-सरोवरनगरी की पहचान हैं चीड़ के ठींठों व ड्रिफ्टवुड से बने कलात्मक उत्पाद
नवीन जोशी नैनीताल। सरोवरनगरी आने वाले सैलानी नगर की यादगार के रूप में जो कुछ अनूठी वस्तुएं ले जाते हैं, उनमें नगर की बनी मोमबत्तियों के साथ काष्ठ उत्पादों का खास महत्व है। नगर में लंबे दौर से कलाकारों चीड़ के ठींठों और नदियों में बहकर आने वाली लकड़ियों (ड्रिफ्टवुड) को अपनी कलाकारी से खूबसूरत उत्पादों में बदलकर न केवल अलग पहचान बनाई है, वरन इसे अपनी आजीविका आजीविका भी बनाया हुआ है। लेकिन हाल के वर्षों में नैनीताल की यह कला किसी भी तरह के सरकारी संरक्षण के अभाव के साथ ही दुकानें लगाने से रोके जाने के चलते दम तोड़ती जा रही है। इसलिए यदि आप नैनीताल आएं, तो जरूर नगर की पहचान, इन काष्ठ कला के उत्पादों को जरूर अपने साथ लेकर जाएं।
सरोवरनगरी में अब माल रोड व फ्लै्स मैदान के किनारे गुरुद्वारे के पास केवल पांच-छः की संख्या में ही बची काष्ठकला उत्पादों की दुकानें सभी सैलानियों का ध्यान आकर्षित करती हैं। इन दुकानों पर कारीगर दिन भर अपने लकड़ी से बने उत्पादों को कुछ न कुछ वार्निश अथवा रंगों से रंगते हुए नजर आ जाते हैं। यह कारीगर मुख्यतः पहाड़ी व अंग्रेजी चीड़ तथा देवदार के पेड़ों से मिलने वाले ठींठों के साथ ही नदियों में लंबी दूरी से बहने के कारण घिसते-घिसते किसी पक्षी या जानवर जैसा कुछ आकर्षक स्वरूप हासिल करने वाली ड्रिफ्टवुड कही जाने वाली लकड़ियों के साथ जंगली फर्न, रामबांश, सूखे फूलों आदि बेकार नजर आने वाली वस्तुओं से खूबसूरत उत्पाद तैयार करते हैं। यह उत्पाद आकार के अनुसार 50 रुपए से लेकर एक-डेड़ हजार रुपए में तक बिककर बड़े-बड़े घरों के ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाते हैं। सामान्यतया नैनीताल आने वाला हर सैलानी स्वयं के साथ ही अपने रिश्तेदारों व पड़ोसियों के लिए भी नैनीताल की याद के रूप में ऐसे उत्पादों को ले जाते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में काफी मेहनत मांगने वाली यह कला लगातार सिमटती जा रही है। अब इस कला की नगर में गिनी-चुनी, विजय कुमार व राजू, पवन कुमार, भवानी दत्त जोशी तथा रतन सिहं व मनोहर आदि की दुकानें ही बची हैं, और एक-एक कर लोग यह काम छोड़ रहे हैं। जबकि एक दौर था जब नगर ही नहीं नगर के आसपास ज्योलीकोट से लेकर सरियाताल तक अनेक कलाकारों के घर इस काष्ठ कला से ही चलते थे। काष्ठ कलाकार विजय कुमार व राजू बताते हैं, इन उत्पादों के लिए पहले जंगलों व नदियों की खाक छाननी पड़ती है, तथा उन्हें कोई आकर्षक गुलदस्ते, छोटी टेबल अथवा पशु-पक्षी जैसा स्वरूप दिया जाता है। किसी ही कारीगर के पास अपनी दुकान नहीं है, ऐसे में वह खुले में दुकानें लगाते हैं, तथा उनकी कला को किसी सरकारी संरक्षण की जगह अक्सर नगर पालिका व जिला प्रशासन के अतिक्रमणविरोधी अभियानों के नाम पर हटा दिया जाता है। नगर में कई बार अन्य कलाकार भी चीड़ की निश्प्रयोज्य छाल (बगेट) एवं अन्य जंगली उत्पादों से खूबसूरत उत्पाद तैयार कर लाते हैं, लेकिन किसी तरह के संरक्षण के अभाव में वह भी आखिर घर बैठने को ही मजबूर हो जाते हैं।
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नैनीताल आएं तो जरूर ले जाएं यहाँ के प्रसिद्ध काष्ठ उत्पाद
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