-1934-35, 1972 व 2004 में भी हुए बड़े भूस्खलन
-अंग्रेजों के दौर के हुए बचाव कार्य अभी भी सुरक्षित, पर हालिया 2005 के कार्य पूरी तरह क्षतिग्रस्त
नवीन जोशी, नैनीताल। बलियानाला भूगर्भीय संवेदनशीलता के दृष्टिकोण से जोन-4 के शहर नैनीताल का आधार है। जिस तरह नैनीताल का 1841 में बसासत के बाद से ही भूस्खलनों के साथ मानो चोली-दामन का साथ रहा है, तथा यहां 1866 व 1879 में आल्मा पहाड़ी में बड़े भूस्खलनों से इनकी आहट शुरू हुई और 18 सितंबर 1880 को वर्तमान रोपवे के पास आए महाविनाशकारी भूस्खलन ने उस दौर के केवल ढाई हजार की जनसंख्या वाले नगर में 108 भारतीयों व 41 ब्रितानी नागरिकों सहित 151 लोगों को जिंदा दफन कर दिया था। वहीं 17 अगस्त 1898 को बलियानाला क्षेत्र में आया भूस्खलन नगर के भूस्खलनों से संबंधित इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी दुर्घटना है। इस दुर्घटना में 27 भारतीयों व एक अंग्रेज सहित कुल 28 लोग मारे गए थे।
तत्कालीन हिल साइड सेफ्टी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर इतिहासकार प्रो. अजय रावत ने बताया कि इस घटना की पृष्ठभूमि में नौ अगस्त से 17 अगस्त तक नगर में हुई 91 सेमी बारिश कारण बनी थी। बारिश का बड़ी मात्रा में पानी यहां की चट्टानों में फंस गया था। आज भी इस क्षेत्र में भारी बसासत और नैनी झील के पानी के किसी न किसी रूप में रिसकर यहां जलश्रोत फूटने के रूप् में जारी है, जिसकी पुष्टि यहां खुले अनेक बड़े जल श्रोतों से होती है। 1898 के अलावा भी बलियानाला क्षेत्र में 1935 तथा 1972 में बड़े भूस्खलन हुए, तथा इनके अलावा भी यह क्षेत्र लगातार बिना रुके धंसता ही जा रहा है। जीआईसी के मैदान और कमोबेश हल्द्वानी राष्ट्रीय राजमार्ग तक भी इसके संकेत देखे जा सकते हैं।
बहरहाल, 1972 का भूस्खलन वर्तमान हरिनगर के बाल्मीकि मंदिर के पास आया था। स्थानीय सभासद डीएन भट्ट बताते हैं कि इस घटना के बाद यूपी के तत्कालीन वित्त मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने सुधार कार्यों के लिए 95 लाख रुपए स्वीकृत किए थे, तथा पूरे क्षेत्र को ‘स्लिप जोन’ घोषित कर दिया था। इस घटना के बाद गठित हुई ‘हाई लेवल एक्सपर्ट कमेटी’ ने बलियानाला को दुर्गापुर तक आरसीसी का आधार बनाकर इसे चैनल के रूप में विकसित करने की संस्तुति की थी। इधर 2004 में पुनः यहां बड़ा भूस्खलन हुआ तथा छोटे-बड़े अनेक भूस्खलन होते रहे। इसके बाद 2005 में बलियानाले में दो ‘बेड-बार’ व अन्य सुधारात्मक कार्यों के लिए 15 करोड़ रुपए अवमुक्त हुए। यह कार्य सिंचाई विभाग के द्वारा किए गए, और भ्रष्टाचार को लेकर इन कार्यों की अब तक ठंडे बस्ते में पड़ी उच्च स्तरीय जांच भी हुई। अब मौजूदा हालात यह हैं कि अंग्रेजी दौर के बने ‘बेड-बार’ आज भी सुरक्षित हैं, जबकि बाद में बने 8 ‘बेड-बार’ व अन्य सुधानात्मक कार्यों के कहीं निशान ढूंढना भी मुश्किल है।
एमबीटी सहित कई भूगर्भीय भ्रंश बनाते हैं नैनीताल को खतरनाक
नैनीताल के भूगर्भीय दृष्टिकोण से बेहद कमजोर होने के पीछे हिमालयी क्षेत्र के सबसे बड़े मेन बाउंड्री थ्रस्ट यानी एमबीटी सहित कई भ्रंश भूमिका निभाते हैं। एमबीटी नैनीताल के पास ही बल्दियाखान, ज्योलीकोट के पास नैनीताल के आधार बलियानाले से होता हुआ अमृतपुर की ओर गुजरता है। वहीं नैनीताल लेक थ्रस्ट सत्यनारायण मंदिर, सूखाताल से होता हुआ और नैनी झील के बीचों-बीच से गुजरकर शहर को दो भागों में बांटते हुए गुजरने वाला नैनीताल लेक थ्रस्ट तल्लीताल डांठ से ठीक बलियानाले से गुजरता है। यूजीसी के वैज्ञानिक डा.बहादुर सिंह कोटलिया के अनुसार यह थ्रस्ट इतना अधिक सक्रिय है कि ज्योलीकोट के पास एमबीटी को काटते हुए उसे भी प्रभावित करता है। इसके अलावा एक छोटा मनोरा थ्रस्ट भी बलियानाला की संवेदनशीलता को बढ़ाता है।
तब डीएफओ ने पैदल चलने पर किया था फारेस्ट गार्ड का चालान
नैनीताल। बुधवार 10 सितंबर को भूस्खलन से ध्वस्त हुआ जीआईसी से ब्रेवरी को जाने वाला सीसी पैदल मार्ग वर्तमान दौर में ज्योलीकोट-हल्द्वानी जाने के लिए छोटे-बड़े वाहनों के लिए अवैधानिक तरीके से ‘बाई-पास’ के रूप में धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन इस संबंध में एक घटना सबक है। इतिहासकार प्रो. अजय रावत ने नगर के तत्कालीन ‘वर्किंग प्लान’ की रिपोर्ट के आधार पर बताया कि 1898 के भूस्खलन के बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में भूक्षरण रोकने वाली बड़ी मात्रा में घास लगाई थी, तथा क्षेत्र के जंगल में पेड़ों की सघनता बढ़ाई थी। साथ ही लोगों की पैदल आवाजाही भी प्रतिबंधित कर दी थी। बताते हैं कि वर्ष 1900 के दौर में एक फारेस्ट गार्ड ने ज्योलीकोट से जल्दी पहुंचने पर शाबासी मिलने की चाह में अपने अधिकारी अंग्रेज डीएफओ को इस रास्ते से आने की जानकारी दी। इस पर डीएफओ ने उस पर उल्टे पांच रुपए का जुर्माना ठोंक दिया था।
नगर का शुरुआती होटल था रईश होटल
नैनीताल। रईश होटल क्षेत्र में वास्तव में नगर का शुरुआती दौर का वर्तमान जीआईसी मैदान के पास चार मंजिलों वाले तीन भवनों का रईश होटल स्थित था। बाद के दौर में यहां लोगों ने कब्जे कर लिए। क्षेत्र के विमल जोशी व जसोेदा बिष्ट ने बताया कि 1981 तक होटल बेहद जीर्ण-शीर्ण हो गया था। 81 में एक इसका एक भवन गिर पड़ा, जबकि 97 में शेष को जर्जर होने की वज से तोड़ डाला गया। भवन में 15-20 परिवार काबिज थे, जिनमें से कुछ ने बाद में पास की खाली जमीन पर कब्जा कर लिया, और कुछ अपने कब्जों को किराए पर लगाकर अन्यत्र चले गए। लेकिन बाद में इस बेहद खतरनाक व हर दम जान हथेली पर रखने जैसी जगह पर भी लगातार लोग आते और बसते चले गए। आरोप है कि यही लोग अब अपना यहां अपना हक जता रहे हैं, जबकि मूल वासिंदों का कोई सुधलेवा नहीं है।
बलियानाले को चैनलाइज करने के लिए 44.25 करोड़ का प्रस्ताव
नैनीताल (एसएनबी)। डीएम दीपक रावत ने मंगलवार (06.01.2015) को नगर के आधार बलियानाला से विगत वर्ष 10 सितम्बर को भीषण भूस्खलन से तबाह हुए रईश होटल व जेएनएनयूआरएम योजना के अन्तर्गत दुर्गापुर में बन रहे आवासों का निरीक्षण किया। इस दौरान सहायक अभियंता सिंचाई एनसी पंत ने बताया कि बलियानाले को चैनलाइज करने के लिए 44.25 करोड़ का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। डीएम रावत ने दुर्गापुर में बने आवासीय भवनों का निरीक्षण करते हुए वहां रह रहे लोगों से भी बात की। निर्माण संस्था लोनिवि के ईई जितेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि योजना के अन्तर्गत 9.28 करोड़ की लागत से 200 आवास बनाये जाने थे जिसमें से 60 आवास पूर्ण कर 60 परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है। अगले 60 आवास आगामी फरवरी तक तथा शेष 40 आवास जून तक पूर्ण कर लिए जाएंगे, जबकिक अंतिम 40 आवासों का कार्य अभी शुरू नहीं हो पाया है। डीएम ने 15 दिनों में इनका निर्माण शुरू कराने के निर्देश दिए।
Interesting and informative article Joshi ji 🙂
पसंद करेंपसंद करें
Thanks Tripathi ji. 🙂
पसंद करेंपसंद करें
1898 she land slid ki history ha fir bhi log makan bana kar ra rahe or prasasan makan bana ne de raha ha wah re prasasan &wah re publik
पसंद करेंपसंद करें