-वर्ल्ड बर्ड डेस्टिनेशन के रूप में पहले से ही प्रसिद्ध है किलवरी-पंगोट-विनायक ईको-टूरिज्म सर्किट
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड प्रदेश की समृद्ध वन संपदा का लाभ पर्यटन विकास के तौर पर लेने के लिए नैनीताल स्थित वैश्विक स्तर के पक्षी अवलोकन स्थल किलवरी-पंगोट-विनायक ईको टूरिज्म सर्किट ‘नैना देवी हिमालयी पक्षी विहार आरक्षिती” या ‘नैना देवी हिमालयन बर्ड कंजरवेशन रिजर्व” (एनडीएचबीसीआर) के रूप में स्थापित हो गया है। बुधवार यानी 29 अप्रैल को प्रदेश के वन मंत्री दिनेश अग्रवाल वन विभाग के उच्चाधिकारियों के साथ इसका व इसके लोगो का औपचारिक शुभारंभ किया, जिसके साथ यह 11191.90 हैक्टेयर यानी करीब 112 वर्ग किलोमीटर में फैला एनडीएचबीसीआर देहरादून के आसन, हरिद्वार के झिलमिल व नैनीताल के पवलगढ़ के बाद उत्तराखंड का चौथा तथा प्रदेश के सबसे बड़ा पक्षी संरक्षित अभयारण्य के रूप में अस्तित्व में आ गया। यहां पक्षियों को देखने के साथ ही उन पर शोध व अनुसंधान भी किए जाएंगे। गत सात मार्च 2015 को एनडीएचबीसीआर के बाबत शासनादेश संख्या 330/ग-2/2015-19(11) 2014 जारी किया गया था।
उल्लेखनीय है कि किलबरी व पंगोट क्षेत्र की अपनी शीतोष्ण जलवायु तथा कोसी घाटी से लेकर नैना रेंज के ऊंचे पहाड़ों तक विस्तृत ऊंचाई के फैलाव के कारण इस जलवायु में पाई जाने वाली चिड़ियों, वन्य जीवों व जैव विविधता की उपलब्धता के लिहाज से उत्तर भारत में अलग पहचान है, और नैनीताल के निकटवर्ती होने की वजह से भी दुनिया की जानी-मानी बर्ड वाचिंग साइट्स में इसका नाम है। इस क्षेत्र में राज्य के सबसे बेहतर व खूबसूरत बांज के जंगल भी हैं। प्रस्तावित नैना देवी हिमालयी पक्षी विहार आरक्षिती में पर्यटन की गतिविधियों के लिए कुमाऊं के मुख्य वन संरक्षक की अध्यक्षता में कार्यकारी समिति बनाई जाएगी, जिसमें एनजीओ तथा टांकी से गांगी खड़क के बीच के सभी गांवों के निर्वाचित प्रधान व सरपंच तथा वन विभाग के अधिकारी शामिल होंगे। माना जा रहा है औपचारिक रूप से शुरुआत होने के बाद इस क्षेत्र को राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार की इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट अफ वाइल्डलाइफ हैबिटेट स्कीम के तहत भी वित्तीय सहायता मिल सकेगी। इससे क्षेत्र के लोगों को आर्थिक व रोजगार का फायदा होगा तथा वह वन संरक्षण व पर्यटन गतिविधियों से अपनी आर्थिकी और मजबूत कर सकेंगे। डीएफओ डा. पाटिल ने बताया कि इससे क्षेत्रीय ग्रामीणों के हक-हकूक संबंधी कोई भी अधिकार व सड़क निर्माण जैसे विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। प्रस्तावित पक्षी अभयारण्य बनाने का विचार सबसे पहले 2013 की राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में पेश हुआ था। नैनीताल की प्रभागीय वन अधिकारी तेजस्विनी पाटिल ने गांव वालों से विचार विमर्श व मशविरे के बाद राज्य वन्यजीव बोर्ड को अपनी रिपोर्ट पेश की थी। यह रिपोर्ट केंद्र व राज्य सरकार को सौंपी गई थी, जिसमें अब इस क्षेत्र को कंजरवेशन रिजर्व घोषित करने का फैसला लिया है।
इसके अलावा हल्द्वानी में अंतरराष्ट्रीय स्तर के चिड़ियाघर की डीपीआर भी तेजी के साथ बनायी जा रही है। इसके अलावा वनों की सुरक्षा एवं पर्यटन की दृष्टि से वन विश्राम भवन की ऐतिहासिकता व अलग महत्व का लाभ लेते हुए किलवरी, विनायक, सीतावनी आदि विश्राम गृहों के सुंदर व ऐतिहासिक भवनों को धरोहर के रूप में संरक्षित करने की योजना भी है। साथ ही सभी भवनों में सौर ऊर्जा एवं वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली को तत्काल क्रियान्वयित करने का फैसला किया गया है। इसके साथ ही इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए एक वेबसाइट का निर्माण भी किया जा रहा है, जिनसे राज्य भर के वन विश्राम भवनों की आनलाइन बुकिंग हो सकेगी। इसके लिए वन विश्राम भवनों में अत्याधुनिक सुविधा के साथ ही बर्ड वाचिंग, ट्रेकिंग, नेचर ट्रेल और नेचर गाइडों की नियुक्ति की जाएगी। धरमघर के कस्तूरा मृग प्रजनन केंद्र को नैनीताल प्राणी उद्यान के नियंत्रण में लाने का फैसला भी किया गया है। इसके अलावा हल्द्वानी में अंतरराष्ट्रीय स्तर का सैटेलाइट जू बनाने के लिए डीपीआर तैयार की जा रही है, तथा हल्द्वानी में ही मत्स्यालय एवं वन्य जीव इंटरप्रिटेशन सेंटर का निर्माण भी किया जा रहा है। नंधौर अभ्यारण, इंटरनेशनल जू तथा एक्वेरियम को शामिल करते हुए हल्द्वानी में अंतरराष्ट्रीय स्तर का इको-टूरिज्म सर्किट बनाये जाने का विचार भी चल रहा है। वनीकरण में इमारती, औषधि और चारा प्रजाति को बढ़ावा दिया जा रहा है। वन्य जीवों की सुरक्षा और कर्मचारियों पर नजर रखने के लिए पूरे सर्किट को जीपीएस सिस्टम से जोड़ने का विचार भी चल रहा है। इससे मानव और वन्य जीवों के बीच युद्ध को कम किया जा सकेगा और तस्करी पर पूरी तरह अंकुश लग जाएगा। कर्मचारियों के कार्यां का भी मूल्यांकन होगा।
दुनिया में चीड़ फीजेंट के इकलौते प्राकृतिक प्रजनन स्थल सहित अनेक खाशियतें
नैनीताल। प्रभागीय वनाधिकारी डा. तेजस्विनी अरविंद पाटिल ने बताया कि बुधवार से अस्तित्व में आ रहा नैना देवी हिमालयन बर्ड कंजरवेशन रिजर्व दुनिया के गिने-चुने ऐसे स्थानों में शामिल है, जहां शेड्यूल-एक में रखी गई संकटग्रस्त खूबसूरत पक्षी चीड़ फीजेंट प्राकृतिक रूप से प्रजनन कर नई संतति को जन्म देते हैं। उन्होंने बताया कि यह पक्षी नेपाल के अन्नपूर्णा वन संरक्षित क्षेत्र में पाया जाता है, लेकिन वहां भी इसके प्राकृतिक रूप से प्रजनन करने की पुष्टि नहीं होती है। यहां के बारे में एक अन्य उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि यही वह इलाका है जहां 1876 में अंतिम बार विलुप्त हो चुके पक्षी प्रजाति हिमालयी काला तीतर (हिमालयन क्वेल) को देखा गया था। इसके अलावा भी यहां 200 से 250 तक पक्षी प्रजातियों की उपलब्धता बताई गई है। डीएफओ पाटिल ने बताया कि 150 से अधिक पक्षी प्रजातियों की यहां अभी हाल में भी पहचान की गई है।
यह पक्षी प्रजातियां मिलती हैं एनडीएचबीसीआर में
यहां रेड हैडेड वल्चर, ग्रेड स्पॉटेड ईगल, ईस्टर्न इम्प्रिल ईगल, ग्रे क्राउन प्रिरीनिया, ब्लेक क्रिस्टेड टिट, ग्रीन क्राउन वाबलर व विस्टलर वार्बलर, ब्लेक लोर्ड टिट, एशियन पैराडाइज फ्लाई कैचर, अल्ट्रामैरीन फ्लाई कैचर, वर्डिटर फ्लाई कैचर, लॉन्ग टेल्ड मिनीविट, ह्वाइट कैप्ड रेडस्टार्ट, ओरिएंटल ह्वाइट आई, ओरिएंटल टर्टल डोव, ब्लेक थ्रोटेड टिट, ग्रेट बारबेट, कॉमन रोजफिंच, रस्टी चीक्ड सिमिटार बाबलर, ग्रे विंग्ड ब्लेक बर्ड, ब्लू विंग्ड मिन्ला, लेसर येलोनेप, ग्रे हूडेड वार्बलर, येलो वागटेल, हिमालयन वुडपीकर व रसेट स्पैरो आदि पक्षी भी पाए जाते हैं।
सर्वप्रथम जिम कार्बेट ने उठाई थी मांग
नैनीताल। उल्लेखनीय है कि आजादी से पूर्व प्रसिद्ध अंग्रेज शिकारी व पर्यावरणविद् जिम कार्बेट ने नैनीताल के किलबरी-पंगोट-विनायक क्षेत्र में पक्षियों की अत्यधिक प्रजातियों की उपलब्धता के मद्देनजर इस क्षेत्र को पक्षी संरक्षित क्षेत्र के रूप में विकसित करने की बात सर्वप्रथम उठाई थी। उनकी कल्पना अब उनके देश से जाने व आजादी के करीब ६८ वर्षों के बाद साकार होने जा रही है।
नैनीताल एवं ‘नैना देवी हिमालयन बर्ड कंजरवेशन रिजर्व में पाई जाने वाली पक्षियों के चित्रों के लिए यहां क्लिक करें।
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