शी-मोदी के कैलाश को नया मार्ग खोलने से हरीश रावत नाखुश, पर केएमवीएन उत्साहित


kailash mansarovar
-कहा, इससे इस धार्मिक यात्रा को और अधिक प्रचार-प्रसार मिलेगा
नवीन जोशी, नैनीताल। ‘हाई टेक’ होते जमाने में भी आस्था का कोई विकल्प नहीं है। आज भी दुनिया में यह विश्वास कायम है कि ‘प्रभु’ के दर्शन करने हों तो कठिन परीक्षा देनी ही पड़ती है। उत्तराखंड से शिव के धाम कैलाश मानसरोवर का मार्ग पौराणिक है। पांडवों के द्वारा भी इसी मार्ग से कैलाश जाने के पौराणिक संदर्भ मिलते हैं। इसलिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग के बीच हुए समझौते के तहत उत्तराखंड के मौजूदा मार्ग के साथ ही सिक्किम के नाथुला दर्रे से नए मार्ग के खोले जाने से भले प्रदेश के मुख्यमंत्री राजनीतिक कारणों से नाखुशी जाहिर कर रहे हों, पर यात्रा की आयोजक संस्था कुमाऊं मंडल विकास निगम-केएमवीएन चिंतित नहीं वरन और अधिक आशावादी है कि इस कदम से यात्रा को और अधिक प्रचार-प्रसार मिलेगा तथा मौजूदा पौराणिक यात्रा मार्ग से होने वाली यात्रा को भी बढ़ावा मिलेगा।

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केएमवीएन के प्रबंध निदेशक दीपक रावत के हवाले से महाप्रबंधक विनोद गिरि गोस्वामी ने बताया कि कैलाश मानसरोवर हिंदुओं के साथ ही जैन, बौद्ध, सिक्ख और बोनपा धर्म के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र, विश्व की सबसे कठिनतम और प्राचीनतम पैदल यात्राओं में शुमार 1,700 किमी लंबी कैलाश मानसरोवर की यात्रा में हर वर्ष यात्रियों की संख्या के नऐ रिकार्ड बनते जा रहे हैं। वर्ष 2012 में 774 तीर्थ यात्रियों ने इस यात्रा पर जाकर रिकार्ड का नया शिखर छुआ था, जबकि इस वर्ष की यात्रा में पहली बार सर्वाधिक 18 दल इस यात्रा में शामिल हुए और 910 तीर्थयात्रियों ने अब तक के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। 1981 से शुरू हुई इस यात्रा में अब तक 388 दलों में 13,533 तीर्थ यात्री इस पौराणिक मार्ग से शिव के धाम जा चुके हैं। श्री गोस्वामी स्वयं मानते है कि सवा अरब के देश में यह संख्या काफी कम है। हर वर्ष ढाई से तीन हजार लोग यात्रा के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन सीमित संसाधनों की वजह से सबको ले जाना संभव नहीं होता। उन्होंने उम्मीद जताई कि नया मार्ग खुलने से यात्रा का व्यापक प्रचार-प्रसार होगा, साथ ही प्रकृति प्रेमी, पैदल ट्रेकिंग के इच्छुक युवा एवं धार्मिक, आध्यात्मिक भावना वाले यात्री अभी भी पौराणिक मार्ग से ही यात्रा करना पसंद करेंगे। उन्होंने बताया कि वर्तमान में भी नेपाल के रास्ते हवाई सेवा के जरिए भी कैलाश के लिए अनेक मार्ग हैं, इनकी वजह से भी मौजूदा पौराणिक मार्ग की यात्रा को कोई नकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है।

उत्तराखंड के पौराणिक मार्ग के बाबत उल्लेखनीय तथ्य

नैनीताल। ज्ञातव्य हो कि कैलाश मानसरोवर यात्रा तीन देशों (भारत, नेपाल और चीन) के श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ी विश्व की एकमात्र व अनूठी पैदल यात्रा है। उत्तराखंड का मार्ग पौराणिक मार्ग है। कहते हैं इसी मार्ग से पांडव भी कैलाश गए थे। यात्रा मार्ग में पांडव व कुंती पर्वतों से तथा स्कंद पुराण के मानसखंड में इसकी पुष्टि होती है। इस यात्रा के दौरान करीब 230 किमी की पैदल दूरी (भारतीय क्षेत्र में 60 एवं चीनी क्षेत्र में करीब 150 किमी) चलनी पड़ती है, जिसमें से चीनी क्षेत्र के अधिकांश मार्ग में वाहन सुविधा भी उपलब्ध है। भारतीय क्षेत्र में भी करीब आधे मार्ग में बीआरओ के द्वारा सड़क बन चुकी है। इस पौराणिक मार्ग से तीर्थ यात्रियों को प्राकृतिक रूप से ‘ऊं’ लिए ‘ऊं पर्वत’ और आदि कैलाश पर्वत के दर्शन भी होते हैं, साथ ही हिमालय को करीब से निहारने यहां की जैव विविधता व सीमांत क्षेत्र के जनजीवन को जानने-समझने का मौका भी मिलता है। इस मार्ग को पास किया जाने वाला लिपुपास दर्रा भारत-चीन के बीच का सबसे आसान दर्रा भी माना जाता है।

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