मानसून : उत्तराखंड-हिमांचल में और भी बुरे रहेंगे हालात


डा. बीएस कोटलिया
डा. बीएस कोटलिया

–पिछले वर्षों में अतिवृष्टि के रूप में अपना प्रभाव दिखा चुके ‘भाई” अल-नीनो के बाद अब ‘बहन” ला-नीना की बारी

-यूजीसी के दीर्घकालीन मौसम विशेषज्ञ डा. बीएस कोटलिया का दावा-ला नीना के प्रभाव में आईटीसीजेड को पर्वतीय राज्यों तक नहीं धकेल पाएगा दक्षिण-पश्चिमी मानसून

-इन राज्यों में सामान्य से 80 फीसद से भी कम मानसूनी बारिश होने और सितंबर तक गर्मी पड़ने की जताई आशंका

नवीन जोशी, नैनीताल। केंद्रीय मौसम विभाग की इस वर्ष देश में सामान्य से 88 फीसद से भी कम मानसून आने की घोषणा के बीच उत्तराखंड व हिमांचल प्रदेश आदि पर्वतीय राज्यों के लिए इससे भी बुरी और समय पूर्व प्रबंध करने के लिए चेतावनी युक्त खबर है। यूजीसी के दीर्घकालीन मौसम विशेषज्ञ डा. बहादुर सिंह कोटलिया ने दावा किया है कि उत्तराखंड के साथ ही दूसरे पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश में हालात इस आशंका से भी बदतर हो सकते हैं। यहां सामान्य से 80 फीसद से भी कम बारिश हो सकती है। डा. कोटलिया ने यहां तक दावा किया है कि इस वर्ष सितंबर माह तक भी इन दोनों राज्यों मानसून की बेहद क्षींण संभावनाओं के साथ सूखा व गर्मी झेलनी पड़ सकती हैं। इन दोनों राज्यों ने पिछले वर्षों में जैसी अतिवृष्टि, जल प्रलय झेली है, अब उन्हें वैसे ही सूखे और अनावृष्टि को भुगतने के लिए तैयार होना चाहिए।

Rashtriya Sahara, 6th June 2015, Page-1, Dehradun Edition

डा. कोटलिया यह दावे तालों एवं गुफाओं में सेगमेंटेशन आधारित हजारों वर्षों के दीर्घकालीन मौसमी अध्ययनों एवं खासकर प्रशांत महासागर की गर्म व ठंडी अल नीनो व ला नीना हवाओं के अध्ययन के आधार पर कर रहे हैं। कोटलिया को आशंका है कि पिछले वर्षों में अतिवृष्टि के रूप में अपना प्रभाव दिखा चुके ‘भाई” अल-नीनो के बाद अब ‘बहन” ला-नीना की बारी है। सुदूर प्रशांत महासागर से ला नीना इस तरह आगे बढ़ रही है कि उसके प्रभाव में भारत में मई आखिर से सितंबर तक बारिश कराने वाला दशिण-पश्चिमी मानसून, वर्षा कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आईटीसीजेड यानी इंटर ट्रोपिकल कन्वरजेंस जोन को मध्य भारत से ऊपर इन पर्वतीय राज्यों तक नहीं धकेल पाएगा। कोटलिया बताते हैं कि दक्षिण-पश्चिमी मानसून करीब 30 मई के आसपास भारत में केरल के सुदूर समुद्री तट को छूने के बाद आईटीसीजेड को अपने दबाव से धकेदेश हुए देश के पूर्वी इलाके में पश्चिम बंगाल, बिहार से यूपी को भिगोता हुआ उत्तराखंड-हिमांचल की ओर आता है। लेकिन पूरी आशंका है कि इस वर्ष मानसूनी हवाओं को ठंडी ला-नीना हवाएं कमजोर कर देंगी, जिसके प्रभाव में भले मानसून के शुरुआती मार्ग में अच्छी वर्षा हो, किंतु उत्तराखंड पहुंचने तक यह कमजोर पड़ जाएगा। ऐसे में जून में यहां उम्मीद से कहीं अधिक गर्मी हो सकती है, जो कि सितंबर माह तक जारी रह सकती है।

मानसून के साथ ही पश्चिमी विक्षोभ की नेमत के कारण सदानीरा हैं उत्तराखंड की नदियां

नैनीताल। सामान्यतया हर क्षेत्र में बारिश का एक अपना अलग विज्ञान होता है। दक्षिण भारत में केवल दक्षिण-पश्चिमी मानसून जिसे केवल मानसून भी कहते हैं, की इकलौती वजह से ही गर्मियों व बरसातों में बारिश होती है। लेकिन इसके इतर उत्तराखंड व हिमांचल आदि पर्वतीय राज्य इस मामले में भाग्यशाली हैं कि यहां केवल मानसून ही नहीं वरन मेडिटेरियन सागर और अटलांटिक महासागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभ की वजह से भी अक्टूबर से मई तक बारिश मिलती है। इस प्रकार यहां वर्ष भर बारिश की संभावना बनी रहती है। यहां हिमाच्छादित हिमालय के ऊंचे पहाड़ हैं, जो भी बादलों के टकराने से बारिश के कारक बनते हैं। इस तरह ऊंचे हिमालय, उनके ग्लेशियरों और दो-दो बारिश के प्रबंधों की वजह से ही यहां की नदियां सदानीरा हैं। इन नदियों के साथ ही यहां मौजूद ताल जैसी जल राशियां भी स्थानीय स्तर पर बारिश पैदा करती हैं।

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