‘डायलिसिस’ से बाहर आ सकती है नैनी झील


Good Morning Nainital
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-लगातार सुधर रही नैनी झील की सेहत, घटेगा एयरेशन का समय
-2007 से शुरू हुआ था 24 घंटे कृत्रिम ऑक्सीजन चढ़ाने का कार्य, अब केवल 16 घंटे ही होगा एयरेशन
-पहले दो तिहाई झील में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य थी, अब पूरी झील में 8.5से 9 मिलीग्राम प्रति लीटर तक है ऑक्सीजन, पारदर्शिता भी 0.6 से बढ़कर तीन मीटर तक हुई
नवीन जोशी, नैनीताल। सात वर्ष पूर्व ‘दो तिहाई मौत” के बाद ‘डायलिसिस” पर डाली गई नैनी झील की सेहत में सुधार हो रहा है। झील को कृत्रिम रूप से 24 घंटे दी जाने वाली ऑक्सीजन की जरूरत अब केवल 16 घंटे की रह गई है, और इसे धीरे-धीरे पूरी तरह हटाए जाने की ओर कदम बढ़ गए हैं। यह तब संभव हुआ है जबकि पूर्व में झील की दो तिहाई गहराई में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य हो गई थी, अब पूरी झील में 8.5 से नौ मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गई है, तथा झील में केवल 0.6 मीटर तक रह गई पारदर्शिता बढ़कर तीन मीटर तक पहुंच गई है।

किसी भी जल राशि की अच्छी सेहत उसके पानी में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा पर निर्भर करता है। कश्मीर की डल और नैनीताल की नैनी झील जैसी रुके पानी की झीलों में यह समस्या आम होती है कि झील में गंदगी आने पर ऑक्सीजन की मात्रा और पारदर्शिता यानी इसकी गहराई में देखा जाना संभव नहीं रहता। ऑक्सीजन की मात्रा झील में रहने वाले जीव-जंतुओं, मछलियों के साथ ही इसमें उगने वाली काई, जू-प्लैंकन व पादपों के लिए जरूरी होते हैं, जो इन जीव जंतुओं के भोजन के प्रमुख भोजन श्रोत होते हैं। वर्ष 2007 के दौर तक करीब 27 मीटर की औसत गहराई वाली नैनी झील की केवल ऊपरी नौ मीटर की गहराई तक ही ऑक्सीजन रह गई थी। इस कारण झील की २७ मीटर गहराई में रहने वाला जल-जीवन, केवल ऊपरी एक-तिहाई झील पर ही आश्रित रह गया था, और इस तरह झील का पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह से ‘बीमार” हो गया था। हर वर्ष सर्दियों के दिनों में झील की नौ मीटर की गहराई में जीवन और मौत के बीच की कृत्रिम दीवार ‘थर्मोक्लाइन” पर तापमान के परिवर्तन से ऊपर का पानी नीचे और नीचे का ऊपर पलट जाता था। इस कारण झील नुकसानदेह काई से भर जाती थी तथा इसके गलफड़ों में फंस जाने व जहरीले पानी की वजह से हजारों मछलियों को अकाल मौत का शिकार होना पड़ता था। मरी मछलियों की दुर्गंध से झील के पास से गुजरना मुश्किल होता था। ऐसी स्थितियों के बीच 30 मार्च 2002 को नैनीताल आए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने झील की ऐसी स्थिति को देखते हुए इसके संरक्षण के लिए 100 करोड़ रुपए की परियोजना स्वीकृत करने की घोषणा की थी, हालांकि बाद में भेजी गई 98 करोड़ की योजना के सापेक्ष 64.82 करोड़ रुपए ही स्वीकृत हुए थे। इससे झील में बायोमैन्युपुलेशन के तहत झील की सेहत के लिए खराब लाखों की संख्या में गंबूशिया, पुंटियश व बिगहेड प्रजाति की मछलियों को झील से बाहर निकाला गया तथा महाशीर, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प व गोल्डन कार्प मछलियों की प्रजातियां डालीं, तथा 18 सितंबर 2007 को झील को डायलिसिस की तरह 24 घंटे कृत्रिम ऑक्सीजन देने के लिए एयरेशन करने की व्यवस्था की गई। साथ ही नगर में साफ-सफाई के प्रति जागरूकता, नालों की सफाई व सीवर की गंदगी को झील में न जाने देने जैसे प्रयास भी हुए। जिसका परिणाम है कि इधर इस वर्ष मार्च माह से एयरेशन की अवधि छह घंटे घटाई गई, जिसे पुन: अप्रैल 2015 में दो घंटे और घटा दिया गया है।  यह भी विडंबना है कि एयरेशन पर प्रति वर्ष करीब 45 लाख का खर्च आ रहा है। 2010 से इस हेतु शासन से धन मिला, लेकिन चार वर्षों से प्राधिकरण अपने श्रोतों से ही यह खर्च झील विकास प्राधिकरण के सचिव श्रीश कुमार ने कहा कि उनकी कोशिष इसे धीरे-धीरे पूरी तरह हटाने की है। एयरेशन के प्रभाव में 207 में 21 तक पहुंच गई बीओडी यानी बायलॉजिकल ऑक्सीजन की मात्रा 5.8 तक आ गई है। झील की तलहटी में हाइड्रोजन सल्फाइड, अमोनिया युक्त लिसलिसा दुर्गंधयुक्त कीचड़ भी अब समाप्त हो चुका है।

नैनी झील नहीं ‘नीलकंठ’ कहिए…

नैनीताल। जी हां, विश्व विख्यात सरोवरनगरी की जान-नैनी झील को यदि नगर का नीलकंठ कहा जाए तो गलत न होगा। केवल 0.448 वर्ग किमी यानी आधे वर्ग किमी से भी कम क्षेत्रफल की झील पर 14.95 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले शहर का अपना और यहां आने वाले लाखों सैलानियों और पर्यटन गतिविधियों और उनके द्वारा फैलाई जाने वाली जहर जैसी गंदगी का भार और दारोमदार है। कुमाऊं विवि के प्रो. पीके गुप्ता के अनुसार बरसात में सीवर लाइनों के चोक होने से सीवर की गंदगी झील में जाने पर झील में कोलीफार्म की मात्रा 10 से 15 गुना तक बढ़कर आठ से 10 हजार एमपीएम तक हो जाती है। शहर की सुरक्षा में बड़ा योगदान देने वाले और शहर की धमनियां कहे जाने वाले झील के जलागम क्षेत्र के 1.06 लाख फीट लंबाई के 50 नाले और 100 शाखाएं भी झील में पानी के साथ टनों की मात्रा में गंदगी लाते हैं। इसे शोधित करने में झील के पानी में मौजूद ऑक्सीजन का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है।

नैनी झील की ऑक्सीजन ‘पी’ जा रही हैं अवांछित बिग हेड मछलियां

Airation in Naini Lake
नैनी झील में एक एयरेशन स्थल के पास लगा बिग हेड प्रजाति की मछलियों का जमावड़ा।

-अधिक बड़े आकार की वजह से अधिक आहार व ऑक्सीजन की होती है इन्हें जरूरत
-अन्य उपयोगी प्रजातियों का आहार व ऑक्सीजन हड़प कर झील के पारिस्थितिकी तंत्र को कर रही हैं प्रभावित
-शासन से नहीं मिल रहा नैनी झील के एयरेशन के लिए पैंसा, प्रति वर्ष ६० लाख रुपए की है जरूरत
नवीन जोशी, नैनीताल। अनेक प्रयासों के बावजूद नैनी झील में अवांछित घोषित बिग हेड प्रजाति की हजारों मछलियों की संख्या पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। बड़े आकार की वजह से ऑक्सीजन एवं भोजन की हर तरह के संसाधनों की अधिक आवश्यकता वाली इन मछलियों का जमावड़ा इन दिनों एयरेशन के जरिए नैनी झील में कृत्रिम रूप से डाली जा रही ऑक्सीजन के स्थानों पर देखकर इनकी वजह से हो रही समस्या का अंदाजा लगाया जा सकता है। जिन स्थानों पर झील में ऑक्सीजन डाली जा रही है, इनकी हजारों की संख्या में उपस्थिति उन स्थानों पर आ रही अतिरिक्त ऑक्सीजन को पी जाने के लिए हो रही है। झील विकास प्राधिकरण के प्रोजेक्ट इंजनियर सीएम साह ने भी इसकी पुष्टि की है।

राष्ट्रीय सहारा 11 सितम्बर 2015, पेज-1
राष्ट्रीय सहारा 11 सितम्बर 2015, पेज-1

उल्लेखनीय है कि नैनी झील में पिछले वर्षों में ऑक्सीजन की मात्रा निचली एक तिहाई झील मे शून्य होने के बाद बाहर से ऑक्सीजन डालने की एयरेशन प्रक्रिया का सहारा लिया जा रहा है। इस ऑक्सीजन पर प्रति वर्ष करीब ६० लाख रुपए का व्यय आ रहा है, और शासन से धन प्राप्त न होने की वजह से इस खर्च के लिए झील विकास प्राधिकरण के पास धन की बड़ी समस्या है। वहीं प्राधिकरण के श्री साह ने कहा कि वास्तव में इन मछलियों को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। इसलिए यह ऑक्सीजन डिस्क के आसपास इकट्टी हो जा रही हैं। शीघ्र इन्हें पंतनगर कृषि विश्व विद्यालय के सहयोग से झील से बाहर निकलवाने का प्रयास किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पूर्व में दो से ढाई हजार की संख्या में बिग हेड प्रजाति की मछलियों को झील से बाहर निकाला जा चुका है, लेकिन फिर से इनकी संख्या बढ़ जा रही है।

इनकी वजह से उपयोगी कॉमन कार्प ब्रेड-बन पर हो रही हैं आश्रित

नैनीताल। झील विज्ञानियों के अनुसार बिग हेड प्रजाति की मछलियों के अत्यधिक आहार की वजह से नैनी झील का पारिस्थितिकी तंत्र भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। बड़े आकार की वजह से इनका भोजन भी अधिक होता है, लिहाजा यह झील में मौजूद महाशीर, गोल्डन कार्प, सिल्वर कार्प व कॉमन कार्प आदि अन्य उपयोगी प्रजातियों की मछलियों के झील में उपलब्ध प्राकृतिक आहार-जंतु प्लावकों व वनस्पति प्लावकों को हड़प जाती हैं। कहा गया है कि इनकी वजह से कॉमन कार्प प्रजाति की मछलियों को प्राकृतिक भोजन के इतर झील के तल्लीताल व अन्य सिरों पर ब्रेड और बन पर टूट पड़ना पड़ रहा है, जिससे उनकी आहार व्यवस्था और प्रजनन तंत्र पर भी बेहद प्रभाव पड़ रहा है, और उनकी मौत भी हो रही है।

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