नाथुला से कहीं अधिक है उत्तराखंड के रास्ते कैलाश मानसरोवर यात्रा का क्रेज


Rashtriya Sahara. 07.04.2015, Page-1

-निर्मूल साबित हुई नाथुला का मार्ग खुलने पर उत्तराखंड की चिंता
-उत्तराखंड के पौराणिक मार्ग से 1100 और सिक्किम के रास्ते जाने के लिए केवल 800 यात्रियों ने दी है पहली वरीयता
-सिक्किम की वरीयता वालों ने भी दिया है उत्तराखंड का विकल्प
-उत्तराखंड के रास्ते उपलब्ध सीटों से अधिक आ चुके हैं आवेदन
-10 अप्रैल तक उपलब्ध हैं ऑनलाइन आवेदन
नवीन जोशी, नैनीताल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात के बाद केंद्र सरकार के द्वारा प्रतिष्ठित कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सिक्किम के नाथुला दर्रे से नया मार्ग खोलने पर उत्तराखंड द्वारा व्यक्त की गई चिंता निर्मूल साबित हुई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने स्वयं इस बारे में आशंका व्यक्त की थी, और केंद्र सरकार को भी अपनी चिंता से अवगत कराया था। किंतु इस यात्रा के लिए जिस तरह से आवेदन आ रहे हैं, और तीर्थ यात्री अभी भी नाथुला के अपेक्षाकृत सुगम व सुविधाजनक बताए जा रहे मार्ग की बजाय पुरातन व पौराणिक दुर्गम मार्ग को ही तरजीह दे रहे हैं, इसके बाद स्वयं सीएम रावत ने स्वीकारा है कि उनकी चिंता गैर वाजिब थी। अलबत्ता, उन्होंने जोड़ा कि चिंता गैरवाजिब ही सही किंतु राज्य हित में थी।

उल्लेखनीय है कि हिंदू, जैन व बौद्ध आदि धर्मों के लोगों की आस्था के सबसे बड़े केंद्र कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा ऑनलाइन आवेदन मांगे गए हैं, जिसकी आखिरी तिथि 10 अप्रैल को आने में अभी काफी समय शेष है, लेकिन आ रहे आवेदनों के ट्रेंड को देखें तो अब तक उत्तराखंड के लिपुपास दर्रे के रास्ते को 1100 और नाथुला के रास्ते यात्रा को 800 तीर्थ यात्रियों ने अपनी पहली प्राथमिकता के रूप में भरा है। यात्रा की भारतीय क्षेत्र में आयोजक केएमवीएन के एमडी धीराज गर्ब्याल ने बताया कि इसके अलावा भी जिन लोगों ने नाथुला के रास्ते को पहली प्राथमिकता बताया है, उन्होंने भी अपनी दूसरी प्राथमिकता में उत्तराखंड का विकल्प दिया है। वैसे भी उत्तराखंड के रास्ते 60 यात्रियों के 16 दलों में अधिकतम 1080 यात्री शामिल किए जा सकते हैं, और सप्ताह भर पूर्व तक ही इससे अधिक यात्री आवेदन कर चुके हैं। इसके अलावा भी चूंकि नाथुला के रास्ते 50-50 के पांच दलों में उपलब्ध कुल 250 सीटों से अधिक आवेदन आ चुके हैं, इसलिए आवेदकों को उत्तराखंड के रास्ते यात्रा के लिए चयनित होने के लिए विदेश मंत्रालय द्वारा अंतिम नाम चयन के लिए आयोजित होने वाली लॉटरी में अपने भाग्य के भरोसे तथा बाद में मेडिकल के दौरान स्वस्थ भी रहना होगा।

उत्तराखंड के रास्ते 1826 तो नाथुला के रास्ते 5520 किमी चलना होगा

नैनीताल। वास्तव में नाथुला के रास्ते यात्रा उत्तराखंड के मुकाबले जितनी सुगम व सुविधाजनक लगती है, उतनी है नहीं। दूरी की बात करें तो उत्तराखंड का मार्ग कैलाश के लिए भारत से जाने वाले सभी आठ मार्गों में से सर्वाधिक करीबी मार्ग है। क्योंकि हर मार्ग से जाने के बाद अंतत: सभी को लिपुपास के पीछे ही आना पड़ता है। उत्तराखंड के रास्ते कैलाश जाने पर दिल्ली से भारत में 1208 व चीन में 338 मिलाकर कुल 1546 किमी सड़क पर वाहनों से तथा भारत में 165 व चीन में 54 किमी मिलाकर कुल 1826 किमी की दूरी आने-जाने में तय करनी पड़ती है। जबकि चीन के रास्ते जाने पर दिल्ली से पहले गंगटोक तक 2230 किमी हवाई जहाज से तथा गंगटोक से आगे 3236 किमी दूरी वाहनों से तथा कैलाश क्षेत्र में हर यात्रा मार्ग की तरह 54 किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। इस तरह यह भी गौरतलब है कि उत्तराखंड के रास्ते यात्रा में नाथुला के मुकाबले केवल दो दिन ही अधिक लगते हैं। साथ ही यात्रा पर आने वाले व्यय के मामले में उत्तराखंड के रास्ते से होने वाली यात्रा 20 हजार रुपए सस्ती है। उत्तराखंड के रास्ते यात्रा में हर यात्री को 1.5 लाख रुपए खर्च करने होंगे, जबकि अरुणांचल के रास्ते 1.7 लाख रुपए का किराया देना पड़ेगा।

मैसूर के राजा ने श्रीनगर के खानों से कटवाया था उत्तराखंड का पौराणिक मार्ग

नैनीताल। उत्तराखंड का मार्ग ही कैलाश मानसरोवर जाने के लिए पौराणिक मार्ग है। कहते हैं कि इसी मार्ग से स्वयं भगवान शिव, पांडव अपनी माता कुंती के साथ तथा नैनीताल की त्रिऋषि सरोवर के रूप में स्थापना करने वाले तीन ऋषि अत्रि, पुलस्तय व पुलह इसी मार्ग से कैलाश गए थे। वहीं केएमवीएन के एमडी धीराज गर्ब्याल ने बताया कि एक बार मैसूर के राजा भी इस पौराणिक मार्ग से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए। तब यात्रा मार्ग अत्यधिक कठिन था। इस पर रास्ते की चट्टानें काटने के लिए उन्होंने श्रीनगर से खान जाति के लोगों को यहां बुलवाया। श्री गर्ब्याल बताते हैं कि आज भी गाला पड़ाव से चार किमी आगे लखनपुर के पास खानडेरा नाम का गुफाओं युक्त स्थान उस दौर में खान लोगों के यहां प्रवास की पुष्टि करता है।

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