नालों को बचाना होगा तभी बचेगा नैनीताल


मल्लीताल में रोप-वे स्टेशन के पास के नाले की आज भी पाइप लाइनों और मलवे से पटी हुई ऐसी है स्थिति।
मल्लीताल में रोप-वे स्टेशन के पास के नाले की आज भी पाइप लाइनों और मलवे से पटी हुई ऐसी है स्थिति।

-नगर में अंग्रेजी दौर में बने 100 शाखाओं युक्त करीब 324 किमी लंबे 50 नालों में पानी की लाइनें, अतिक्रमण और गंदगी है बाधक
-कैचपिटों को हर बारिश के बाद साफ करने की व्यवस्था का नहीं होता पालन, मरम्मत के निर्माण कार्यों की गुणबत्ता बेहद खराब, सफाई के नाम पर भी होती है खानापूरी
नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी नैनीताल में सितंबर 1880 में 18 को आए महाविनाशकारी भूस्खलन के बाद वर्ष 1901 तक बने 100 शाखाओं युक्त करीब 324.45 किमी लंबे 50 नालों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। नगर की धमनियां कहे जाने वाले इन नालों को हर किसी ने अपनी ओर से मनमाना इस्तेमाल किया है। नगर वासियों ने इन्हें कूड़ा व मलवा निस्तारण का कूड़ा खड्ड तथा इनके ऊपर तक अतिक्रमण कर अपने घर बनाने का स्थान बनाया है तो जल संस्थान ने इन्हें पानी की पाइप लाइनें गुजारने का स्थान, जबकि इसकी सफाई का जिम्मा उठाने वाली नगर पालिका और लोक निर्माण विभाग ने इनमें आने वाले कूड़े व गंदगी को उठाने के नाम पर जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने और सफाई के नाम पर पैंसे बनाने का माध्यम बनाया है। यदि ऐसा न होता तो आज नाले अपना मूल कार्य, नैनी झील में इसके जलागम क्षेत्र का पूरा पानी बिना किसी रोकटोक के ला रहे होते, और नगर को कैसी भी भयानक जल प्रलय या आपदा न डिगा पाती। गनीमत रही कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेशों पर नगर के होटलों द्वारा अभी हाल ही में उसी स्थान से छह कमरे हटा दिए गए थे, जहां से रविवार की रात्रि दो हजार टन मलवा माल रोड पर आया है, यह कमरे न हटे होते तो रात्रि में इन कमरों में सोए लोगों के साथ हुई दुर्घटना का अंदाजा लगाना अधिक कठिन नहीं है।

मल्लीताल के शांति निकेतन-रिक्शा स्टेंड वाले नाले में पाइप लाइनों से इस तरह नाला मोड़ रहा है मुंह।
मल्लीताल के शांति निकेतन-रिक्शा स्टेंड वाले नाले में पाइप लाइनों से इस तरह नाला मोड़ रहा है मुंह।

इस बात को मानने के एक नहीं अनेक कारण हैं। केवल एक उदाहरण से ही इस पर विश्वास हो जाएगा कि अपनी लगातार बदतर होती स्थिति के बावजूद नाले नैनीताल को वर्ष 1880 से अब तक बचाए हुए हैं। नगर में तब से एक भी जनता को नुकसान पहुंचाने वाला बड़ा भूस्खलन नालों के क्षेत्र में नहीं हुआ है। डीएसबी परिसर के पास और हरिनगर-रईश होटल क्षेत्र में भूस्खलन हुए, लेकिन मानना ​​पड़ेगा कि इन क्षेत्रों में नाले ही नहीं हैं। 17 अगस्त 18 9 8 को बलियानाला क्षेत्र 28 लोगों में की जान लेने वाले भूस्खलन के बाद नगर में कोई बड़ा जानलेवा भूस्खलन नहीं हुआ है। उल्लेखनीय है कि 1880 से पहले नगर में 1866 व 187 9 में भी बड़े भूस्खलन आए थे। लेकिन 1880 के भूस्खलन के बाद सतर्क हुए अंग्रेजों ने नगर की सुरक्षा के लिए इस दुर्घटना से सबक लेते हुऐ पहले चरण में नगर के सबसे खतरनाक शेर-का-डंडा, चीना (वर्तमान नैना), अयारपाटा, लेक बेसिन व बड़ा नाला (बलिया नाला ) में दो लाख रुपये से नालों का निर्माण कराया। बाद में 80 के अंतिम व 9 0 के शुरुआती दशक में नगर पालिका ने तीन लाख रुपये से अन्य नाले बनवाए। आगे 23 सितम्बर 18 9 8 को इंजीनियर वाइल्ड ब्लड्स द्वारा बनाए नक्शों से 35 से अधिक नाले बनाए गए। 1 9 01 तक कैचपिट युक्त 50 नालों (लम्बाई 77,2 9 2 फीट) व 100 शाखाओं का निर्माण (कुल लम्बाई 1,06,4 99 फीट यानी 324.45 किमी) किया। नालों में कैचपिटों यानी गहरे गड्ढों की व्यवस्था थी, जिन्हें बारिश में भरते ही कैच पिटों में भरा मलवा हटा लिया जाता था। अंग्रेजों ने नगर के आधार बलियानाले में भी सुरक्षा कार्य करवाऐ, जो आज भी बिना एक इंच हिले नगर को थामे हुऐ हैं। यह अलग बात है कि इधर कुछ वर्ष पूर्व ही हमारे इंजीनियरों द्वारा बलियानाला में कराये गए कार्य कमोबेश पूरी तरह दरक गये हैं। इधर भी नालों में जो-जो कार्य हाल के दौर में हुए हैं, वह रविवार की बारिश में बह गए हैं।

यह किए जाने की है जरूरत

  • नालों से सटाकर किए निर्माणों को संभव हो तो हटाया अथवा मजबूत किया जाए
  • नालों से पानी की लाइनें पूरी तरह से हटाई जाएं, इनमें मलवा फंसने से होता है नुकसान
  • मरम्मत के कार्यों में हो उच्च गुणवता मानकों का पालन
  • नालों की सफाई सर्वोच्च प्राथमिकता में हो
  • नालों में कूड़ा डालने पर कड़े व बड़े जुर्माने लगें
  • नालों में कैचपिटों की व्यवस्था बहाल हो, सभी नालों में बनें कैचपिट और हर बारिश के बाद हो इनकी सफाई
  • नालों की सफाई के लिए पूर्व में बने अमेरिकी मशीन ऑगर लगाने जैसे प्रस्ताव लागू हों

नालों ने बचाया, नालों ने ही डराया

-18 सितंबर 1880 को आए महाविनाशकारी भूस्खलन के बाद बनाए गए थे नगर में नाले
-नैनीताल वासियों ने जीवन में पहली बार देखे ऐसे हालात, और बर्षों तक याद रखेंगे
नवीन जोशी, नैनीताल। नैनीताल में नैनी झील को नगर का हृदय तो नालों को इसकी धमनियां यूं ही नहीं कहा जाता। रविवार शाम के बाद आई बारिश में इन्हीं नालों ने नैनीताल को डराया तो इन्ही नालों ने नगर को बचाया भी है। यह बात आज नगर में हर किसी की जुबान पर है। यदि नगर में नाले न होते, और बीते दिनों इनकी सफाई और इनके किनारे निर्माणों को न हटवाया होता रविवार की रात्रि न जाने क्या हो गया होता। इसका अनुमान लगाने को महज इतनी कल्पना करना ही काफी होगा कि यदि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेशों पर हाल में नगर के इंडिया, एवरेस्ट व अल्का होटलों से करीब छह कमरे न हटाए गए होते, और रविवार की रात्रि इन कमरों में छह परिवार सोए हुए होते तो आज उनका क्या हश्र हुआ होता।
वहीं दूसरी ओर नगर के नालों की स्थानीय प्रशासन व नगर वासियों ने ऐसी दुर्दशा की है, जिसका परिणाम है कि बीती रात्रि नालों ने ही इसके करीब रहने वाले सैकड़ों परिवारों को जमकर डराकर रखा। अतिक्रमणों से संकरे होने के कारण करीब पांच-छह फीट तक उफन कर निकले नालों से बिलकुछ सटकर बनाए गए घरों में रह रहे लोगों की जान आफत में रही। उनके घरों में घुटने-घुटने पानी घुस गया। नगर के शांति निकेतन वाले नाले के हालात देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। वहीं नगर के बाजारों में नालियों से सटकर बनी दुकानों में भी काफी पानी घुसा। नालों के ऊपर डाली गई सीमेंट की पटालों व लोहे की जालियों ने भी पानी को रोकने का काम किया। फलस्वरूप मल्लीताल बाजार में रामलीला मैदान के पास दो जगह सड़क ही फट गई है। जबकि नारायणनगर वार्ड के लोगों को खतरनाक पहाड़ की तलहटी में बसने और नाले न होने का खामियाजा भुगतना पड़ा है.और नगर में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो कह रहा हो रविवार रात्रि आई जैसी आपदा उसने जीवन में पहले कभी देखी हो। इस घटना के बाद लोग 1880 के भूस्खलन की कल्पना भी करने लगे। इसलिए निस्संदेह आज के हालात नगर वासियों को बरसों याद रहेंगे, लेकिन अच्छा हो कि इसके साथ ही वह नालों से हटकर रहने, नालों में गंदगी व मलवा न फेंकने तथा उनकी साफ-सफाई करने का सबक भी लें।

सरकार से नहीं मिल रहा नालों की मरम्मत के लिए पैंसा, हालत जर्जर

जाली व कैचपिट में मलवा-पत्थर फंसने के बाद इस तरह दूसरी ओर पलट कर जमीन काट रहा है नाला नंबर 24।
जाली व कैचपिट में मलवा-पत्थर फंसने के बाद इस तरह दूसरी ओर पलट कर जमीन काट रहा है नाला नंबर 24।

-धूल फांक रहा जेएलएनयूआरएम में 22 करोड़ का प्रस्ताव, अब लोनिवि ने मांगे हैं 3.6 करोड़
-मजबूर होकर डीएम ने झील विकास प्राधिकरण से मांगे हैं 10 लाख रुपए
नैनीताल। नैनीताल नगर के लिए जीवन-मरण का प्रश्न व नगर की धमनियां कहे जाने वाले नाले उत्तराखंड सरकार की प्राथमिकता में कहीं नहीं हैं। इसीलिए दशकों से नगर के नालों की मरम्मत नहीं हुई है। बरसों से जेएलएनयूआरएम के तहत नालों की मरम्मत के लिए 22 करोड़ रुपए के प्रस्ताव शासन में धूल फांक रहे हैं। पूर्व में लोनिवि ने भी इस हेतु 80 लाख रुपए शासन से मांगे थे, वह भी नहीं मिले। अब लोनिवि की जरूरत 3.6 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। इसका प्रस्ताव भी शासन में लंबित है, लेकिन नतीजा ढाक के वही तीन पात। नगर के नाले बुरी तरह से उखड़ गए हैं। उनकी दोनों ओर की दीवारें अनेक स्थानों पर टूट चुकी हैं। कैच पिट पूरी तरह मलबे से पट चुके हैं, और जालियों में पत्थर अटके हुए हैं। ऐसे में वह अपनी दिशा बदलकर किनारे चोट कर बड़ी तबाही का कारण बनने की मानो पूरी तैयारी कर चुके हैं, लेकिन सरकार की आंखें नहीं खुल रही हैं।
नगर का नाला नंबर 20 यानी मल्लीताल रिक्शा स्टेंड वाला नाला स्टाफ हाउस तक अनेक घरों के लिए खतरा बन गया है। इसके अपने पत्थर और मलबे से नगर का खूबसूरत कंपनी गार्डन पट गया है। यही हाल मस्जिल तिराहे से डीएसबी की ओर जाने के मार्ग पर सबसे पहले पड़ने वाले नाला नंबर 24 के भी हैं। इस नाले ने भी किनारे मार करनी शुरू कर दी है। नाला नंबर 23 के भी यही हाल हैं, जबकि गत पांच जुलाई को चांदनी चौक रेस्टोरेंट के भीतर से बहने वाले नाला नंबर तीन तथा इंडिया व एवरेस्ट होटलों के बीच बहने वाले नाला नंबर छह की स्थिति भी ऐसी ही भयावह है। लेकिन सरकार के पास इन नालों की मरम्मत के लिए पैंसा नहीं है। मजबूर होकर बुधवार को डीएम ने झील विकास प्राधिकरण से नालों की तात्कालिक मरम्मत के लिए 10 लाख रुपए देने को कहा है।

यह भी पढ़ें: