सरोवरनगरी में बरसात भी होती है लाजवाब, मानो होती है स्वर्ग की तरह बादलों पर सैर


Natural Beauty in Nainital During Rains
Natural Beauty in Nainital During Rains

नवीन जोशी, नैनीताल, सरोवरनगरी नैनीताल को यूं ही ‘प्रकृति का स्वर्ग’ नहीं कहा जाता है। फिल्मों में स्वर्ग का चित्रण जिस तरह देवगणों व अप्सराओं के बादलों पर चलते हुए किया जाता है, उसका बरसात के दिनों में नैनीताल आकर सहज आनंद लिया जा सकता है। इन दिनों जहां पूरा देश सूर्य की तपिश के साथ ही नमी व उमस युक्त गर्मी से झुलस रहा होता है, वहीं नैनीताल अपनी शीतल जलवायु और प्राकृतिक सुंदरता के साथ देश-दुनिया के सैलानियों की पहली पसंद बना रहता है। इन दिनों यहां खूबसूरत बादलों युक्त कोहरे का नजारा इतना दिलकश होता है कि इस स्थान के निर्माता अंग्रेज भी इसके मोहपाश में बंधे बिना नहीं रह पाए थे। शायद इसे देखने के बाद ही उन्होंने इस शहर को अपने अपने घर ‘बिलायत’ (इंग्लेंड) की तर्ज पर ‘छोटी बिलायत’ और इस कोहरे को अपनी राजधानी के नाम पर ‘लंदन फॉग’ तथा ‘ब्राउन फॉग ऑफ इंग्लेंड’ नाम दिए थे। यह लंदन फॉग की खूबसूरती ही है, जो दूर से आती हुई कभी इस नगर के नजारों को खुद में सफेद दुशाला से छुपाती तो कभी दिखाती दिल में रुमानी तरंगें उकेर देती है। 

मानसून के दिनों में सरोवरनगरी में केवल लंदन फॉग ही नहीं दूर से आती बारिश की कभी पास तक आकर भिगो जाती और कभी पास आकर भी करीब से निकल जाती हल्की फुहारें भी कम आनंदित नहीं करतीं। इस दौरान कई बार इंद्रदेव मानो नगर पर अपना सतरंगा इंद्रधनुष भी तान देते हैं। वहीं नगर के पास हल्द्वानी रोड पर राजभवन के नीचे की घाटी को दर्जनों रंगों के खूबसूरत डहेलिया के फूल, फूलों की घाटी में तब्दील कर देते हैं, तो निकटवर्ती पंगोट व किलबरी के साथ ही रानीबाग, कालाढुंगी या भवाली की ओर से नगर के रास्ते खूबसूरत पहाड़ी झरनों की कल-कल से मन को आनंदित कर देते हैं।
इस दौरान यहां उत्तराखंड राज्य की कुलदेवी कही जाने वाली माता नंदा का महोत्सव, प्रदेश में हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाली विश्व प्रसिद्ध नंदा राजजात की तरह ही परंतु हर वर्ष भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर) की अष्टमी (इस वर्ष 30 अगस्त से दो सितंबर) के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध श्रीनंदा देवी महोत्सव आयोजित होता है। इस अवसर पर माता नंदा का देवी सुनंदा के साथ पारंपरिक कदली (केले) के वृक्षों के रूप में नगर में अवतरण होता है। माता यहां अपने मायके में कदली वृक्षों से ‘ईको फ्रेंडली’ तरीके से पर्वताकार स्वरूप में बनने वाली बेहद आकर्षक मूर्तियों के स्वरूप में प्रकट होती हैं। यहां नगर में उनका करीब सप्ताह भर के लिए प्रवास होता है, और आखिर में मूर्तियों को नगर भर में भव्य शोभायात्रा के साथ भ्रमण के उपरांत उनका विश्व प्रसिद्ध नैनी सरोवर में विसर्जन कर दिया जाता है। इस वर्ष यह महोत्सव अपने 111वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है।
इसके अलावा श्रावण माह की पूर्णिमा के अवसर पर देश भर में आयोजित होने वाले भाई-बहन के पवित्र प्रेम के पर्व रक्षाबंधन के अवसर पर नैनीताल जनपद की सीमा पर स्थित देवीधूरा नाम के कस्बे में विश्व प्रसिद्ध बग्वाल का मेला बेहद रोमांचकारी होता है। आज के चांद व मंगल ग्रह की ओर बढ़ते मानव इस मेले में आदिम युग की तरह पाषाण यानी पत्थरों से तब तक युद्ध लड़ते हैं, जब तक युद्ध भूमि एक मनुष्य के बराबर रक्त से लाल नहीं हो जाती। खास बात यह भी है कि यहां लड़ाकों को अपने पत्थरों से दूसरों का रक्त बहाने में नहीं, दूसरों के पत्थरों से अपना रक्त बहने में अधिक खुशी होती है।

अंग्रेजी कॉलोनी के रूप में नैनीताल

सरोवरनगरी नैनीताल अपनी खोज के साथ ही देश विदेश में पर्यटकों के बीच ‘प्रकृति के स्वर्ग’ के रूप में विख्यात है। इसका श्रेय केवल नगर की अतुलनीय, नयनाभिराम, अद्भुत, अलौकिक जैसे शब्दों से भी परे यहां की प्राकृतिक सुन्दरता को दिया जाऐ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक प्रकृति प्रेमी अंग्रेज सैलानी पीटर बैरन को 18 नवंबर 1841 को इस स्थान को खोजने के साथ ही वर्तमान स्वरूप में बसाने का श्रेय दिया जाता है। हालांकि यह अलग बात है कि उनसे पहले 1830 के दशक में तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर जीडब्लू ट्रेल यहां आ चुके थे, पर उन्होंने इस स्थान की धार्मिक मान्यताओं को देखते हुए इसका जिक्र कहीं नहीं किया। शायद वह यहां की प्रकृति को इसी रूप में छुपाए रखना चाहते थे। लेकिन 1840 के दशक में आए अंग्रेजों को यह शांत एवं शीतल जलवायु वाला स्थान अपने घर जैसा ही लगा, और उन्होंने इसे अपने घर ‘बिलायत’ की तरह ही ‘छोटी बिलायत’ के रूप में बसाया। आज भी यहां के दर्जनों भवन एवं अन्य निर्माण उस जमाने की याद दिलाते हुए विरासत के रूप में नगर में मौजूद हैं। इनमें नगर का पहला पीटर बैरन का पिलग्रिम कॉटेज, 1846 में बना शांत-नीरव ‘सेंट जॉन्स इन विल्डरनेस’ चर्च, 1858 में बना अमेरिकी मिशनरी रेवरन डा. बिलियम बटलर के द्वारा स्थापित भारत ही नहीं एशिया का अमेरिकी मिशनरियों द्वारा निर्मित पहला मेथोडिस्ट चर्च व नगर का पहला स्कूल-सीआरएसटी इंटर कालेज, इंग्लेंड के बकिंघम पैलेस की प्रतिकृति कहा जाने वाला राजभवन, तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर हेनरी रैमजे के नाम से पहचाना जाने वाला रैमजे अस्पताल, प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय शिकारी व पर्यावरण प्रेमी जिम कार्बेट का गर्नी हाउस, वर्तमान उत्तराखंड उच्च न्यायालय, कुमाऊं कमिश्नरी, जिला कलक्ट्रेट, शेरवुड, ऑल सेंट्स, सेंट जोसफ व सेंट मेरी कान्वेंट स्कूल सहित 100 से अधिक 19वीं सदी की बने भवन आज भी उस दौर की भव्यता और भवन निर्माण कला से परिचय कराते हैं।
बैरन के हवाले से सर्वप्रथम 1842 में ‘आगरा अखबार’ में इस नगर के बारे में समाचार छपा, जिसके बाद 1850 तक यह नगर ‘छोटी बिलायत’ के रूप में देश-दुनियां में प्रसिद्ध हो गया। बैरन ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों को दिखाने के लिये लंदन की पत्रिका ‘National Geographic’ में भी नैनीताल नगर के बारे में लेख छापा था। 1843 में ही नैनीताल जिमखाना की स्थापना के साथ यहाँ खेलों की शुरुआत हो गयी थी, जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने लगा। 1844 में नगर में पहले ‘सेंट जोन्स इन विल्डरनेस’ चर्च की स्थापना हुई। 1847 में यहां पुलिस व्यवस्था शुरू हुई। 1862 में यह नगर तत्कालीन नोर्थ प्रोविंस (उत्तर प्रान्त) की ग्रीष्मकालीन राजधानी व साथ ही लार्ड साहब का मुख्यालय बना, साथ ही 1896 में सेना की उत्तरी कमांड का एवं 1906 से 1926 तक पश्चिमी कमांड का मुख्यालय रहा। 1872 में नैनीताल सेटलमेंट किया गया। 1880 में नगर का ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया। 1881 में यहाँ ग्रामीणों को बेहतर शिक्षा के लिए डिस्ट्रिक्ट बोर्ड व 1892 में रेगुलर इलेक्टेड बोर्ड बनाए गए। 1892 में ही विद्युत चालित स्वचालित पम्पों की मदद से यहाँ पेयजल आपूर्ति होने लगी। 1889 में 300 रुपये प्रतिमाह के डोनेशन से नगर में पहला भारतीय कॉल्विन क्लब राजा बलरामपुर ने शुरू किया। कुमाऊँ में कुली बेगार आन्दोलनों के दिनों में 1921 में इसे प्रदेश का पुलिस मुख्यालय भी बनाया गया। वर्तमान में यह कुमाऊँ मंडल का मुख्यालय है, साथ ही यहीं उत्तराखंड राज्य का उच्च न्यायालय भी है। यह भी एक रोचक तथ्य है कि अपनी स्थापना के समय सरकारी दस्तावेजों में 1842 से 1864 तक यह नगर नइनीटाल (Nynee Tal) लिखा जाता था।

6 Comments

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    them. I understand the use of watermark, but it would be best if we can see
    the pictures. I do not think your readers would mind reading an article
    with a low resolution picture instead of a high resolution blocked picture
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    keep writing 🙂

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