बारिश का पानी बचाने पर उत्तराखंड देगा ‘वाटर बोनस”


Pagot Fall

नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि उत्तराखंड स्वयं से इतर पूरे उत्तर भारत के पर्यावरण को प्रभावित करता है, लिहाजा केंद्र सरकार को उत्तराखंड के सरोकारों से जुड़कर गंगा को बचाने की शुरुआत करनी चाहिए। रविवार को नैनीताल क्लब के शैले हॉल में भारत विश्व प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित ‘हिमालयी क्षेत्रो में महिलाओं की पर्यावरण संबंधी चुुनौतियां” विषय पर आयोजित संगोष्ठी का शुभारंभ करने के उपरांत श्री रावत ने कहा कि उत्तराखंड चाल-खाल बनाकर बारिश के पानी को बचाने वाले लोगों को बचाए गए पानी का आंकलन कराकर ‘वाटर बोनस” देने की अनूठी पहल करने जा रहा है।

इसके अलावा अपनी भूमि पर चारे के पेड़ लगाने वाले लोगों को तीन वर्ष के उपरांत 300 रुपए प्रति पेड़ दिए जाएंगे। इसके लिए ग्रामीणों को वन विभाग के पास अपने लगाए पेड़ों का पंजीकरण कराना होगा। फलों के पेड़ लगाने पर भी सरकार उत्पादित फलों के विपणन का प्रबंध सुनिश्चित करेगी। इसके अलावा कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि उत्तराखंड में वनों के वाणिज्यिक दोहन के खिलाफ गौरा देवी द्वारा चिपको आंदोलन के जरिए उठाई गई आवाज को विपक्ष में होते हुए भी सबसे पहले इंदिरा गांधी ने सुना था, और इसके जरिए पर्यावरण संरक्षण को वैश्विक चिंता का विषय बनाया था।
श्री रावत ने कहा कि उत्तराखंड से ही गंगा, यमुना सहित उत्तरी भारत को सिंचित करने वाली पर्वतीय नदियां निकलती हैं। लिहाजा यदि उत्तराखंड पर्यावरणीय असंतुलन का शिकार हो गया तो पूरे उत्तर भारत को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। खुलासा किया कि प्रदेश के 12 फीसद गांव बादल फटने के खतरे में हैं, जबकि 350 से 400 गांवों को विस्थापित किए जाने की दरकार है। कहा कि इसके लिए लोगों को पौधे लगाने और पानी को रोकने का महत्व समझना होगा। एवं चाल-खाल बनाकर पानी बचाने पर वाटर बोनस” देने की अनूठी पहल करने जा रहा है। बताया कि पहाड़ों से बारिश का 90 फीसद पानी अपने साथ बहुमूल्य खनिजों को बहाकर मैदानों में ले आता है। इसे रोकना राज्य के लिए बड़ी चुनौती है।

मलस्यारों के बंजर होने और सीसी सड़कों ने बढ़ाया आपदा का खतरा

नैनीताल। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पहाड़ की बुनियादी बातों को छूते हुए बताया कि पहाड़ के गांवों में ऊंचाई पर होने वाले चौरस मलस्यार कहे जाने वाले खेत ग्रामीणों के पलायन की वजह से बंजर हो गए हैं, इसलिए अब उनसे पानी जमीन के भीतर रिसता नहीं है। दूसरी ओर गांवों में सीसी मार्ग बना दिए गए हैं, जो बारिश के दौरान नहर के रूप में कार्य करते हुए पानी को नीचे ले आते हैं, और यही नालों के रूप में गांवों में नुकसान पहुंचाते हैं, तथा पहाड़ की बहुमूल्य कृषि भूमि और खनिजों को बहाकर ले आते हैं।

बिना पर्वतीय महिलाओं के की गई पर्वतीय महिलाओं की चिंता, सीएम भी भूले

नैनीताल। भारत विश्व प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित हिमालयी क्षेत्रो में महिलाओं की पर्यावरण संबंधी चुनौतियां विषय पर आयोजित संगोष्ठी पूरी तरह बाहरी प्रदेश और मैदानी क्षेत्रों से आए लोगों द्वारा आयोजित की गई थी। संगोष्ठी में ज्ञापन देने आई एक पर्वतीय महिला तारा पांगती, कुछ कांग्रेसी महिला नेत्रियों और कांग्रेसी नेताओं की पत्नियों के अलावा कोई पर्वतीय महिला तथा यहां तक कि पर्वतीय मूल के विचारक भी मौजूद नहीं रहे। बावजूद संगोष्ठी में सीएम व नेता प्रतिपक्ष सहित अन्य नेताओं की उपस्थिति प्रश्नों के घेरे में रही। खास बात यह भी रही कि सीएम हरीश रावत भी संगोष्ठी में महिलाओं पर बोलना भूल ही गए। उनके करीब आधे घंटे के पर्यावरण पर केंद्रित संबोधन की केवल आखिरी लाइन में महिलाओं का जिक्र आ पाया। संज्ञान में लाये जाने पर नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने इसे दु:खद बताया। कहा कि भाजपा के वरिष्ठ नेता श्याम जाजू को भी कार्यक्रम में आना था, लिहाजा वह उनकी अगवानी करने के उद्देश्य से यहां पहुंचे। कार्यक्रम के समापन में राज्यपाल का आना भी प्रस्तावित था, पर वह नहीं आए।

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