कैंब्रिज विवि का दल जुटा सूखाताल झील के परीक्षण में


सूखाताल झील की तलहटी के सैंपल लेते सीडार और कैंब्रिज विवि के वैज्ञानिक।
सूखाताल झील की तलहटी के सैंपल लेते सीडार और कैंब्रिज विवि के वैज्ञानिक।

-उत्तराखंड के नैनीताल के अलावा मसूरी तथा हिमाचल प्रदेश के राजगढ़ और पालनपुर एवं नेपाल के बिदुर व धूलीखेत शहरों में भी हो रहे हैं ऐसे अध्ययन 

-पता लगाएंगे झील की जल को सोखने व छानने की क्षमता

नवीन जोशी, नैनीताल। दुनिया में तीसरा विश्व युद्ध जल के लिए ही होने की भविश्यवाणियों के बीच दुनिया के शीर्ष विवि में शुमार कैंब्रिज विवि ने भी जल संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जता दी है। कैंब्रिज विवि के इंजीनियरों व भूवैज्ञानिकों आदि के एक अध्ययन दल ने “सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च” यानी सीडार के साथ उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल के दो-दो शहरों को ‘वाटर सिक्योरिटी एंड ईको सिस्टम सर्विसेज” पर शोध के लिए चुना है। इसमें विश्व प्रसिद्ध नैनी सरोवर की सर्वाधिक ७० फीसद जल प्रदाता सूखाताल झील को भी चुना गया है। अध्ययन के तहत सूखाताल झील की सतह की मिट्टी का इसकी जल को सोखने व साफ करने, छानने की क्षमता का परीक्षण किया जाना है।

सीडार व कैंब्रिज विवि के इस संयुक्त अध्ययन में उत्तराखंड के नैनीताल के अलावा मसूरी तथा हिमाचल प्रदेश के राजगढ़ और पालनपुर एवं नेपाल के बिदुर व धूलीखेत शहर शामिल किए गए हैं। इन शहरों की जल राशियों के संरक्षण एवं संवर्धन के प्रयास इस शोध अध्ययन के लिए किए जाने हैं। नैनीताल में सूखाताल झील में सीडार के प्रमुख वैज्ञानिक एवं इस अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक डा. विशाल सिंह, कैंब्रिज विवि की इंजीनियर फ्रेंचेस्का ओ हेलॉन, भू वैज्ञानिक हेना बैरट, हिस्टोरियन सियो सैक, सीडार के शोध छात्र अमित भाकुनी व स्थानीय समन्वयक दीपक बिष्ट शामिल हैं। डा. सिंह ने बताया कि इस अध्ययन में नैनीताल व सूखाताल झील को इनके वैश्विक महत्व के आधार पर सर्वोच्च वरीयता पर रखा गया है। अध्ययन में कैंब्रिज विवि अपने शोध इंजीनियर व उपकरण उपलब्ध करा रहा है, जबकि अन्य कार्य सीडार की ओर से किये जा रहे हैं। अध्ययन में करीब ढाई वर्ष लगेंगे, जिसके बाद रिपोर्ट तैयार कर शासन एवं एलडीए, नगर पालिका आदि संबंधित पक्षों को सोंपे जाएंगे।

सूखाताल क्षेत्र उजाड़े बिना भी कर सकते हैं सूखाताल झील का उद्धार

नैनीताल। सूखाताल झील पर हो रहे शोध अध्ययन में शोधकर्ताओं के प्रारंभिक आंकलन के अनुसार सूखाताल झील की तलहटी लगातार मलवा डाले जाने से करीब आठ मीटर की ऊंचाई तथा २० मीटर चौड़ाई व ३० मीटर की लंबाई में पट गई है। इस भारी मात्रा के मलवे की वजह से झील की तलहटी में मिट्टी सीमेंट की तरह कठोर हो गई है, और झील स्विमिंग पूल जैसी बन गई है। इस कारण एक ओर झील की गहराई कम हो गई है, जिसकी वजह से झील दो-तीन दिन की बारिश में भी भर जाती है। लेकिन तलहटी सीमेंट जैसी होने की वजह से इसका पानी अंदर रिस नहीं पा रहा, लिहाजा इससे नैनी झील को पूर्व की तरह रिस-रिस कर प्राकृतिक जल प्राप्त नहीं हो पा रहा है। कैंब्रिज विवि की इंजीनियर फ्रेंचेस्का ओ हेलॉन व सीडार के डा. विशाल सिंह का कहना है कि यदि झील में भरे मलवे और इसमें भरी प्लास्टिक की गंदगी को ही हटा दिया जाए तो इस झील का पुनरुद्धार किया जा सकता है, और झील किनारे भवनों को गिराकर ही झील का उद्धार करने जैसी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। उन्होंने सूखाताल झील में बने केएमवीएन की पार्किंग के डिजाइन पर भी सवाल उठाते हुए इसे तकनीकी तौर पर बेहद कमजोर बताया तथा एडीबी आदि सरकारी विभागों द्वारा झील के भीतर किए गए निर्माणों पर भी सवाल उठाए।

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