मेघालय का मुख्य न्यायाधीष बनने पर उन्होंने अपनी उपलब्धि का श्रेय बड़े भाई चंद्रशेखर पंत को दिया था। इस मौके पर बातचीत में न्यायमूर्ति पंत ने कहा कि वह ईमानदारी और निडरता से कार्य करने वाले न्यायाधीशों को ही सफल मानते हैं। पदोन्नति के बजाय मनुष्य के रूप में सफलता ही एक न्यायाधीश और उनकी सफलता है। आज भी वह 1976 में नैनीताल के एटीआई में न्यायिक सेवा शुरू करने के दौरान प्रशिक्षण में मिले उस पाठ को याद रखते हैं, जिसमें कहा गया था कि एक न्यायिक अधिकारी को ‘हिंदू विधवा स्त्री’ की तरह रहते हुए समाज से जुड़ाव नहीं रखना चाहिए। इससे न्याय प्रभावित हो सकता है।
मजिस्ट्रेट से शीर्ष अदालत तक का सफर तय किया जस्टिस पंत ने
सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में बुधवार 13 August 2014 को शपथ लेने वाले जस्टिस प्रफुल्ल चन्द्र पंत ने देश की सर्वाधिक कनिष्ठ अदालत से लेकर शीर्ष अदालत का सफर तय किया है। न्यायपालिका के इतिहास में यह मुकाम बहुत मुश्किल से हासिल होता है और अभी तक कुछेक जज ही ऐसा कर पाए हैं। जस्टिस पंत के शीर्ष अदालत तक पहुंचने में किस्मत ने भी साथ निभाया है। 62 साल की उम्र पार करने से ठीक 17 दिन पहले उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया है। वह मेघायल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से पदोन्नति पाकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। 62 साल की उम्र में हाई कोर्ट के जज सेवानिवृत्त हो जाते हैं। वह लगभग तीन साल तक सुप्रीम कोर्ट के जज के पद पर आसीन रहेंगे। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में जन्मे जस्टिस पंत 24 साल की उम्र में ही उत्तर-प्रदेश न्यायिक सेवा के अफसर नियुक्त हो गए थे। अविभाजित यूपी में वह गाजियाबाद, पीलीभीत, रानीखेत, बरेली और मेरठ में प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट रहे। 1990 में उच्चतर न्यायिक सेवा में पदोन्नत होकर अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीस बने। जून 2004 में वह उत्तराखंड हाई कोर्ट के जज नियुक्त किए गए। वह सितम्बर, 2013 में मेघालय हाई कोर्ट के प्रथम चीफ जस्टिस बने।
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