‘फोटोजेनिक’ नैनीताल के साथ ही जन्मी फोटोग्राफी !


 19 अगस्त विश्व फोटोग्राफी दिवस पर विशेशः

Nainital
Nainital
Nainital-The English Beauty
Nainital-The English Beauty

हर कोण से एक अलग सुंदरता के लिए पहचानी जाने वाली और इस लिहाज से ‘फोटोजेनिक’ कही जाने वाली सरोवरनगरी नैनीताल के साथ यह संयोग ही है कि जिस वर्ष अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन द्वारा इसकी खोज किए जाने की बात कही जाती है, उसी वर्ष न केवल ‘फोटोग्राफी’ शब्द अस्तित्व में आया, और उसी वर्ष फोटोग्राफी का औपचारिक आविष्कार हुआ। अंग्रेजों के साथ ही नैनीताल में फोटोग्राफी बहुत जल्दी पहुंच गई। 1850 में अंग्रेज छायाकार डा. जॉन मरे और कर्नल जेम्स हेनरी एर्सकिन रेड (मैकनब कलेक्शन) को नैनीताल में सर्वप्रथम फोटोग्राफी करने का श्रेय दिया जाता है। उनके द्वारा खींचे गए नैनीताल के कई चित्र ब्रिटिश लाइब्रेरी में आज भी सुरक्षित हैं। 1860 में नगर के मांगी साह ने फोटोग्राफी की शुरुआत की। 1921 में चंद्रलाल साह ठुलघरिया ने नगर के छायाकारों की फ्लोरिस्ट लीग की स्थापना की, जबकि देश में 1991 से विश्व फोटाग्राफी दिवस मनाने की शुरुआत हुई। नैनीताल के ख्याति प्राप्त फोटोग्राफरों में परसी साह व एनएल साह आदि का नाम भी आदर के साथ लिया जाता है, जबकि हालिया दौर में अनूप साह अंतराष्टीय स्तर के फोटोग्राफर हैं, जबकि देश के अपने स्तर के इकलौते विकलांग छायाकार दिवंगत बलवीर सिंह, एएन सिंह, बृजमोहन जोशी व केएस सजवाण आदि ने भी खूब नाम कमाया है।

विश्व में फोटोग्राफी का इतिहास :

सर्वप्रथम 1839 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेकस तथा मेंडे डाग्युरे ने फोटो तत्व को खोजने का दावा
किया था। फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो ने 9 जनवरी 1839 को फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। फ्रांस सरकार ने यह “डाग्युरे टाइप प्रोसेस” रिपोर्ट खरीदकर उसे आम लोगों के लिए 19 अगस्त 1939 को फ्री घोषित किया और इस आविष्कार को ‘विश्व को मुफ्त’ मुहैया कराते हुए इसका पेटेंट खरीदा था। यही कारण है कि 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है। हालांकि इससे पूर्व 1826 में नाइसफोर ने हेलियोग्राफी के तौर पर पहले ज्ञात स्थायी इमेज को कैद किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूँढ लिया था। 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर का आविष्कार किया जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई।
1839 में ही वैज्ञानिक सर जॉन एफ डब्ल्यू हश्रेल ने पहली बार ‘फोटोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल किया था. यह एक ग्रीक शब्द है, जिसकी उत्पत्ति फोटोज (लाइट) और ग्राफीन यानी उसे खींचने से हुई है।

भारत में प्रोफेशनल फोटोग्राफी की शुरुआत व पहले फोटोग्राफरः

भारत में प्रोफेशनल फोटोग्राफी की शुरुआत 1840 में हो गई थी। कई अंग्रेज फोटोग्राफर भारत में खूबसूरत जगहों और ऐतिहासिक स्मारकों को रिकॉर्ड करने के लिए भारत आए। 1847 में ब्रिटिश फोटोग्राफर विलियम आर्मस्ट्रांग ने भारत आकर अजंता एलोरा की गुफाओं और मंदिरों का सर्वे कर इन पर एक किताब प्रकाशित की थी।
कुछ भारतीय राजाओं और राजकुमारों ने भी फोटोग्राफी में हाथ आजमाए, इनमें चंबा के राजा, जयपुर के महाराजा रामसिंह व बनारस के महाराजा आदि प्रमुख थे। लेकिन अगर किसी ने भारतीय फोटोग्राफी को बड़े स्तर तक पहुंचाया है तो वह हैं लाला दीन दयाल, जिन्हें राजा दीन दयाल के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास सरधाना में 1844 में सुनार परिवार में हुआ था। उनका करियर 1870 के मध्य कमीशंड फोटोग्राफर के रूप में शुरू हुआ। बाद में उन्होंने अपने स्टूडियो मुंबई, हैदराबाद और इंदौर में खोले। हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खान ने इन्हें मुसव्विर जंग राजा बहादुर का खिताब दिया था। 1885 में उनकी नियुक्ति भारत के वॉयसराय के फोटोग्राफर के तौर पर हुई थी, और 1897 में क्वीन विक्टोरिया से रॉयल वारंट प्राप्त हुआ था। उनके स्टूडियो के 2857 निगेटिव ग्लास प्लेट को 1989 में इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार ऑर्ट, नई दिल्ली के द्वारा खरीदा गया था, जो आज के समय में सबसे बड़ा पुराने फोटोग्राफ का भंडार है। 2010 में आइजीएनसीए में और 2006 में हैदराबाद फेस्टिवल के दौरान सालार जंग म्यूजियम में उनकी फोटोग्राफी को प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था। नवंबर 2006 में संचार मंत्रालय, डाक विभाग द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था।
यह भी पढ़ेंः फोटोग्राफी के गुर 
नैनीताल की शुरुआती फोटोः