-१९९६ से २०१२ तक उत्तर प्रदेश राजकीय वेधशाला के उत्तराखंड वेधशाला और एरीज बनने के बाद तक रहा निदेशक के रूप में सर्वाधिक लंबा कार्यकाल
नवीन जोशी, नैनीताल। सूर्य एवं चांद सितारों के प्रेक्षण, वायुमंडलीय एवं मौसमी शोधों के साथ देश की सबसे बड़ी ३.६ मीटर व्यास की दूरबीन स्थापित करने और दुनिया की सबसे बड़ी ३० मीटर व्यास की दूरबीन में सहभागिता के लिए पहचाने जाने वाला एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान इस बार अपने पूर्व निदेशक प्रो. रामसागर २००८ के एक मामले में सीबीआई द्वारा की गई जांच के बाद जेल जाने को लेकर सुर्खियों में है। उन्होंने मंगलवार को देहरादून स्थित सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था।
उल्लेखनीय है कि १९५५ में यूपी राजकीय वेधशाला के रूप में स्थापित वर्तमान एरीज के करीब छह दशक लंबे इतिहास में प्रो. राम सागर के नाम सर्वाधित १६ वर्ष निदेशक रहने का रिकार्ड दर्ज है। इस बीच कभी अपने लोगों को ही नियुक्तियां देने तो कभी एरीज-मनोरा पीक और कभी देवस्थल में अनाधिकृत तौर पर पेड़ काटने जैसे आरोप भी उन पर लगते रहे, लेकिन उनकी जमी-जमाई सल्तनत में कभी कोई विरोध का स्वर अधिक मुखर नहीं हो पाया। किंतु इधर उन पर बुरे वक्त ने ऐसा खेल दिखाया कि एक अभियंता की नियुक्ति के मामले ने ऐसा तूल पकड़ा कि उनके खिलाफ सीबीआई जांच हो गई, और लाख प्रयासों के बाद असफल रहने के बाद आखिर उन्हें आत्मसमर्पण करने को मजबूर ही होना पड़ा। इधर एरीज में उनके जेल जाने पर एक भी अधिकारी, वैज्ञानिक कर्मचारी एक भी शब्द बोलने से बचते दिखे। कुछ का कहना था, मामले में कानून अपना कार्य कर रहा है, उसे अपना कार्य करने देना चाहिए।
बनारस के एक कमरे से देश की सबसे बड़ी दूरबीन तक का सुनहरा इतिहास रहा है एरीज का
नैनीताल। आजादी के बाद खगोल विज्ञान प्रेमी यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने सर्वप्रथम १९५१ में राजकीय वेधशाला बनाने का निर्णय लिया था। २० अप्रैल १९५४ में यह बरारस गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज के एक कक्ष में स्थापित की गई। डीएसबी कॉलेज नैनीताल के डा. एएन सिंह को इसका निदेशक बनाया गया, लेकिन जुलाई ५४ में ही उनका हृदयाघात से निधन हो जाने के बाद नवंबर १९५४ में डा. एमके वेणुबप्पू इसके निदेशक बनाए गए, जिन्होंने पहाड़ पर ही खगोल विज्ञान की वेधशाला होने की संभावना को देखते हुए इसे पहले नैनीताल के देवी लॉज में तथा बाद में वर्तमान १९५१ मीटर ऊंचाई वाली मनोरा पीक चोटी में स्थापित करवाया। आगे डा. केडी सिंभ्वल १९६० से १९७८, डा. एमसी पांडे ७८ से बीच में कुछ अवधि छोड़कर १९९५ तक इसके निदेशक रहे, तथा जुलाई १९९६ में प्रो. रामसागर इसके निदेशक बने। आगे राज्य बनने के बाद यूपी राजकीय वेधशाला उत्तराखंड सरकार को हस्तांतरित हुई तथा २२ मार्च २००४ में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने इसे अपने हाथ में लेकर एरीज के रूप में केंद्रीय संस्थान की मान्यता दे दी। वर्तमान में यहां सीसीडी कैमरा, स्पेक्टोफोटोमीटर व फिल्टर्स जैसी आधुनिकतम सुविधाओं युक्त १५ सेमी, ३८ सेमी, ५२ सेमी, ५६ सेमी व १.०४ मीटर एवं देवस्थल में १.३ मीटर की दूरबीनें उपलब्ध हैं, जिन पर खगोल विज्ञान एवं खगोल भौतिकी, वायुमंडलीय विज्ञान एवं सूर्य तथा सौर प्रणाली पर २४ वैज्ञानिक गहन शोध करते रहते हैं। २८ अक्टूबर २००३ को यहां के वरिष्ठ सौर वैज्ञानिक व वर्तमान कार्यवाहक निदेशक डा. वहाबउद्दीन ने विश्व में पहली बार १५ सेमी की दूरबीन से ४बी/एक्स१७.२क्लास की ऐतिहासिक बड़ी सौर भभूका का प्रेक्षण करने में सफलता प्राप्त की थी। ग्रह नक्षत्रों के मामले में अंधविश्वासों से घिरे आमजन तक विज्ञान की पहुंच बढ़ाने एवं खासकर छात्राों को ब्रह्मांड की जानकरी देने की लिऐ एरीज ने अपने ‘पब्लिक आउटरीच” कार्यक्रम के तहत पूर्णतया कम्प्यूटरीकृत दूरबीन (प्लेनिटोरियम) स्थापित की है। देवस्थल में देश व एशिया की अपनी तरह की सबसे बड़ी ३.६ मीटर व्यास की की आप्टिकल अगले कुछ माह में स्थापित होने जा रही है, जिसके लिए १९८० के दौर से प्रयास चल रहे हैं।
Jab stars ki disha ulti ho jati hai to aisa hi hota hai..
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