आपदा राहत के नाम पर अब नहीं उड़ा सकेंगे चिकन, मटन, बिरयानी…..


-केंद्र सरकार ने पहली बार तय किए राज्य आपदा मोचन निधि यानी एसडीआरएफ व एनडीआरएफ के तहत क्षतिग्रस्त अवसंरचनाओं की तात्कालिक मरम्मत के मानक
-अब तक नहीं थे कोई मानक, होती थी मनमानी
-राज्य सरकार ने अनुग्रह राहत वाले हिस्से को तो सार्वजनिक किया, परंतु राहत के हिस्से को नहीं किया है सार्वजनिक
नवीन जोशी, नैनीताल। प्रदेश में वर्ष 2013 में आई दैवीय आपदा के राहत कार्यों में जिस तरह अधिकारियों के चिकन खाने और मनमाना धन उड़ाने की खबरें आई हैं, वह भविष्य के लिए बीती बात हो सकती हैं। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने देश के इतिहास में पहली बार वर्ष 2015 2020 से की अवधि के लिए राज्य आपदा मोचन निधि यानी एसडीआरएफ और राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया निधि यानी एनडीआरएफ के तहत क्षतिग्रस्त अवसंरचनाओं तात्कालिक मरम्मत के मानक तय कर दिए हैं। इन मानकों के आने के बाद तय कर दिया गया है कि आपदा आपदा आने के बाद राहत के नाम पर राज्य के नौकरशाह और सियासतदां क्या करते और क्या नहीं, तथा अधिकतम कितनी धनराशि खर्च कर सकते हैं। इन मानकों के बाद आपदा राहत के नाम पर होने वाली मनमानी और लूट पर काफी हद तक लगाम लगने की उम्मीद की जा रही है।

उल्लेखनीय बात यह भी है कि केंद्र सरकार ने एनडीआरएफ व एसडीआरएफ के तहत अनुग्रह राहत की राशि में जो वृद्धि या बदलाव किए, उसे तो राज्य सरकार ने सार्वजनिक कर दिया था, लेकिन तात्कालिक सहायता के मानकों में जो बदलाव किए, उसे कमोबेश छुपाकर ही रखा गया है। मसलन, आपदा में किसी व्यक्ति के मरने पर उसके परिजनों को चार लाख रुपए, हाथ, पैर या आंखों की 40 से 60 फीसद अपंगता पर 5 9, 100 तथा 60 फीसद अपंगता पर दो लाख, एक सप्ताह से अधिक समय अस्पताल में रहने वाली जानलेवा चोट पर रुपये 12,700 प्रति व्यक्ति व इससे कमपर 4300, घर बह जाने या दो से अधिक दिन तक घर में जल भराव पर कपड़ों की क्षति के लिए रुपये 1,800 प्रति परिवार व बर्तनों व घरेलू सामान की क्षति के लिए दो हजार रुपए दिए जाएंगे। इसके अलावा पूर्णत: या अत्यधिक क्षतिग्रस्त कच्चे, पक्के हर तरह के भवनों के लिए मैदानी क्षेत्रों में रुपये 9 5,100 व पर्वतीय क्षेत्रों में रुपये 1,01, 9 00 तथा इसी तरह हर तरह के आंशिक क्षतिग्रस्त झोपड़ी के अतिरिक्त पक्के भवनों के लिए मैदानी क्षेत्रों में 5 , 200 व पर्वतीय क्षेत्रों में रुपये 3,200 तथा झोपड़ियों के लिए मैदानों में रुपये 4,100 व भवन के साथ जुड़ी पशुशाला के लिए रुपये 2,100 प्रति इकाई की अनुग्रह राशि दी जाएगी। वहीं क्षतिग्रस्त अवसंरचनाओं की तात्कालिक मरम्मत के मानक भी तय कर दिए हैं, जबकि अनेक बड़े कार्यों को तात्कालिक मरम्मत की श्रेणी से हटा दिया गया है, ताकि मनमानी न हो सके।

इंफ्रास्ट्रक्चर की तात्कालिक मरम्मत के लिए तय मानक

नैनीताल। केंद्र सरकार के क्षतिग्रस्त अवसंरचनाओं यानी इंफ्रास्ट्रक्चर की तात्कालिक मरम्मत के लिए मानक इस प्रकार तय किए हैं:
क्षतिग्रस्त प्राथमिक विद्यालय व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भवन – रुपये डेढ़ लाख प्रति इकाई
विद्युत पोल तथा लाइनें – रुपए चार हजार प्रति पोल तथा रुपये 50 हजार प्रति किमी
पंचायतघर, आंगनबाड़ी, महिला मंडल, युवा केंद्र व सामुदायिक भवन – रुपये दो लाख प्रति इकाई
राज मार्ग व मुख्य जिला मार्ग – रुपये एक लाख प्रति किमी
ग्रामीण मार्ग – रुपये 60 हजार प्रति किमी
पेयजल योजना – रुपये 50 हजार प्रति इकाई
लघु सिंचाई योजना व नहर – रुपये डेढ़ लाख प्रति योजना तक

इन बड़ी योजनाओं के लिए नहीं मिलेगा एनडीआरएफ-एसडीआरएफ से धन

उच्चतर माध्यमिक, कॉलेज व अन्य शैक्षणिक संस्थान, बड़ी सिंचाई योजना, बाढ़ नियंत्रण तथा कटाव निरोधक कार्य, जल विद्युत परियोजना, एचटी विद्युत आपूर्ति प्रणाली तथा ट्रांसफार्मर व विद्युत उप केंद्र, 11 केवी से बड़ी, हाई टेन्सन विद्युत लाइनें, विभागीय कार्यालय भवन, धार्मिक संरचनाएं , न्यायालय, खेल का मैदान, वन, बंगला, पशु-पक्षी विहार आदि राजकीय भवन, दीर्घकालीन स्थाई निर्माण कार्य, दीर्घकालीन नए कार्य, किसी सामग्री का वितरण, मशीनों, उपकरणों की खरीद, राष्ट्रीय राजमार्ग तथा पशु चारे के उत्पादन हेतु चारे के बीजों की व्यवस्था।

उत्तराखंड आपदा में नौकरशाहों की इस लूट को छिपा रही है कांग्रेस सरकार

राज्य सूचना आयोग में आरटीआइ के एक मामले की सुनवाई के दौरान जून 2013 में प्राकृतिक आपदा के दौरान प्रदेश के पांच जिलों में राहत व बचाव के नाम पर सरकारी धन के दुरूपयोग का बेहद गंभीर मामला प्रकाश में आया, जिसमें सब कुछ साफ होने के बावजूद सैन्य बहुल राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मामले को भावनात्मक रंग देते हुए यह कहते हुए घुमाने की कोशिश की कि चिकन-मीट सैनिकों ने खाया है, उन्हें इससे रोका नहीं जा सकता है। उल्लेखनीय है कि नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के जिलाध्यक्ष भूपेंद्र कुमार ने 27 दिसंबर, 2013 को रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ व बागेश्वर के जिलाधिकारियों से जून 2013 में आई आपदा के दौरान राहत-बचाव के सभी कार्यों में व्यय धनराशि और इसमें जुटे अधिकारियों के खर्च की जानकारी मांगी थी। तय समयावधि में समुचित जानकारी न मिलने पर भूपेंद्र कुमार ने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा की सख्ती के बाद जनपदों से मिले बिलों से यह मामला प्रकाश में आया है, जिसके अनुसार भीषण आपदा के दौरान जब केदारघाटी में लाशों के ढेर लगे थे और लोग भूख-प्यास से बिलबिला रहे थे, तब राहत-बचाव कार्य में लगे अधिकारी महंगे होटलों ( जबकि होटल भी तबाह हो चुके थे, और थे ही नहीं ) में रात गुजार चिकन, मटन, मटर पनीर व गुलाब जामुन जैसे लजीज व्यंजनों का स्वाद ले रहे थे।

केदारघाटी की त्रासदी वाले रुद्रप्रयाग जनपद के ही एक मामले के बिल पर गौर करें तो आपदा की जिस घड़ी में लोगों के सिर पर छत नहीं थी और लोगों को पर्याप्त भोजन भी मयस्सर नहीं हो पा रहा था, उस दौरान राहत-बचाव कार्य में लगे कार्मिकों के ठहरने व खाने की व्यवस्था पर 25 लाख 19 हजार रुपये का खर्च आया। यहां तक कि कई कार्यों को आपदा से पहले ही पूरा दिखाया गया। जबकि, कुछ बिल आपदा वाले दिन के ही हैं। आपदा के दौरान अधिकारियों ने मोटरसाइकिल व स्कूटर में भी डीजल भर डाला। इस तरह की बिलों में तमाम अनियमितता मिलीं, जिस पर आयोग को संज्ञान लेकर सूचना आयोग को सीबीआइ जांच कराने की गुजारिश करनी पड़ी।
उत्तराखंड के राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने इस पर कहा कि ‘आपदा राहत में लगे कार्मिकों के खाने-पीने व ठहरने के बिल मानवता को शर्मसार करने वाले हैं। ये कार्मिक आपदा पीड़ितों की मदद और दायित्व निर्वहन के लिए गए थे या पिकनिक मनाने।’

कुछ नमूने देखिए:

– पिथौरागढ़ जनपद में अधिशासी अभियंता, जल संस्थान डीडीहाट ने एक कार्य को 28 दिसंबर 2013 को शुरू होना दिखाया, जबकि बिल में कार्य पूर्ण होने की तिथि 43 दिन पहले 16 नवंबर 2013 दिखाई गई।
– एक अन्य बिल में राहत कार्य आपदा से छह माह पहले 22 जनवरी 2013 को ही शुरू करना दर्शाया गया।
-एक अधिकारी के होटल में ठहरने का जो किराया 6750 रुपये दर्शाया गया, जबकि भोजन मिलाकर यह राशि प्रतिदिन 7650 रुपये बैठ रही थी। इसमें आधा लीटर दूध की कीमत 194 रुपये अदा की गई।
-अपेक्षाकृत कम प्रभावित पिथौरागढ़, बागेश्वर जनपद में कुमाऊं मंडल विकास निगम ने 15 दिन आपदा प्रभावितों के सरकारी रेस्ट हाउस में ठहरने का चार लाख रुपये का बिल भेजा गया।
– नगर पंचायत डीडीहाट के 30 लाख 45 हजार रुपये के कार्यों के बिलों में कोई तिथि अंकित नहीं मिली।
– तहसीलदार कपकोट द्वारा 12 लाख रुपये आपदा पीड़ितों को बांटना दिखाया है, जबकि रसीद एकमात्र पीड़िता को पांच हजार रुपये भुगतान की लगाई गई।
– तहसीलदार गरुड़ ने आपदा राहत के एक लाख 83 हजार 962 रुपये बांटे और यहां भी रेकार्ड के तौर पर 1188, 816 रुपये की ही रसीद मिली।
– 16 जून 2013 को आई आपदा की भयावहता का पता प्रशासन को दो-तीन दिन बाद ही चल पाया था, लेकिन उत्तरकाशी में खाने-पीने आदि की सामग्री के लाखों रुपये के बिल 16 तारीख के ही लगा दिए गए।
– आपदा के समय मोटरसाइकिल (यूए07-2935), (यूए07ए-0881), (यूके05ए-0840), बजाज चेतक (यूए12-0310) में क्रमशः 30, 25, 15, 30 लीटर डीजल डालना दिखाया गया।
– थ्री व्हीलर (यूके08टीए-0844) व ए-एफ नंबर के एक वाहन में क्रमशः 30-30 लीटर डीजल डालने के बिल भी अधिकारियों ने संलग्न किए। मालूम हो कि पर्वतीय जिलों में थ्री व्हीलर चलते ही नहीं हैं।
– उपजिलाधिकारी के नाम से बनाए गए बिलों पर बिना नंबर के वाहनों में 21 जून से 09 जुलाई के मध्य क्रमशर: 51795, 49329, 21733 रुपये के डीजल खर्च होना दिखाया गया।
– तहसील कर्णप्रयाग में राहत कार्य के तहत आपदा से करीब डेढ़ माह पहले के ईधन बिल लगाए गए।
– चमोली के जिला युवा कल्याण एवं प्रांतीय रक्षक दल अधिकारी ने आपदा से एक माह पहले के होटल बिल लगा दिए।
– डेक्कन हेलीकॉप्टर सेवा ने 24 जून की तारीख का जो बिल जमा किया है, उसमें ईंधन का चार दिन का खर्च 98 लाख 8,090 रुपये दर्शाया गया है।

यह भी पढ़ें: 

देश में एकमुश्त रिकार्ड 50 गुना तक बढ़ा दैवीय आपदा का मुआवजा

अधिकारियों की काहिली से उत्तराखंड के किसानों को नुकसान का मुआवजा मिलना मुश्किल