-असीमित धनराशि के कार्य केवल एक निविदा के माध्यम से भी कराए जा सकेंगे
-कार्यालय अध्यक्ष मनमर्जी से बिना निविदा कर सकेंगे 50 हजार रुपए तक की खरीदें
-वहीं राज्य के छोटे ठेकेदारों की मांगें सरकार ने की अनसुनी
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, प्रदेश सरकार सरकारी विभागों में सामानों की बिक्री करने वाले व कार्य कराने वाले खासकर अधिकारियों के मुंह लगे ठेकेदारों पर मेहरबान हो गई लगती है। इसके लिए सरकार ने उन्हीं नौकरशाहों-विभागीय अधिकारियों पर अधिक भरोसा करने का रास्ता चुना है, जिन पर अभी सूचना आयोग के जरिए खुले मामले में वर्ष 2013 में राज्य में आई महाप्रलयकारी आपदा के राहत कार्यों में ‘चिकन-मटन” खाने से राज्य सरकार की बड़ी किरकिरी हुई है, और राज्य में हमेशा से जिन पर बेलगाम होने के आरोप लगते रहते हैं। विभागीय अधिकारी अब बिना निविदा के 50 हजार रुपए तक की खरीदें कर सकेंगे, जबकि डेढ़ करोड़ रुपए तथा इससे अधिक असीमित धनराशि के कार्य केवल एक निविदा के माध्यम से भी कराए जा सकेंगे। आने वाले समय में इस शासनादेश से राज्य में निर्माण कार्यों और खरीद की व्यवस्था में बड़ा बदलाव आने की संभावना है। वहीं राज्य के छोटे ठेकेदारों की उन्हें कार्यों में प्राथमिकता देने, बड़े कार्यों के बजाय कार्यों को छोटे टुकड़ों में कराकर अधिकाधिक लोगों को कार्य में शामिल करने जैसी लंबे समय से चली आ रही मांगें सरकार ने अनसुनी कर दी हैं।
प्रदेश सरकार ने गत 15 जून को प्रदेश के राज्यपाल की ओर से संविधान के अनुच्छेद 166 द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए उत्तराखंड अधिप्राप्ति (प्रॉक्योरमेंट) संसोधन नियमावली-2015 जारी की है, जो सोमवार को जिलों में पहुंची है, इससे ठेकेदारों के साथ ही विभागीय अधिकारियों, खासकर कार्यालयाध्यक्षों की बांछें खिली नजर आ रही हैं।
नियमावली के अनुसार 50 हजार रुपए तक की सामग्री बिना कोटेशन निविदा के बाजार दर के आधार पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा खरीदी जा सकेगी, जबकि अब तक यह सीमा 15 हजार रुपए थी। वहीं 50 हजार से तीन लाख रुपए तक सीमा में क्रय किए जाने के लिए विभागाध्यक्ष या कार्यालयाध्यक्ष तीन सदस्यीय क्रय समिति की संस्तुतियों पर खरीद की जा सकेगी, जबकि पूर्व में इस हेतु सीमा 15 हजार से अधिकतम एक लाख रुपए थी। यह भी कहा गया है कि सक्षम प्राधिकारी तीन पंजीकृत ठेकेदारों से कोटेशन प्राप्त कर तीन लाख तक की लागत के कार्य करा सकता है। जबकि आपात परिस्थितियों के नाम पर पांच लाख तक के कार्य भी इस तरह किए जा सकते हैं। इसी तरह तीन लाख से 60 लाख तक की खरीद के लिए निविदाएं आमंत्रित किए जाने का प्राविधान किया गया है, जिसके लिए पूर्व में 15 लाख रुपए की सीमा थी। वहीं 60 लाख रुपए तथा इससे अधिक धनराशि की खरीद के लिए दो राष्ट्रीय समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी कर निविदा आमंत्रित करने की व्यवस्था की गई है, जबकि अब तक 25 लाख रुपए व इससे अधिक की खरीद के लिए निविदाएं आमंत्रित किए जाने का प्राविधान था। 60 लाख से कम की लागत के लिए निविदाओं के विज्ञापन स्थानीय समाचार पत्रों में दिए जा सकते हैं। निविदाएं भरने का समय भी पूर्व के तीन सप्ताह से घटाकर दो सप्ताह तक सीमित कर दिया गया है। अब बात डेढ़ करोड़ तक की निविदाओं की करें तो इनके लिए प्राविधान किया गया है कि पहली बार में निविदा निकालने पर यदि एक निविदा आती है तो निविदा नहीं खोली जाएगी, लेकिन यदि दूसरी बार में भी यदि एक ही निविदा आती है तो उसे खोला जा सकेगा। वहीं डेढ़ करोड़ से अधिक की असीमित धनराशि की निविदाओं के लिए ई-निविदा की व्यवस्था की गई है, साथ ही यह प्राविधान भी किया गया है कि ई-निविदा की प्रक्रिया में पहली बार में एकल निविदा आने पर भी उसे खोला जा सकेगा, बशर्ते कि निविदा आमंत्रण की सम्यक प्रक्रिया एवं प्रचार सुनिश्चित किया गया हो। इसके अलावा विशेष परिस्थितियों में एकल श्रोत से परामर्शदाता का चयन भी किया जा सकता है। अलबत्ता, 25 लाख से अधिक लागत के कार्यों में परामर्शदाता के एकल श्रोत चयन के लिए प्रशासनिक विभाग का अनुमोदन एवं वित्त विभाग की सहमति लेने का प्राविधान किया गया है।
जितनी बड़ी धनराशि, उतने हल्के नियम
नैनीताल। सामान्यतया छोटी धनराशि के कार्यों के लिए नियम सरल एवं बड़ी धनराशि के कार्यों के लिए नियम कड़े होते चले जाते हैं। लेकिन ताजा जारी उत्तराखंड अधिप्राप्ति (प्रॉक्योरमेंट) संसोधन नियमावली-2015 में कमोबेश इसका उल्टा दिखता है। 50 हजार से तीन लाख रुपए तक की सीमा में क्रय करने के लिए जहां तीन सदस्यीय क्रय समिति की संस्तुतियों एवं तीन पंजीकृत ठेकेदारों से कोटेशन लेने की व्यवस्था है, जबकि डेढ़ करोड़ या इससे अधिक के कार्य केवल कार्यालयाध्यक्ष के इकलौते विवेक पर छोड़े गए हैं, जो कि केवल एक निविदा आने पर भी कार्य करा सकते हैं। आने वाले समय में ऐसे प्राविधानों पर हंगामे की स्थिति बने तो आश्चर्य न होगा।
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