दुनिया की ‘टीएमटी” में अपनी ‘टीएमटी” का ख्वाब भी बुन रहा है भारत



-30 मीटर की दूरबीन के निर्माण में महत्वपूर्ण सहयोगी है भारत
-इसके निर्माण के जरिए अपनी दूरबीन निर्माण की क्षमता बढ़ाना चाहता है देश
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, दुनिया की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी 30 मीटर (एक छोटे फुटबॉल स्टेडियम जितने बड़े) व्यास की दूरबीन-थर्टी मीटर टेलीस्कोप यानी टीएमटी के निर्माण में जुटे भारत के वैज्ञानिक इसके निर्माण के अनुभवों से अपनी 10 मीटर व्यास की दूरबीन (टेन मीटर टेलीस्कोप-टीएमटी) के लिए विशेषज्ञता जुटाने का ख्वाब भी बुन रहे हैं। बताया गया है कि केंद्र सरकार ने भारतीय वैज्ञानिकों के लिए 30 मीटर की दूरबीन में अपनी सहभागिता को मंजूरी ही इस शर्त के साथ दी है कि वह स्वयं में देश के लिए 10 मीटर की दूरबीन तैयार करने की विशेषज्ञता हासिल कर लें। इसके बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने टीएमटी के निर्माण में अपने हिस्से के लिए ऐसे कार्य ही चुने, जिनकी उन्हें अपनी टीएमटी बनाने में जरूरत होगी, और अभी तक उसमें देश की क्षमता बहुत कमतर थी।

Rashtriya Sahara, 07 November 2014

उल्लेखनीय है कि भारत 2007 से टीएमटी परियोजना से 10 फीसद भागेदारी के साथ जुड़ा है। बीती 24 सितंबर 2013 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से स्वीकृति मिलने के बाद टीएमटी के निर्माण की कवायद अब शुरू होने जा रही है। 2023 में दिल्ली से करीब 12,250 किमी दूर प्रशांत महासागर के होनोलूलू के पास मौनाकिया द्वीप समूह के ज्वालामुखी से निर्मित 13,803 फीट यानी करीब 4,207 मीटर ऊंचे पर्वत युक्त स्थान में लगने जा रही लगने वाली और करीब 13000 करोड़ रुपये की लागत इस परियोजना में भारत को करीब 1300 करोड़ रुपए खर्च होने हैं। भारत को टीएमटी के निर्माण में 492 प्राथमिक लेंसों में से 100 के हिस्सों को पॉलिश करने (सेगमेंट पॉलिशिंग) का अतिरिक्त कार्य भी मिला है, जिसके अनुभवों एवं तकनीकों को सेगमेंट पॉलिशिंग अनुभाग की चेयरपर्सन प्रो. जीसी अनुपमा आगे देश के लिए 10 मीटर की दूरबीन बनाने के लिए बड़ा उपयोगी साबित होने की उम्मीद कर रही हैं। भारत के लिए यह भी सौभाग्य रहा है कि उसे टीएमटी के निर्माण में लेंस के सबसे करीब के अवयव, इसे सहारने की एसेंबली और उसे नियंत्रित करने के सॉफ्टवेयर निर्मित करने की जिम्मेदारी मिली है, और उसके अपने हिस्से की 70 फीसद हिस्सेदारी हाई-टेक उपकरणों, सॉफ्टवेयरों और वैज्ञानिकों की सेवाओं के रूप में और 30 फीसद ही आर्थिक रूप में देनी है।
प्रो. अनुपमा ने बताया कि भारत की क्षमता अभी दो मीटर व्यास की दूरबीनों के निर्माण तक सीमित है। नैनीताल के देवस्थल में लगने जा रही देश व एशिया की सबसे बड़ी 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन के लिए भारत को बेल्जियस से लेंस का निर्माण कराना पड़ा है। अनुपमा ने बताया कि भारत को करीब 150 करोड़ रुपए की लागत युक्त टीएमटी के 100 षटकोणीय हिस्सों की जिस स्तर की सटीकता (एक्यूरेसी) युक्त पॉलिशिंग का काम मिला है, वैसी क्षमता भारत के पास नहीं है। जापान की अत्याधुनिक कैमरे बनाने वाली कैनन, निकॉन जैसी कंपनियां ही यह कार्य कर सकती हैं। लेकिन भारत ऐसी क्षमता हासिल करने के लिए इस कार्य के लिए नियुक्त अमेरिका की चार कंपनियों के साथ ऐसा अनुबंध करने की इच्छुक है, जिसके तहत लेंसों की पॉलिशिंग व निर्माण का कार्य बैंगलुरू की प्रयोगशाला परिसर में ही किया जा सके। इस कार्य में उनके सहयोगी जय पंत व कृष्णा रेड्डी आदि भी जुटे हुए हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी नहीं दूसरे नंबर की बड़ी दूरबीन होगी टीएमटी

नैनीताल। सामान्यतया टीएमटी को दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीन कहा जा रहा है। लेकिन यह सच नहीं है। दुनिया की सबसे बड़ी ३९ मीटर की दूरबीन यूरोपियन यूनियन द्वारा निर्मित की जा रही है, जबकि टेक्सास यूनिवर्सिटी के द्वारा एक २६ मीटर की दूरबीन-जॉइंट सेगमेंटेड टेलीस्कोप(जीएसटी) भी प्रस्तावित है। भारत को इन तीनों दूरबीनों में से एक को चुनना था। भारत ने बीच की यानी दुनिया की दूसरी बड़ी दूरबीन से जुड़ना पसंद किया, ताकि बड़ी दूरबीन से भी जुड़ें और इसकी असफलता की संभावना भी कम हो।

टीएमटी की अपनी जिम्मेदारियों के प्रोटोटाइप बना चुका है भारत

नैनीताल। भारत को टीएमटी के निर्माण में इसके लेंस को सहारने के महत्वपूर्ण अवयव से जुड़े अन्य तीन कार्य भी करने की जिम्मे दारी मिली है। देश के वैज्ञानिक इनके प्रोटोटाइप मॉ डलों के निर्माण की प्रक्रिया पूरी कर चुके हैं। इंडिया टीमटी के परियोजना निदेशक प्रो. ईर रेड्डी, सहायक निदेशक प्रो. रामप्रकाश और समन्वयक डा. शशि भूषण पांडे ने दो दिन की कार्यशाला के बाद बृहस्पतिवार को बताया कि अभी केंद्र सरकार से मिली केवल 16 करोड़ की सीड मनी (प्रारंभिक धनराशि) से ही भारतीय वैज्ञानिकों ने कुछ प्रोटोटाइप मॉडल बनाने का कार्य करीब तीन वर्ष पूर्व से पूरा कर लिया है। भारत को मिली जिम्मेदारी का सबसे महत्वपूर्ण अवयव ‘एज सेंसिंग सिस्टम’ (जो लेंस को सहारा देने के षटकोणीय हिस्सों के कोनों को अत्यधिक शुद्धता के साथ ऊपर नीचे होने का पता लगाएगा) का प्रोटोटाइप मॉडल परीक्षणों में सफल भी घोषित हो गया है, और अब इसके वास्तविकता में निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। इसके ‘एक्यूरेटर सिस्टम’ (जो ‘एज सेंसिंग सिस्टम से प्राप्त संदेशों के अनुसार लेंस को सुव्यवस्थित करेगा) के 10 प्रोटोटाइप मॉडल बेंगलुरू की कंपनी अवसराला टेक्नोलॉजीज द्वारा तैयार हो चुके हैं, तथा इनका अभी अमेरिका की जेट प्रोपेलर लैब (जेपीएल) में परीक्षण चल रहा है। प्रारंभिक संकेतों के अनुसार यह सफल घोषित किए गए हैं। आगे सही रिपोर्ट आने पर इसका निर्माण गोदरेज मुंबई व अवसराला टेक्नोलॉजीज बेंगलुरु द्वारा कराया जाएगा। वहीं तीसरे अवयव-सेगमेंट सपरे टिंग एसेंबली (एसएसए) का प्रोटोटाइप अगले दो माह में आने की उम्मीद है। इसके अलावा भारत को करीब 30 करोड़ रपए की लागत से टेलीस्कोप कंट्रोल सिस्टम के कई साफ्टवेयर तैयार करने का कार्य मिला है। इसका भी बीते फरवरी माह में पहला परीक्षण हो चुका है।

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