तो 7 सेकण्ड्स तक हमारे कानों में उसकी आवाज़ गूंजती है। इस दौरान शरीर में शान्ति पहुंचाने वाले 7 प्वाइंट्स क्रियाशील हो जाते हैं। इससे ऊर्जा स्तर बढ़ाने में मदद मिलती है।

💒शारिरीक क्षमता बढ़ाने के लिए मंदिर में दोनों हाथ जोड़कर पूजा करने से हथेलियों और उंगलियों के उन बिन्दुओं पर दवाब बढ़ता है, जो शरीर के कई पुर्जों से जुड़े होते हैं। इससे शरीर के बहुत से क्रिया सुधरते हैं और शारिरीक क्षमता बढ़ती है।

💒बैक्टीरिया से बचाव के लिए
मंदिर में मौजूद कपूर और हवन का धुआं बैक्टीरिया ख़त्म करता है। इससे वायरल इंफेक्शन का खतरा टलता है।

💒तनाव (स्ट्रेस) दूर करने के लिए मंदिर का शांत माहौल और शंख की आवाज़ मेंटली रिलैक्स करती है। इससे स्ट्रेस दूर होता है।

💒डिप्रेशन दूर होता है
रोज़ मंदिर जाने और भगवान की आरती गाने से ब्रेन फंक्शन सुधरते हैं। इससे डिप्रेशन दूर होता हैं।।

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ज्योतिर्विद दयानंद शास्त्री @ नवीन समाचार, 24 फरवरी 2019। ज्योतिष के प्रमुख ग्रहों में से एक व राक्षस गुरु शुक्र 24 फरवरी 2019 को धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। शुक्र का ये परिवर्तन कई मायनों में बहुत ही विशेष होने जा रहा है। यह परिवर्तन हर किसी को प्रभावित करेगा। शुक्र भौतिक सुख के लिए परमावश्यक गृह है | कलयुग में इसी की प्रधानता मानी गयी है इसीलिये कलयुग के नर नारी नैतिक रूप से पतित होते जा रहे हैं | मकर राशी शुक्र के मित्र शनि की राशी है | शनि स्वयं भी नकारात्मक गृह है |

एक ओर जहां ये परिवर्तन कुछ राशियों को जोरदार लाभ देगा, वहीं कुछ के सामने बड़ी परेशानियां भी खड़ी करेगा, जबकि अन्य के लिये ये पूरी तरह से तख्तापलट कारक रहेगा। इससे पहले शुक्र ग्रह ने 29 जनवरी 2019 को वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश किया था और अब इससे निकल कर 24 फरवरी को मकर राशि में प्रवेश करेंगे। ज्योतिष में शुक्र भाग्य का कारक ग्रह माना गया है।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री का कहना है कि शुक्र अब तक धनु राशि में हैं, जो कि बृहस्पति की राशि है। वहीं इसके ठीक बाद यानि 24 फरवरी 2019 को यह मकर राशि यानि शनि की राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। और ये सर्वविदित है कि शनि और शुक्र महायोग का निर्माण करते हैं। ऐसे में इनकी आपसी दोस्ती जहां कुछ लोगों को फर्श से अर्श तक के दर्शन करायेगी, वहीं कुछ के लिये ये समय काफी कष्ट कारक भी हो जायेगा।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शुक्र ग्रह जन्म कुंडली में स्थित 12 भावों पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डालता है। इसे यानि शुक्र को एक शुभ ग्रह माना गया है, परंतु यदि शुक्र कुंडली में मजबूत होता है तो जातकों को इसके अच्छे परिणाम मिलते हैं जबकि कमज़ोर होने पर यह अशुभ फल देता है।शुक्र को सुंदरता, ऐश्वर्य और कला के साथ जुड़े क्षेत्रों का अधिपति माना जाता है। इसलिए जन्म कुंडली में शुक्र की शुभ स्थिति व्यक्ति को शारीरिक रूप से सुंदर और मन-मोहक बनाती है, साथ ही समस्त सांसारिक सुख प्रदान करती है। वहीं शुक्र के अशुभ प्रभाव से वैवाहिक जीवन में परेशानी और भौतिक सुख-सुविधाओं में कमी आती है।

वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसलिये ज्योतिष में शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास, शौहरत, कला, प्रतिभा, सौन्दर्य, रोमांस, काम वासना और फैशन डिजाइनिंग आदि का कारक माना जाता है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार ज्योतिष में शुक्र को वृष और तुला राशि का स्वामी माना गया है। इस वर्ष 2019में शुक्र ने 01 जनवरी 2019 को वृश्चिक राशि में, 29 जनवरी को धनु राशि में 24 फरवरी को मकर राशि में, 21 मार्च को कुम्भ राशि में, 15 अप्रैल को मीन राशि में, 10 मई को मेष राशि में 04 जून को वृष राशि में, 28 जून को मिथुन राशि में, 23 जुलाई कर्क राशि में 16 अगस्त को सिंह राशि में, 09 सितम्बर को कन्या राशि में, 03 अक्टूबर को तुला राशि में 28 अक्टूबर को वृश्चिक राशि में, 21 नवम्बर को धनु राशि में, 15 दिसम्बर को मकर राशि में संचरण करेगा।

24 फरवरी 2019 को शुक्र मकर राशि में प्रवेश करेंगे। शुक्र अभी धनु राशि में विचरण कर रहे हैं। कुंडली में शुक्र के अच्छे प्रभाव से व्यक्ति को धन और संपन्नता की प्राप्ति होती है। शुक्र वृषभ और तुला राशि का स्वामी होता है और मीन इसकी उच्च राशि है, जबकि कन्या इसकी नीच राशि कहलाती है। शुक्र को 27 नक्षत्रों में से भरणी, पूर्वा फाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों का स्वामित्व प्राप्त है। ग्रहों में बुध और शनि ग्रह शुक्र के मित्र ग्रह हैं और सूर्य व चंद्रमा इसके शत्रु ग्रह माने जाते हैं।

👉🏻👉🏻👉🏻जानिए शुक्र के प्रभाव —
प्रचलित मान्यता के अनुसार मजबूत शुक्र व्यक्ति के वैवाहिक जीवन को सुखी बनाता है। यह पति-पत्नि के बीच प्रेम की भावना को बढ़ाता है। वहीं प्रेम करने वाले जातकों के जीवन में रोमांस में वृद्धि करता है।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र मजबूत स्थिति में होता है वह व्यक्ति जीवन में भौतिक सुखों का आनंद लेता है। बली शुक्र के कारण व्यक्ति साहित्य एवं कला में रुचि लेता है।

वहीं इसके ठीक विपरीत पीड़ित शुक्र के कारण व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती हैं। पति-पत्नि के बीच मतभेद होते हैं। व्यक्ति के जीवन में दरिद्रता आती है और वह भौतिक सुखों के अभाव में जीता है। यदि जन्म कुंडली में शुक्र कमज़ोर होता है तो जातक को कई प्रकार की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। पीड़ित शुक्र के प्रभाव से बचने के लिये जातकों को शुक्र ग्रह के उपाय करने चाहिए।

24 फरवरी 2019 की रात 12 बजकर 30 को शुक्र ग्रह मकर राशि में प्रवेश कर रहें है जो 22 मार्च 2019 की सुबह 4 बजकर 48 मिनिट तक यहीं रहेंगे। शुक्र के इस संचरण का असर सभी राशियों पर देखने को मिलेगा।

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जानिए सभी राशियों पर शुक्र के मकर में गोचर का असर/प्रभाव–

मेष : स्वयं की मेहनत आपकी आमदनी में बढोत्तरी का कारण बनेगी | घर में कोई पुनर्निर्माण आदि करवा सकते हैं | स्वास्थ्य को लेकर कुछ समस्या रह सकती है | पेट की तकलीफ हो सकती हैं | अपने खानपान पर नियंत्रण रखना ही ठीक रहेगा | आपको अत्यधिक सेक्स करने से परहेज करना चाहिए |

वृषभ : मन में अस्थिरता रहेगी | निर्णय लेने में आपको अधिक समय लगेगा और हो सकता है की आप गलत निर्णय अधिक मात्रा में लें | जीवन साथी के साथ भी आपकी पटरी नहीं बैठ पाएगी | दूर के लोगों से आपकी अच्छी निभेगी | इन्टरनेट से कोई नया मित्र मिल सकता है | धन हानि के योग भी बने हुए हैं |

मिथुन : सेक्स की इच्छा प्रबल बनी रहेगी | गुप्त रोग भी आपको हो सकता है | कोई पुराने कार्य आपके पूर्ण हो सकते हैं | किसी पुराने मित्र से अचानक मुलाकात हो सकती है | प्रतियोगी परीक्षा में अच्छा परिणाम निकल सकता है | कामकाज ठीक रहेगा | किसी और की जिम्मेदारी भी आपके सुपुर्द करी जा सकती है |

कर्क : यह आपके लिए लाभकारी गोचर रहने वाला है | आप कुछ नयी खरीद कर सकते हैं | आपके नए मित्र भी बन सकते हैं | कामकाज में भी प्रगति रहने वाली है | व्यापारी वर्ग भी अच्छा धनार्जन करेगा |मन में संगीत फिल्म आदि के प्रति अधिक रूचि रहेगी | गाने का मन भी हो सकता है | निजी जीवन भी अच्छा रहेगा और साथी से सहयोग भी मिलेगा |

सिंह : अचानक खर्चों से परेशान हो सकते हैं | लम्बी यात्रा के योग भी बनेंगे | छोटे भाई बहिन किसी समस्या से जूझ सकते हैं | मीठा अधिक खाने से बचिए | आपको अचानक धनलाभ होने की अच्छी सम्भावना है किन्तु सामान्य जीवन में रुकावट अधिक महसूस करेंगे | सेक्स से सम्बंधित कोई समस्या उभर सकती है |

कन्या : घर परिवार में बीमारी घर कर सकती है | प्रेम संबंधों में बात आगे बढ़ सकती है | शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए अच्छा गोचर है | संतान पक्ष से प्रसन्नता प्राप्त होगी | दांतों , जबड़ों, पाचन तंत्र आदि में तकलीफ हो सकती है |

तुला : आपको गलत निर्णय लेने के कारण नुक्सान उठाना होगा | घर परिवार में अच्छा माहौल रहेगा | कार्य अच्छे होते रहेंगे किन्तु आपको बड़े निर्णय दूसरों से सलाह कर के ही लेने चहिये | जमीन के दलालों को फायदा हो सकता है साथ ही वाहन के व्यवसाइयों को भी | लाभ होगा किन्तु अपेक्षा से थोडा कम ही रहेगा | नौकरी भी ठीक बनी रहेगी|

वृश्चिक: आँखों की रक्षा कीजिये | खानपान पर नियंत्रण रखिये | विरोधी आपको परेशान कर सकते हैं | आपके विरुद्ध षड्यंत्र हो सकता है किन्तु आप स्वयं को निकाल ले जायेंगे | लम्बी यात्रा भी संभव है | अनैतिक सेक्स सम्बन्ध का लाभ भी आप ले सकते हैं |

धनु : नौकरी ढूंढ रहे लोगों को नयी नौकरी मिल सकती है | महिलाओं को विशेष रूप से लाभ रह सकता है | धन की आवक अच्छी बनी रहेगी | खर्चे अचानक आ सकते हैं | प्रेम संबध में अच्छी प्रगति होगी | आप दूसरों पर रौब ज़माने का प्रयत्न कर सकते हैं | निजी जीवन में अनबन रह सकती है |

मकर : मन में संगीत प्रेम रोमांस के भाव रहेंगे | किसी साथी की तलाश पूर्ण हो सकती है | नए दोस्त बनेंगे | निजी जीवन अच्छा रहेगा | आप सुख सुविधा पर दिल से खर्च करेंगे | आपमें दिखावे के प्रति रुझान जाग्रत हो सकता है | शारीरिक सम्बन्ध अधिक बार स्थापित करेंगे |

कुंभ :सेक्स के प्रति आपकी अधिक रूचि रहेगी | आप अनैतिक रूप से भी सेक्स सम्बन्ध बना सकते हैं | भाग्य उतना साथ नहीं देगा किन्तु आपका अहित भी नहीं होगा | मान सम्मान पर ठेस पहुँच सकती है इसका ध्यान रखना होगा | आने वाले समय में कोई नया काम शुरू कर सकते हैं |

मीन : स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या हो सकती हैं | कानूनी मसलों में हानि हो सकती है | आप नए सामान की खरीद कर सकते हैं | लम्बी यात्रा आदि पर जा सकते है | किसी विपरीत लिंग के जातक से सहयोग मिल सकता है | नौकरी बदल सकते हैं |

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सचिन मल्होत्रा, ज्योतिषशास्त्री @ नवीन समाचार, 21 फरवरी 2019। कश्मीर के पुलवामा में एक आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों शहीद हो गए। इस बात को लेकर पूरे देश में आक्रोश है और हर तरफ से जंग की आवाज बुलंद की जा रही है। जनता और शहीदों के परिजन पाकिस्तान को इस हमले के लिए सबक सिखाने की मांग कर रहे हैं। देश में आक्रोश का माहौल देखकर पाकिस्तान डरा हुआ है और सीमा के पास बने अपने लौंचिंग पैड से आतंकियों को कहीं और शिफ्ट कर चुका है। लेकिन क्या कूटनीति और राजनीति अभी युद्ध की इजाजत देती है ? आइए देखें ज्योतिषशास्त्र की गणना के अनुसार भारत पाक के बीच बिगड़ते संबंध क्या युद्ध तक पहुंच पाएंगे…

ग्रहों की चाल साल 2020 के मार्च से जून के मध्य तक भारत और पाकिस्तान के बीच किसी सीमित युद्ध की आशंका दिखा रही है। इसमे चीन पाकिस्तान का खुलकर सहयोग कर सकता है। पूर्वी और पश्चिमी मोर्चे पर होने वाले इस युद्ध में भारत को भी बड़ी क्षति पहुंचने की आशंका है।आजादी के समय 15 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि में आजाद हुए भारत की कुंडली वृषभ लग्न की है, जहां वर्तमान में चंद्रमा में गुरु की दशा चल रही है, जिसका प्रभाव इस वर्ष दिसंबर के मध्य तक रहेगा। गुरु लाभ और अष्टम भाव के स्वामी होकर शत्रुओं के छठे भाव में तुला राशि में बैठा है। गुरु की इस अंतर्दशा में भारत राजनीतिक मंचों पर विश्व-बिरादरी के सामने पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर बेनकाब करने में सफल होगा। साथ ही भारत को पाकिस्तान में छिपे बैठे आतंकी सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाने में इस वर्ष सफलता हासिल को सकती है। 23 मार्च को मंगल के वृषभ राशि में प्रवेश करने के 15 दिनों के भीतर भारत की सेना पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक या किसी अन्य हमले में बड़े आतंकियों का सफाया कर सकती है। बाद में अप्रैल-मई में मंगल और शनि का समसप्तक योग तथा जुलाई और दिसंबर में पड़ रहे बड़े ग्रहण भारत और पाकिस्तान में तनाव को अपने चरम पर ले जाएंगे। अप्रैल, मई, जुलाई और दिसंबर महीनों में बड़े आतंकी हमले होने की आशंका रहेगी। इसके बाद चंद्रमा में शनि की विंशोत्तरी दशा में भारत और पाकिस्तान में साल 2020 के पहली छमाही में युद्ध की आशंका बन रही है।

पाकिस्तान पर 2020 में भारी पड़ेगा अष्टम शनि

आजादी के समय 14 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि कराची में आज़ादी की घोषणा करने वाले पाकिस्तान की कुंडली मेष लग्न की है, जहां युद्ध का कारक ग्रह मंगल पराक्रम के तीसरे भाव में चंद्रमा के साथ मिथुन राशि में बैठा है। चंद्रमा और मंगल की इस युति पर नवमेश गुरु की युद्ध स्थान यानी सप्तम भाव से दृष्टि पड़ रही है। पाकिस्तान की कुंडली में भूमि स्थान यानी चौथे भाव का स्वामी चंद्रमा अपने से बाहरवें घर में विनाश स्थान यानी अष्टम भाव के स्वामी मंगल के साथ बैठा है। इस योग के प्रभाव से 1971 में शनि की ‘साढ़ेसती’ की शुरुआत के दौरान हुए युद्ध में पाकिस्तान एक बार पहले टूट चुका है। अब साल 2020 में शनि के मकर राशि में आने पर अष्टम शनि के गोचर के चलते पाकिस्तान को एक और बड़ा झटका लगने का योग बन रहा हैं। शुक्र-गुरु और शुक्र-शनि की मारक भाव से संबंधित बुरी दशाओं और साल 2020- 2021 में चल रहे अष्टम शनि के बुरे गोचर के कारण पाकिस्तान के स्थायित्व को एक बड़ा खतरा नजर आ रहा है।

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ज्योतिर्विद दयानंद शास्त्री @ नवीन समाचार, 19 फरवरी 2019। यह सच है कि ईश्‍वर सर्वव्यापी हैं और वे हमेशा सबका कल्याण ही करेंगे, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि दिशाओं के स्वामी भी देवता ही हैं। अत: आवश्यक है कि पूजा स्थल बनवाते समय भी वास्तु के कुछ नियमों का ध्यान रखा जाए।

वास्तु विज्ञान के अनुसार देवी-देवताओं की कृपा घर पर बनी रहे, इसके लिए पूजाघर वास्तुदोष से मुक्त होना चाहिए। वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार जिस घर या दुकान का पूजाघर वास्तुदोष के नियमों के विपरीत होता है, वहां ध्यान और पूजा करते समय मन एकाग्र नहीं रह पाता है। इससे पूजा-पाठ का पूर्ण लाभ नहीं मिलता है।

हर मकान या दुकान में पूजाघर जरूर होता है। घरों में तो पूजन कक्ष का होना और भी जरूरी है क्योंकि यह मकान का वह हिस्सा है जो हमारी आध्यात्मिक उन्नति और शांति से जुड़ा होता है। यहां आते ही हमारे भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हैं और नकारात्मकता खत्म हो जाती है, इसलिए अगर यह जगह वास्तु के अनुरूप होती है तो उसका हमारे जीवन पर बेहतर असर होता है।

कुछ वास्तु सिद्धांत हैं, जिनपर गौर करके हम अपने पूजाघर को अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं —

👉🏻👉🏻पूजा स्थल के लिए भवन का उत्तर पूर्व कोना सबसे उत्तम होता है। पूजा स्थल की भूमि उत्तर पूर्व की ओर झुकी हुई और दक्षिण-पश्‍चिम से ऊंची हो, आकार में चौकोर या गोल हो तो सर्वोत्तम होती है। ईशान कोण में बना पूजाघर सबसे ज्यादा शुभ होता है क्योंकि इस दिशा के अधिपति बृहस्पति हैं। उनके तत्वगत स्वभाव के अनुरुप आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार सबसे ज्यादा होता है। नतीजतन इस दिशा में बैठकर पूजा करने से र्इश्वर के प्रति ध्यान और समर्पण पूरी तरह से होता है।

👉🏻👉🏻 मंदिर की ऊंचाई उसकी चौड़ाई से दुगुनी होनी चाहिए. मंदिर के परिसर का फैलाव ऊंचाई से 1/3 होना चाहिए.

👉🏻👉🏻 मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा उस देवता के प्रमुख दिन पर ही करें या जब चंद्र पूर्ण हो अर्थात 5,10,15 तिथि को ही मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करें।

👉🏻👉🏻पूजाघर में कलश, गुंबद इत्यादि नहीं बनाना चाहिए।

👉🏻👉🏻पूजाघर में किसी प्राचीन मंदिर से लाई गई प्रतिमा या स्थिर प्रतिमा को स्थापित नहीं करना चाहिए।

👉🏻👉🏻पूजागृह के द्वार पर दहलीज़ ज़रूर बनवानी चाहिए। द्वार पर दरवाज़ा, लकड़ी से बने दो पल्लोंवाला हो तो अच्छा होगा। घर में बैठे हुए गणेशजी की प्रतिमा ही रखनी चाहिए।

👉🏻👉🏻 पूजाघर में यदि हवन की व्यवस्था है तो वह हमेशा आग्नेय कोण में ही किया जाना चाहिए।

👉🏻👉🏻पूजाघर में भूल से भी भगवान की तस्वीर या मूूर्ति आदि नैऋत्य कोण में न रखें। इससे बनते कार्यों में रुकावटें आती हैं।

👉🏻👉🏻पूजास्थल में कभी भी धन या बहुमूल्य वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए।

👉🏻👉🏻पूजाघर की दीवारों का रंग बहुत गहरा न होकर सफेद, हल्का पीला या हल्का नीला होना चाहिए।

👉🏻👉🏻 पूजाघर की फर्श सफेद अथवा हल्का पीले रंग की होना चाहिए।

👉🏻👉🏻 पूजाघर में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, सूर्य एवं कार्तिकेय का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।

👉🏻👉🏻 पूजाघर में गणेश, कुबेर, दुर्गा का मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।

👉🏻👉🏻 पूजाघर में हनुमानजी का मुख नैऋत्य कोण में होना चाहिए।

👉🏻👉🏻 पूजाघर में प्रतिमाएं कभी भी प्रवेशद्वार के सम्मुख नहीं होनी चाहिए।

👉🏻👉🏻मूर्ति के आमने-सामने पूजा के दौरान कभी नहीं बैठना चाहिए, बल्कि सदैव दाएं कोण में बैठना उत्तम होगा।

👉🏻👉🏻वास्तुशात्री पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं कि कभी भी आपके घर या दुकान में पूजाघर बीम के नीचे न हो और आप खुद भी बीम के नीचे बैठकर पूजा न करें। बीम के नीचे बैठकर पूजा करने से एकाग्रता भंग हो जाती है तथा पूजा का शुभफल मिलने की बजाय रोग आदि की आशंका बढ़ जाती है।

👉🏻👉🏻पूजाघर के निकट एवं भवन के ईशान कोण में झाड़ू या कूड़ादान आदि नहीं रखना चाहिए।

👉🏻👉🏻 शयनकक्ष में पूजा स्थल नहीं होना चाहिए. अगर जगह की कमी के कारण मंदिर शयनकक्ष में बना हो तो मंदिर के चारों ओर पर्दे लगा दें। इसके अलावा शयनकक्ष के उत्तर पूर्व दिशा में पूजास्थल होना चाहिए । यदि परिस्थितिवश ऐसा करना ही पड़े तो वह शयनकक्ष विवाहितों के लिए नहीं होना चाहिए। यदि फिर भी जगह की कमी के कारण शयन कक्ष में ही पूजाघर बनाना पड़े तो ध्यान रखें कि बिछावन इस प्रकार हो ताकि सोते समय भगवान की ओर पैर नहीं हो।

👉🏻👉🏻पूजाघर के आसपास, ऊपर या नीचे शौचालय वर्जित है. पूजाघर में और इसके आसपास पूर्णत: स्वच्छता तथा शुद्वता होना अनिवार्य है। रसोई घर भूलकर भी शौचालय अथवा पूजाघर के पास न बनाएं। घर में सीढ़ियों के नीचे पूजाघर नहीं होना चाहिए।

👉🏻👉🏻पूजन कक्ष में मृतात्माओं का चित्र वर्जित है. किसी भी श्रीदेवता की टूटी-फूटी मूर्ति या तस्वीर व सौंदर्य प्रसाधन का सामान, झाडू व अनावश्यक सामान नही होना चाहिए।

👉🏻👉🏻पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि यदि एक ही घर में कई लोग रहते हैं तो अलग-अलग पूजाघर बनवाने की बजाए मिल-जुलकर एक पूजाघर बनवाएं। एक ही मकान में कई पूजाघर होने पर घर के सदस्यों को मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भगवान को एक-दूसरे से कम से कम 1 इंच की दूरी पर रखें। अगर घर में एक ही भगवान की दो तस्वीरें हों तो दोनों को आमने-सामने बिलकुल न रखें। एक ही भगवान के आमने-सामने होने पर घर में आपसी तनाव बढ़ता है।

👉🏻👉🏻यदि सम्भव हो तो पूजा घर की फर्श बनवाने से पहले जमीन पर गाय के गोबर की एक परत पहले लगवाने का प्रयास करना चाहिए। विदित हो कि गाय का गोबर तमाम तरह के वास्तुदोष को दूर कर सुख-समृद्धि लाता है।

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ज्योतिषाचार्य दयानंद शास्त्री @ नवीन समाचार, 16 फरवरी 2019। वर्तमान में भारत-पाक युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं व पाक के आका परमाणु युद्ध की धमकी दे रहे हैं, ऐसी स्थिति में युद्ध की आशंका है या नहीं? इसी विषय पर आधारित ज्योतिषीय विश्लेषण प्रस्तुत है।

भारत की कुंडली वृषभ लग्न की है जिसके स्वामी शुक्र हैं। वृषभ लग्न व लग्नेश शुक्र दोनों को ही स्वभाव से शांत माना जाता है। इसी कारण भारत का स्वभाव भी क्षमाशील है। भारत उग्रता का परिचय बहुत ही अति होने के बाद देता है। इसके विपरीत पाकिस्तान की कुंडली को देखा जाये तो वह मेष लग्न की बनती है जिसके स्वामी मंगल हैं। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि मेष लग्न व लग्नेश मंगल दोनों की प्रकृति में आक्रामकता निहित होती है। मंगल ग्रह को युद्ध का कारक माना जाता है। इसलिये उग्रता पाकिस्तान के स्वभाव में ही है और अपने स्वभाव को कोई त्याग नहीं सकता। भारत की नरमी और पाक की गरमी को आप भारत-पाक के संबंधों में शुरुआत से ही देख सकते हैं।

हालांकि पाकिस्तान, भारत के साथ निर्णायक युद्ध नहीं चाहता है वह तो छद्म युद्ध के माध्यम से कश्मीर को जैसे तैसे भारत से हासिल करना चाहता है। पाकिस्तान, भारत को एटम बम की धमकी भी दे चुका है। हालांकि वह जानता है कि वह ऐसा करने में सक्षम नहीं है। यदि भारत ने कोई हमला किया तो पाकिस्तान भारत से बदला लेने के लिए देश में बड़े पैमाने पर आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे सकता है जिसके जवाब में भारत, पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा युद्ध कर सकता है। भारत के खिलाफ रसायनिक हथियार का प्रयोग भी कर सकता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार पाकिस्तान की कुंडली में चौथे घर में सूर्य, शनि, शुक्र, बुध व चंद्रमा 5 ग्रहों का जमावड़ा होने के कारण पाकिस्तान न खुद शांत रहेगा और न ही पड़ोसी को शांत रहने देगा। पाक की कुंडली में कुलीक नामक कालसर्प योग अधिक पीड़ादायक होने से उसे जीवन भर संघर्ष, धन की हानि होगी तथा वह भारत के लिए सिरदर्द बना रहेगा। चीन की कुंडली में मकर लग्र तथा सप्तम स्थान में नीच का मंगल होने के कारण अपनी षड्यंत्रकारी कुचालों से भारत को नुक्सान व आक्रमण की तैयारी में लगा रहेगा तथा अंत में निर्णायक जंग करके ही दम लेगा।

पाकिस्तान की कुण्डली में मौजूद विष योग के कारण भारत को विश्वास घात का सामना करना होगा। भारत के साथ हो सकता है कि इस बार भी पाकिस्तान विश्वासघात करे। इसलिए भारत को इस बार दुश्मन की चाल को समझ कर उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद करना जरूरी होगा तभी भारत का भविष्य सुरक्षित रह पाएगा।

ज्योतिष की दृष्टि से युद्ध की पहल पाकिस्तान करेगा और इस जंग में भारत की कुंडली में शत्रु स्थान पर देवगुरु बृहस्पति बैठे हैं, जिसके कारण संसार के अंदर शत्रु पक्ष में भारत का मान, गौरव, दबदबा व बड़प्पन ऊंचा रहेगा। वर्तमान में भारत की कुंडली में कर्क राशि का चंद्रमा तीसरे भाव में होने के कारण तथा चंद्रमा की महादशा होने के कारण भारत का समय अच्छा चल रहा है। यह समय पाकिस्तान का पोस्टमार्टम करने के लिए उचित है। युद्ध होने पर पाकिस्तान के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। भारतवर्ष के लिए मूलांक वाले वर्ष शुभ है। इस समय जीत का डंका निश्चित रूप से बजेगा। 2020 तक पाकिस्तान के तीन टुकड़े हो जाना चाहिए। ऐसे में पाकिस्तान भारत के खिलाफ रसायनिक हथियार का इस्तेमाल करेगा।

भारत के राशि स्वामी चंद्रमा से पाकिस्तान के राशि स्वामी बुध की शत्रुता :

लग्न ही नहीं यदि राशिनुसार भी आकलन किया जाये तो भारत की राशि कर्क है जिसके स्वामी चंद्रमा हैं। चंद्रमा को भी शीतलता व शांति का प्रतीक माना जाता है। भारत तो हमेशा से ही शांतिदूत के रूप में जाना जाता रहा है। वहीं पाकिस्तान की राशि मिथुन है जिसके स्वामी बुध हैं। बुध का स्वयं अपना कोई अस्तित्व नहीं होता वह हमेशा दूसरों पर आश्रित रहता है और उनकी सोच से अपना कार्य करता है। लेकिन चंद्रमा से बुध का संबंध शत्रुवत माना जाता है। हालांकि पौराणिक कथाओं में बुध को चंद्रमा का पुत्र माना जाता है और चूंकि चंद्रमा ने बुध की मां तारा से छल किया इस कारण बुध का उससे शत्रुवत सबंध है। यही कारण है कि भारत से पाकिस्तान का संबंध शत्रुता का रहता है।

इस प्रकार जन्म कुंडली के अनुसार लग्न, लग्नेश, राशि आदि के आकलन से भारत और पाकिस्तान का संबंध आरंभ से ही शत्रुवत रहा है। भारत की राशि से पाकिस्तान की राशि 12वीं होने के कारण आपसी प्यार-प्रेम की कमी लगातार दोनों देशों में बनी रहती है। ग्रहों के बीच मैत्री न होने से भी दोनों देश एक दूसरे को राजनीतिक रूप से हमेशा नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते हैं। पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि यदि वर्ष 2019 में ग्रहों की दशानुसार आकलन करें तो भारत-पाकिस्तान के बीच 2019 में किसी बड़े युद्ध की संभावनाएं तो कम हैं लेकिन सीमाओं पर स्थिति तनावपूर्ण व छिटपुट घटनाएं देखने को मिल सकती हैं।

केतु व शनि का साथ बिगड़ सकते हैं हालात :

वर्ष का आरंभ कन्या लग्न व तुला राशि में हो रहा है। वर्ष लग्न स्वामी व पाकिस्तान की राशि के स्वामी बुध हैं जो वर्ष लग्न से नव वर्ष आगमन के समय तीसरे स्थान में गुरु के साथ गोचर कर रहे हैं वहीं भारत की कुंडली में लग्न व 2019 की वर्ष राशि स्वामी शुक्र चौथे स्थान में विराजमान हैं। वर्ष की शुरुआत सौहार्दपूर्ण रहने के आसार हैं। हालांकि भारत को लगातार सचेत रहने की आवश्यकता बनी रहेगी। नव वर्ष की शुरुआत खुशहाल हो इसके लिये भारत में कुछ स्थानों पर चौकसी भी बढ़ाई जा सकती है। हालांकि बहुत ज्यादा चिंताजनक स्थिति इस समय नहीं कही जा सकती लेकिन मार्च में राहू भारत की राशि से निकल कर राशि से 12वें स्थान में चले जायेंगें। इस समय अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर माहौल भारत के पक्ष में बन सकता है। रक्षा बजट भी भारत को बढ़ाने की आवश्यकता पड़ेगी। हालांकि इसी समय केतु का शनि के साथ आना रिश्तों में कड़वाहट लायेगा। आपसी द्वंद और बढ़ने के आसार बन सकते हैं। अप्रैल से लेकर अगस्त के बीच बृहस्पति व शनि के वक्री होने के कारण विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता दोनों देशों को होगी। इस समय परिस्थितियां तनावपूर्ण हो सकती हैं। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी घटना को अंजाम देने के प्रयास भी इस समय हो सकते हैं। इसके अलावा समय दोनों देशों में सौहार्द बढ़ाने के लिये प्रयास किये जाने के संकेत कर रहा है।

निष्कर्ष :

भारत, चीन व पाकिस्तान की कुंडलियों का विवेचन करने से पता चलता है कि चीन व पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक जंग लडऩी ही होगी, क्योंकि भारत की कुंडली में तीसरे घर में सूर्य, बुध, शुक्र, शनि एवं चंद्रमा 5 ग्रहों की युति तथा कालसर्प दोष के कारण भारत को पड़ोसी देशों से विश्वासघात का सामना करना पड़ेगा। तीसरा घर साहस व पड़ोसी का भी होता है। भारत की कुंडली में 5 ग्रहों के योग के कारण संतुलन में कमी रहती है। पड़ोसी देशों से समस्याएं आती हैं। नव विक्रम संवत् 2076 की वर्ष प्रवेश कुंडली के अनुसार, भारत सहित भारतीय उपमहाद्वीप के कई देशों में काफी उथल-पुथल की स्थिति देखी जायेगी।अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से भी विश्व अर्थव्यवस्था काफी नाजुक दौर से गुजरेगी। नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार अपने आंतरिक विवादों के कारण परेशान रहेंगे । सरहदों पर सैनिक-हलचल बढ़ा रहेगा।

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नवीन समाचार नैनीताल 10 फरवरी 2019। सरस्वती पूजा इस साल दो दिन मनाया जा रहा है इसकी वजह यह है कि माघ शुक्ल पंचमी यानी बसंत पंचमी 2 दिन यानी 9 और 10 फरवरी को है। देश के कुछ भागों में चतुर्थी तिथि 9 तारीख को दोपहर से पहले ही समाप्त हो जा रही है और पंचमी तिथि शुरू हो रही है और 10 तारीख को पंचमी तिथि 2 बजकर 9 मिनट तक रहेगी।

पंचांग की गणना के अनुसार देश के उत्तर पश्चिमी भागों में 9 फरवरी को पूर्वाह्न के पूर्व पंचमी आरंभ हो जाने से यहां सरस्वती पूजन 9 तारीख को करना शास्त्रानुकूल रहेगा। जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में यह पर्व 10 फरवरी को मनाना जाना शास्त्र के अनुकूल रहेगा।

इसकी वजह यह है कि यहां 9 तारीख को दोपहर के बाद यहां पंचमी तिथि शुरू होगी। शास्त्रों में पूर्वाह्न से पूर्व सरस्वती पूजन करने का विधान बताया गया है। उत्तर पूर्वी भारत में सरस्वती पूजा खूब धूम-धाम से मनाया जाता है। यहां 10 तारीख को सुबह 6 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक सरस्वती पूजन करने का शुभ मुहूर्त रहेगा।

सरस्वती पूजा विधि मंत्र सहित विस्तार सेः-

मां सरस्वती की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखकर उनके सामने धूप-दीप, अगरबत्ती, गुगुल जलाएं जिससे वातावरण में सकारात्मक उर्जा का संचार हो और आस-पास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाए।

इसके बाद पूजा आरंभ करें। पहले अपने आपको तथा आसन को मंत्र से शुद्ध करें- “ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥” इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पीले फूल से छींटें लगाएं फिर इस मंत्र से आचमन करें – ऊं केशवाय नम:, ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें- ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

शुद्धि और आचमन के बाद अपने माथे पर चंदन लगाना चाहिए। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें ‘चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।’

अब पूजन के लिए संकल्प करें। हाथ में तिल, फूल, अक्षत मिठाई और फल लेकर ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये।’ इस मंत्र को बोलते हुए हाथ में रखी हुई सामग्री मां सरस्वती के सामने रखें। अब गणपति की पूजा करें।

गणपति पूजन विधि

हाथ में फूल लेकर गणपति का ध्यान करें। मंत्र पढ़ें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। हाथ में अक्षत लेकर गणपति जी का आह्वान करें ‘ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। इतना कहकर पात्र में अक्षत रखें।

जल लेकर बोलें- एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:। रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और विल्बपत्र गणेश जी को चढ़ाएं। गणेश जी को पीले वस्त्र चढ़ाएं। इदं पीत वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।

गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ाएं- इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:

गणपति पूजन की तरह अब सूर्य सहित नवग्रहों की पूजा करें। गणेश के स्थान पर नवग्रहों के नाम लें।

कलश पूजन विधि:-

घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें। कलश के गले में मोली लपेटें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का कलश में आह्वान करें:- ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)

इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी तरह से वरूण और इन्द्रादि देवताओं की पूजा करें।

सरस्वती पूजन आरंभः –

सरस्वती ध्यान मंत्र-
सबसे पहले ध्यान मंत्र माता सरस्वती का ध्यान करें-
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।

हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।

देवी सरस्वती की प्रतिष्ठा करेंः-
हाथ में अक्षत लेकर बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः सरस्वती देव्यै इहागच्छ इह तिष्ठ। इस मंत्र को बोलकर अक्षत छोड़ें। इसके बाद जल लेकर ‘एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ श्री सरस्वतयै नमः।।

इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, सरस्वतयै नमो नमः।। ॐ सरस्वतयै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’ इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब सरस्वती माता को इदं पीत वस्त्र समर्पयामि कहकर पीला वस्त्र पहनाएं। प्रसाद अर्पित करें “इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं सरस्वतयै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि” बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं सरस्वतयै नम:।

इसके बाद पान सुपारी चढ़ाएं: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि। अब एक फूल लेकर सरस्वती देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं सरस्वतयै नम:। इसके बाद एक फूल लेकर उसमें चंदन और अक्षत लगाकर किताब कॉपी पर रखें।

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नवीन समाचार नैनीताल 9 फरवरी 2019। सनातन धर्म को जीवन जीने की पद्धति कहा गया है। अब हममें से ज्यादातर लोग सनातन धर्म को हिंदू धर्म के नाम से जानते हैं। हिंदू धर्म में जिन मान्यताओं का अनुसरण किया जाता रहा है या जिन्हें जीवन के लिए बेहद उपयोगी माना गया है, उन्हें आस्था के साथ जोड़कर प्रचारित किया गया। इसका कारण यह बताया जात है कि ईश्वर से जुड़ी बातें होने के कारण ज्यादातर लोग इन्हें बड़ी सरलता से जीवन में उतार लेते हैं। इन्हीं में से एक है हाथ में कलावा या मौली बांधना। क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदू धर्म में किसी भी देवता की पूजा या अनुष्ठान हो, हाथ में मौली क्यों बांधी जाती है? आइए, जानते हैं…

पूजा में मौली के 3 उपयोग

पूजा या अनुष्ठान करते समय मौली का उपयोग मुख्य रूप से तीन प्रकार से किया जाता है। पहला उपयोग होता है, भगवान को कलश स्थापना के समय कलश और नारियल पर बांधने में। दूसरा उपयोग होता है भगवान को वस्त्र के रूप में अर्पित करने में और तीसरा उपयोग होता है पवित्र धागे के तौर पर कलाई में बांधने के लिए।

क्यों बांधते हैं मौली?

बात सिर्फ पूजन की करें तो मौली को एक पवित्र धागा माना जाता है और इसे आपके हाथ में इसलिए बांधा जाता है ताकि आपके मन में सात्विक विचारों में वृद्धि हो। कलाई में बंधी हुई मौली या कलावा हमारे मन पर बहुत प्रभाव डालते हैं। क्योंकि कलाई पर बार-बार नजर पड़ती है और इससे हम परमात्मा के साथ सीधा जुड़ाव अनुभव करते हैं। इस अनुभव के कारण हमारे अंदर सकारात्मकता में वृद्धि होती है।

पॉजिटिव एनर्जी का फ्लो

कलाई में बंधी मौली द्वारा परम सत्ता से जुड़ाव अनुभव करने के कारण हमारे अंदर जिस सकारात्मकता की वृद्धि होती है, वह हमारे मन और आत्मा को प्रसन्न रखती है। इस कारण हमारे अंदर साकारत्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। हमारे तनाव और उदासी में कमी आती है, इससे हम अपने सभी कार्य सही तरीके से कर पाते हैं। क्या आपने सोचा है कभी इस तरह से? कि एक छोटी-सी मौली हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है

मौली और आयुर्वेद

अगर आप कभी भी किसी वैद्य या आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास अपना उपचार कराने के लिए गए होंगे तो आपको पता होगा कि वह सबसे पहले व्याधिग्रस्त व्यक्ति की नाड़ी चेक करते हैं। अर्थात वे आपकी कलाई की एक नर्व को कुछ सेकंड के लिए पकड़ते हैं और काउंटिंग चेक करते हैं कि क्या आपकी नाड़ी ठीक चल रही है या नहीं। जिस जगह से वैद्य नाड़ी चेक करते हैं, उसी जगह पर कलावा बांधा जाता है। यह कलावा हमारी नाड़ी पर जरूरी दबाव बनाकर रखता है।

मौली बांधने का लाभ

मौली या कलावा बांधने से कलाई की नाड़ी पर जो हल्का दबाव बनता है, वह वात, पित्त और कफ को नियंत्रित करता है। आयुर्वेद के अनुसार, हमारे शरीर में कोई भी व्याधि बात, पित्त और कफ की स्थिति में समस्या होने के कारण उत्पन्न होती है।

मौली और आस्था

मौली को रक्षासूत्र भी कहा जाता है। हो सकता है कि इसका यह नाम स्वास्थ्य की रक्षा के कारण रखा गया हो। अगर मौली को कलाई पर बांधने की प्रथा के प्रारंभ की बात करें तो यह सनातन परंपरा का अभिन्न अंग रहा है। सनातन परंपरा अर्थात वह पद्धति, जो सृष्टि के आरंभ काल से चली आ रही है। रक्षाबंधन के रक्षा सूत्र के तार भी इसी मौली से जुड़े हैं। इतना ही नहीं हम अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हुए धार्मिक स्थलों और पवित्र माने जानेवाले पौधों में भी रोली बांधते हैं।

यह भी पढ़ें : आज मौनी अमावस्या पर बन रहा है दुर्लभ संयोग, यह करने से मिलेगा पुण्य, और यह बिलकुल न करें

नवीन समाचार, नैनीताल, 3 फरवरी 2019। माघ मास में पड़ने वाली मौनी अमावस्या सोमवार 4 फरवरी को है। इस दिन सोमवती अमावस्या का भी दुर्लभ संयोग बन रहा है। श्रद्धालु मौन व्रत धारण कर पवित्र नदियों और संगम में स्नान करते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस दिन अन्न, वस्त्र, धन, गो और भूमि का दान करने से सतयुग के तप के बराबर पुण्य मिलता है। वहीं पितरों का तर्पण करने से उन्हें शांति मिलती है।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार मौनी अमावस्या रविवार रात 11 बजकर 52 मिनट पर शुरू होगी, जो पांच फरवरी रात 2 बजकर 33 मिनट तक रहेगी। उनका कहना है कि इस दिन गंगा जल अमृत में बदल जाता है। इसलिए गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें। सूर्य को लाल चंदन से अर्घ्य दें। पीपल के पेड़ की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं 108 बार तुलसी की परिक्रमा करने से यश मिलता है।

मौनी अमावस्या के दिन यह भूलकर भी न करें :

  • मौनी अमावस्या के दिन सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए। जल्दी उठकर पूजा पाठ करना चाहिए। अमावस्या की रात श्मशान घाट या उसके आस-पास नहीं घूमना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठें और मौन रहते हुए पानी में काले तिल डालकर स्नान करें। यह शुभ होता है।
  • इस दिन स्त्री-पुरुष को आपस में शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए। मौनी अमावस्या पर यौन संबंध बनाने से पैदा होने वाली संतान को जीवन में कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए इन चीजों से जितना हो सके बचना चाहिए। 
  • मौनी अमावस्या का दिन देवता और पितरों का माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों को खुश करने के लिए जहां तक हो सके अपने गुस्से पर काबू रखें। किसी से बिना वजह गाली गलौज मारपीट न करें। शांत रहकर भगवान का नाम लें।
  • इस दिन गरीब या जरूरतमंद इंसान को दान करना और उनकी मदद करना शुभ होता है। इसलिए कोई भी ऐसा इंसान दिखे तो उनका अपमान न करें। साथ ही घर के बड़े बुजुर्गों का अपमान भी न करें। ऐसा करने से शनिदेव नाराज हो जाते हैं। 
  • कहा जाता है कि इस दिन बरगद, मेहंदी और पीपल के पेड़ के नीचे जाने से बचना चाहिए। मान्यता है कि इस दिनों पेड़ों पर आत्माओं का वास रहता है और अमावस्या के दिन वो और भी शक्तिशाली हो जाती हैं। इसलिए ऐसे पेड़ों के नीचे न जाएं। 
प्राकृतिक तौर पर ‘ऊं’ अथवा त्रिशूल जैसी आकृति युक्त नींबू।

नवीन समाचार, नैनीताल, 31 जनवरी 2019। कण-कण में देवताओं का वास कही जाने वाली देवभूमि के सरोवरनगरी नैनीताल में बृहस्पतिवार को एक पहाड़ी नींबू का दाना खासे चर्चा के केंद्र में रहा। निकटवर्ती गाँव बजून में एक पेड़ पर लगे इस नींबू के इस दाने में कई धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को पवित्र हिंदू चिन्ह ‘ॐ’ तो अन्य को महादेव शिव का प्रिय अस्त्र व धार्मिक चिह्न ‘त्रिशूल’ नजर आया। अलबत्ता नींबू के इस दाने में प्राकृतिक तौर पर त्रिशूल अथवा अधूरे ‘ॐ’ जैसी आकृति नजर आ रही थी। लोग इसे धार्मिक आस्था से भी जोड़ रहे हैं, और कोई चमत्कार बता रहे हैं। वहीं अन्य लोगों का कहना है कि कभी-कभार फलों, सब्जियों अथवा जीव-जंतुओं में भी ऐसे किसी धार्मिक चिन्ह जैसी आकृतियां प्राकृतिक तौर पर बन जाती हैं, और कई बार मन-मस्तिष्क में मौजूद धार्मिक आस्था की वजह से भी ऐसे चिन्ह मान लिये जाते हैं।

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