प्रो. धामी को दिया गया राष्ट्रीय विधि विवि के सीईओ का जिम्मा
प्रो. धामी को कुमाऊं विवि का कुलपति बनने के कार्यकाल में मिली किसी विविद्यालय की चौथी जिम्मेदारी
नैनीताल (एसएनबी)। आखिर अध्यादेश के पांच साल बाद जगी उत्तराखंड का राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय बनने की उम्मींद बन गयी है। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी को प्रस्तावित राष्ट्रीय विधि विविद्यालय के विशेष कार्याधिकारी का दायित्व दिया गया है। यह प्रो. धामी को कुमाऊं विवि का कुलपति बनने के कार्यकाल में मिली किसी विविद्यालय की चौथी जिम्मेदारी है। इससे पूर्व उन्हें कुमाऊं विवि का दायित्व रहते पंतनगर विवि के कुलपति का भी अतिरिक्त दायित्व दिया गया था, जबकि वह वर्तमान में अल्मोड़ा में प्रस्तावित आवासीय विवि की स्थापना का दायित्व का भी पूरा दायित्व संभाले हुए हैं, जबकि अब उन्हें एक अन्य, राष्ट्रीय विधि विवि की जिम्मेदारी दी गई है। प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा एस रामास्वामी की ओर से इस बाबत जारी कार्यालय ज्ञाप में कहा गया है कि प्रो. धामी कुमाऊं विवि का दायित्व देखते हुए राष्ट्रीय विधि विवि की स्थापना से संबंधित समस्त कायरे का संपादन भी करेंगे। उल्लेखनीय है कि देश का 15वां राष्ट्रीय विधि विवि भवाली में प्रस्तावित है। नैनीताल में उत्तराखंड उच्च न्यायालय होने के मद्देनजर इसकी काफी आवश्यकता महसूस की जा रही है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय विधि विवि का शासनादेश चार नवम्बर 2010 में जारी हा गया है।
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के लिए न्यायालय ने नियुक्त किया ओएसडी
-नैनीताल जनपद के भवाली में होना है स्थापित, 2010 में जारी हुआ था असाधारण गजट व अध्यादेश
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड राज्य को चार वर्ष पूर्व केंद्र सरकार से स्वीकृति के बावजूद स्थापना की बाट जोह रहे आईएमए या केंद्रीय विवि सरीखा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ऑफ उत्तराखंड) के तोहफे को अमली जामा पहनाने के लिए विशेष कार्याधिकारी नियुक्त कर दिया है। शुक्रवार(4th October 2015) को मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता डा. भूपाल सिंह भाकुनी व एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता पूर्व सांसद डा. महेंद्र पाल की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके बिष्ट एवं न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की संयुक्त खंडपीठ ने अपर शिक्षा निदेशक उच्च शिक्षा अजय अग्रवाल को भवाली में प्रस्तावित राष्ट्रीय विधि विवि का विशेष कार्याधिकारी नियुक्त कर दिया है। श्री अग्रवाल से विवि की स्थापना के लिए जमीन अधिगृहीत करने सहित इसकी स्थापना के लिए अन्य जरूरी जिम्मेदारियां निभाने को कहा गया है। इसी मामले में एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता पूर्व सांसद डा. महेंद्र पाल ने भी जल्द राष्ट्रीय विधि विवि की स्थापना के लिए उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है। संयुक्त खंडपीठ ने दोनों याचिकाओं को एक साथ संबद्ध करते हुए मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 दिसंबर की तिथि नियत कर दी है।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने देश के सभी राज्यों में एक राष्ट्रीय विधि विवि खोलने का इरादा जताया था, लेकिन उत्तराखंड सति कुछ राज्यों को ही यह स्वीकृत हो पाए थे। तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा राज्य में निशंक सरकार के कार्यकाल में 2010 में असाधारण गजट एवं अध्यादेश जारी हो जाने के चार वर्ष में राज्य में चार मुख्यमंत्री बदल गए लेकिन विधि विवि की स्थापना तो दूर इसका जिक्र भी कहीं नहीं है। उत्तराखंड ने शुरुआती चरण में इस तोहफे को हाथों हाथ लिया, और राज्य विधानसभा में इसका प्रस्ताव पारित होने के उपरांत एक नवंबर 2010 को तत्कालीन राज्यपाल मार्गरेट आल्वा की स्वीकृति के बाद राज्य सरकार ने चार नवंबर 2010 को इस बाबत असाधारण गजट भी जारी कर दिया था। इसे नैनीताल जनपद के भवाली में उजाला (उत्तराखंड न्यायिक एवं विधिक अकादमी) के पास उपलब्ध आठ एकड़ में से करीब पांच एकड़भूमि में स्नातक, डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट कोर्स की पढ़ाई की सुविधा के साथ स्थापित किए जाने का प्रस्ताव था। इसकी स्थापना की तैयारी चल ही रही थी कि राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया और निशंक की जगह खंडूड़ी सरकार अस्तित्व में आ गई, और विस चुनावों का बिगुल बज उठा। आगे सत्ता के भाजपा से कांग्रेस के हाथों में आने तथा कांग्रेस राज में भी दो मुख्यमंत्री बदल जाने के घटनाक्रमों के बीच राज्य को मिला यह विवि एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया। गौरतलब है कि नैनीताल में राज्य का उच्च न्यायालय होने के आलोक में पास ही स्थित भवाली में इसकी स्थापना के स्थापित होने पर राज्य में उच्च स्तरीय विधि छात्रों, विशेषज्ञों के तैयार होने और इस तरह राज्य में न्यायिक व विधिक ज्ञान संपदा व दक्षता में वृद्धि होने की उम्मीद की जा रही थी।
इधर राष्ट्रीय विधि विवि की पैरवी कर रहे उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता डा. भूपाल भाकुनी ने बताया कि उन्होंने इस बाबत मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था, और पत्र की प्रति उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजी थी, जिसे लेकर उच्च न्यायालय ने गंभीर रुख अपनाते हुए पत्र को ही जनहित याचिका के रूप में लेते हुए राज्य सरकार को छह सप्ताह के भीतर शपथ पत्र दायर करने के आदेश दिए हैं कि क्यों चार वर्ष के भीतर इसकी स्थापना के लिए कदम आगे नहीं बढ़ाए गए। डा. भाकुनी ने कहा कि उन्होंने भवाली में स्थान उपलब्ध न होने की स्थिति में भीमताल में बंद पड़ी औद्योगिक घाटी अथवा बंदी के कगार पर पहुंची एचएमटी घड़ी फैक्टरी रानीबाग या पंतनगर विवि में इस विधि विवि की स्थापना कराने के विकल्प भी सुझाए हैं।
स्थापित होने पर देश का 15वां विधि विवि होगा
यदि प्रदेश में राष्ट्रीय विधि विवि की स्थापना हो जाए तो उत्तराखंड इसे स्थापित करने वाला 15वां राज्य होगा। अभी देश में बंगलुरु, दिल्ली, हैदराबाद, भोपाल, कोलकाता, जोधपुर, रायपुर, गांधीनगर, लखनऊ, पटियाला, पटना, कोच्ची, उड़ीसा व नालसार में ही राष्ट्रीय विधि विवि स्थापित हैं।
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