उत्तराखंड से 1.5 और सिक्किम से 1.7 लाख में होगी कैलाश मानसरोवर यात्रा


kailash mansarovar
कैलाश पर्वत
  • -उत्तराखंड से 1080 और सिक्किम से 250 यात्री जा पाएंगे यात्रा पर
  • -उत्तराखंड के पौराणिक मार्ग से 25 तो सिक्किम से 23 दिनों में पूरी होगी यात्रा
  • -उत्तराखंड के रास्ते पहला बैच 12 जून को और सिक्किम के रास्ते 18 जून को दिल्ली से रवाना होंगे पहले दल
  • -उत्तराखंड के रास्ते नौ सितंबर तक 60 यात्रियों के 18 दल और सिक्किम के रास्ते 22 अगस्त तक 50 यात्रियों के पांच दल पूरी कर लेंगे यात्रा
  • -10 अप्रैल तक कर सकते हैं ऑनलाइन आवेदन

नवीन जोशी, नैनीताल। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए कार्यक्रम जारी कर स्थिति स्पष्ट कर दी है। इससे पहली बार उत्तराखंड के पांडवों द्वारा भी प्रयुक्त पौराणिक लिपुपास दर्रे के साथ ही सिक्किम के नाथुला दर्रे से होने जा रही यात्रा से संबंधित सभी किंतु-परंतु और संशयों से परदा उठ गया है। इसके साथ ही दोनों मार्गों से प्रस्तावित यात्रा का अंतर भी साफ हो गया है। यात्रा के लिए 10 अप्रैल से पूर्व ऑनलाइन माध्यम से विदेश मंत्रालय की वेबसाइट-केएमवाई डॉट जीओवी डॉट इन पर आवेदन किए जा सकते हैं।

Rashtriya Sahara, 20.02.2015, Page-1 News

भारत सरकार के विदेश मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड के पौराणिक मार्ग से अधिकतम 60-60 यात्रियों के 18 दलों में अधिकतम 1080 यात्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंंग के बीच पिछले सितंबर माह में हुए समझौते के बाद सिक्किम के नाथुला दर्रे के नए खोले गए रास्ते से 50-50 के पांच दलों में अधिकतम 250 यात्री शिव के धाम कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जा पाएंगे। सिक्किम के नए मार्ग से आसान बताई जा रही यात्रा पर 23 दिनों का समय लगेगा, जो कि उत्तराखंड के रास्ते होने वाली यात्रा के मुकाबले केवल दो दिन ही कम होगा। उत्तराखंड से हर दल को 25 दिन लगेंगे। वहीं यात्रा पर आने वाले व्यय के मामले में उत्तराखंड के रास्ते से होने वाली यात्रा 20 हजार रुपए सस्ती होगी। उत्तराखंड के रास्ते यात्रा में हर यात्री को 1.5 लाख रुपए खर्च करने होंगे, जबकि सिक्किम के रास्ते 1.7 लाख रुपए का किराया देना पड़ेगा। उत्तराखंड के रास्ते पहला दल 12 जून को जबकि सिक्किम के जरिए 18 जून को पहला दल दिल्ली से रवाना होगा, जबकि लौटने के मामले में उत्तराखंड के रास्ते यात्रा का आखिरी 18वां दल नौ सितंबर को दिल्ली लौटेगा, जबकि सिक्किम के रास्ते 22 अगस्त को ही यात्रा निपट जाएगी। उत्तराखंड के रास्ते यात्रा में दिल्ली के बाद अल्मोड़ा, धारचूला, सिरखा, गाला, बुदी, गुंजी में जाते हुए दो दिन, नाभीढांग, तकलाकोट में दो दिन, चीन के क्षेत्र में दारचेन, डेराफुक, झुनझुई, कुगू तथा वापसी में तकलाकोट, गुंजी, बुुदी, गाला, धारचूला व अल्मोड़ा के पड़ाव होंगे, जबकि सिक्किम के रास्ते से प्रस्तावित यात्रा में गंगटोक, 15 मील व शेराथांग में दो-दो दिन, कंगमा, लाजी, झोंगबा होते हुए उत्तराखंड के रास्ते लिपुपास के ठीक पीछे चीन में स्थित दारचेन, कुगु, डेराफुक, झुनझुई पु तथा वापस लौटते हुए झोंगबा, लाजी, कंगमा, शेराथांग व गंगटोंक के पड़ाव आएंगे। उत्तराखंड के रास्ते यात्रा की आयोजक संस्था कुमाऊं मंडल विकास निगम के प्रबंध निदेशक धीराज गब्र्याल ने जारी हुए कार्यक्रम पर खुशी व्यक्त करते यात्रियों को अब तक की सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं देते हुए यात्रा को शानदार तरीके से आयोजित करने का विश्वास व्यक्त किया है।

आधी अवधि में ही पूरी हो जाएगी आदि कैलाश-‘ॐ’ पर्वत यात्रा

Om Parvat
‘ॐ’ पर्वत
  • नए स्थापित हो रहे कैंपों एवं गांवों में ‘होम-स्टे” के साथ ही स्थानीय प्रशिक्षित युवाओं की भी मिलेंगी सेवाएं
  • किराया रहेगा समान, 25 फीसद की छूट देता है केएमवीएन, 50 फीसद छूट के लिए शासन से किया जा रहा अनुरोध

नवीन जोशी, नैनीताल। शिव के धाम कैलाश मानसरोवर की यात्रा से इतर शिव के छोटे धाम कहे जाने वाले आदि कैलाश यात्रा के लिये भी श्रद्धालुओं में जबर्दस्त क्रेज रहता है। अब इस यात्रा पर जाने के इच्छुक श्रद्धालुओं एवं साहसिक व ग्रामीण तथा ईको-टूरिज्म पसंद पर्यटकों के लिए एक साथ कई खुशखबरें हैं। इस बार से इस यात्रा पर पहले की अपेक्षा आधे दिन ही खर्च होंगे। साथ ही नए विकसित हो रहे कैंपों तथा यात्रा मार्ग पर स्थित गांवों में वहां के लोगों की जीवन शैली में रचते-बसते हुए उनके साथ ‘होम स्टे” करने का मौका मिलेगा। इन नए कैंपों में स्थानीय प्रशिक्षित युवा भी सैलानियों को सेवा एवं सुविधाएं मदद कराने के लिए उपलब्ध होंगे। इसके अलावा यदि सफलता मिली तो यात्रियों को किराए में भी कुछ छूट मिल सकती है। कैलाश मानसरोवर की भांति ही आदि कैलाश यात्रा के आयोजक कुमाऊं मंडल विकास निगम के एमडी धीराज गब्र्याल ने बताया कि मूलत: यह यात्रा 21 दिनों में होती है, लेकिन इस वर्ष से इसे 12-13 दिनों में ही पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए यात्रा मार्ग के ऐसे स्थानों पर, जहां कि अब तक कोई आवासीय सुविधा न होने की वजह से अधिक स्थानों पर रुकना पड़ता था, नए कैंप विकसित किए जा रहे हैं। ऐसा एक 40 यात्रियों की हाई-टेक आवासीय तथा सौर ऊर्जा की सुविधा युक्त कैंप सिरखा से 5-6 किमी आगे नजंग में बन रहा है। इसके अलावा कुमाऊं की ‘वैली ऑफ फ्लावर” कहे जाने वाले छियालेख, नपलचू, नाभी व चीन सीमा पर देश के आखिरी गांव कुटी में यात्रियों के लिए ‘होम-स्टे” की व्यवस्था की जा रही है। उन्होंने कहा कि इससे इन गांवों का एक ओर विकास होगा, वहीं नए पड़ावों पर स्थानीय लोगों को भी वर्ष भर आवासीय सुविधा उपलब्ध होगी। इसके अलावा स्थानीय युवाओं को सीधे के साथ परोक्ष तौर पर भी रोजगार प्राप्त होगा। बताया कि इस ट्रेक पर यात्रा का खर्च करीब 40 हजार रुपए आता है, जिसमें निगम 25 फीसद यानी 10 हजार रुपए की अपनी ओर से छूट देता है। इधर खर्च को और कम करने के लिए प्रदेश सरकार से किराए में 50 फीसद छूट देने का अनुरोध भी किया गया है।

सीमांत के 20 युवाओं का प्रशिक्षण मसूरी में प्रारंभ

Dhiraaj Garbyalनैनीताल। आदि कैलाश के साथ ही सीमांत क्षेत्र के मिलम, नामिक और पंचाचूली ग्लेशियरों के ट्रेकों पर यात्रियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रशिक्षण शिविर मसूरी में शुरू हो गया है। मसूरी के प्रतिष्ठित वुडस्टॉक स्कूल की शाखा-हैनाफिल सेंटर के द्वारा इन ट्रेकिंग रूट के ही रहने वाले चयनित 20 युवाओं को ‘डिप्लोमा इन आउटडोर एंड इन्वायरमेंटल एजुकेशन” का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके तहत युवाओं को रस्सियों व गांठों की मदद से टेंट निर्माण, मूलभूत प्राथमिक चिकित्सा, स्थानीय पेड़, पौंधों, पक्षियों, वन्य जीवों एवं जैव विविधता की जानकारी, बाहर रहने के दौरान आने वाली समस्याओं के समाधान, व्यक्तिगत स्वच्छता, सैलानियों के साथ अच्छा व्यवहार, शालीनता व शिष्टाचार, नीति सिद्धांत, संघर्ष प्रबंधन, अभियान के दौरान आचरण, संचार संप्रेक्षण व संवाद, उपकरणों की देखभाल एवं जोखिम मूल्यांकन आदि का प्रशिक्षण दिया जाएगा। निगम के एमडी धीराज गब्र्याल ने बताया कि प्रशिक्षण शिविर का नेतृत्व अक्षय साह, शांतनु पंडित, एंड्रू हेपवार्थ व गौरव गंगोला आदि के द्वारा किया जा रहा है।

प्राकृत ‘ॐ” पर्वत के भी होते हैं दर्शन

नैनीताल। गौरतलब है कि कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा की तर्ज पर ही वर्ष 1986-87 से आदि कैलाश यात्रा कराई जा रही है। रहस्य-रोमांच और भोले बाबा के भक्ति रस में डूबने के लिहाज से आदि कैलाश यात्रा मानसरोवर यात्रा के समान ही महत्व रखती है। कैलाश शिव का धाम है तो आदि कैलाश भी शिव का छोटा घर ही है। इसलिये इसे छोटा कैलाश भी कहते हैं। यहां शिव के शब्द प्रतीक ‘ॐ” को प्राकृत रूप में देखना अद्भुत अनुभव होता है। इस यात्रा के लिए कैलाश यात्रा की तहत विदेश मंत्रालय से अनुमति नहीं लेनी पड़ती, वीजा की जरूरत भी नहीं पड़ती व चीन में होने वाली दिक्कतों का सामना भी नहीं करना पड़ता। साथ ही खर्च भी कम आता है। नाभीढांग तक मानसरोवर व आदि कैलाश दोनों यात्राओं का मार्ग समान रहता है। नाभीढांग से ‘ॐ” पर्वत के दर्शन करते हुऐ यात्री गुंजी, कुट्टी व जौलिंगकांग होते हुऐ आदि कैलाश पहुंचते हैं। यात्रा के दौरान कुमाऊं के विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर, पाताल भुवनेश्वर व बैजनाथ जैसे आस्था केंद्रोें के दर्शन भी हो पाते हैं।

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