भूकंप : नेपाल से कम खतरनाक नहीं उत्तराखंड


Rashtriya Sahara 26 April 15 Bhookamp-यहां अधिक लंबा है बड़े भूकंप न आने के कारण साइस्मिक गैप, इसलिए लगातार बढ़ती जा रही है बड़े भूकंपों की संभावना
-एमसीटी यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट पर है नेपाल में भूकंप का केंद्र, उत्तराखंड के धारचूला-मुन्स्यारी से होकर गुजरता है यही थ्रस्ट

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नवीन जोशी, नैनीताल। नेपाल के उत्तर पश्चिमी शहर लामजुम में शनिवार को आए रिक्टर स्केल पर 7.9 तीव्रता के भूकंप का भले उत्तराखंड के पहाड़ों पर सीधा फर्क न पड़ा हो, लेकिन इससे उत्तराखंड में भी लोग सशंकित हो उठे हैं। चिंताजनक यह भी है कि लोगों की आशंकाओं को वैज्ञानिक तथ्य भी स्वीकार कर रहे हैं। नेपाल और उत्तराखंड दोनों उस यूरेशियन-इंडियन प्लेट की बाउंड्री-मेन सेंट्रल थ्रस्ट यानी एमसीटी पर स्थित हैं, जो शनिवार को नेपाल में आये महाविनाशकारी भूकंप और पूरी हिमालय क्षेत्र में भूकंपों और भूगर्भीय हलचलों का सबसे बड़ा कारण है। और यही कारण है, जिसके चलते उत्तराखंड और नेपाल का बड़ा क्षेत्र भूकंपों के दृष्टिकोण से सर्वाधिक खतरनाक जोन-पांच में आता है। इसके अलावा भी उत्तराखंड में पिछले 200 वर्षों में बड़े भूकंप न आने के कारण साइस्मिक गैप अधिक लंबा है, और इसलिए यहां बड़े भूकंपों की संभावना लगातार बढ़ती जा रही है।

Uttarakhand Mapचिंता के बढ़ने का कारण इसलिये भी अधिक है कि उत्तराखंड में पिछले 200 वर्षों में इस श्रेणी के ‘ग्रेट अर्थक्वेक” नहीं आए हैं। इस क्षेत्र में सबसे बड़ा भूकंप 1905 में कांगड़ा (हिमांचल प्रदेश) में आया था। उत्तराखंड को इस लिहाज से ‘लॉक्ड सेगमेंट” भी कहा जाता है। भूवैज्ञानिक 1905 में कांगड़ा में आये भूकंप के बाद से उत्तराखंड में बड़ा भूकंप न आने के कारण यहां केंद्रीय कुमाऊं (अल्मोड़ा व बागेश्वर जनपद) एवं देहरादून में बड़े भूकंप आने की संभावना लगातार जताते रहे हैं। इस भूकंप को जबकि 120 वर्षों का समय हो चुका है, और औसतन 100 वर्ष में भूकंप आने की बात कही जाती है, इसलिये ऐसे भूकंप की आशंका वैज्ञानिकों द्वारा जताई जा रही है। 1991 में उत्तरकाशी व 1999 के चमोली के भूकंपों को इस लिहाज से छोटा बताया जाता है। कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत ने नेपाल भूकंप के बाद आगे लगातार छोटे भूकंप (आफ्टर शॉक्स) आने की संभावना भी जताई है। ऐसे 6.6, 5.1 व 4.8 तीव्रता के भूकंप शनिवार को अपराह्न तक आ भी गए हैं। उनके अनुसार देखा गया है कि एक जगह भूकंप से धरती के भीतर तनाव निकल जाने के बाद तनाव के संतुलन के लिये कहीं और बड़ा भूकंप आ सकता है, पर यह कहां और कब आयेगा, यह नहीं कहा जा सकता। प्रो. पंत ने कहा नेपाल और उत्तराखंड की भूगर्भीय परिस्थितियां, चट्टानें देशों की सीमाओं से इतर भूगर्भीय दृष्टिकोण से बिलकुल एक जैसी हैं। ऐसी स्थितियों का सामना घबराने के बजाय आवश्यक सुरक्षा प्रबंधों के जरिये करने की जरूरत है।

हिमालय के युवा होने के कारण है गतिशीलता

नैनीताल। भू वैज्ञानिकों के अनुसार मध्य हिमालय में स्थित उत्तराखंड में अधिकतम 3800 मिलियन वर्ष पुरानी चट्टानें पाई गई हैं। वैसे मध्य हिमालय का क्षेत्र 560 मिलियन वर्ष पुराना बताया जाता है। यहां यह भी एक अनोखी बात यहां दिखती है कि अपेक्षाकृत पुराना मध्य हिमालय अपने से नये केवल 15 मिलियन वर्ष पुराने शिवालिक पहाड़ों के ऊपर स्थित हैं। भारतीय प्लेट अपने से मजबूत यूरेशियन प्लेट में हर वर्ष 55 मिमी की दर से समा रहा है, तथा स्वयं उठने के साथ-भूस्खलनों का शिकार भी होता रहता है। ऐसे में यहां कठोर व कमजोर पहाड़ों का एक-दूसरे के अंदर समाना एक सतत प्रक्रिया है। समाने की यह प्रक्रिया धरती के भीतर लीथोस्फेरिक व ऐस्थेनोस्फियर परतों के बीच होती है। इससे भू गर्भ में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा एकत्र होती है, जो ज्वालामुखी तथा भूकंपों के रूप में बाहर निकलती है। चूंकि भारतीय व तिब्बती प्लेटें उत्तराखंड के करीब से एक-दूसरे में समा रही हैं, इसलिये यहां भूकंपों का खतरा अधिक बढ़ जाता है। इधर यह खतरा इसलिये भी बढ़ता जा रहा है कि बीते 200 वर्षों में वर्ष 1905 के कांगड़ा व 1934 के ‘ग्रेट आसाम अर्थक्वेक” के बाद के 120 वर्षों में यहां आठ मैग्नीटूड से अधिक के भूकंप नहीं आऐ हैं, लिहाजा धरती के भीतर बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा बाहर निकलने को प्रयासरत है।

अपेक्षा से कहीं अधिक है भूगर्भ में ऊर्जा

eq newsनैनीताल। भूवैज्ञानिकों के अनुसार अकेले एमसीटी ही अरुणांचल प्रदेश के नामचा बरुआ पर्वत से पाक अधिकृत कश्मीर के नंगा पर्वत तक करीब 2500 किमी लंबाई और करीब 60-65 किमी चौड़ाई में अनेकों दरारों के रूप में है। इतने बड़े क्षेत्रफल के एक-दूसरे में धंसने-समाने के फलस्वरूप कितनी अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती होगी, इसका अंदाजा लगाना भी आसान नहीं है। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि रिक्टर स्केल पर एक और दो तीव्रता के भूकंपों के बीच 31.5 गुना अधिक भूगर्भीय ऊर्जा बाहर निकलती है, जबकि एक से तीन तीव्रता के भूकंपों के बीच ऊर्जा का अंतर 31.5 गुणा 31.5 गुणा होता है। इसी प्रकार एक और आठ तीव्रता के भूकंप की ऊर्जा का अंतर ज्ञात करने के लिए 31.5 को आपस में आठ बार गुणा करना होगा।

यह हैं उत्तराखंड में भूगर्भीय संवेदनशीलता के कारण

ऐसा होता है मूल भूकंप मापी यन्त्र
ऐसा होता है मूल भूकंप मापी यन्त्र

नैनीताल। भारत देश में भूकंपों और भूगर्भीय हलचलों का मुख्य कारण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हुए तिब्बती प्लेट में धंसते जाने के कारण है। बताया जाता है कि करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट तिब्बती प्लेट से टकराई थी, और इसी कारण उस दौर के टेथिस महासागर में इन दोनों प्लेटों की भीषण प्लेट से आज के हिमालय का जन्म हुआ था। आज भी दोनों प्लेटों के बीच यह गतिशीलता बनी हुई है, और इसकी गति करीब ५५ मिमी प्रति वर्ष है। इसके प्रभाव में ही गंगा-यमुना के मैदानों को शिवालिक पर्वत श्रृंखला से अलग करने वाले हिमालया फ्रंटल थ्रंस्ट, शिवालिक व लघु हिमालय को अलग करने वाले मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी), इसी तरह आगे रामगढ़ थ्रस्ट, साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट, नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट, बेरीनाग थ्रस्ट व मध्य हिमालय से उच्च हिमालय को विभक्त करने वाले मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) जैसे विभिन्न टैक्टोनिक सेगमेंट्स भी आपस में उत्तर दिशा की ओर गतिशील हैं। कुमाऊं में भूकंप मापने के लिए मुन्स्यारी, तोली (धारचूला), नारायणनगर (डीडीहाट), धौलछीना और भराड़ीसेंण में उपकरण लगाए गए हैं।

भारत के बड़े भूकंप:

Major earthquakes of India
Major earthquakes of India

15 जुलाई 1505 : दिल्ली-आगरा क्षेत्र में
1668: सीमाजी नगर, पश्चिमी भारत, 30 हजार घरों को नुकसान
15 जुलाई 1720 : तत्कालीन शाहजहांनाबाद (वर्तमान दिल्ली)
11 अक्टूबर 1937 : कोलकाता, तीन लाख जानें जाने के ऐतिहासिक दावे
4 जून 1764 : गंगा का मैदानी क्षेत्र, अनगिनत जानें गईं व घर नेस्तनाबूद हुए
1 सितंबर 1803 : सुबह तीन बजे मथुरा-दिल्ली क्षेत्र में, कहते हैं इस दौरान दिल्ली में कुतुबमीनार का सबसे ऊपरी हिस्सा भी टूट कर नीचे आ गिरा था।
19 फरवरी 1842 : केंद्र जलालाबाद पाकिस्तान, पर उत्तरी भारत में व्यापक नुकसान।
1869 : केंद्र कछार-आसाम, 6,475 लाख वर्ग किमी क्षेत्र प्रभावित
1893 : 2.16 लाख वर्ग किमी क्षेत्र प्रभावित
30 मई 1885 : कश्मीर घाटी
12 जून 1897 : ग्रेट आसाम अर्थेक्वेक, 8.7 तीव्रता, 12.75 लाख वर्ग किमी क्षेत्र प्रभावित
16 जून 1899 : कच्छ में, इससे तीन मीटर ऊंची 65 किमी लंबी मिट्टी की दीवार बन गई थी, जिसे अल्लाह बंध नाम दिया गया था, 2000 जानें गर्इं।
4 अप्रैल 1905, 8 तीव्रता: कांगड़ा।
15 जनवरी 1934 : 8.3 तीव्रता बिहार-नेपाल बार्डर।
26 जनवरी 1941 : 8.1 तीव्रता: अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह।
15 अगस्त 1950 : 8.5 तीव्रता, अरुणांचल प्रदेश-चीन सीमा पर।
26 जनवरी 2001: 6.9 तीव्रता भुज, कच्छ गुजरात।

उत्तराखंड/हिमालय के बड़े भूकंप:

Major Earthquakes of Uttarakhand
Major Earthquakes of Uttarakhand

कुमाऊं में 1720
22 मई 1803 उत्तरकाशी में 6 व एक सितंबर 1803 को बद्रीनाथ में नौ तीव्रता का
14 मई 1834 में लोहाघाट में आठ तीव्रता
28 अगस्त 1916 को धारचूला में 7.5 तीव्रता
20 अक्टूबर 1937 को देहरादून में 7 व 28 अक्टूबर 1937 को 7.6 तीव्रता
20 अक्टूबर 1991 तीव्रता 6.5, लेकिन नुकसान अत्यधिक