नैनीताल और नैनी झील के कई जाने-अनजाने पहलू


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Early Nainital

सरोवर नगरी नैनीताल को कभी विश्व भर में अंग्रेजों के घर ‘छोटी बिलायत’ के रूप में जाना जाता था, और अब नैनीताल के रूप में भी इस नगर की वैश्विक पहचान है। इसका श्रेय केवल नगर की अतुलनीय, नयनाभिराम, अद्भुत, अलौकिक जैसे शब्दों से भी परे यहां की प्राकृतिक सुन्दरता को दिया जाऐ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
नैनीताल की वर्तमान रूप में खोज करने का श्रेय अंग्रेज व्यवसायी पीटर बैरन को जाता है, कहते हैं कि उनका शाहजहांपुर के रोजा नाम के स्थान में शराब का कारखाना था। कहा जाता है कि उन्होंने 18 नवम्बर 1841 को नगर की खोज की थी। बैरन के हवाले से सर्वप्रथम 1842 में आगरा अखबार में इस नगर के बारे में समाचार छपा, जिसके बाद 1850 तक यह नगर ‘छोटी बिलायत’ के रूप में देश-दुनियां में प्रसिद्ध हो गया। कुमाऊं विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय एवं भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष भूगर्भ वेत्ता प्रो.सीसी पंत के अनुसार बैरन ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों को दिखाने के लिये लंदन की पत्रिका National Geographic में भी नैनीताल नगर के बारे में लेख छापा था। 1843 में ही नैनीताल जिमखाना की स्थापना के साथ यहाँ खेलों की शुरुआत हो गयी थी, जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने लगा। 1844 में नगर में पहले ‘सेंट जोन्स इन विल्डरनेस’ चर्च की स्थापना हुई। 1847 में यहां पुलिस व्यवस्था शुरू हुई। 1862 में यह नगर तत्कालीन नोर्थ प्रोविंस (उत्तर प्रान्त) की ग्रीष्मकालीन राजधानी व साथ ही लार्ड साहब का मुख्यालय बना साथ ही 1896 में सेना की उत्तरी कमांड का एवं 1906 से 1926 तक पश्चिमी कमांड का मुख्यालय रहा। 1872 में नैनीताल सेटलमेंट किया गया। 1880 में नगर का ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया। 1881 में यहाँ ग्रामीणों को बेहतर शिक्षा के लिए डिस्ट्रिक्ट बोर्ड व 1892 में रेगुलर इलेक्टेड बोर्ड बनाए गए। 1892 में ही विद्युत् चालित स्वचालित पम्पों की मदद से यहाँ पेयजल आपूर्ति होने लगी। 1889 में 300 रुपये प्रतिमाह के डोनेशन से नगर में पहला भारतीय कॉल्विन क्लब राजा बलरामपुर ने शुरू किया। कुमाऊँ में कुली बेगार आन्दोलनों के दिनों में 1921 में इसे पुलिस मुख्यालय भी बनाया गया। वर्तमान में यह  कुमाऊँ मंडल का मुख्यालय है, साथ ही यहीं उत्तराखंड राज्य का उच्च न्यायालय भी है। यह भी एक रोचक तथ्य है कि अपनी स्थापना के समय सरकारी दस्तावेजों में 1842 से 1881 तक यह नगर नइनीटाल (Nynee tal) तथा इससे पूर्व 1823 में यहाँ सर्वप्रथम पहुंचे पहले कुमाऊं कमिश्नर जी डब्लू ट्रेल द्वारा 1828 में नागनी ताल (Nagni Tal) भी लिखा गया। 2001 की भारतीय जनगणना के अनुसार नैनीताल की जनसंख्या 38,559 थी। जिसमें पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या क्रमशः 46 व 54 प्रतिशत और औसत साक्षरता दर 81 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय औसत  59.5 प्रतिशत से अधिक है। इसमें भी पुरुष साक्षरता दर 86 प्रतिशत और महिला साक्षरता 76 प्रतिशत थी। 2011 की जनगणना के अनुसार नैनीताल की जनसंख्या 41,416 हो गई है।
नैनीताल का पौराणिक संदर्भः 
पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार मानसखंड के अध्याय 40 से 51 तक नैनीताल क्षेत्र के पुण्य स्थलों, नदी, नालों और पर्वत श्रृंखलाओं का 219 श्लोकों में वर्णन मिलता है। मानसखंड में नैनीताल और कोटाबाग के बीच के पर्वत को शेषगिरि पर्वत कहा गया है, जिसके एक छोर पर सीतावनी स्थित है। कहा जाता है कि सीतावनी में भगवान राम व सीता जी ने कुछ समय बिताया है। जनश्रुति है कि सीता सीतावनी में ही अपने पुत्रों लव व कुश के साथ राम द्वारा वनवास दिये जाने के दिनों में रही थीं। सीतावनी के आगे देवकी नदी बताई गई है, जिसे वर्तमान में दाबका नदी कहा जाता है। महाभारत वन पर्व में इसे आपगा नदी कहा गया है। आगे बताया गया है कि गर्गांचल (वर्तमान गागर) पर्वतमाला के आसपास 66 ताल थे। इन्हीं में से एक त्रिऋषि सरोवर (वर्तमान नैनीताल) कहा जाता था, जिसे भद्रवट (चित्रशिला घाट-रानीबाग) से कैलास मानसरोवर की ओर जाते समय चढ़ाई चढ़ने में थके अत्रि, पुलह व पुलस्त्य नाम के तीन ऋषियों ने मानसरोवर का ध्यान कर उत्पन्न किया था। इस सरोवर में महेंद्र परमेश्वरी (नैना देवी) का वास था। सरोवर के बगल में सुभद्रा नाला (बलिया नाला) बताया गया है, इसी तरह भीमताल के पास के नाले को पुष्पभद्रा नाला कहा गया है, दोनों नाले भद्रवट यानी रानीबाग में मिलते थे। कहा गया है कि सुतपा ऋषि के अनुग्रह पर त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु व महेश चित्रशिला पर आकर बैठ गये और प्रसन्नतापूर्वक ऋषि को विमान में बैठाकर स्वर्ग ले गये। गौला को गार्गी नदी कहा गया है। भीम सरोवर (भीमताल) महाबली भीम के गदा के प्रहार तथा उनके द्वारा अंजलि से भरे गंगा जल से उत्पन्न हुआ था। पास की कोसी नदी को कौशिकी, नौकुचियाताल को नवकोण सरोवर, गरुड़ताल को सिद्ध सरोवर व नल सरोवर आदि का भी उल्लेख है। क्षेत्र का छःखाता या शष्ठिखाता भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है, यहां 60 ताल थे। मानसखंड में कहा गया है कि यह सभी सरोवर कीट-पतंगों, मच्छरों आदि तक को मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। इतिहासकार एवं लोक चित्रकार पद्मश्री डा. यशोधर मठपाल मानसखंड को पूर्व मान्यताओं के अनुसार स्कंद पुराण का हिस्सा तो नहीं मानते, अलबत्ता मानते हैं कि मानसखंड करीब 10वीं-11वीं सदी के आसपास लिखा गया एक धार्मिक ग्रंथ है।
कहते हैं कि नैनीताल नगर का पहला उल्लेख त्रिषि-सरोवर (त्रि-ऋृषि सरोवर के नाम से स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया जाता है। कहा जाता है कि अत्रि, पुलस्त्य व पुलह नाम के तीन ऋृषि कैलास मानसरोवर झील की यात्रा के मार्ग में इस स्थान से गुजर रहे थे कि उन्हें जोरों की प्यास लग गयी। इस पर उन्होंने अपने तपोबल से यहीं मानसरोवर का स्मरण करते हुए एक गड्ढा खोदा और उसमें मानसरोवर झील का पवित्र जल भर दिया। इस प्रकार नैनी झील का धार्मिक महात्म्य मानसरोवर झील के तुल्य ही माना जाता है। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार नैनी झील को देश के 64 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव जब माता सती के दग्ध शरीर को आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत की ओर ले जा रहे थे, इस दौरान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को विभक्त कर दिया था। तभी माता सती की बांयी आँख (नैन या नयन) यहाँ (तथा दांयी आँख हिमांचल प्रदेश के नैना देवी नाम के स्थान पर) गिरी थी, जिस कारण इसे नयनताल, नयनीताल व कालान्तर में नैनीताल कहा गया। यहाँ नयना देवी का पवित्र मंदिर स्थित है।
भौगोलिक संदर्भः 
समुद्र स्तर से 1938 मीटर (6358 फीट) की ऊंचाई (तल्लीताल डांठ पर) पर स्थित नैनीताल करीब तीन किमी की परिधि की 1434 मीटर लंबी, 463 मीटर चौड़ाई व अधिकतम 28 मीटर गहराई व 44.838 हेक्टेयर यानी 0.448 वर्ग किमी में फैली नाशपाती के आकार की झील के गिर्द नैना (2,615 मीटर (8,579 फुट), देवपाटा (2,438 मीटर (7,999 फुट)) तथा अल्मा, हांड़ी-बांडी, लड़िया-कांटा और अयारपाटा (2,278 मीटर (7,474 फुट) की सात पहाड़ियों से घिरा हुआ बेहद खूबसूरत पहाडी शहर है। जिला गजट के अनुसार नैनीताल 29 डिग्री 38 अंश उत्तरी अक्षांश और 79 डिग्री 45 अंश पूर्वी देशांतर पर स्थित है। नैनीताल नगर का विस्तार पालिका मानचित्र के अनुसार सबसे निचला स्थान कृष्णापुर गाड़ व बलियानाला के संगम पर पिलर नंबर 22 (1,406 मीटर यानी 4,610 फीट) से नैना पीक (2,613 मीटर यानी 8,579 फीट) के बीच 1,207 मीटर यानी करीब सवा किमी की सीधी ऊंचाई तक है। इस लिहाज से भी यह दुनिया का अपनी तरह का इकलौता और अनूठा छोटा सा नगर है, जहां इतना अधिक ग्रेडिऐंट मिलता है। नगर का क्षेत्रफल नगर पालिका के 11.66 वर्ग किमी व कैंटोनमेंट के 2.57 वर्ग किमी मिलाकर कुल 17.32 वर्ग किमी है। इसमें से नैनी झील का जलागम क्षेत्र 5.66 वर्ग किमी है, जबकि कैंट सहित कुल नगर क्षेत्र में से 5.87 वर्ग किमी क्षेत्र वनाच्छादित है।
नदी के रुकने से 40 हजार वर्ष पूर्व हुआ था नैनी झील का निर्माण
कुमाऊं विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय एवं भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष भूगर्भ वेत्ता प्रो.सीसी पंत ने देश के सुप्रसिद्ध भूवेत्ता प्रो. खड़ग सिंह वल्दिया की पुस्तक Geology and Natural Environment of Nainital Hills, Kumaon Himalaaya के आधार पर बताया कि नैनीताल कभी नदी घाटी रहा होगा, इसमें उभरा नैनीताल फाल्ट नैनी झील की उत्पत्ति का कारण बना, जिसके कारण नदी का उत्तर पूर्वी भाग, दक्षिण पश्चिमी भाग के सापेक्ष ऊपर उठ गया। इस प्रकार भ्रंशों के द्वारा पुराने जल प्रवाह के रुकने तथा वर्तमान शेर का डांडा व अयारपाटा नाम की पहाड़ियों के बीच गुजरने वाले भ्रंश की हलचल व भू धंसाव से तल्लीताल डांठ के पास नदी अवरुद्ध हो गई, और करीब 40 हजार वर्ष पूर्व नैनी झील की उत्पत्ति हुई होगी। जनपद की अन्य झीलें भी इसी नदी घाटी का हिस्सा थीं, और इसी कारण उन झीलों का निर्माण भी हुआ होगा। नैना पीक चोटी इस नदी का उद्गम स्थल था। नैनी झील सहित इन झीलों के अवसादों के रेडियोकार्बन विधि से किये गये अध्ययन से भी यह आयु तथा इन सभी झीलों के करीब एक ही समय उत्पत्ति की पुष्टि भी हो चुकी है।
प्रो. पंत बताते हैं कि नैनीताल की चट्टानें चूना पत्थर की बनी हुई हैं। चूना पत्थर के लगातार पानी में घुलते जाने से विशाल पत्थरों के अंदर गुफानुमा आकृतियां बन जाती हैं, जिसे नगर में देखा जा सकता है। वहीं कई बार गुुफाओं के धंस जाने से भी झील बन जाती हैं। प्रो. पंत बताते हैं कि खुर्पाताल झील इसी प्रकार गुफाओं के धंसने से बनी है। कुछ पुराने वैज्ञानिक नैनी झील की कारक प्राचीन नदी का हिमनदों से उद्गम भी मानते हैं, पर प्रो. पंत कहते हैं कि यहां हिमनदों के कभी होने की पुष्टि नहीं होती है। लेकिन प्रो. पंत यह दावा जरूर करते हैं कि यहां की सभी झीलें भ्रंशों के कारण ही बनी हैं।
एक अरब रुपये का मनोरंजन मूल्य है नैनी झील का
जी हां, देश-विदेश में विख्यात नैनी झील की मनोरंजन कीमत (Recreational Value)100 करोड़ यानी एक अरब रुपये वार्षिक आंकी गई है। कुमाऊं विश्व विद्यालय में प्राध्यापक रहे एवं हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के पूर्व कुलपति एवं वनस्पति शास्त्री प्रो. एस.पी.सिंह ने वर्तमान स्थिति में यह दावा किया है। गौरतलब है कि प्रो. सिंह ने वर्ष 1995 में इस बाबत बकायदा शोध किया था, और तब नैनी झील का मनोरंजन मूल्य तीन से चार करोड़ रुपये आंका गया था। प्रो. सिंह बताते हैं कि मनोरंजन मूल्य लोगों व यहां आने वाले सैलानियों द्वारा नैनी झील से मिलने वाले मनोरंजन के बदले खर्च की जाने वाली धनराशि को प्रकट करता है। इसमें नाव, घोड़े, रिक्शा, होटल, टैक्सी सहित हर तरह की पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों से अर्जित की जाने वाली धनराशि शामिल हैं। इसे नगर के पर्यटन का कुल कारोबार भी कहा जा सकता है। प्रो. सिंह कहते हैं कि यह मनोरंजन मूल्य चूंकि 0.448 वर्ग किमी यानी करीब 45 हैक्टेयर वाली झील का है, लिहाजा नैनी झील का प्रति हैक्टेयर मनोरंजन मूल्य करीब दो करोड़ रुपये से अधिक है, जबकि इसके संरक्षण के लिये इस धनराशि के सापेक्ष कहीं कम धनराशि खर्च की जाती है।
पूरी तरह मौसम पर निर्भर है नैनी झील
कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्राध्यापक प्रो. जी.एल. साह नैनी झील को पूरी तरह मौसम पर निर्भर प्राकृतिक झील मानते हैं। उनके अनुसार इसमें पानी वर्ष भर मौसम के अनुसार पानी घटता, बढ़ता रहता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे Intermittent Drainage Lake यानी आंतरायिक जल निकास प्रणाली वाली झील है। उनके अनुसार इसमें वर्ष भर पानी आता भी नहीं है और वर्ष भर जाता भी नहीं है। उनके अनुसार नैनी झील में चार श्रोतों से पानी आता है। 1. अपने प्राकृतिक भू-जल श्रोतों से, 2. आसपास के सूखाताल जैसे रिचार्ज व जलागम क्षेत्र से रिसकर 3. धरातलीय प्रवाह से एवं 4. सीधे बारिश से। और यह चारों क्षेत्र कहीं न कहीं मौसम पर ही निर्भर करते हैं।
सूखाताल से आता है नैनी झील में 77 प्रतिशत पानी 
आईआईटीआर रुड़की के अल्टरनेट हाइड्रो इनर्जी सेंटर (एएचईसी) द्वारा वर्ष 1994 से 2001 के बीच किये गये अध्ययनों के आधार पर की 2002 में आई रिपोर्ट के अनुसार नैनीताल झील में सर्वाधिक 53 प्रतिशत पानी सूखाताल झील से जमीन के भीतर से होकर तथा 24 प्रतिशत सतह पर बहते हुऐ (यानी कुल मिलाकर 77 प्रतिशत) नैनी झील में आता है। इसके अलावा 13 प्रतिशत पानी बारिश से एवं शेष 10 प्रतिशत नालों से होकर आता है। वहीं झील से पानी के बाहर जाने की बात की जाऐ तो झील से सर्वाधिक 56 फीसद पानी तल्लीताल डांठ को खोले जाने से बाहर निकलता है, 26 फीसद पानी पंपों की मदद से पेयजल आपूर्ति के लिये निकाला जाता है, 10 फीसद पानी झील के अंदर से बाहरी जल श्रोतों की ओर रिस जाता है, जबकि शेष आठ फीसद पानी सूर्य की गरमी से वाष्पीकृत होकर नष्ट होता है।
वहीं इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंटल रिसर्च मुंबई द्वारा वर्ष 1994 से 1995 के बीच नैनी झील में आये कुल 4,636 हजार घन मीटर पानी में से सर्वाधिक 42.6 प्रतिशत यानी 1,986,500 घन मीटर पानी सूखाताल झील से, 25 प्रतिशत यानी 1,159 हजार घन मीटर पानी अन्य सतह से भरकर, 16.7 प्रतिशत यानी 772 हजार घन मीटर पानी नालों से बहकर तथा शेष 15.5 प्रतिशत यानी 718,500 घन मीटर पानी बारिश के दौरान तेजी से बहकर पहुंचता है। वहीं झील से जाने वाले कुल 4,687 हजार घन मीटर पानी में से सर्वाधिक 1,787,500 घन मीटर यानी 38.4 प्रतिशत यानी डांठ के गेट खोले जाने से निकलता है। 1,537 हजार घन मीटर यानी 32.8 प्रतिशत पानी पंपों के माध्यम से बाहर निकाला जाता है, 783 हजार घन मीटर यानी 16.7 प्रतिशत पानी झील से रिसकर निकल जाता है, वहीं 569,500 घन मीटर यानी 12.2 प्रतिशत पानी वाष्पीकृत हो जाता है।
दुनिया की सर्वाधिक बोझ वाली झील है नैनी झील
नैनी झील का कुल क्षेत्रफल 44.838 हैक्टेयर यानी 0.448 वर्ग किमी यानी आधे वर्ग किमी से भी कम है। इसमें 5.66 वर्ग किमी जलागम क्षेत्र से पानी (और गंदगी भी) आती है। जबकि इस छोटी सी झील पर नगर पालिका के 11.68 वर्ग किमी और केंटोनमेंट बोर्ड के 2.57 वर्ग किमी मिलाकर 14.25 वर्ग किमी क्षेत्रफल की जिम्मेदारी है। इसमें से भी प्रो. साह बताते हैं कि नगर की 80 फीसद जनसंख्या इसके जलागम क्षेत्र यानी 5.66 वर्ग किमी क्षेत्र में ही रहती है। यानी नगर के 14.25 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले शहर की 80 प्रतिशत जनंसख्या इसके जलागम क्षेत्र 5.66 वर्ग किमी में रहती है, इसमें सीजन में हर रोज एक लाख से अधिक लोग पर्यटकों के रूप में भी आते हैं, और यह समस्त जनसंख्या किसी न किसी तरह से मात्र 0.448 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली झील पर निर्भर रहती है। प्रो. साह कहते हैं कि इतने बड़े बोझ को झेल रही यह दुनिया की अपनी तरह की इकलौती झील है।  
झील में प्रदूषण के बावजूद शुद्धतम पेयजल देती है नैनी झील
हाईड्रोलॉजिकल जर्नल-2008 में प्रकाशित भारत के आर.आर दास, आई.मेहरोत्रा व पी.कुमार तथा जर्मनी के टी.ग्रिश्चेक द्वारा नगर में नैनी झील किनारे लगाये गये पांच नलकूपों से निकलने वाले पानी पर वर्ष 1997 से 2006 के बीच किये गये शोध में नैनी झील के जल को शुद्धतम जल करार दिया गया है। कहा गया कि नगर में झील से 100 मीटर की दूरी पर 22.6 से 36.7 मीटर तक गहरे लगाये गये नलकूपों का पानी अन्यत्र पानी के फिल्ट्रेशन के लिये प्रयुक्त किये जाने वाले रेत और दबाव वाले कृत्रिम फिल्टरों के मुकाबले कहीं बेहतर पानी देते हैं। इनसे निकलने वाले पानी को पेयजल के लिये उपयोगी बनाने के लिये क्लोरीनेशन करने से पूर्व अतिरिक्त उपचार करने की जरूरत भी नहीं पड़ती। समान परिस्थितियों में किये गये अध्ययन में जहां फिल्टरों से गुजारने के बावजूद नैनी झील में 2300 एमपीएन कोलीफार्म बैक्टीरिया प्रति 100 मिली पानी में मिले, जोकि क्लोरीनेशन के लिये उपयुक्त 50 एमपीएन से कहीं अधिक थे, जबकि नलकूपों से प्राप्त पानी में कोलीफार्म बैक्टीरिया मिले ही नहीं। इसका कारण यह माना गया कि इन नलकूपों में झील से बिना किसी दबाव के पानी आता है, जबकि कृत्रिम फिल्टरों में पानी को दबाव के साथ गुजारा जाता है, जिसमें कई खतरनाक बैक्टीरिया भी गुजर आते हैं। इसीलिये यहां के प्रयोग को दोहराते हुऐ देश में रिवर बैंक फिल्टरेशन तकनीक शुरू की गई। इन नलकूपों के प्राकृतिक तरीके से शोधित पानी में बड़े फिल्टरों के मुकाबले कम बैक्टीरिया पाये गये।
मल्ली-तल्ली के बीच सात फीट झुकी है नैनी झील
जी हां, मल्लीताल और तल्लीताल के बीच नैनी झील सात फीट झुकी हुई है। झील से पानी बाहर निकाले जाने की पूरी तरह भरी स्थिति में झील की तल्लीताल शिरे पर जब झील की सतह की समुद्र सतह से ऊंचाई 6,357 फीट होती है, तब मल्लीताल शिरे पर झील की सतह की समुद्र सतह ऊंचाई 6,364 फीट होती है। यानी झील के मल्लीताल व तल्लीताल शिरे पर झील की समुद्र सतह से ऊंचाई में सात फीट का अंतर रहता है।
प्राकृतिक वनों का अनूठा शहर है नैनीताल
नैनीताल नगर का एक खूबसूरत पहलू यह भी है कि यह नगर प्राकृतिक वनों का शहर है। वनस्पति विज्ञानी प्रो. एस.पी. सिंह के अनुसार नगर की नैना पीक चोटी में साइप्रस यानी सुरई का घना जंगल है। यह जंगल पूरी तरह प्राकृतिक जंगल है, यानी इसमें पेड़ लगाये नहीं गये हैं, खुद-ब-खुद उगे हैं। नगर के निकट किलबरी का जंगल दुनिया के पारिस्थितिकीय तौर पर दुनिया के समृद्धतम जंगलों में शुमार है। नैनी झील का जलागम क्षेत्र बांज, तिलोंज व बुरांश आदि के सुंदर जंगलों से सुशोभित है। नगर की इस खाशियत का भी इस शहर को अप्रतिम बनाने में बड़ा योगदान है। प्रो. सिंह नगर की खूबसूरती के इस कारण को रेखांकित करते हुऐ बताते हैं कि इसी कारण नैनीताल नगर के आगे जनपद की सातताल, भीमताल, नौकुचियाताल और खुर्पाताल आदि झीलें खूबसूरती, पर्यटन व मनोरजन मूल्य सही किसी भी मायने में कहीं नहीं ठहरती हैं।
इसके अलावा नैनीताल की और एक विशेषता यह है कि यहां कृषि योग्य भूमि नगण्य है, हालांकि राजभवन, पालिका गार्डन, कैनेडी पार्क व कंपनी बाग सहित अनेक बाग-बगीचे हैं।
‘वाकिंग पैराडाइज’ भी कहलाता है नैनीताल
नैनीताल नगर ‘वाकिंग पैराडाइज’ यानी पैदल घूमने के लिये भी स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि यहां कमोबेस हर मौसम में, मूसलाधार बारिश को छोड़कर, दिन में किसी भी वक्त घूमा जा सकता है। जबकि मैदानी क्षेत्रों में सुबह दिन चढ़ने और सूर्यास्त से पहले गर्मी एवं सड़कों में भारी भीड़-भाड़ के कारण घूमना संभव नहीं होता है। जबकि यहां नैनीताल में वर्ष भर मौसम खुशनुमा रहता है, व अधिक भीड़ भी नहीं रहती। नगर की माल रोड के साथ ही ठंडी सड़क में घूमने का मजा ही अलग होता है। वहीं वर्ष 2010 से नगर में अगस्त माह के आखिरी रविवार को नैनीताल माउंटेन मानसून मैराथन दौड़ भी नगर की पहचान बनने लगी है, इस दौरान किसी खास तय नेक उद्देश्य के लिये ‘रन फार फन’ वाक या दौड़ भी आयोजित की जाती है, जो अब मानूसन के दौरान नगर का एक प्रमुख आकर्षण बनता जा रहा है।
नैनीताल में है एशिया का पहला मैथोडिस्ट चर्च
सरोवरनगरी से बाहर के कम ही लोग जानते होंगे कि देश-प्रदेश के इस छोटे से पर्वतीय नगर में देश ही नहीं एशिया का पहला अमेरिकी मिशनरियों द्वारा निर्मित मैथोडिस्ट चर्च निर्मित हुआ, जो कि आज भी कमोबेश पहले से बेहतर स्थिति में मौजूद है। नगर के मल्लीताल माल रोड स्थित चर्च को यह गौरव हासिल है। देश पर राज करने की नीयत से आये ब्रिटिश हुक्मरानों से इतर यहां आये अमेरिकी मिशनरी रेवरन यानी पादरी डा. बिलियम बटलर ने इस चर्च की स्थापना की थी।
यह वह दौर था जब देश में पले स्वाधीनता संग्राम की क्रांति जन्म ले रही थी। मेरठ अमर सेनानी मंगल पांडे के नेतृत्व में इस क्रांति का अगुवा था, जबकि समूचे रुहेलखंड क्षेत्र में रुहेले सरदार अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हो रहे थे। बरेली में उन्होंने शिक्षा के उन्नयन के लिये पहुंचे रेवरन बटलर को भी अंग्रेज समझकर उनके परिवार पर जुल्म ढाने शुरू कर दिये, जिससे बचकर बटलर अपनी पत्नी क्लेमेंटीना बटलर के साथ नैनीताल आ गये, और यहां उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिये नगर के पहले स्कूल के रूप में हम्फ्री कालेज (वर्तमान सीआरएसटी स्कूल) की स्थापना की, और इसके परिसर में ही बच्चों एवं स्कूल कर्मियों के लिये प्रार्थनाघर के रूप में चर्च की स्थापना की। तब तक अमेरिकी मिशनरी एशिया में कहीं और इस तर चर्च की स्थापना नहीं कर पाऐ थे। बताते हैं कि तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नरी हेनरी रैमजे ने 20 अगस्त 1858 को चर्च के निर्माण हेेतु एक दर्जन अंग्रेज अधिकारियों के साथ बैठक की थी। चर्च हेतु रैमजे, बटलर व हैम्फ्री ने मिलकर 1650 डॉलर में 25 एकड़ जमीन खरीदी, तथा इस पर 25 दिसंबर 1858 को इस चर्च की नींव रखी गई। चर्च का निर्माण अक्टूबर 1860 में पूर्ण हुआ। इसके साथ ही नैनीताल उस दौर में देश में ईसाई मिशनरियों के शिक्षा के प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र बन गया। अंग्रेजी लेखक जॉन एन शालिस्टर की 1956 में लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक ‘द सेंचुरी ऑफ मैथोडिस्ट चर्च इन सदर्न एशिया’ में भी नैनीताल की इस चर्च को एशिया का पहला चर्च कहा गया है। नॉर्थ इंडिया रीजनल कांफ्रेंस के जिला अधीक्षक रेवरन सुरेंद्र उत्तम प्रसाद बताते हैं कि रेवरन बटलर ने नैनीताल के बाद पहले यूपी के बदायूं तथा फिर बरेली में 1870 में चर्च की स्थापना की। उनका बरेली स्थित आवास बटलर हाउस वर्तमान में बटलर प्लाजा के रूप में बड़ी बाजार बन चुकी है, जबकि देरादून का क्लेमेंट टाउन क्षेत्र का नाम भी संभवतया उनकी पत्नी क्लेमेंटीना के नाम पर ही प़डा।
1890 में हुई पाल नौकायन की शुरुआत, विश्व का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित है याट क्लब
1890 में नैनीताल में विश्व के सर्वाधिक ऊँचे याट (पाल नौका, सेलिंग-राकटा) क्लब (वर्तमान बोट हाउस क्लब) की स्थापना हुई। एक अंग्रेज लिंकन होप ने यहाँ की परिस्थितियों के हिसाब से विशिष्ट पाल नौकाएं बनाईं, जिन्हें ‘हौपमैन हाफ राफ्टर’ कहा जाता है, इन नावों के साथ इसी वर्ष सेलिंग क्लब ने नैनी सरोवर में सर्व प्रथम पाल नौकायन की शुरुआत भी की। यही नावें आज भी यहाँ चलती हैं। 1891 में नैनीताल याट क्लब (N.T.Y.C.) की स्थापना हुई। बोट हाउस क्लब वर्तमान स्वरुप में 1897 में स्थापित हुआ। 

समुद्र स्तर से 1938 मीटर (6358 फीट) की ऊंचाई (तल्लीताल डांठ पर) पर स्थित नैनीताल करीब तीन किमी की परिधि की 1434 मीटर लंबी, 463 मीटर चौड़ाई व अधिकतम 28 मीटर गहराई व 44.838 हेक्टेयर यानी 0.448 वर्ग किमी में फैली नाशपाती के आकार की झील के गिर्द नैना (2,615 मीटर (8,579 फुट), देवपाटा (2,438 मीटर (7,999 फुट)) तथा अल्मा, हांड़ी-बांडी, लड़िया-कांटा और अयारपाटा (2,278 मीटर (7,474 फुट) की सात पहाड़ियों से घिरा हुआ बेहद खूबसूरत पहाडी शहर है। जिला गजट के अनुसार नैनीताल 29 डिग्री 38 अंश उत्तरी अक्षांश और 79 डिग्री 45 अंश पूर्वी देशांतर पर स्थित है। नैनीताल नगर का विस्तार पालिका मानचित्र के अनुसार सबसे निचला स्थान कृष्णापुर गाड़ व बलियानाला के संगम पर पिलर नंबर 22 (1,406 मीटर यानी 4,610 फीट) से नैना पीक (2,613 मीटर यानी 8,579 फीट) के बीच 1,207 मीटर यानी करीब सवा किमी की सीधी ऊंचाई तक है। इस लिहाज से भी यह दुनिया का अपनी तरह का इकलौता और अनूठा छोटा सा नगर है, जहां इतना अधिक ग्रेडिऐंट मिलता है। नगर का क्षेत्रफल नगर पालिका के 11.66 वर्ग किमी व कैंटोनमेंट के 2.57 वर्ग किमी मिलाकर कुल 17.32 वर्ग किमी है। इसमें से नैनी झील का जलागम क्षेत्र 5.66 वर्ग किमी है, जबकि कैंट सहित कुल नगर क्षेत्र में से 5.87 वर्ग किमी क्षेत्र वनाच्छादित है।
नदी के रुकने से 40 हजार वर्ष पूर्व हुआ था नैनी झील का निर्माण
कुमाऊं विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय एवं भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष भूगर्भ वेत्ता प्रो.सीसी पंत ने देश के सुप्रसिद्ध भूवेत्ता प्रो. खड़ग सिंह वल्दिया की पुस्तक Geology and Natural Environment of Nainital Hills, Kumaon Himalaaya के आधार पर बताया कि नैनीताल कभी नदी घाटी रहा होगा, इसमें उभरा नैनीताल फाल्ट नैनी झील की उत्पत्ति का कारण बना, जिसके कारण नदी का उत्तर पूर्वी भाग, दक्षिण पश्चिमी भाग के सापेक्ष ऊपर उठ गया। इस प्रकार भ्रंशों के द्वारा पुराने जल प्रवाह के रुकने तथा वर्तमान शेर का डांडा व अयारपाटा नाम की पहाड़ियों के बीच गुजरने वाले भ्रंश की हलचल व भू धंसाव से तल्लीताल डांठ के पास नदी अवरुद्ध हो गई, और करीब 40 हजार वर्ष पूर्व नैनी झील की उत्पत्ति हुई होगी। जनपद की अन्य झीलें भी इसी नदी घाटी का हिस्सा थीं, और इसी कारण उन झीलों का निर्माण भी हुआ होगा। नैना पीक चोटी इस नदी का उद्गम स्थल था। नैनी झील सहित इन झीलों के अवसादों के रेडियोकार्बन विधि से किये गये अध्ययन से भी यह आयु तथा इन सभी झीलों के करीब एक ही समय उत्पत्ति की पुष्टि भी हो चुकी है।
प्रो. पंत बताते हैं कि नैनीताल की चट्टानें चूना पत्थर की बनी हुई हैं। चूना पत्थर के लगातार पानी में घुलते जाने से विशाल पत्थरों के अंदर गुफानुमा आकृतियां बन जाती हैं, जिसे नगर में देखा जा सकता है। वहीं कई बार गुुफाओं के धंस जाने से भी झील बन जाती हैं। प्रो. पंत बताते हैं कि खुर्पाताल झील इसी प्रकार गुफाओं के धंसने से बनी है। कुछ पुराने वैज्ञानिक नैनी झील की कारक प्राचीन नदी का हिमनदों से उद्गम भी मानते हैं, पर प्रो. पंत कहते हैं कि यहां हिमनदों के कभी होने की पुष्टि नहीं होती है। लेकिन प्रो. पंत यह दावा जरूर करते हैं कि यहां की सभी झीलें भ्रंशों के कारण ही बनी हैं।
एक अरब रुपये का मनोरंजन मूल्य है नैनी झील का
जी हां, देश-विदेश में विख्यात नैनी झील की मनोरंजन कीमत ;त्मबतमंजपवद टंसनमद्ध 100 करोड़ यानी एक अरब रुपये वार्षिक आंकी गई है। कुमाऊं विश्व विद्यालय में प्राध्यापक रहे एवं हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के पूर्व कुलपति एवं वनस्पति शास्त्री प्रो. एस.पी.सिंह ने वर्तमान स्थिति में यह दावा किया है। गौरतलब है कि प्रो. सिंह ने वर्ष 1995 में इस बाबत बकायदा शोध किया था, और तब नैनी झील का मनोरंजन मूल्य तीन से चार करोड़ रुपये आंका गया था। प्रो. सिंह बताते हैं कि मनोरंजन मूल्य लोगों व यहां आने वाले सैलानियों द्वारा नैनी झील से मिलने वाले मनोरंजन के बदले खर्च की जाने वाली धनराशि को प्रकट करता है। इसमें नाव, घोड़े, रिक्शा, होटल, टैक्सी सहित हर तरह की पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों से अर्जित की जाने वाली धनराशि शामिल हैं। इसे नगर के पर्यटन का कुल कारोबार भी कहा जा सकता है। प्रो. सिंह कहते हैं कि यह मनोरंजन मूल्य चूंकि 0.448 वर्ग किमी यानी करीब 45 हैक्टेयर वाली झील का है, लिहाजा नैनी झील का प्रति हैक्टेयर मनोरंजन मूल्य करीब दो करोड़ रुपये से अधिक है, जबकि इसके संरक्षण के लिये इस धनराशि के सापेक्ष कहीं कम धनराशि खर्च की जाती है।
पूरी तरह मौसम पर निर्भर है नैनी झील
कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्राध्यापक प्रो. जी.एल. साह नैनी झील को पूरी तरह मौसम पर निर्भर प्राकृतिक झील मानते हैं। उनके अनुसार इसमें पानी वर्ष भर मौसम के अनुसार पानी घटता, बढ़ता रहता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे Intermittent Drainage Lake यानी आंतरायिक जल निकास प्रणाली वाली झील है। उनके अनुसार इसमें वर्ष भर पानी आता भी नहीं है और वर्ष भर जाता भी नहीं है। उनके अनुसार नैनी झील में चार श्रोतों से पानी आता है। 1. अपने प्राकृतिक भू-जल श्रोतों से, 2. आसपास के सूखाताल जैसे रिचार्ज व जलागम क्षेत्र से रिसकर 3. धरातलीय प्रवाह से एवं 4. सीधे बारिश से। और यह चारों क्षेत्र कहीं न कहीं मौसम पर ही निर्भर करते हैं।
सूखाताल से आता है नैनी झील में 77 प्रतिशत पानी 
आईआईटीआर रुड़की के अल्टरनेट हाइड्रो इनर्जी सेंटर (एएचईसी) द्वारा वर्ष 1994 से 2001 के बीच किये गये अध्ययनों के आधार पर की 2002 में आई रिपोर्ट के अनुसार नैनीताल झील में सर्वाधिक 53 प्रतिशत पानी सूखाताल झील से जमीन के भीतर से होकर तथा 24 प्रतिशत सतह पर बहते हुऐ (यानी कुल मिलाकर 77 प्रतिशत) नैनी झील में आता है। इसके अलावा 13 प्रतिशत पानी बारिश से एवं शेष 10 प्रतिशत नालों से होकर आता है। वहीं झील से पानी के बाहर जाने की बात की जाऐ तो झील से सर्वाधिक 56 फीसद पानी तल्लीताल डांठ को खोले जाने से बाहर निकलता है, 26 फीसद पानी पंपों की मदद से पेयजल आपूर्ति के लिये निकाला जाता है, 10 फीसद पानी झील के अंदर से बाहरी जल श्रोतों की ओर रिस जाता है, जबकि शेष आठ फीसद पानी सूर्य की गरमी से वाष्पीकृत होकर नष्ट होता है।
वहीं इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंटल रिसर्च मुंबई द्वारा वर्ष 1994 से 1995 के बीच नैनी झील में आये कुल 4,636 हजार घन मीटर पानी में से सर्वाधिक 42.6 प्रतिशत यानी 1,986,500 घन मीटर पानी सूखाताल झील से, 25 प्रतिशत यानी 1,159 हजार घन मीटर पानी अन्य सतह से भरकर, 16.7 प्रतिशत यानी 772 हजार घन मीटर पानी नालों से बहकर तथा शेष 15.5 प्रतिशत यानी 718,500 घन मीटर पानी बारिश के दौरान तेजी से बहकर पहुंचता है। वहीं झील से जाने वाले कुल 4,687 हजार घन मीटर पानी में से सर्वाधिक 1,787,500 घन मीटर यानी 38.4 प्रतिशत यानी डांठ के गेट खोले जाने से निकलता है। 1,537 हजार घन मीटर यानी 32.8 प्रतिशत पानी पंपों के माध्यम से बाहर निकाला जाता है, 783 हजार घन मीटर यानी 16.7 प्रतिशत पानी झील से रिसकर निकल जाता है, वहीं 569,500 घन मीटर यानी 12.2 प्रतिशत पानी वाष्पीकृत हो जाता है।
दुनिया की सर्वाधिक बोझ वाली झील है नैनी झील
नैनी झील का कुल क्षेत्रफल 44.838 हैक्टेयर यानी 0.448 वर्ग किमी यानी आधे वर्ग किमी से भी कम है। इसमें 5.66 वर्ग किमी जलागम क्षेत्र से पानी (और गंदगी भी) आती है। जबकि इस छोटी सी झील पर नगर पालिका के 11.68 वर्ग किमी और केंटोनमेंट बोर्ड के 2.57 वर्ग किमी मिलाकर 14.25 वर्ग किमी क्षेत्रफल की जिम्मेदारी है। इसमें से भी प्रो. साह बताते हैं कि नगर की 80 फीसद जनसंख्या इसके जलागम क्षेत्र यानी 5.66 वर्ग किमी क्षेत्र में ही रहती है। यानी नगर के 14.25 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले शहर की 80 प्रतिशत जनंसख्या इसके जलागम क्षेत्र 5.66 वर्ग किमी में रहती है, इसमें सीजन में हर रोज एक लाख से अधिक लोग पर्यटकों के रूप में भी आते हैं, और यह समस्त जनसंख्या किसी न किसी तरह से मात्र 0.448 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली झील पर निर्भर रहती है। प्रो. साह कहते हैं कि इतने बड़े बोझ को झेल रही यह दुनिया की अपनी तरह की इकलौती झील है।  
झील में प्रदूषण के बावजूद शुद्धतम पेयजल देती है नैनी झील
हाईड्रोलॉजिकल जर्नल-2008 में प्रकाशित भारत के आर.आर दास, आई.मेहरोत्रा व पी.कुमार तथा जर्मनी के टी.ग्रिश्चेक द्वारा नगर में नैनी झील किनारे लगाये गये पांच नलकूपों से निकलने वाले पानी पर वर्ष 1997 से 2006 के बीच किये गये शोध में नैनी झील के जल को शुद्धतम जल करार दिया गया है। कहा गया कि नगर में झील से 100 मीटर की दूरी पर 22.6 से 36.7 मीटर तक गहरे लगाये गये नलकूपों का पानी अन्यत्र पानी के फिल्ट्रेशन के लिये प्रयुक्त किये जाने वाले रेत और दबाव वाले कृत्रिम फिल्टरों के मुकाबले कहीं बेहतर पानी देते हैं। इनसे निकलने वाले पानी को पेयजल के लिये उपयोगी बनाने के लिये क्लोरीनेशन करने से पूर्व अतिरिक्त उपचार करने की जरूरत भी नहीं पड़ती। समान परिस्थितियों में किये गये अध्ययन में जहां फिल्टरों से गुजारने के बावजूद नैनी झील में 2300 एमपीएन कोलीफार्म बैक्टीरिया प्रति 100 मिली पानी में मिले, जोकि क्लोरीनेशन के लिये उपयुक्त 50 एमपीएन से कहीं अधिक थे, जबकि नलकूपों से प्राप्त पानी में कोलीफार्म बैक्टीरिया मिले ही नहीं। इसका कारण यह माना गया कि इन नलकूपों में झील से बिना किसी दबाव के पानी आता है, जबकि कृत्रिम फिल्टरों में पानी को दबाव के साथ गुजारा जाता है, जिसमें कई खतरनाक बैक्टीरिया भी गुजर आते हैं। इसीलिये यहां के प्रयोग को दोहराते हुऐ देश में रिवर बैंक फिल्टरेशन तकनीक शुरू की गई। इन नलकूपों के प्राकृतिक तरीके से शोधित पानी में बड़े फिल्टरों के मुकाबले कम बैक्टीरिया पाये गये।
मल्ली-तल्ली के बीच सात फीट झुकी है नैनी झील
जी हां, मल्लीताल और तल्लीताल के बीच नैनी झील सात फीट झुकी हुई है। झील से पानी बाहर निकाले जाने की पूरी तरह भरी स्थिति में झील की तल्लीताल शिरे पर जब झील की सतह की समुद्र सतह से ऊंचाई 6,357 फीट होती है, तब मल्लीताल शिरे पर झील की सतह की समुद्र सतह ऊंचाई 6,364 फीट होती है। यानी झील के मल्लीताल व तल्लीताल शिरे पर झील की समुद्र सतह से ऊंचाई में सात फीट का अंतर रहता है।
प्राकृतिक वनों का अनूठा शहर है नैनीताल
नैनीताल नगर का एक खूबसूरत पहलू यह भी है कि यह नगर प्राकृतिक वनों का शहर है। वनस्पति विज्ञानी प्रो. एस.पी. सिंह के अनुसार नगर की नैना पीक चोटी में साइप्रस यानी सुरई का घना जंगल है। यह जंगल पूरी तरह प्राकृतिक जंगल है, यानी इसमें पेड़ लगाये नहीं गये हैं, खुद-ब-खुद उगे हैं। नगर के निकट किलबरी का जंगल दुनिया के पारिस्थितिकीय तौर पर दुनिया के समृद्धतम जंगलों में शुमार है। नैनी झील का जलागम क्षेत्र बांज, तिलोंज व बुरांश आदि के सुंदर जंगलों से सुशोभित है। नगर की इस खाशियत का भी इस शहर को अप्रतिम बनाने में बड़ा योगदान है। प्रो. सिंह नगर की खूबसूरती के इस कारण को रेखांकित करते हुऐ बताते हैं कि इसी कारण नैनीताल नगर के आगे जनपद की सातताल, भीमताल, नौकुचियाताल और खुर्पाताल आदि झीलें खूबसूरती, पर्यटन व मनोरजन मूल्य सही किसी भी मायने में कहीं नहीं ठहरती हैं।
इसके अलावा नैनीताल की और एक विशेषता यह है कि यहां कृषि योग्य भूमि नगण्य है, हालांकि राजभवन, पालिका गार्डन, कैनेडी पार्क व कंपनी बाग सहित अनेक बाग-बगीचे हैं।
‘वाकिंग पैराडाइज’ भी कहलाता है नैनीताल
नैनीताल नगर ‘वाकिंग पैराडाइज’ यानी पैदल घूमने के लिये भी स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि यहां कमोबेस हर मौसम में, मूसलाधार बारिश को छोड़कर, दिन में किसी भी वक्त घूमा जा सकता है। जबकि मैदानी क्षेत्रों में सुबह दिन चढ़ने और सूर्यास्त से पहले गर्मी एवं सड़कों में भारी भीड़-भाड़ के कारण घूमना संभव नहीं होता है। जबकि यहां नैनीताल में वर्ष भर मौसम खुशनुमा रहता है, व अधिक भीड़ भी नहीं रहती। नगर की माल रोड के साथ ही ठंडी सड़क में घूमने का मजा ही अलग होता है। वहीं वर्ष 2010 से नगर में अगस्त माह के आखिरी रविवार को नैनीताल माउंटेन मानसून मैराथन दौड़ भी नगर की पहचान बनने लगी है, इस दौरान किसी खास तय नेक उद्देश्य के लिये ‘रन फार फन’ वाक या दौड़ भी आयोजित की जाती है, जो अब मानूसन के दौरान नगर का एक प्रमुख आकर्षण बनता जा रहा है।
नैनीताल में है एशिया का पहला मैथोडिस्ट चर्च
सरोवरनगरी से बाहर के कम ही लोग जानते होंगे कि देश-प्रदेश के इस छोटे से पर्वतीय नगर में देश ही नहीं एशिया का पहला अमेरिकी मिशनरियों द्वारा निर्मित मैथोडिस्ट चर्च निर्मित हुआ, जो कि आज भी कमोबेश पहले से बेहतर स्थिति में मौजूद है। नगर के मल्लीताल माल रोड स्थित चर्च को यह गौरव हासिल है। देश पर राज करने की नीयत से आये ब्रिटिश हुक्मरानों से इतर यहां आये अमेरिकी मिशनरी रेवरन यानी पादरी डा. बिलियम बटलर ने इस चर्च की स्थापना की थी।
यह वह दौर था जब देश में पले स्वाधीनता संग्राम की क्रांति जन्म ले रही थी। मेरठ अमर सेनानी मंगल पांडे के नेतृत्व में इस क्रांति का अगुवा था, जबकि समूचे रुहेलखंड क्षेत्र में रुहेले सरदार अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हो रहे थे। बरेली में उन्होंने शिक्षा के उन्नयन के लिये पहुंचे रेवरन बटलर को भी अंग्रेज समझकर उनके परिवार पर जुल्म ढाने शुरू कर दिये, जिससे बचकर बटलर अपनी पत्नी क्लेमेंटीना बटलर के साथ नैनीताल आ गये, और यहां उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिये नगर के पहले स्कूल के रूप में हम्फ्री कालेज (वर्तमान सीआरएसटी स्कूल) की स्थापना की, और इसके परिसर में ही बच्चों एवं स्कूल कर्मियों के लिये प्रार्थनाघर के रूप में चर्च की स्थापना की। तब तक अमेरिकी मिशनरी एशिया में कहीं और इस तर चर्च की स्थापना नहीं कर पाऐ थे। बताते हैं कि तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नरी हेनरी रैमजे ने 20 अगस्त 1858 को चर्च के निर्माण हेेतु एक दर्जन अंग्रेज अधिकारियों के साथ बैठक की थी। चर्च हेतु रैमजे, बटलर व हैम्फ्री ने मिलकर 1650 डॉलर में 25 एकड़ जमीन खरीदी, तथा इस पर 25 दिसंबर 1858 को इस चर्च की नींव रखी गई। चर्च का निर्माण अक्टूबर 1860 में पूर्ण हुआ। इसके साथ ही नैनीताल उस दौर में देश में ईसाई मिशनरियों के शिक्षा के प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र बन गया। अंग्रेजी लेखक जॉन एन शालिस्टर की 1956 में लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक ‘द सेंचुरी ऑफ मैथोडिस्ट चर्च इन सदर्न एशिया’ में भी नैनीताल की इस चर्च को एशिया का पहला चर्च कहा गया है। नॉर्थ इंडिया रीजनल कांफ्रेंस के जिला अधीक्षक रेवरन सुरेंद्र उत्तम प्रसाद बताते हैं कि रेवरन बटलर ने नैनीताल के बाद पहले यूपी के बदायूं तथा फिर बरेली में 1870 में चर्च की स्थापना की। उनका बरेली स्थित आवास बटलर हाउस वर्तमान में बटलर प्लाजा के रूप में बड़ी बाजार बन चुकी है, जबकि देरादून का क्लेमेंट टाउन क्षेत्र का नाम भी संभवतया उनकी पत्नी क्लेमेंटीना के नाम पर ही प़डा।
1890 में हुई पाल नौकायन की शुरुआत, विश्व का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित है याट क्लब
1890 में नैनीताल में विश्व के सर्वाधिक ऊँचे याट (पाल नौका, सेलिंग-राकटा) क्लब (वर्तमान बोट हाउस क्लब) की स्थापना हुई। एक अंग्रेज लिंकन होप ने यहाँ की परिस्थितियों के हिसाब से विशिष्ट पाल नौकाएं बनाईं, जिन्हें ‘हौपमैन हाफ राफ्टर’ कहा जाता है, इन नावों के साथ इसी वर्ष सेलिंग क्लब ने नैनी सरोवर में सर्व प्रथम पाल नौकायन की शुरुआत भी की। यही नावें आज भी यहाँ चलती हैं। 1891 में नैनीताल याट क्लब (N.T.Y.C.) की स्थापना हुई। बोट हाउस क्लब वर्तमान स्वरुप में 1897 में स्थापित हुआ।